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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 20 Jun, 2022
  • 20 min read
प्रारंभिक परीक्षा

बैम्बू ड्वेलिंग बैट

हाल ही में वैज्ञानिकों ने नोंगखिल्लेम वन्यजीव अभयारण्य के पास बैम्बू ड्वेलिंग बैट (Bamboo Dwelling Bat) की एक नई प्रजाति की खोज की है। 

नई खोजी गई प्रजाति के बारे में महत्त्वपूर्ण तथ्य: 

  • बैम्बू ड्वेलिंग बैट की नई प्रजाति का नाम ग्लिस्क्रोपस मेघलायनस (Glischropus meghalayanus) रखा गया है। 
    • बैम्बू ड्वेलिंग बैट एक विशेष प्रकार के बैटस/चमगादड़ होते हैं जो बाँस के इंटर्नोड्स में रहते हैं तथा जिसमें विशेष रूपात्मक लक्षण विद्यमान  होते हैं जो उन्हें बाँस के पौधे के अंदर रहने हेतु अनुकूल होने में मदद करते हैं। 
  • यह आकार में छोटा होता है और  गहरे भूरे रंग के साथ सल्फर के रंग के समान पीले रंग का पेट  होता है। 
  • वर्तमान खोज न केवल भारत से बल्कि दक्षिण एशिया से भी थिक थम्ब्ड बैट (Thick-Thumbed Bat) पर पहली रिपोर्ट है। 

Bombo-Dwelling-Bat

थिक थम बैट के बारे में: 

  • थिक थम बैट के अंगूठे और पैरों के तलवों पर विशिष्ट मांँसल पैड होते हैं जो उन्हें बांँस के इंटर्नोड्स की चिकनी सतहों पर चलने में सहायता करते हैं। 
  • जीनस ग्लिस्क्रोपस केथिक थम बैट/चमगादड़ वर्तमान में दक्षिण पूर्व एशिया से चार मान्यता प्राप्त प्रजातियों में शामिल हैं। 
    • जी. एक्विलस सुमात्रा के लिये स्थानिक है, जी जावनस पश्चिमी जावा तक सीमित है, जबकि जी. बुसेफालस व्यापक रूप से क्रा इस्थमस के उत्तर में पाए जाते है और जी. टायलोपस इस प्राणी-भौगोलिक सीमा के दक्षिण में व्यापक रूप से फैला हुआ है। 
  • इससे पहले, उत्तर-पूर्वी भारत के मेघालय से मोटे-अंँगूठे वाले चमगादड़ (चिरोप्टेरा: वेस्परटिलियोनिडे: ग्लिस्क्रोपस) की एक नई प्रजाति की खोज की गई थी। 

मेघालय में चमगादड़ों की खोज: 

  • नोंगखिलेम वन्यजीव अभ्यारण्य के बाहर उसी वनाच्छादित क्षेत्र से, डिस्क-फुटेड बैट यूडिस्कोपस डेंटिकुलस की एक और प्रजाति मिली जो भारत में एक नया रिकॉर्ड है। 
  • पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र से तीन बांँस-निवासी चमगादड़ों की जानकारी दी गई है जो इस क्षेत्र के पारिस्थितिक महत्त्व को उजागर करते हैं। 
    • चूंकि वन्यजीव अभयारण्य के चारों ओर बांँस के जंगल में एक समृद्ध जैव-विविधता है, इसलिये इसे संरक्षित करने का प्रयास किया जाना चाहिये। 

भारत में चमगादड़ की प्रजातियों की संख्या: 

  • कुल संख्या: 
    • इस नई खोज के साथ भारत से ज्ञात चमगादड़ प्रजातियों की कुल संख्या 131 हो गई है। 
  • उच्चतम चमगादड़ विविधता: 
    • मेघालय में 67 प्रजातियों के साथ देश में सबसे अधिक चमगादड़ विविधता है, जो देश में कुल चमगादड़ प्रजातियों का लगभग 51% है। 
    • मेघालय अपने अद्वितीय भूभाग, वनस्पति और जलवायु की स्थिति के कारण, वनस्पतियों और जीवों दोनों के लिये एक आश्रय स्थल था। 
    • पूर्वोत्तर राज्य की अनूठी गुफाओं ने बड़ी संख्या में चमगादड़ों के लिये आवास के अवसर प्रदान किये। 
    • मेघालय में कई गुफाओं में रहने वाली चमगादड़ प्रजातियाँ थीं, जिनमें सबसे आम घोड़े की नाल के आकार का चमगादड़ और पत्ती के आकार वाली नाक वाले चमगादड़ हैं। 

