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डेली न्यूज़

कृषि

‘बायोटेक-किसान’ कार्यक्रम

  • 22 Jun 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये

बायोटेक-कृषि इनोवेशन साइंस एप्लीकेशन नेटवर्क

मेन्स के लिये

पूर्वोत्तर क्षेत्र में कृषि को बढ़ावा देने की आवश्यकता, कृषि क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी

चर्चा में क्यों?

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ‘बायोटेक-कृषि इनोवेशन साइंस एप्लीकेशन नेटवर्क’ (बायोटेक-किसान) मिशन कार्यक्रम के हिस्से के रूप में पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये एक विशेष आह्वान जारी किया है।

प्रमुख बिंदु

बायोटेक-कृषि इनोवेशन साइंस एप्लीकेशन नेटवर्क

  • यह वर्ष 2017 में शुरू की गई एक वैज्ञानिक-किसान साझेदारी योजना है।
  • यह अखिल भारतीय कार्यक्रम है, जो हब-एंड-स्पोक मॉडल का अनुसरण करता है और किसानों में उद्यमशीलता तथा नवाचार को प्रोत्साहित करता है एवं महिला किसानों को सशक्त बनाता है।
  • बायोटेक-किसान हब के माध्यम से कृषि और जैव-संसाधन से संबंधित रोज़गार पैदा करने के लिये आवश्यक प्रौद्योगिकी सुनिश्चित करने और छोटे एवं सीमांत किसानों को जैव प्रौद्योगिकी लाभ प्रदान करने का कार्य किया जा रहा है।
  • साथ ही इसके माध्यम से किसानों को सर्वोत्तम वैश्विक कृषि प्रबंधन और प्रथाओं से भी अवगत कराया जाता है।

मंत्रालय

  • यह एक किसान केंद्रित योजना है जिसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किसानों की सहायता से विकसित किया गया है।

उद्देश्य

  • इसे कृषि नवाचार को बढ़ावा देने के लिये शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य कृषि स्तर पर लागू होने वाले नवीन समाधानों और प्रौद्योगिकियों का पता लगाने के लिये विज्ञान प्रयोगशालाओं को किसानों से जोड़ना था।

प्रगति

  • देश के सभी 15 कृषि जलवायु क्षेत्रों और 110 आकांक्षी ज़िलों को कवर करते हुए 146 बायोटेक-किसान हब स्थापित किये गए हैं।
  • इस योजना ने अब तक दो लाख से अधिक किसानों को उनके कृषि उत्पादन और आय में वृद्धि करके लाभान्वित किया है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में 200 से अधिक उद्यमिताएँ भी विकसित की गई हैं।

वर्तमान आह्वान के विषय में

  • ‘बायोटेक-कृषि इनोवेशन साइंस एप्लीकेशन नेटवर्क’ कार्यक्रम के तहत वर्तमान आह्वान विशेष रूप से पूर्वोतर क्षेत्र पर केंद्रित है, क्योंकि यह क्षेत्र मुख्य रूप से कृषि प्रधान है और इसका 70 प्रतिशत कार्यबल कृषि और संबद्ध क्षेत्र में संलग्न है।
  • यह क्षेत्र देश के खाद्यान्न का केवल 1.5 प्रतिशत उत्पादन करता है और इसे अपनी घरेलू खपत को पूरा करने के लिये खाद्यान्न का आयात करना पड़ता है।
  • पूर्वोतर क्षेत्र में स्थान विशिष्ट फसलों, बागवानी और वृक्षारोपण फसलों, मत्स्य पालन तथा पशुधन उत्पादन को बढ़ावा देकर कृषि आबादी की आय में बढ़ोतरी की जा सकती है।
  • पूर्वोतर क्षेत्र में बायोटेक-किसान हब देश भर के शीर्ष वैज्ञानिक संस्थानों के साथ-साथ राज्य कृषि विश्वविद्यालयों/कृषि विज्ञान केंद्रों/इस क्षेत्र में मौजूदा राज्य कृषि विस्तार सेवाओं/प्रणालियों के प्रदर्शन और प्रशिक्षण के लिये किसानों का सहयोग करेंगे। 

कृषि में जैव प्रौद्योगिकी

  • कृषि जैव प्रौद्योगिकी
    • कृषि जैव प्रौद्योगिकी पारंपरिक प्रजनन तकनीकों सहित उपकरणों की एक विशिष्ट शृंखला है, जो उत्पादों को बनाने या संशोधित करने के लिये जीवित जीवों, या जीवों के कुछ हिस्सों को बदल देती है; इसमें पौधों या जानवरों में सुधार या विशिष्ट कृषि उपयोगों के लिये सूक्ष्मजीवों का विकास करना आदि शामिल है।
    • आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के तहत वर्तमान में आनुवंशिक इंजीनियरिंग के भी उपकरणों को भी शामिल किया गया है।
  • उदाहरण
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (GMOs): ये पौधे, बैक्टीरिया, कवक और जानवर होते हैं, जिनमें विद्यमान आनुवंशिक पदार्थ को प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से आनुवंशिक इंजीनियरिंग का प्रयोग करके परिवर्तित किया जाता है। GM प्लांट (बीटी कॉटन) कई तरह से उपयोगी रहे हैं।
    • बायोपेस्टिसाइड: बेसिलस थुरिनजेनेसिस एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला जीवाणु है जो कीटों में बीमारी का कारण बनता है। यह जैविक कृषि में स्वीकार किया जाता है और इसकी कम लागत, आसान उपयोग तथा उच्च विषाणुता के कारण कीट प्रबंधन के लिये आदर्श माना जाता है।

लाभ

  • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs) से फसलों में कई फायदे होते हैं जिनमें कटाई के बाद कम नुकसान, मानव कल्याण हेतु  अतिरिक्त पोषक तत्त्वों हेतु फसलों को संशोधित किया जाना आदि शामिल हैं।
  • इनमें से कुछ फसलों के उपयोग से काम आसान हो सकता है और किसानों की सुरक्षा में सुधार हो सकता है। यह किसानों को कम समय में अपनी फसलों के प्रबंधन का लाभ प्रदान करेगा और अन्य लाभदायक गतिविधियों के लिये उन्हें अधिक समय मिल सकेगा।

नुकसान

  • एंटीबायोटिक प्रतिरोध: इस बात को लेकर चिंता है कि इसके उपयोग से नए एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया सामने आ सकते हैं, जिनसे निपटना पारंपरिक एंटीबायोटिक दवाओं के लिये काफी मुश्किल होगा।
  • 'सुपरवीड्स' की संभावना: ट्रांसजेनिक पौधे अवांछित पौधों (जैसे- खरपतवार) के साथ परागण कर सकते हैं और इस तरह उनमें शाकनाशी-प्रतिरोध या कीटनाशक-प्रतिरोध के जीन को प्रसारित कर सकते हैं, जिससे वे 'सुपरवीड्स' में परिवर्तित हो सकते हैं।
  • जीवों में जैव विविधता का नुकसान: एग्रीटेक किस्मों के बीजों के व्यापक उपयोग ने कुछ कृषकों को भयभीत कर दिया है क्योंकि इससे पौधों की प्रजातियों की जैव विविधता को नुकसान हो रहा है।
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs) वाली किस्मों का व्यापक उपयोग इस तथ्य के कारण है कि वे अधिक लाभदायक और सूखा प्रतिरोधी होती हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.

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