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भारतीय अर्थव्यवस्था

सरकारी ऋण पर स्थिति पत्र 2017-18

  • 23 Jan 2019
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?


हाल ही में आर्थिक कार्य विभाग (Department of Economic Affairs) ने सरकारी ऋण पर स्थिति पत्र 2017-18 (Status Paper on Government Debt 2017-18) जारी किया है। गौरतलब है कि सरकार 2010-11 से सरकारी ऋण पर एक वार्षिक स्थिति पत्र प्रकाशित कर रही है, जो सरकार की ऋण स्थिति का विस्तृत विश्लेषण प्रदान करता है।

प्रमुख बिंदु

  • केंद्र सरकार की ऋण स्थिति के अलावा, स्थिति पत्र के इस 8वें संस्करण में राज्य सरकार के ऋण भी शामिल हैं।
  • केंद्र का कुल ऋण मार्च 2014 के अंत में 56,69,429 करोड़ रूपए से बढ़कर 2017-18 में, 82,35,178 करोड़ रूपए हो गया। अर्थात केंद्र सरकार के ऋण में 45% की वृद्धि हुई।
  • इसी दौरान राज्यों का ऋण 24,71,270 करोड़ रूपए से बढ़कर 40,22,090 करोड़ रूपए हो गया अर्थात् राज्यों के ऋण में भी लगभग 63% की वृद्धि दर्ज़ की गई।
  • यदि ऋण-GDP अनुपात की बात करें तो केंद्र का कुल ऋण 31 मार्च 2014 तक 47.5% से घटकर 2017-18 में 46.5% हो गया अर्थात् ऋण के मुकाबले देश की GDP में बढ़ोत्तरी हुई है जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये अच्छा संकेत है।
    हालाँकि, इसी अवधि के दौरान राज्यों का ऋण-GDP अनुपात 2017-18 में बढ़कर 24% हो गया जो 2013-14 के दौरान 22% था।

gdp

  • सरकार द्वारा जारी किये गए आँकड़ों से पता चलता है कि केंद्र सरकार सार्वजनिक ऋण पर एन. के. सिंह समिति की सिफारिशों को पूरा करने के लिये सही दिशा में आगे बढ़ रही है, जबकि राज्य विपरीत दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

क्यों बढ़ा राज्यों पर कर्ज़?

  • इन दो वर्षों में UDAY (Ujwal DISCOM Assurance Yojana) बॉण्ड जारी करने के बाद 2015-16 और 2016-17 के दौरान राज्यों की बकाया देनदारी तेज़ी से बढ़ी है। इसका ही परिणाम है कि ऋण-GDP अनुपात मार्च 2015 के अंत में 21.7% से बढ़कर मार्च 2016 के अंत में 23.4% हो गया और यही आँकड़ा मार्च 2017 के अंत में 23.8% हो गया।
  • ऋण-GDP अनुपात के रूप में कुल बकाया ऋण मार्च 2018 के अंत में 24% था और ऐसा अनुमान लगाया गया है कि मार्च 2019 के अंत में यह बढ़कर 24.3% हो जाएगा।
  • हालाँकि, रिपोर्ट में यह कहा गया है कि राज्यों के पास आने वाले वर्षों में अपना ऋण कम करने के लिये कुछ राजकोषीय ताकत है, जो कि बड़े नकदी अधिशेष के कारण है।

एन. के. सिंह समिति की प्रमुख सिफारिशें

  • समिति ने सरकार के ऋण के लिये GDP के 60 फीसदी की सीमा तय की है यानी केंद्र सरकार का कर्ज़ GDP का 40 फीसदी और राज्य सरकारों का सामूहिक कर्ज़ 20 फीसदी होगा।
  • समिति ने मौजूदा FRBM कानून 2003 और FRBM नियम, 2004 को खत्म कर इसकी जगह नया कर्ज़ और राजकोषीय उत्तरदायित्व कानून बनाने की सिफारिश भी की है। साथ ही राजकोषीय घाटे का सालाना लक्ष्य तय करने के लिये तीन सदस्यीय राजकोषीय परिषद बनाने का सुझाव भी समिति ने दिया है।
  • समिति ने कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष खतरा होने, युद्ध की स्थिति आने, राष्ट्रीय स्तर की कोई आपदा या फिर खेती बर्बाद होने जिसका कृषि उत्पादन पर गंभीर असर पड़े, इन परिस्थितियों में राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में फेरबदल किया जा सकता है।
  • समिति ने यह भी कहा है कि ढाँचागत सुधार वाले प्रयासों (जिनमें कि राजकोषीय प्रभावों का पहले से आकलन नहीं किया जा सकता) के क्रियान्यवयन में राजकोषीय लक्ष्य अनुपालन के रास्ते से हटा जा सकता है। अर्थात राजकोषीय लक्ष्य, विकास के आड़े नहीं आने चाहियें।
  • समिति ने राजस्व घाटे में भी साल दर साल 0.25 प्रतिशत की कटौती करने को कहा है। समिति ने कहा है कि चालू वित्त वर्ष में राजस्व घाटा 2.05 प्रतिशत होना चाहिये, वहीं अगले वित्त वर्ष में इसे घटाकर 1.8 प्रतिशत तथा वित्त वर्ष 2019-20 में कम करके 1.55 प्रतिशत के स्तर पर लाना चाहिये। समिति का कहना है कि वित्त वर्ष 2022-23 में राजकोषीय घाटा कम करके 0.8 प्रतिशत के स्तर पर लाना चाहिये।

क्या है FRBM?

  • उल्लेखनीय है कि देश की राजकोषीय व्यवस्था में अनुशासन लाने के लिये तथा सरकारी खर्च तथा घाटे जैसे कारकों पर नज़र रखने के लिये राजकोषीय जवाबदेही एवं बजट प्रबंधन (FRBM) कानून को वर्ष 2003 में तैयार किया गया था तथा जुलाई 2004 में इसे प्रभाव में लाया गया था।
  • यह सार्वजनिक कोषों तथा अन्य प्रमुख आर्थिक कारकों पर नज़र रखते हुए बजट प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। FRBM के माध्यम से देश के राजकोषीय घाटों को नियंत्रण में लाने की कोशिश की गई थी, जिसमें वर्ष 1997-98 के बाद भारी वृद्धि हुई थी।
  • केंद्र सरकार ने राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन कानून की नए सिरे से समीक्षा करने और इसकी कार्यकुशलता का पता लगाने के लिये एन. के. सिंह के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया था।

स्रोत- द हिंदू

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