नोंगखिल्लेम वन्यजीव अभयारण्य 

  • लैलाड गाँव के पास री-भोई ज़िले में स्थित और 29 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला नोंगखिलेम वन्यजीव अभयारण्य मेघालय के प्रसिद्ध आकर्षणों में से एक है। 
  • अभयारण्य पूर्वी हिमालयी वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट में आता है। 
  • अभयारण्य जीवों की विभिन्न प्रजातियों को आवास प्रदान करता है, जैसे कि-रॉयल बंगाल टाइगर, क्लाउडेड लेपर्ड, इंडियन बाइसन और हिमालयन ब्लैक बियर आदि।  
  • पक्षियों में मणिपुर बुश क्वेल, रूफस नेक्ड हॉर्नबिल और ब्राउन हॉर्नबिल दुर्लभ प्रजातियाँ हैं। 
  • मेघालय में अन्य वन्यजीव अभयारण्य: 
    • सिजू वन्यजीव अभयारण्य 
    • नरपुह वन्यजीव अभयारण्य 
    • बाघमारा पिचर प्लांट अभयारण्य 
    • नोकरेक राष्ट्रीय उद्यान 

Nongkhillem

यूपीएससी सिविल सेवा, पिछले वर्ष के प्रश्न 

प्रश्न.  हाल ही में हमारे वैज्ञानिकों ने केले के पौधे की एक नई और भिन्न जाति की खोज की है जिसकी ऊँचाई लगभग 11 मीटर तक जाती है और उसके फल का गूदा नारंगी रंग का है। यह भारत के किस भाग में खोजी गई है? (2016) 

(A) अंडमान द्वीप 
(B) अन्नामलाई वन 
(C) मैकाल पहाडि़यांँ 
(D) पूर्वोतर उष्णकटिबंधीय वर्षावन 

उत्तर: (A) 

व्याख्या: 

  • भारत के वनस्पति सर्वेक्षण (BSI) के वैज्ञानिकों की एक टीम ने केले की एक नई प्रजाति, मूसा इदंडमानेंसिस की खोज लिटिल अंडमान द्वीपों पर स्थित कृष्णा नाला उष्णकटिबंधीय वर्षा वन से की थी। 
  • इसके फूल नियमित केले की प्रजातियों के शंक्वाकार आकार की तुलना में बेलनाकार होते हैं। 
  • यह लगभग 11 मीटर ऊँचा होता है, जबकि सामान्य केले की प्रजाति लगभग तीन से चार मीटर ऊँची होती है। 
  • प्रजाति खाने योग्य और बहुत स्वादिष्ट है। फलों का गूदा नारंगी रंग का होता है, जो नियमित केले के सफेद और पीले रंग से अलग होता है। अतः विकल्प (A) सही उत्तर है। 

स्रोत : द हिंदू 


प्रारंभिक परीक्षा

थेरी मरुस्थल

थेरी मरुस्थल के निर्माण के संबंध में कुछ सिद्धांतों पर बहस हो रही है, जिनमें से सबसे विश्वसनीय दक्षिण पश्चिम मानसूनी हवाओं की भूमिका है। 

थेरी मरुस्थल: 

  • यह तमिलनाडु राज्य में स्थित एक छोटा सा रेगिस्तान है। इसमें लाल रेत के टीले हैं और यह थूथुकुडी ज़िले तक ही सीमित है। 
  • लाल टीलों को तमिल में ‘थेरी’ कहा जाता है। इनमें क्वार्टनरी  युग (2.6 मिलियन वर्ष पहले शुरू हुई) की तलछट शामिल हैं और यह समुद्री निक्षेप से बने हैं। 
  • इसमें बहुत कम पानी और पोषक तत्व धारण क्षमता है। टिब्बा वायुगतिकीय उभार के लिये अतिसंवेदनशील होते हैं। यह वह दवाब है जो किसी चीज को ऊपर जाने देता है। यह वह बल है जो भार के विपरीत होता है। 

थेरी की खनिज संरचना: 

  • पेट्रोग्राफिकल अध्ययन (पेट्रोग्राफी चट्टानों की संरचना और गुणों का अध्ययन है) और लाल रेत के टीलों के एक्स-रे विवर्तन विश्लेषण (एक सामग्री की क्रिस्टलोग्राफिक संरचना को निर्धारित करने के लिये इस्तेमाल की जाने वाली विधि) से भारी और हल्के खनिजों की उपस्थिति का पता चलता है। 
  • इनमें शामिल हैं: इल्मेनाइट, मैग्नेटाइट, रूटाइल, गार्नेट, ज़िरकोन, डायोपसाइड, टूमलाइन, हेमेटाइट, गोएथाइट, कानाइट, क्वार्ट्ज़, फेल्डस्पार और बायोटाइट। 
  • मृदा में मौज़ूद आयरन से भरपूर भारी खनिज जैसे इल्मेनाइट, मैग्नेटाइट, गार्नेट, हाइपरस्थीन और रूटाइल सतह के जल से निक्षालित हो गए थे और फिर अनुकूल अर्ध-शुष्क जलवायु परिस्थितियों के कारण ऑक्सीकृत हो गए। 
  • यह इन प्रक्रियाओं के कारण था कि थूथुकुडी ज़िले के एक तटीय शहर तिरुचेंदूर के पास के टीले लाल रंग के होते हैं। 

