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भूगोल

जलवायु परिवर्तन पर भारत व नार्वे का संयुक्त वक्तव्य

  • 17 Feb 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये

COP-13, समुद्री प्लास्टिक कचरा, माइक्रोप्लास्टिक

मेन्स के लिये

समुद्री प्लास्टिक कचरा व माइक्रोप्लास्टिक के दुष्प्रभाव

चर्चा में क्यों?

17-22 फरवरी 2020 के मध्य गुजरात के गांधीनगर में आयोजित COP-13 सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए भारत ने नार्वे के साथ समुद्री प्लास्टिक कचरे (Marine Plastic Litter) और माइक्रोप्लास्टिक (Microplastics) को कम करने की दिशा में सहयोग हेतु एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया हैं।

प्रमुख बिंदु

  • जैव विविधता पर ‘सुपर ईयर 2020’ के प्रारंभ होने पर दोनों देशों ने 2020 को जलवायु परिवर्तन की महत्त्वपूर्ण कार्रवाइयों के दशक के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।
  • दोनों देशों ने महासागरीय जलवायु परिवर्तन संबंधी मामलों समेत पर्यावरण और जलवायु पर पारस्परिक लाभकारी सहयोग जारी रखने तथा इसे और मज़बूत करने की इच्छा व्यक्त की है।
  • जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण को लक्षित करने वाले कार्य विजयी स्थिति निर्मित करते हैं। दोनों पक्षों ने माना कि इस तरह के कार्यों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये, और इस एजेंडे को बढ़ाने के लिये मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
  • दोनों देशों का मानना है कि हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) के उपयोग को बढ़ाने के लिये मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किये गए किगाली संशोधन सदी के अंत तक 0.40 डिग्री सेल्सियस तक तापमान को बढ़ने से रोक सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन की दिशा में नार्वे द्वारा समर्थित परियोजनाओं के कुशलतम परिणामों को देखते हुए इन परियोजनाओं को जारी रखने पर सहमति हुई।
  • यदि महासागरीय संसाधनों को ठीक से प्रबंधित किया जाता है, तो महासागर सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने की क्षमता रखते हैं। एकीकृत महासागर प्रबंधन एक स्थायी नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।

नीली अर्थव्यवस्था

  • विश्व बैंक के अनुसार, महासागरों के संसाधनों का उपयोग जब आर्थिक विकास, आजीविका तथा रोज़गार एवं महासागरीय पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर किया जाता है तो वह नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) के अंतर्गत आता है।
  • नीली अर्थव्यवस्था को प्रायः मरीन अर्थव्यवस्था, तटीय अर्थव्यवस्था एवं महासागरीय अर्थव्यवस्था के नाम से भी पुकारा जाता है।
  • नीली अर्थव्यवस्था में आर्थिक वृद्धि, रोज़गार के अवसर में तेजी लाने की क्षमता है। यह नई औषधियों, कीमती रसायनों और प्रोटीन फूड का पता लगाने में मदद करती है और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की जानकारी देती है।
  • भारत के लिये नीली अर्थव्यवस्था का महत्त्व काफी अधिक है। भारत समुद्री अधोसंरचना, अंतर्देशीय जलमार्गों तथा तटीय शिपिंग इत्यादि का विकास कर रहा है। इसके लिये भारत ने ‘सागरमाला कार्यक्रम’ लॉन्चकिया है। जिसका उद्देश्य समुद्री लाॅजिस्टिक्स तथा बंदरगाहों का विकास करना है।
  • वर्ष 2019 में दोनों देशों के प्रधानमंत्री ने भारत-नार्वे महासागर वार्ता में सतत विकास के लिये नीली अर्थव्यवस्था पर संयुक्त कार्य बल की स्थापना को लेकर सहमति व्यक्त की थी।
  • दोनों देशों ने रसायनों और कचरे के स्थायी प्रबंधन के महत्व को स्वीकार किया तथा भारत और नॉर्वे के बीच स्टॉकहोम कन्वेंशन द्वारा जैविक प्रदूषकों पर कार्यान्वयन और समुद्री कचरे के न्यूनीकरण पर संतुष्टि व्यक्त की।
  • दोनों देशों ने समुद्री प्लास्टिक कचरे और माइक्रोप्लास्टिक की वैश्विक और तात्कालिक प्रकृति की एक साझा समझ विकसित करने पर जोर देते हुए रेखांकित किया कि इस मुद्दे को अकेले किसी एक देश द्वारा हल नहीं किया जा सकता है।
  • वे प्लास्टिक प्रदूषण को संबोधित करने के लिये वैश्विक कार्रवाई का समर्थन करने और प्लास्टिक प्रदूषण पर एक नया वैश्विक समझौता स्थापित करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
  • दोनों देशों ने प्रवासी प्रजातियों तथा जंगली जानवरों के संरक्षण पर चर्चा की।

काॅप-13 (COP-13)

  • गुजरात के गांधीनगर में 17-22 फरवरी, 2020 तक 13वें संयुक्त राष्ट्र प्रवासी पक्षी प्रजाति संरक्षण सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। इस सम्मेलन का संक्षिप्त नाम CMS-COP-13 (13th Conference of Parties (COP) of the Convention on Conservation of Migratory Species of Wild Animals) है।
  • भारत को अगले तीन वर्ष के लिये इस कांफ्रेंस का अध्यक्ष चुना गया है। इस सम्मेलन में 130 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे। इस सम्मेलन के लिये ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (गोदावण) को शुभंकर बनाया गया है।
  • COP-13 माइग्रेटरी स्पीसीज़ कनेक्ट द प्लैनेट एंड वी वेलकम देम होम (Migratory species Connect the Planet and we welcome them home) की थीम के साथ आयोजित किया गया है।

प्रवासी वन्यजीवों की प्रजातियों के संरक्षण के लिये सम्मेलन (Conservation of Migratory Species of Wild Animals-CMS)

  • CMS संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तहत एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है। इसे बाॅन कन्वेंशन के नाम से भी जाना जाता है।
  • CMS का उद्देश्य स्थलीय, समुद्री तथा उड़ने वाले अप्रवासी जीव जंतुओं का संरक्षण करना है। इस कन्वेंशन द्वारा अप्रवासी वन्यजीवों तथा उनके प्राकृतिक आवास पर विचार विमर्श के लिये एक वैश्विक प्लेटफार्म तैयार होता है।
  • इस संधि पर वर्ष 1979 में जर्मनी के बाॅन में हस्ताक्षर किये गए थे। यह संधि वर्ष 1983 में लागू हुई थी।

स्रोत: PIB

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