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भारतीय राजव्यवस्था

न्यायिक प्रक्रिया में मध्यस्थता

  • 11 Apr 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मध्यस्थता, सुप्रीम कोर्ट, मध्यस्थता, बातचीत, सुलह, मध्यस्थता से संबंधित विभिन्न कानून।

मेन्स के लिये:

विवाद निवारण तंत्र, मध्यस्थता प्रक्रिया, इससे संबंधित कानून, मुद्दे और आगे का रास्ता।

चर्चा में क्यों?

मध्यस्थता और सूचना प्रौद्योगिकी पर राष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने न्यायिक प्रक्रिया में मध्यस्थता की अवधारणा की वकालत की।

मध्यस्थता क्या है?

  • मध्यस्थता एक स्वैच्छिक, बाध्यकारी प्रक्रिया है जिसमें एक निष्पक्ष और तटस्थ मध्यस्थ विवादित पक्षों के बीच समझौता कराने में मदद करता है। 
  • मध्यस्थ विवाद का कोई समाधान प्रदान नहीं करता है बल्कि एक अनुकूल वातावरण बनाता है जिसमें विवादित पक्ष अपने सभी विवादों को हल कर सकते हैं।
  • मध्यस्थता विवाद समाधान का एक आजमाया हुआ और परखा हुआ वैकल्पिक तरीका है। यह दिल्ली, रांची, जमशेदपुर, नागपुर, चंडीगढ़ एवं औरंगाबाद शहरों में सफल साबित हुआ है।
  • मध्यस्थता एक संरचित प्रक्रिया है जहाँ एक तटस्थ व्यक्ति विशेष संचार और बातचीत तकनीकों का उपयोग करता है तथा मध्यस्थता प्रक्रिया में भाग लेने वाले पक्षों द्वारा स्पष्ट रूप से इसका समर्थन किया जाता है।
  • यह एक निपटान प्रक्रिया है जिसके द्वारा विवादित पक्ष परस्पर स्वीकार्य समझौतों पर पहुँचते हैं।
  • मध्यस्थता के अलावा कुछ अन्य विवाद समाधान विधियाँ जैसे- विवाचन (Arbitration), बातचीत (Negotiation) और सुलह (Conciliation) हैं ।

मध्यस्थ कौन हो सकता है?

  • कोई भी व्यक्ति जो सर्वोच्च न्यायालय (SC) की मध्यस्थता और सुलह परियोजना समिति (Mediation and Conciliation Project Committee) द्वारा निर्धारित आवश्यक 40 घंटे के प्रशिक्षण से गुज़रता है, मध्यस्थ हो सकता है।
  • उसे एक योग्य मध्यस्थ के रूप में मान्यता प्राप्त करने हेतु कम-से-कम दस मध्यस्थताओं, जिनके परिणामस्वरूप एक समझौता हुआ हो तथा समग्र तौर पर कम-से-कम 20 मध्यस्थताओं के रूप में हिस्सा लेने की आवश्यकता होती है।

मध्यस्थ की भूमिका:

  • निष्पक्ष और तटस्थ होना।
  • पार्टियों के बीच बातचीत का प्रबंधन।
  • पार्टियों के बीच संचार की सुविधा।
  • किसी समझौते की बाधाओं की पहचान करना।
  • पार्टियों के हितों की पहचान करना।
  • समझौते की शर्तें तैयार करना।

मध्यस्थता का महत्त्व:

  • त्वरित एवं उत्तरदायी।
  • किफायती।
  • कोई अतिरिक्त लागत नहीं।
  • सामंजस्यपूर्ण निपटान।
  • उपाय एवं उपचार।
  • गोपनीय एवं अनौपचारिक।
  • कार्यवाही का नियंत्रण पक्षों के हाथ में।

मध्यस्थता की प्रक्रिया से संबंधित चुनौतियाँ: 

