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मेघालय ने ‘सामाजिक अंकेक्षण’ को दिया आधिकारिक दर्ज़ा

  • 16 Dec 2017
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

मेघालय सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों के सामाजिक अंकेक्षण को सरकारी काम-काज का हिस्सा बनाने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है।

प्रमुख बिंदु

  • राज्य सरकार ने हाल ही में ‘मेघालय सामुदायिक भागीदारी एवं लोक सेवा सामाजिक अंकेक्षण अधिनियम 2017’ लागू किया है।
  • यह अधिनियम राज्य के 11 सरकारी विभागों और 21 योजनाओं पर लागू किया गया है। हालाँकि शुरुआत के तौर पर 18 गाँवों की 26 योजनाओं को इसमें शामिल कर लिया गया।
  • मेघालय का कार्यक्रम कार्यान्वयन और मूल्यांकन विभाग इस अधिनियम के क्रियान्वयन के लिये नोडल एजेंसी है।
  • सामाजिक अंकेक्षण अब तक सिविल सोसाइटी की पहल पर किये जाते रहे हैं और इन्हें कोई आधिकारिक दर्ज़ा हासिल नहीं था। 
  • यह देश में पहली बार है कि किसी राज्य ने सामाजिक अंकेक्षण को सरकारी तंत्र में आधिकारिक तौर पर शामिल किया है। 
  • इस अधिनियम से जुड़ी तीन बातें महत्त्वपूर्ण हैं –

► इससे किसी योजना में उसके संचालन के दौरान ही सुधार (यदि आवश्यकता हो), किया जा सकता है, क्योंकि केवल यह पता लगाना अंकेक्षण का उद्देश्य नहीं है कि किसी योजना के लिये निर्धारित राशि पूरी तरह खर्च कर दी गई हैया नहीं।
► यह सीधे तौर पर आम नागरिकों को अधिकार देता है कि वे इस बात का निर्णय करें कि धन किस प्रकार खर्च किया जाना है। साथ ही इसके माध्यम से संबंधित अधिकारियों को किसी योजना की प्रगति की वास्तविक स्थिति की जानकारी मिलती रहती है।
► इसके माध्यम से सामाजिक अंकेक्षण सरकारी प्रणाली का आधिकारिक हिस्सा बन गया है। 

क्या होता है सामाजिक अंकेक्षण?

सामाजिक लेखा या सामाजिक अंकेक्षण किसी भी कार्यक्रम अथवा क्रिया, जिसका संबंध प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से समाज से होता है, के सामाजिक निष्पादन के मूल्यांकन से संबंधित प्रक्रिया है। इसका प्रयोग किसी कार्य के प्राथमिक स्तर अर्थात् उद्भव से लेकर क्रियान्वयन एवं उस क्रियान्वयन के दीर्घकाल तक के प्रभावों की स्वतंत्र व निष्पक्ष जाँच और उस जाँच में परिलक्षित कमियों में सुधार का परीक्षण, औचित्यता के साथ किया जाता है, ताकि समाज के हित में हर स्तर तक विकास हो सके।

सामाजिक अंकेक्षण का महत्त्व

  • जिन संस्थाओं पर कैग का ऑडिट संबंधी अधिकार अस्पष्ट है, उनके ऑडिट के लिये सामाजिक अंकेक्षण कारगर विधि है। 
  • सामाजिक अंकेक्षण योजनाओं की प्रगति के भौतिक सत्यापन हेतु प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध करवाता है। 
  • इससे लोगों की प्रशासन में भागीदारी बढ़ती है और लोकतांत्रिक प्रक्रिया और मज़बूत होती है। 
  • सामाजिक अंकेषण केवल एक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह शासन को अपने दायित्वों के लिये प्रतिबद्ध और जनता के प्रति जवाबदेह बनाता है।  
  • यह समुदायों के लिये उपयुक्त नीतियों और कार्यक्रमों को तैयार करने तथा उनमें सुधार करने में प्रशासन की सहायता करता है। यह प्रशासन के प्रति लाभार्थियों में विश्वास को पोषित करता है।

सामाजिक अंकेक्षण की सीमाएँ

  • सामाजिक लेखा स्थानीय प्रकृति का होता है। इसमें ऑडिट के कई पहलुओं की अनदेखी की जाती है। 
  • इससे प्राप्त परिणामों पर गहन विश्लेषण और चिंतन नहीं होता अतः इनके बाद होने वाली कार्रवाई का स्वरूप सीमित होता है। 
  • आँकड़ों की पर्याप्त अनुपलब्धता भी सामाजिक अंकेक्षण के वास्तविक उद्देश्य की प्राप्ति में बाधा है। 
  • प्रशासनिक इच्छाशक्ति का अभाव भी अंकेक्षण की इस प्रक्रिया को गतिहीन कर देता है।
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