थेरी टिब्बा निर्माण: 

  • थेरी मुलायम, लहरदार क्षेत्र के रूप में दिखाई देता है। लिथोलॉजी (चट्टानों की सामान्य भौतिक विशेषताओं का अध्ययन) कि यह क्षेत्र अतीत में एक पैलियो (प्राचीन) तट रहा होगा। कई स्थानों पर चूना पत्थर की उपस्थिति समुद्री अतिक्रमण का संकेत देती है। 
  • समुद्र के प्रतिगमन के बाद, स्थानीय रूप से समुद्र तट की रेत के परिसीमन द्वारा वर्तमान समय के थेरियों का गठन हुआ होगा। जब पश्चिमी घाट से उच्च वेग वाली हवाएँ पूर्व की ओर चलीं, तो उन्होंने रेत के दानों और टीलों के संचय को प्रेरित किया। 
  • एक अन्य दृष्टिकोण यह है कि ये भूवैज्ञानिक संरचनाएंँ हैं जो कुछ सौ वर्षों की अवधि में प्रकट हुईं। 
  • इन थेरियों के ऊपर काफी मात्रा में लाल रेत फैली हुई है। लाल रेत मई-सितंबर के दौरान दक्षिण पश्चिम मानसूनी हवाओं द्वारा नांगुनेरी क्षेत्र (तिरुनेलवेली जिले के इस क्षेत्र से लगभग 57 किलोमीटर) के मैदानी इलाकों में लाल दोमट की एक विस्तृत बेल्ट की सतह से लाई जाती है। 
  • वनों की कटाई और वानस्पतिक आवरण की अनुपस्थिति को वायु अपरदन का प्रमुख कारण माना जाता है। 
  • जब शुष्क मानसूनी हवा तेज वेग से चलती है, तो लाल दोमट को लाल रेत के विशाल स्तंभों के साथ पूर्व की ओर तब तक ले जाती है, जब तक कि वे तिरुचेंदूर के तटीय पथ के पास समुद्री हवा से मिल कर वहाँ जमा नहीं हो जाते।  
  • पृथ्वी की सतह पर या उसके पास हवा के कारण होने वाले तलछट के क्षरण, परिवहन और जमा की ये प्रक्रिया ‘एओलियन’ प्रक्रिया कहलाती है।  

स्रोत- डाउन टू अर्थ 


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 20 जून, 2022

बालिका पंचायत पहल 

भारत की पहली बालिका पंचायत, जिसे “बालिका पंचायत” कहा जाता है, गुजरात के कच्छ ज़िले के कई गाँवों में शुरू की गई है। बालिका पंचायत पहल लड़कियों के सामाजिक और राजनीतिक विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ राजनीति में लड़कियों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से शुरू की गई है। वर्तमान में यह पहल गुजरात के कच्छ ज़िले के कुनारिया, मोटागुआ, मस्का और वडसर गाँवों में शुरू की गई है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय पूरे भारत में बालिका पंचायत शुरू करने की योजना बना रहा है। 20 वर्षीय उर्मी अहीर को बालिका पंचायत का सरपंच बनाया गया है। बालिका पंचायत का सदस्य ग्राम पंचायत की तरह ही मनोनीत होता है। बालिका पंचायत का मुख्य उद्देश्य बालिकाओं के सामाजिक और राजनीतिक विकास को बढ़ावा देना है। यह समाज से बाल विवाह और दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों को दूर करने का भी प्रयास करती है। इसका उद्देश्य पंचायत में निर्णय लेने की प्रक्रिया में लड़कियों का नामांकन कराना है। यह पहल बचपन से ही लड़कियों को राजनीति में सक्रिय बनाने का प्रयास करती है।  

''महिला शांति और सुरक्षा सेमीनार'' 

