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कृषि

वाटरशेड विकास परियोजनाएँ क्यों पिछड़ रही हैं?

  • 23 Jul 2018
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

संसदीय स्थायी समिति (PSC) की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) का एक महत्त्वपूर्ण घटक वाटरशेड विकास है, जो बुरी तरह से पिछड़ता जा रहा है। हाल ही में लोकसभा में हुई अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान प्रधानमंत्री द्वारा इस विषय पर चर्चा की जानी चाहिये थी।

प्रमुख बिंदु 

  • जब यह रिपोर्ट पहली बार जुलाई में पेश की गई थी, तो ग्रामीण विकास को लेकर स्थायी समिति ने कहा था कि 2009 और 2015 के बीच 50,740 करोड़ रुपए की लागत वाली स्वीकृत 8,214 परियोजनाओं में से एक को भी पूरा नहीं किया गया|इस प्रतिक्रिया पर भूमि संसाधन विभाग (DoLR) ने अद्यतन किया था कि 11 राज्यों में 849 परियोजनाएँ अक्टूबर 2017 तक पूरी की गई थीं लेकिन विभाग ने स्वीकार किया कि 1,257 परियोजनाएँ अभी पूरी नहीं की जा सकी हैं|

वाटरशेड परियोजनाओं के विकास में सुस्ती 

  • सरकार की प्रतिक्रिया और कार्रवाई रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए समिति ने पिछले सप्ताह संसद में अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
  • इस योजना के विकास में "सुस्ती" को देखते हुए समिति ने DoLR से आग्रह किया कि "शेष परियोजनाओं को त्वरित गति से पूरा करें|
  • नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रूरल डेवलपमेंट एंड पंचायती राज (NIRD और PR) के कृषि अध्ययन केंद्र की प्रमुख डॉ. राधिका रानी द्वारा दी गई संक्षिप्त परिभाषा के अनुसार, "यह वर्षा आधारित (rainfed) क्षेत्रों के लिये जल संरक्षण और पुनर्भरण तथा  मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट को रोकने के लिये एकमात्र विकल्प है|”
  • वाटरशेड विकास परियोजना स्थल के भीतर एक रिज की पहचान की जाती है और रोधक बांध, अंतःश्रवण बांध, तालाब तथा चैनल जैसी संरचनाएँ पहाड़ी से घाटी तक बनाई जाती हैं।
  • योजना के दिशा-निर्देशों के मुताबिक परियोजनाओं को पूरा करने में चार से सात साल का समय लगता है। ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा मई 2018 के मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी) अधिनियम के तहत पीएमकेएसवाई के साथ वाटरशेड घटक को जल और भूमि प्रबंधन परियोजनाओं के साथ लागू किया गया है।
  • लगभग 78% लाभार्थियों ने वाटर टेबल में वृद्धि, जबकि 66% ने चारे की बेहतर उपलब्धता से लाभान्वित होने की सूचना दी|
  • दुर्भाग्यवश, ऐसे दीर्घकालिक परिणाम "तुरंत नहीं दिखाई दे रहे हैं| केंद्र-राज्य फंडिंग पैटर्न 90:10 को 2016 में 60:40 किये जाने से भी इसमें सुस्ती देखी गई| 

समन्वय में देरी

  • 2015 से यह कार्यक्रम अभिसरण मोड में रहा है और यह ज़मीनी स्तर पर चुनौतीपूर्ण है| इसमें DoLR और मनरेगा के अलावा कृषि मंत्रालय, पशु संसाधन और पशुपालन तथा मत्स्यपालन विभाग सहित  सभी की भूमिका होती है और यही कारण है ज़मीनी स्तर पर समन्वय में समय लगता है|
  • अभिसरण का विचार अच्छा है लेकिन व्यावहारिक रूप से  सरकारी विभाग अलग-अलग ढंग से काम करते हैं| भारी सरकारी निवेश के बावजूद वाटरशेड विकास के लाभ लंबे समय तक टिकाऊ नहीं हो रहे हैं| इसके लिये भौतिक संरचनाएँ तो बनाई जा सकती हैं किंतु शासकीय संरचनाएँ गायब हैं। 
  • जब वाटरशेड प्रबंधन परियोजनाओं के परिणामस्वरूप भूजल तालिका बढ़ जाती है, तो क्षेत्र के किसान जल गहन फसल जैसे- गन्ना, उगाने लगते हैं और भूमिगत जल की निकासी करने लगते हैं।
  • एक परियोजना को सरकार अपनी एजेंसियों या एनजीओ के माध्यम से कार्यान्वित कर सकती है, लेकिन परियोजना के समाप्त होने के बाद इसे बनाए रखने की ज़िम्मेदारी किसकी है? 
  • यदि स्थानीय पंचायती राज नेतृत्व और वाटरशेड उपयोगकर्त्ता संघों को मज़बूत और सशक्त नहीं किया जाता है तो कोई भी लाभ केवल आवर्ती और अल्पकालिक होगा|
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