भारतीय राजव्यवस्था
मत की गोपनीयता
- 24 Jul 2021
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प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामला मेन्स के लिये:मत की गोपनीयता से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि किसी भी चुनाव में, चाहे वह संसदीय हो या राज्य विधानमंडल का, मतदान की गोपनीयता बनाए रखना अनिवार्य है।
- इसने ‘पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़’ मामले में अपने वर्ष 2013 के फैसले को दोहराया।
प्रमुख बिंदु:
नवीनतम निर्णय की मुख्य विशेषताएँ:
- मौलिक अधिकार का भाग: गोपनीयता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का ही एक भाग है।
- किसी की पसंद की गोपनीयता से ही लोकतंत्र मज़बूत होता है।
- आधारभूत ढाँचे का हिस्सा: लोकतंत्र और स्वतंत्र चुनाव संविधान के आधारभूत ढाँचे का हिस्सा हैं।
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले (1973) के ऐतिहासिक निर्णय में 'मूल संरचना' की अवधारणा अस्तित्व में आई।
- बूथ कैप्चरिंग पर: बूथ कैप्चरिंग और/या फर्जी वोटिंग को लोहे के हाथों से निपटा जाना चाहिये, क्योंकि यह अंततः कानून और लोकतंत्र के शासन को प्रभावित करता है।
- किसी को भी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के अधिकार को कमज़ोर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
- गैर-कानूनी सभा पर: एक बार जब गैर-कानूनी सभा सामान्य उद्देश्य के अभियोजन में स्थापित हो जाती है, तो गैर-कानूनी सभा का प्रत्येक सदस्य दंगा करने के अपराध का दोषी होता है।
- बल का उपयोग: भले ही यह विधानसभा के किसी एक सदस्य द्वारा किया गया मामूली सा व्यवहार हो, परंतु यदि इसे एक बार गैर-कानूनी कार्य के रूप में स्थापित कर दिया गया तो इसे दंगों की परिभाषा में शामिल किया जाता है।
- यह आवश्यक नहीं है कि गैर-कानूनी बल या हिंसा सभी के द्वारा हो, लेकिन यह दायित्व विधानसभा के सभी सदस्यों के लिये है।
- भारतीय कानून के अनुसार, 'गैर-कानूनी सभा' की परिभाषा भारतीय दंड संहिता की धारा 141 में निर्धारित की गई है।
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ केस, 2013 में निर्णय:
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से जो दो मुख्य बातें सामने आईं, वे इस प्रकार हैं:
- वोट के अधिकार में वोट न देने का अधिकार अर्थात् अस्वीकार करने का अधिकार भी शामिल है।
- गोपनीयता का अधिकार स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का एक अभिन्न अंग है।
- अस्वीकार करने का अधिकार: इसका तात्पर्य है कि मतदान करते समय एक मतदाता को चुनाव के दौरान किसी भी उम्मीदवार को न चुनने का भी पूर्ण अधिकार है।
- इस तरह के अधिकार का तात्पर्य तटस्थ रहने के विकल्प से है। यह वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से उद्भूत हुआ है।
- मतदान के समय 'उपरोक्त में से कोई नहीं' (‘None of the Above’- NOTA) बटन का विकल्प शामिल करने से चुनावी प्रक्रिया में जनता की भागीदारी बढ़ सकती है।
- गोपनीयता का अधिकार:
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के अनुसार प्रतिशोध, दबाव या ज़बरदस्ती के डर के बिना मतदान करना मतदाता का केंद्रीय अधिकार है।
- अतः निर्वाचक की पहचान की सुरक्षा करना और उसे गोपनीयता प्रदान करना स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों का अभिन्न हिस्सा है।
- मतदान करने वाले मतदाताओं और मतदान न करने वाले मतदाताओं के बीच अंतर करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14, अनुच्छेद-19(1)(A) तथा अनुच्छेद-21 का उल्लंघन है।
- मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा का अनुच्छेद 21(3) और ‘इंटरनेशनल कोवेनेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकस राईट’ का अनुच्छेद-25(B) ‘गोपनीयता के अधिकार’ से संबंधित हैं।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के अनुसार प्रतिशोध, दबाव या ज़बरदस्ती के डर के बिना मतदान करना मतदाता का केंद्रीय अधिकार है।
अन्य संबंधित निर्णय:
- इससे पूर्व सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्वीकार किया था कि मतपत्रों की गोपनीयता का सिद्धांत संवैधानिक लोकतंत्र का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है और इसे जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA) 1951 की धारा 94 के तहत संदर्भित किया गया है।
- यह धारा मतदाताओं के वोट की पसंद के बारे में गोपनीयता बनाए रखने के विशेषाधिकार को बरकरार रखती है।