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संसद टीवी संवाद

भारतीय राजव्यवस्था

विशेष विवाह अधिनियम एवं UCC

  • 10 Dec 2020
  • 9 min read

संदर्भ

हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने केवल विवाह हेतु अपना धर्म बदलने के मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त की है। विभिन्न धर्मों के दो व्यक्ति 'विशेष विवाह अधिनियम' (Special Marriage Act- SMA) के तहत विवाह कर सकते हैं इसके पश्चात भी केवल विवाह के लिये प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जबरन धर्मांतरण चिंता का विषय है। इससे व्यक्ति का मौलिक अधिकार बाधित होता है। विशेष विवाह अधिनियम समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code- UCC) की दिशा में सबसे शुरुआती बिंदुओं में से एक है।

उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी एक मुस्लिम महिला के हिंदू धर्म में धर्मांतरण एवं उसके एक महीने पश्चात हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार शादी करने पर किया।

विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954:

  • विशेष विवाह अधिनियम भारत में अंतरधार्मिक एवं अंतर्जातीय विवाह को पंजीकृत करने एवं मान्यता प्रदान करने हेतु बनाया गया है।
  • यह एक नागरिक अनुबंध के माध्यम से दो व्यक्तियों को अपनी शादी विधिपूर्वक करने की अनुमति देता है।
  • अधिनियम के तहत किसी धार्मिक औपचारिकता के निर्वहन की आवश्यकता नहीं है।

विशेष विवाह अधिनियम के तहत प्रावधान:

ज्ञातव्य है कि वर्ष 1954 में विशेष विवाह अधिनियम लागू हुआ, जिसमें किसी भी व्यक्ति को कुछ शर्तों के साथ किसी अन्य धर्म या जाति से संबंधित किसी व्यक्ति से विवाह की अनुमति है। 

विशेष विवाह अधिनियम की धारा 4 के अंतर्गत निम्नलिखित शर्तें शामिल हैं:

  • इसके अनुसार, दोनों पक्षों में से किसी एक का कोई जीवनसाथी नहीं होना चाहिये। 
  • दोनों पक्षों को अपनी सहमति देने में सक्षम होना चाहिये, अर्थात् वो वयस्क हों एवं अपने फैसले लेने में सक्षम हों। 
  • दोनों पक्ष उन कानूनों के तहत, जो उनके धर्म विशेष पर लागू होता है, निर्धारित निषिद्ध संबंधों, जैसे-अवैध या वैध रक्त संबंध, गोद लेने से संबंधित व्यक्ति, में नहीं होना चाहिये। 
  • इसके साथ ही पुरुष की आयु कम से कम 21 और महिला की आयु कम से कम 18 होनी चाहिये।

यदि ये सभी शर्तों पूरी होती हैं तो दोनों पक्ष जिस क्षेत्र में विगत तीस दिनों से निवास कर रहे हैं उस क्षेत्र में विवाह अधिकारी को उनके विवाह हेतु अनुमति पत्र दे सकते हैं। 

यदि किसी को भी इस विवाह से कोई आपत्ति है तो वह अगले 30 दिनों की अवधि में इसके खिलाफ नोटिस दायर कर सकता है। आपत्तियों पर विचार करने के 30 दिनों की अवधि के पश्चात, विवाह के पंजीकरण पर हस्ताक्षर करने के लिये 3 गवाहों के साथ विवाह की अनुमति दी जाती है। 

ज्ञातव्य है कि यदि कोई भी व्यक्ति यह मानता है कि दोनों में से कोई भी पक्ष सभी आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं करता है तो शादी के खिलाफ आपत्ति दर्ज कर सकता है। यदि आपत्ति सही पाई जाती है तो विवाह अधिकारी विवाह हेतु अनुमति प्रदान करने से मना कर सकता है।

अधिनियम से संबंधित चुनौती

  • यह अधिनियम केवल अलग-अलग धर्मों या जातियों से संबंधित दो लोगों के विवाह को मान्यता प्रदान करता है किंतु, उन लोगों के लिये सज़ा का कोई प्रावधान नहीं है, जो सिर्फ विवाह के लिये दूसरे साथी पर धर्मांतरण के लिये दबाव बनाते हैं। 
  • यह पारसी जैसे समुदायों के लिये एक गंभीर मुद्दा है, क्योंकि वह पहले से ही अल्पसंख्यक हैं और जबरन धर्मांतरण के कारण ये समुदाय जल्द ही लुप्त हो जाएँगे। 

