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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

टीबी की नई औषधि के प्रयोग पर एनआईटीआरडी की चेतावनी

  • 10 Jan 2017
  • 6 min read

सन्दर्भ

टीबी की रोकथाम हेतु विकसित की गई नई दवा ‘बीडीक्यू’ (Bedaquiline - BDQ) के उपयोग के सन्दर्भ में ‘राष्‍ट्रीय क्षयरोग व श्‍वसन रोग संस्‍थान’ (National Institute of Tuberculosis & Respiratory Diseases - NITRD)  ने आशंका व्यक्त की है|

पृष्ठभूमि

  • हाल के वर्षों में ‘अत्यधिक दवा प्रतिरोधी क्षयरोग’ (Extreme Drug Resistant-Tuberculosis - XDR-TB ), जिस पर सामान्य क्षयरोग/टी.बी. में दी जाने वाली एंटीबायोटिक दवा का असर नहीं होता, के उत्पन्न होने से क्षयरोग एक बड़ी समस्या बन गया है|
  • उल्लेखनीय है कि XDR-TB दवा प्रतिरोधी टी.बी. का एक रूप है| इस प्रकार के टीबी में, क्षयरोग प्रतिरक्षी औषधियों में से कुछ या अधिकांश (most powerful anti-TB drugs-isoniazid and rifampicin; injectable second-line drugs- amikacin, capreomycin or kanamycin) के लिये प्रतिरोधकता विकसित हो जाती है, जिससे रोगी पर टी.बी. की प्रचलित दवाओं का असर ही नहीं होता है, फलस्वरूप रोग के उपचार हेतु विकल्प नहीं बचते या बहुत कम विकल्प बचते हैं| 
  • दवाओं के लिये प्रतिरोधकता विकसित होने की एक मुख्य वजह है- रोगियों द्वारा अनियमित और अधूरा इलाज करवाना। इसे टी.बी. प्रतिरोधी दवाओं का नियमित और पूर्ण अवधि तक सेवन करके रोका जा सकता है। 
  • वस्तुतः इस तरह के टी.बी. के उपचार के लिये बहुत ही महँगी दवाओं की आवश्यकता  होती है, साथ ही, यह भी आवश्यक नहीं है कि ये महँगी दवाएँ भी असरदार हो हीं,  फलस्वरूप इलाज की अवधि दो वर्षों से भी अधिक खिंच सकती है। ऐसे में, इलाज में काफी वक्त लगने की वजह से नई दवाओं के प्रयोग के दौरान उनके प्रति प्रतिरोधकता विकसित होने की आशंका बनी रहती है|
  • हाल ही में , XDR-TB से पीड़ित एक 18 वर्षीय युवती के पिता ने इसके इलाज के लिये विकसित नई औषधि ‘बीडीक्यू’ ( Bedaquiline – BDQ) के प्रयोग के लिये दिल्ली उच्च न्यायलय में याचिका दायर की थी|
  • याचिका में कहा गया था कि बीडीक्यू औषधि ही अब एकमात्र ऐसा विकल्प है जिससे रोगी की जान बचाई जा सकती है, इसके लिये अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों द्वारा प्रदत्त मशवरे का हवाला दिया गया था| साथ ही, यह आरोप लगाया गया था कि औषधि की परीक्षण प्रक्रिया में लगने वाला अनावश्यक समय उपचार की संभावना को क्षीण कर रहा है|
  • विदित हो कि बीडीक्यू दवा अब भी परीक्षण की प्रक्रिया से गुज़र रही है और अभी भारत में इसे उपलब्ध कराने वाले बहुत ही सीमित स्रोत हैं, जिनमे से एक राष्‍ट्रीय क्षयरोग व श्‍वसन रोग संस्‍थान (The National Institute of Tuberculosis & Respiratory Diseases - NITRD) है|
  • इस संबंध में दिल्ली उच्च न्यायालय ने एनईटीआरडी से जानकारी मांगी थी कि क्या परीक्षण की प्रक्रिया पूरी होने से पहले (वर्तमान स्थिति में) इस औषधि का प्रयोग किसी रोगी पर किया जा सकता है? 

प्रमुख बिंदु 

  • राष्‍ट्रीय क्षयरोग व श्‍वसन रोग संस्‍थान के अनुसार, बीडीक्यू के संबंध में औषधि संवेदनशीलता परीक्षण और उसके परिणामों की प्रतीक्षा करना महज़ एक प्रशासनिक औपचारिकता नहीं है|
  • वस्तुतः यह दवा टी.बी. के इलाज के क्षेत्र में एक नई खोज है जो पाँच दशकों के शोध के पश्चात विकसित की गई है, किन्तु अब भी इसके प्रभावों और क्षमता का मूल्यांकन जारी है| 
  • किसी भी प्रकार के दावे को खारिज करते हुए यह तर्क दिया गया कि अन्य वैज्ञानिक अविष्कारों की तर्ज पर इस दवा का चरणबद्ध अनुसन्धान पूरा होने से पहले इसका किसी मरीज़ पर प्रयोग किया जाना न सिर्फ उस मरीज़ के लिये बल्कि समस्त समुदाय के लिये एक खतरा उत्पन्न कर सकता है|
  • जिस युवती को लेकर उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी, उसे  बीडीक्यू सामान्य रूप से उस प्रकार उपलब्ध नहीं कराया जा सकता जिस तरह सरकारी संस्थाओं के माध्यम से अन्य औषधियाँ प्रदान की जा रही हैं| 
  • किसी रोगी विशेष के उपचार में औषधि का सही ढंग से प्रयोग किये जाने हेतु यह परीक्षण अनिवार्य है क्योंकि इसके बिना बीमारी से संबंधित बैक्टीरिया, दवा के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर प्रसारित भी हो सकते हैं| निश्चित रूप से यह जोखिम नहीं उठाया जा सकता, अतः औषधि का प्रयोग करने से पूर्व इसका परीक्षण पूरा होना अपेक्षित है|
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