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जैव विविधता और पर्यावरण

आर्द्रभूमियों की पुनर्स्थापना

  • 09 Sep 2019
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Enviroment, Forest and Climate Change) ने प्राथमिक रूप से 130 आर्द्रभूमियों को अगले 5 सालों में पुनर्स्थापित करने का निर्णय लिया है।

प्रमुख बिंदु

  • मंत्रालय ने 15 अक्तूबर तक सभी राज्यों से ‘एकीकृत प्रबंधन योजना (Integrated Management Plan)’ को प्रस्तुत करने के लिये कहा है।
  • इस योजना के तहत कई मापदंडों के आधार पर ‘आर्द्रभूमि स्वास्थ्य कार्ड’ (Wetland Health Card) जारी किया जाएगा। इस कार्ड की सहायता से आर्द्रभूमियों के पारिस्थितिकी तंत्र की निगरानी की जा सकेगी।
  • मंत्रालय उपरोक्त चिन्ह्र्त आर्द्रभूमियों की देखभाल के लिये समुदाय की भागीदारी को बढ़ाते हुए ‘आर्द्रभूमि मित्र समूह’ (Wetland Mitras) का गठन करेगा। यह समूह स्व-प्रेरित व्यक्तियों का समूह होगा।
  • वर्ष 2011 में देश की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (ISRO) ने उपग्रह से प्राप्त चित्रों के आधार पर एक ‘राष्ट्रीय वेटलैंड्स एटलस’ (National Wetland’s Atlas) तैयार किया था]। इस एटलस में भारत के दो लाख वेटलैंड्स की मैपिंग की गई है जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 4.63% हिस्से को कवर करता हैं।

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  • इन आर्द्रभूमियों की देखभाल ‘जलीय पारितंत्र के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना’ (National Plan for Conservation of Aquatic Ecosystems-NPCA) के अंतर्गत एक समग्र योजना द्वारा की जाएगी। NPCA का उद्देश्य झीलों एवं आर्द्रभूमियों का संरक्षण तथा इनकी पुनर्स्थापना करना है।
  • इन चिह्नित आर्द्रभूमियों की सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेश (16) में है। इसके बाद आर्द्रभूमियों की सर्वाधिक संख्या मध्य प्रदेश (13), जम्मू और कश्मीर (12), गुजरात (8), कर्नाटक (7) और पश्चिम बंगाल (6) में है।

आर्द्रभूमि

  • नमी या दलदली भूमि वाले क्षेत्र को आर्द्रभूमि या वेटलैंड (Wetland) कहा जाता है। दरअसल, ये ऐसे क्षेत्र होते हैं जहाँ भरपूर नमी पाई जाती है और इसके कई लाभ भी हैं।
  • आर्द्रभूमि जल को प्रदूषण से मुक्त बनाती है। आर्द्रभूमि क्षेत्र वर्षभर आंशिक रूप से या पूर्णतः जल से भरा रहता है।
  • भारत में आर्द्रभूमि ठंडे और शुष्क इलाकों से लेकर मध्य भारत के कटिबंधीय मानसूनी इलाकों एवं दक्षिण के नमी वाले इलाकों तक फैली हुई है।

इनके लाभ निम्नलिखित हैं:

  • बायोलॉजिकल सुपर मार्केट: आर्द्रभूमियों को बायोलॉजिकल सुपर-मार्केट कहा जाता है, क्योंकि ये विस्तृत भोज्य-जाल (Food-Webs) का निर्माण करती हैं।
    • फूड-वेब्स यानी भोज्य-जाल में कई खाद्य शृंखलाएँ शामिल होती हैं और ऐसा माना जाता है कि फूड-वेब्स पारिस्थितिक तंत्र में जीवों के खाद्य व्यवहारों का वास्तविक प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • एक समृद्ध फूड-वेब समृद्ध जैव-विविधता का परिचायक है और यही कारण है कि इसे बायोलॉजिकल सुपर मार्केट कहा जाता है।
  • किडनीज ऑफ द लैंडस्केप: आर्द्रभूमियों को ‘किडनीज़ ऑफ द लैंडस्केप’ (Kidneys of the Landscape) यानी ‘भू-दृश्य के गुर्दे’ भी कहा जाता है।
    • जिस प्रकार से किडनी मानव के शरीर में जल को शुद्ध करने का कार्य करती है, ठीक उसी प्रकार आर्द्रभूमि तंत्र जल-चक्र द्वारा जल को शुद्ध करती है और प्रदूषणकारी अवयवों को बाहर करती है।
    • जल-चक्र पृथ्वी पर उपलब्ध जल के एक रूप से दूसरे में परिवर्तित होने और एक भंडार से दूसरे भंडार या एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने की चक्रीय प्रक्रिया है।
    • जलीय चक्र निरंतर चलता है तथा स्रोतों को स्वच्छ रखता है। पृथ्वी पर इसके अभाव में जीवन असंभव हो जाएगा।
  • उपयोगी वनस्पतियों एवं औषधीय पौधों के उत्पादन में सहायक: आर्द्रभूमियाँ जंतु ही नहीं बल्कि पादपों की दृष्टि से भी एक समृद्ध तंत्र है, जहाँ उपयोगी वनस्पतियाँ एवं औषधीय पौधे प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। अतः ये उपयोगी वनस्पतियों एवं औषधीय पौधों के उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • पर्यावरण सरंक्षण के लिये महत्त्वपूर्ण: आर्द्रभूमियाँ ऐसे पारिस्थितिक तंत्र हैं जो बाढ़ के दौरान जल के आधिक्य का अवशोषण कर लेते हैं।
    • इस तरह बाढ़ का पानी झीलों एवं तालाबों में एकत्रित हो जाता है, जिससे मानवीय आवास वाले क्षेत्र जलमग्न होने से बच जाते हैं।
    • इतना ही नहीं ‘कार्बन अवशोषण’ व ‘भू-जल स्तर’ में वृद्धि जैसी महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वहन कर आर्द्रभूमियाँ पर्यावरण संरक्षण में अहम योगदान देती हैं।

भारत की प्रमुख आर्द्रभूमि में चिलिका झील (ओडिशा), वुलर झील (कश्मीर), रेणुका (हिमाचल प्रदेश), सांभर झील (राजस्थान), दीपोर बील (असम), पूर्वी कोलकाता आर्द्रभूमि (पश्चिम बंगाल), नल सरोवर (गुजरात), हरिका (पंजाब), रुद्र सागर (त्रिपुरा) और भोज वेटलैंड (मध्य प्रदेश), आदि हैं। ये सभी रामसर कन्वेंशन के तहत भारत के 26 आर्द्रभूमियों की सूची में शामिल हैं।

रामसर कन्वेंशन

(Ramsar Convention)

  • रामसर कन्वेंशन एक अंतर-सरकारी संधि (Intergovernmental Treaty) है जो आर्द्रभूमियों और उनके संसाधनों के संरक्षण एवं कुशलतापूर्वक उपयोग के लिये राष्ट्रीय कार्रवाई त्तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये रूपरेखा प्रदान करती है। विश्व स्तर पर रामसर सूची में 2,220 आर्द्रभूमि हैं।
  • यह संधि वर्ष 1975 में लागू हुई एवं भारत इसमें वर्ष 1982 में शामिल हुआ।

‘जलीय पारितंत्र के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना’

(National Plan for Conservation of Aquatic Ecosystems- NPCA)

  • NPCA आर्द्रभूमियों और झीलों दोनों के लिये एक एकल संरक्षण कार्यक्रम है।
  • यह केंद्र प्रायोजित योजना (Central Sponsored Scheme) है जो वर्तमान में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित की जा रही है।
  • वर्ष 2015 में ‘राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना’ और ‘राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम’ के विलय से तैयार किया गया।
  • NPCA को विभिन्न विभागों के मध्य बेहतर तालमेल को बढ़ावा देने और प्रशासनिक कार्यों के ओवरलैपिंग से बचने के लिये तैयार किया गया।

स्रोत: टाइम्स ऑफ़ इंडिया

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