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शासन व्यवस्था

पूर्वोत्तर राज्यों में हिंदी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

  • 11 Apr 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

त्रि-भाषा नीति, संविधान की छठी अनुसूची, भाषा से संबंधित संवैधानिक प्रावधान, कोठारी आयोग 

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, राज्यों का भाषायी संगठन, कोठारी आयोग, विविधता में एकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने आठ पूर्वोत्तर राज्यों में हिंदी को कक्षा 10 तक अनिवार्य करने का प्रावधान किया है।

  • हिंदी को ‘भारत की भाषा’ के रूप में वर्णित किया गया है।
  • हालाँकि पूर्वोत्तर के विभिन्न संगठनों द्वारा इस कदम का विरोध किया जा रहा है। साथ ही कई दक्षिण भारतीय राज्यों ने केंद्र सरकार के फैसले की आलोचना की है।
  • इसके बजाय ये समूह त्रिभाषा नीति- अंग्रेज़ी, हिंदी और स्थानीय भाषा का समर्थन कर रहे हैं।

पूर्वोत्तर संगठन द्वारा प्रस्तुत तर्क:

  • छठी अनुसूची: ये राज्य संविधान की छठी अनुसूची द्वारा संरक्षित हैं, ऐसे में केंद्र सरकार छात्रों पर हिंदी भाषा को थोप नहीं सकती है।
  • भेदभाव: केंद्र सरकार का यह कदम हिंदी भाषियों को आर्थिक, शैक्षणिक एवं प्रशासनिक बढ़त प्रदान करेगा और उन्हें दीर्घकाल में देश के गैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों को नियंत्रित करने में सहायता करेगा।

हिंदी भाषा और पहचान की समस्या:

  • राज्यों का भाषायी संगठन: भारत में अधिकांश राज्यों का गठन भाषायी आधार पर किया गया है।
    • भारत में सीमित संसाधनों के कारण पहचान को लेकर विशेष रूप से भाषाओं को लेकर संघर्ष बढ़ जाता है।
  • भाषायी विभाजन के उदाहरण: भाषा की स्थिति एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा रही है, जो कि अतीत में राज्यों के विभाजन का कारण बना।
    • आंध्र प्रदेश (भाषायी आधार पर गठित पहला राज्य), पंजाब और गुजरात जैसे राज्य भाषायी आधार पर राज्य की मांग के कारण बनाए गए थे।
  • संघर्ष प्रबंधन का साधन: भाषा नीति एक तरीका है, जिसके द्वारा सरकारें जातीय संघर्ष का प्रबंधन करने का प्रयास करती हैं।
    • इस प्रकार संघीय सहयोग विकसित करने के लिये भाषा नीति पर राज्यों की स्वायत्तता त्रिभाषा सूत्र लागू करने की तुलना में अधिक व्यवहार्य विकल्प हो सकती है।

त्रिभाषा सूत्र क्या है और इसकी आवश्यकता क्यों है?

  • परिचय: त्रिभाषा सूत्र पहली बार कोठारी आयोग द्वारा 1968 में प्रस्तावित किया गया था। इस योजना के तहत:
    • पहली भाषा: यह मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा होगी।
    • दूसरी भाषा: हिंदी भाषी राज्यों में यह अन्य आधुनिक भारतीय भाषाएंँ या अंग्रेज़ी होगी। गैर-हिंदी भाषी राज्यों में यह हिंदी या अंग्रेज़ी होगी।
    • तीसरी भाषा: हिंदी भाषी राज्यों में यह अंग्रेज़ी या आधुनिक भारतीय भाषा होगी। गैर-हिंदी भाषी राज्य में यह अंग्रेज़ी या आधुनिक भारतीय भाषा होगी।
  • आवश्यकता: प्राथमिक उद्देश्य बहुभाषावाद और राष्ट्रीय सद्भाव को बढ़ावा देना है।
    • कोठारी समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि भाषा सीखना बच्चे के संज्ञानात्मक विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
  • कार्यान्वयन: माध्यमिक स्तर पर राज्य सरकारों को त्रिभाषा सूत्र अपनाना था।
    • इसमें हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी और अंग्रेज़ी के अलावा एक आधुनिक भारतीय भाषा का अध्ययन करना शामिल था, अधिमानतः दक्षिणी भाषाओं में से एक।
    • 'गैर-हिंदी भाषी राज्यों' में क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेज़ी के साथ-साथ हिंदी का अध्ययन किया जाना चाहिये।
  • कार्यान्वयन में समस्या: हिंदी पट्टी के राज्य (जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार में) त्रिभाषा सूत्र के तहत दक्षिण भारतीय भाषाओं को शिक्षण में बढ़ावा नहीं दे सके।
    • तमिलनाडु, पुद्दुचेरी और त्रिपुरा जैसे राज्य अपने स्कूली पाठ्यक्रम में हिंदी पढ़ाने के लिये तैयार नहीं थे।
    • इसके बजाय उन्होंने इस मुद्दे की स्वायत्तता की मांग की।

भाषाओं से संबंधित संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • भारत के संविधान का अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करता है। अनुच्छेद में कहा गया है कि नागरिकों के किसी भी वर्ग की अपनी एक अलग भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे इसे संरक्षित करने का अधिकार होगा।
  • अनुच्छेद 343 भारत संघ की आधिकारिक भाषा के बारे में है। इस अनुच्छेद के अनुसार, देवनागरी लिपि में हिंदी होनी चाहिये और अंकों को भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप का पालन करना चाहिये।
    • इस अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि संविधान के लागू होने के 15 वर्षों तक अंग्रेज़ी को आधिकारिक भाषा के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहेगा।
  • अनुच्छेद 346 राज्यों और संघ एवं राज्य के बीच संचार हेतु आधिकारिक भाषा के विषय में प्रबंध करता है। 
    • अनुच्छेद के अनुसार, उक्त कार्य के लिये "अधिकृत" भाषा का उपयोग किया जाएगा। हालाँकि यदि दो या दो से अधिक राज्य सहमत हैं कि उनके मध्य संचार की भाषा हिंदी होगी, तो आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी का उपयोग किया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 347 राष्ट्रपति को किसी राज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में एक भाषा को चुनने की शक्ति प्रदान करता है, बशर्ते कि राष्ट्रपति संतुष्ट हो कि उस राज्य का एक बड़ा हिस्सा भाषा को मान्यता देना चाहता है।
    • ऐसी मान्यता राज्य के किसी हिस्से या पूरे राज्य के लिये हो सकती है।
  • अनुच्छेद 350A  प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएँ प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 350B भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान करता है। 
    • विशेष अधिकारी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी, यह भाषायी अल्पसंख्यकों के सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जाँच करेगा तथा सीधे राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौंपेगा। 
    • तत्पश्चात् राष्ट्रपति उस रिपोर्ट को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है या उसे संबंधित राज्य/राज्यों की सरकारों को भेज सकता है।
  • अनुच्छेद 351 केंद्र सरकार को हिंदी भाषा के विकास के लिये निर्देश जारी करने की शक्ति देता है।
  • भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 आधिकारिक भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है।

आगे की राह

  • अनेकता में एकता हमेशा से भारत की ताकत रही है। इसलिये भाषा से जुड़ी पहचान तथा भारत के एक संघीय राज्य होने के संदर्भ में केंद्र और राज्यों दोनों को सहकारी मॉडल का पालन करना चाहिये तथा भाषा आधिपत्य/अराजकता से बचना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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