  • संहिताकरण की कमी: जनवरी 2020 में एमआर कृष्ण मूर्ति बनाम न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत में मध्यस्थता हेतु एक समान कानून बनाने की तत्काल आवश्यकता पर ध्यान दिया था।
  • मध्यस्थता के प्रति आशंका और जागरूकता की कमी: कानूनी विशेषज्ञों के बीच अभी भी मध्यस्थता का पर्याप्त ढंग से स्वागत नहीं किया गया है।
    • मध्यस्थता को विवाद समाधान तंत्र के रूप में लोकप्रिय बनाने के लिये मध्यस्थता के लाभों से न्यायाधीशों को परिचित कराने हेतु प्रशिक्षण सत्र एवं सेमिनार आयोजित किये जाने चाहिये।
  • ढाँचागत मुद्दे एवं गुणवत्ता नियंत्रण: मध्यस्थता को बढ़ावा देने से ज़ाहिर तौर पर उन मध्यस्थता केंद्रों पर काम का बोझ बढ़ जाएगा, जिनमें अभी प्रशासनिक क्षमता की कमी है।
    • इससे मध्यस्थता के मूल सिद्धांत यानी विवादों के तीव्र समाधान का उल्लंघन होगा।
    • इस मुद्दे से निपटने के लिये भारत में मध्यस्थता की प्रक्रिया को पेशेवर बनाया जाना चाहिये।
  • मध्यस्थता को लेकर मौजूदा कानूनों के बीच असंगति: सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले में कहा था कि 'मध्यस्थता' और 'सुलह' शब्द एक-दूसरे के समानार्थक हैं।
    • इसके विपरीत नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी), 1908 की धारा 89 की भाषा दर्शाती है कि इस धारा के पीछे विधायी मंशा ‘मध्यस्थता’ और ‘सुलह’ के बीच अंतर करना था।
    • इस प्रकार मौजूदा अस्पष्टता ने मध्यस्थता की प्रक्रिया में अस्पष्टता को और बढ़ा दिया है।

मध्यस्थता से संबंधित कानूनी प्रावधान:

आगे की राह 

  • कोविड-19 महामारी ने विवाद समाधान के साधन के रूप में मध्यस्थता के महत्त्व को बढ़ा दिया है। महामारी की वजह से शुरू हुए मामलों का उचित समाधान एक त्वरित और प्रभावी निवारण तथा मध्यस्थता से हो सकता है।
  • हालाँकि कई चुनौतियांँ हैं जो मध्यस्थता की प्रभावशीलता को सीमित करती हैं। विभिन्न उच्च न्यायालयों के लिये अलग-अलग मध्यस्थता नियमों के मौजूदा ढांँचे ने मध्यस्थता प्रक्रिया में अनिश्चितता में वृद्धि की है।
  • इस प्रकार समाधान के लिये एक प्रभावी उपकरण के रूप में मध्यस्थता को मान्यता देने की दिशा में सबसे महत्त्वपूर्ण कदम केवल मध्यस्थता हेतु एक कानून बनाना होगा।
    • मध्यस्थता विधेयक, 2021 को सभी हितधारकों के सभी आवश्यक इनपुट के साथ जल्द से जल्द पारित किया जाना चाहिये।
  • कानून को प्रवर्तन और गुणवत्ता नियंत्रण की चिंताओं को दूर करने का प्रयास करना चाहिये।
  • हालाँकि यह सुनिश्चित करने के लिये सावधानी बरती जानी चाहिये कि कानून मध्यस्थता में संलग्न पक्षों की स्वायत्तता में हस्तक्षेप न करे।
  • अधिनियम को मध्यस्थता की लचीली प्रकृति का पूरक होना चाहिये और मध्यस्थता में शामिल प्रक्रियाओं के मानकीकरण में मदद करनी चाहिये।
  • इसके अलावा मुकदमेबाज़ी से पहले इसे अनिवार्य कदम बनाकर मध्यस्थता को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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