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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति

  • 14 Feb 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

यूएस की इंडो-पैसिफिक रणनीति, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र।

मेन्स के लिये:

स्वतंत्र एवं मुक्त इंडो-पैसिफिक क्षेत्र, यूएस की इंडो-पैसिफिक रणनीति, चीन की मुखरता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी प्रशासन ने लंबे समय से प्रतीक्षित अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति की घोषणा की है। यह दस्तावेज़ इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चुनौतियों से निपटने हेतु सामूहिक क्षमता के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करता है।

  • इस दस्तावेज़ के तहत चीन द्वारा उत्पन्न चुनौतियों, अमेरिकी संबंधों को आगे बढ़ाने, भारत के साथ 'प्रमुख रक्षा साझेदारी' विकसित करने और इस क्षेत्र में एक सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की भूमिका का समर्थन करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • इस रणनीति के तहत न केवल क्षेत्र से बल्कि बाहर के अन्य देशों के साथ भी मिलकर काम करने पर ज़ोर दिया गया।
  • इससे पहले यूरोपीय संघ ने घोषणा की थी कि वह इस क्षेत्र की स्थिरता, सुरक्षा, समृद्धि एवं सतत् विकास में योगदान देने के उद्देश्य से हिंद-प्रशांत में अपने रणनीतिक फोकस, उपस्थिति एवं कार्यों को सुदृढ़ करेगा।

Indo-Pacific-Strategy

अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति के प्रमुख बिंदु

  • इंडो-पैसिफिक का विज़न: अमेरिका एक ऐसेइंडो-पैसिफिक क्षेत्र के निर्माण पर ज़ोर दे रहा है, जो स्वतंत्र, मुक्त, संबद्ध, समृद्ध, सुरक्षित एवं लचीला हो।
    • स्वतंत्र एवं मुक्त: इसके तहत नागरिक समाज, स्वतंत्र प्रेस और लोकतांत्रिक संस्थानों के निर्माण में निवेश किया जाना शामिल है।
    • संपर्क: हिंद-प्रशांत क्षेत्र के भीतर और बाहर।
      • अमेरिका का कहना है कि वह "लचीले समूहों में" प्रमुख मुद्दों से निपटने के लिये "विशेष रूप से क्वाड के माध्यम से" कार्य करेगा।
      • यह अपने (पाँच) क्षेत्रीय संधि गठबंधनों को भी मज़बूत करेगा और आसियान, यूरोपीय संघ (ईयू) तथा नाटो जैसे समूहों के साथ कार्य करेगा।
      • हाल ही में हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएसए के बीच एक नई त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी 'ऑकस' (AUKUS) की घोषणा की गई है।
    • समृद्धि: इस क्षेत्र में अपने समृद्धि लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिये अमेरिका की रणनीति में सुरक्षित आपूर्ति शृंखला स्थापित करने और स्वच्छ ऊर्जा में निवेश करने में मदद हेतु उच्च श्रम एवं पर्यावरण मानकों की मांग शामिल है।
    • सुरक्षा: अमेरिका ने घोषणा की है कि इस क्षेत्र के लिये "एकीकृत निवारण"अमेरिकी सुरक्षा योजना की "आधारशिला" बनेगा।
      • यह “ऐसी पहल करेगा जिससे प्रतिरोध और जवाबी दबाव को मज़बूती मिलेगी जैसे कि क्षेत्रीय सीमाओं को बदलने या समुद्र में संप्रभु राष्ट्रों के अधिकारों को कमज़ोर करने के प्रयासों का विरोध करना।”
    • लचीलापन: हिंद-प्रशांत क्षेत्र प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों का सामना करता है।
      • दक्षिण एशिया के हिमनद पिघल रहे हैं और प्रशांत द्वीप समूह समुद्र के जल स्तर में वृद्धि के कारण अपने अस्तित्त्व के लिये संघर्ष कर रहे हैं, इसलिये जलवायु परिवर्तन का मुद्दा और भी गंभीर होता जा रहा है।
      • इसके अलावा इंडो-पैसिफिक सरकारें प्राकृतिक आपदाओं, संसाधनों की कमी, आंतरिक संघर्ष और शासन की चुनौतियों से जूझ रही हैं।
      • इस संदर्भ में अमेरिका 21वीं सदी के अंतर्राष्ट्रीय खतरों को कम करने की परिकल्पना करता है, जिसमें निम्नलिखित मुद्दे शामिल हैं:
        • वर्ष 2030 और वर्ष 2050 के लक्ष्यों के अनुरूप वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने, रणनीतियों, योजनाओं और नीतियों को विकसित करने हेतु सहयोगियों एवं भागीदारों के साथ कार्य करना।
        • जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण के प्रभावों के प्रति क्षेत्रीय संवेदनशीलता को कम करना।
  • भारत की भूमिका: क्वाड (Quad) में भारत की भूमिका अमेरिका-भारत संबंधों का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है।
    • अमेरिका भारत के साथ द्विपक्षीय रूप से और कई अन्य मुद्दों पर विभिन्न समूहों के माध्यम से कार्य करते हुए "भारत के उदय और क्षेत्रीय नेतृत्व का समर्थन करना जारी रखेगा"।
    • यह क्वाड में भारत को "समान विचारधारा वाले भागीदार देश" और "प्रेरक बल" के रूप में संदर्भित करता है।
    • वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की कार्रवाई (यानी, भारत के साथ चीन का सीमा संघर्ष) का भारत और अमेरिका के संबंधों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
    • स्वास्थ्य, अंतरिक्ष और साइबरस्पेस जैसे नए डोमेन में सहयोग करना, आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी सहयोग को बढ़ाना तथा एक स्वतंत्र इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपने योगदान को बढ़ाना।
  • चीन की हठधर्मिता: इस क्षेत्र में अमेरिका के सहयोगी और भागीदार देशों पर चीन की मुखर/हठधर्मी नीतियों का प्रभाव पड़ रहा हैं।

स्रोत: द हिंदू 

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