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भारतीय राजव्यवस्था

सरकारी सहायता मौलिक अधिकार नहीं: SC

  • 28 Sep 2021
  • 3 min read

प्रिलिम्स के लिये

सरकारी सहायता,  मौलिक अधिकार, सर्वोच्च न्यायालय

मेन्स के लिये

सरकारी सहायता नीति और मौलिक अधिकार के नियम और शर्तें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने फैसला सुनाया कि किसी संस्था को दी जाने वाली सरकारी सहायता नीति का विषय है, यह मौलिक अधिकार नहीं है।

  • भारत के संविधान का अनुच्छेद 30 (शैक्षिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिये अल्पसंख्यकों के अधिकारों से संबंधित) अपने स्वयं के प्रतिबंधों के अधीन है।

प्रमुख बिंदु

  • सहायता एक मौलिक अधिकार नहीं:
    • कोई भी संस्था चाहे वह बहुसंख्यक हो या अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा संचालित हो, सरकारी सहायता प्राप्त करने का अधिकार उसका मौलिक अधिकार नहीं है। दोनों ही मामलों में सहायता के नियमों और शर्तों का समान रूप से पालन करना होगा।
  • कारण:
    • सरकारी सहायता एक नीतिगत निर्णय है। यह विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है जिसमें संस्था के हित और सरकार की कार्यप्रणाली को समझने की क्षमता शामिल है।
    • वित्तीय बाधाएँ और कमियाँ ऐसे कारक हैं जिन्हें सहायता देते समय कोई भी निर्णय लेने में प्रासंगिक माना जाता है, इसमें सहायता प्रदान करने का निर्णय एवं सहायता के वितरण के तरीके दोनों शामिल हैं।
  • सहायता वापस लेना:
    • यदि सरकार ने सहायता वापस लेने के लिये कोई नीति बनाई है तो कोई भी संस्था इस निर्णय पर प्रश्न नहीं उठा सकती है।
    • यदि कोई संस्था ऐसी सहायता से जुड़ी शर्तों को स्वीकार और उनका पालन नहीं करना चाहती है तो वह अनुदान को अस्वीकार करने तथा अपने तरीके से आगे बढ़ सकती है। इसके विपरीत किसी संस्था को यह अनुमति नहीं दी जा सकती कि सहायता अनुदान उसकी अपनी शर्तों पर मिलना चाहिये।

अनुच्छेद 30

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30(1) अल्पसंख्यकों, चाहे धार्मिक हों या भाषायी, को अधिकार प्रदान करता है कि सभी अल्पसंख्यक वर्गों को उनकी रुचि की शिक्षण संस्थाओं की स्थापना का अधिकार होगा।
  • अनुच्छेद 30(1A) अल्पसंख्यक समूहों द्वारा स्थापित किसी भी शैक्षणिक संस्थान की संपत्ति के अधिग्रहण के लिये राशि के निर्धारण से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 30(2) में कहा गया है सरकार को आर्थिक सहायता देते समय अल्पसंख्यक द्वारा प्रबंधित किसी भी शैक्षणिक संस्थान के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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