यूनिफॉर्म सिविल कोड:

  • समान नागरिक संहिता एक एकल कानून को संदर्भित करती है, जो भारत के सभी नागरिकों के लिये उनके व्यक्तिगत मामलों जैसे विवाह, तलाक, हिरासत, गोद लेने और विरासत जैसे मामलों पर लागू होता है। 
  • संविधान के अनुच्छेद 44 के अंतर्गत राज्य को अपने नागरिकों के लिये पूरे भारत में एक समान नागरिक संहिता (UCC) को सुरक्षित करने का प्रयास करना चाहिये। हालाँकि इस संबंध में आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। 
  • ज्ञातव्य है कि भारत की संसद समान नागरिक संहिता के अंतर्गत भारत में मौजूद प्रमुख धार्मिक समुदायों के धर्मग्रंथों और रीति-रिवाजों पर आधारित व्यक्तिगत कानूनों को बदलकर इन सबके लिये समान नियम लागू करने हेतु प्रयास कर सकती है।

आगे की राह

प्रभावी कार्यान्वयन और संशोधन: 

  • भारत के पास पर्याप्त कानून हैं लेकिन उन्हें मज़बूती से लागू करने की आवश्यकता है।
  • अंतरधार्मिक विवाह के मामले में जबरन धर्मांतरण के मुद्दे पर विचार होना चाहिये। 
  • इसके अलावा, विशेष विवाह अधिनियम, 1954 अब 66 साल पुराना कानून है अतः इसमें कुछ बदलाव होने चाहिये। 

धर्म और व्यक्तिगत मामलों को पृथक करना: 

  • धर्म और व्यक्तिगत मामलों को पृथक रूप से समझना चाहिये। विवाह एवं धर्मांतरण दो अलग अलग मुद्दे है तथा इन्हें अलग अलग तरीके से निपटने के लिये कानून होने चाहिये।

समान नागरिक संहिता समाधान के रूप में: 

  • सभी समुदायों हेतु विवाह, उत्तराधिकार, तलाक आदि सभी व्यक्तिगत मामलों के लिये एक समान नागरिक संहिता होना चाहिये। 
  • विवाह जैसे मुद्दे प्रकृति में धर्मनिरपेक्ष हैं, इसलिये एक समान कानून उन्हें विनियमित कर सकता है। 

अनुच्छेद 44, 25 और 26: 

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के अंतर्गत उल्लिखित समान नागरिक संहिता एवं अनुच्छेद 25 और 26 आपस में विरोधाभासी समझे जाते हैं। अतः इनके मध्य संतुलन पर चर्चा होनी चाहिये।
  • ज्ञातव्य है कि संविधान के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत भारत सभी व्यक्ति को समान रूप से विवेक की स्वतंत्रता और धर्म का अभ्यास एवं प्रचार करने का मौलिक अधिकार प्राप्त है।
  • साथ ही अनुच्छेद 26 के अंतर्गत प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी वर्ग को धार्मिक संस्थानों को स्थापित करने और बनाए रखने तथा धर्म के मामलों के प्रबंधन का अधिकार है।

निष्कर्ष 

धार्मिक विश्वास आज ईश्वर में विश्वास से परे चला गया है एवं नकारात्मक स्वरूप में समाज में फैलने लगा है, जहाँ लोग अपने मूल्यों और विश्वासों को दूसरों पर थोपना चाहते हैं। अतः ज़रूरी है कि सभी समुदायों के प्रतिनिधि से व्यापक स्तर पर परामर्श कर समान नागरिक संहिता को अस्तित्व में लाने का प्रयास किया जाए।

अभ्यास प्रश्न: केवल विवाह हेतु धर्मांतरण कितना आवश्यक है? इस मामले में विशेष विवाह अधिनियम एवं समान नागरिक संहिता का क्या महत्त्व है?

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