भारतीय महिला सैनिकों ने मंगोलिया के उलनबटोर में चार दिवसीय ''महिला शांति और सुरक्षा सेमीनार'' में भाग लिया। कार्यक्रम की शुरूआत 16 जून, 2022 को हुई थी और इसे मंगोलिया के राष्ट्रपति उखना खुरेलसुख के मार्गदर्शन में आयोजित किया गया है। उखना खुरेलसुख ने उद्घाटन भाषण में कहा कि उनका देश संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देगा। केंद्रीय कानून और न्‍याय मंत्री किरेन रिजिजू ने 17 जून, 2022 को भारतीय समुदाय से बातचीत की। वे भारत से भगवान बुद्ध से संबंधित चार पवित्र अवशेषों को लेकर 13 जून, 2022 को उलनबटोर पहुंँचे थे। इन अवशेषों को 11 दिन के लिये आयोजित प्रदर्शनी में रखा गया है। 

विश्व शरणार्थी दिवस 

दुनिया भर में शरणार्थियों को सम्मानित करने के लिये 20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस मनाया जाता है। पहली बार विश्व शरणार्थी दिवस 20 जून, 2001 को मनाया गया था। संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के अनुसार, आतंक, युद्ध और संघर्ष से बचने के लिये हर 1 मिनट में 20 लोग अपने घर से भागने को मज़बूर हैं। साल 2021 के अंत तक कुल 8.9 करोड़ लोग अपने गृह देश के भीतर या बाहर बलपूर्वक निर्वासन झेलना पड़ा है। इनमें से 5.3 करोड़ आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं और वहीं 2.7 करोड़ लोग घोषित रुप से शरणार्थी (Refugee) का दर्जा पा चुके हैं। इसके अलावा करीब 46 लाख लोग (Asylum Seeker) शरण चाहते हैं। आज दुनिया में कई शरणार्थी ऐसे भी हैं जिन्हें प्राकृतिक आपदाओं जैसे सुनामी, भूकंप, बाढ़ आदि के कारण अपना घर छोड़ने के लिये मज़बूर होना पड़ा। संयुक्त राष्ट्र ने शरणार्थियों की स्थिति से संबंधित वर्ष 1951 के अभिसमय के अनुच्छेद 1 में इस शब्द को परिभाषित किया है। एक शरणार्थी वह है जो नस्ल, धर्म, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक समूह की सदस्यता, या राजनीतिक राय के कारण उसे प्रताड़ित किये जाने के डर के कारण अपने मूल देश में लौटने में असमर्थ या अनिच्छुक हो। 

किंग हमद बिन ईसा अल-खलीफा पुरस्कार 

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के स्कूली शिक्षा विभाग द्वारा संचालित विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के दौरान पीएम ई-विद्या नामक पहल को आईसीटी का उपयोग करने के लिये यूनेस्को की मान्यता प्रदान की गई है। 17 मई, 2020 को शिक्षा मंत्रालय द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान के हिस्से के रूप में पीएम ई-विद्या की शुरुआत की गई थीजो डिजिटल/ऑनलाइन/ऑन-एयर शिक्षा से संबंधित सभी प्रयासों को एकीकृत करता है ताकि बच्चों को प्रौद्योगिकी का उपयोग करके शिक्षा प्रदान करने और सीखने के नुकसान को कम करने के लिये मल्टी-मोड एक्सेस को सक्षम किया जा सके। केंद्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी संस्थान (CIET), स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग (DOSEL), शिक्षा मंत्रालय (MOE), भारत सरकार के अंतर्गत राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की एक घटक इकाई को यूनेस्को के वर्ष 2021 के लिये शिक्षा में आईसीटी के उपयोग के लिये ‘किंग हमद बिन ईसा अल-खलीफा पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार "सतत् विकास के लिये वर्ष 2030 एजेंडा और शिक्षा पर इसके लक्ष्य-4 के अनुरूप, सभी के लिये शैक्षिक और आजीवन सीखने के अवसरों का विस्तार करने के लिये नई तकनीकों का लाभ उठाने में नवीन दृष्टिकोणों को मान्यता प्रदान करता है”। बहरीन साम्राज्य के समर्थन से वर्ष 2005 में स्थापित यह पुरस्कार उन व्यक्तियों और संगठनों को पुरस्कृत करता है जो उत्कृष्ट परियोजनाओं को लागू कर रहे हैं और डिजिटल युग में सीखने, शिक्षण और समग्र शैक्षिक प्रदर्शन को बढ़ाने के लिये प्रौद्योगिकियों के रचनात्मक उपयोग को बढ़ावा दे रहे हैं। एक अंतर्राष्ट्रीय निर्णायक मंडल प्रति वर्ष दो सर्वश्रेष्ठ परियोजनाओं का चयन करती है। प्रत्येक पुरस्कार विजेता को यूनेस्को मुख्यालय, पेरिस में एक समारोह के दौरान 25,000 अमेरिकी डॉलर, एक पदक और एक डिप्लोमा प्रदान किया जाता है, यह समारोह इस वर्ष 24 जून, 2022 को आयोजित किया जाएगा।। 


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