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एडिटोरियल

  • 21 Jan, 2023
  • 14 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत और न्यू यूरेशिया

यह एडिटोरियल 19/01/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “In light of China-Russia alliance and Ukraine conflict, India and the new Eurasia” लेख पर आधारित है। इसमें यूरेशिया में बदलती गतिशीलता और भारत के लिये अंतर्निहित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

‘नव यूरेशिया’ (New Eurasia) पद का उपयोग विभिन्न संदर्भों में किया गया है, लेकिन यह आम तौर पर यूरेशिया क्षेत्र में एक नए राजनीतिक, आर्थिक या सांस्कृतिक संरेखण के विचार को संदर्भित करता है।

  • इसमें क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति के रूप में रूस के फिर से उभरने, क्षेत्र के विभिन्न देशों के एक बड़े आर्थिक एवं राजनीतिक ब्लॉक में एकीकृत होने या क्षेत्र में नए सांस्कृतिक या वैचारिक रुझानों के उद्भव जैसे विचार शामिल हैं।
  • नव यूरेशिया की अवधारणा प्रायः ‘यूरेशियन यूनियन’ के विचार से भी संबद्ध है जिसमें पूर्व के सोवियत गणराज्य शामिल हैं। हालाँकि इस शब्द का अर्थ और दायरा उस संदर्भ के आधार पर भिन्न हो सकता है जिसमें इसका उपयोग किया जाता है।

एशिया और यूरोप के बीच बदलती भू-राजनीति क्या है?

  • हिमालय की सीमा पर चीन की ओर से भारत की बढ़ती सुरक्षा चुनौतियाँ और भारत की महाद्वीपीय रणनीति आने वाले समय में कठोर होती जाएगी।
    • दूसरी ओर, अमेरिका और यूरोप के साथ-साथ जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया के साथ साझेदारी में भारत की सामरिक क्षमताओं को सुदृढ़ करने की संभावनाएं कभी भी इतनी प्रबल नहीं रही थीं।
  • जापान यूरोप के साथ मज़बूत सैन्य साझेदारी के निर्माण के लिये दृढ़ संकल्पित है। जापान के लिये यूरोप और हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा अविभाज्य विषय-वस्तु है।
  • दक्षिण कोरिया भी यूरोप में अपनी उपस्थिति बढ़ाकर इस नए समीकरण में शामिल हो रहा है। उदाहरण के लिये, वह पोलैंड में प्रमुख हथियार प्लेटफॉर्म की बिक्री कर रहा है।
  • ऑस्ट्रेलिया ‘AUKUS’ व्यवस्था में अमेरिका एवं यूके के साथ शामिल हुआ है और यूरोप को हिंद-प्रशांत में लाने के लिये समान रूप से उत्सुक है।
    • जापान, दक्षिण कोरिया एवं ऑस्ट्रेलिया एक साथ एशिया और यूरोप के बीच की खाई को पाट रहे हैं, जिन्हें कभी अलग-अलग भू-राजनीतिक क्षेत्रों के रूप में देखा जाता था।
  • इसके साथ ही, यूक्रेन में रूस के युद्ध और रूस एवं चीन के बीच गठबंधन के कारण एशिया और यूरोप के बीच साझेदारी बढ़ी है।

यूरेशिया के उभार से संबद्ध चुनौतियाँ

  • देशों का बढ़ता आर्थिक प्रभाव:
    • एक प्रमुख बदलाव यह आया है कि चीन और रूस जैसे देशों की आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति बढ़ रही है।
      • चीन की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) एक विशाल बुनियादी ढाँचा परियोजना है जो कई देशों तक विस्तृत है और इसने चीन को अपने आर्थिक प्रभाव के विस्तार तथा प्राकृतिक संसाधनों तक सुरक्षित पहुँच का अवसर दिया है।
      • इस दौरान रूस ने अपने ऊर्जा संसाधनों का उपयोग इस क्षेत्र में बढ़त हासिल करने और अंतर्राष्ट्रीय मामलों में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्वयं को स्थापित करने के लिये किया है।
  • विभिन्न देशों के बीच बढ़ता तनाव:
    • उदाहरण के लिये, सीरिया में चल रहे संघर्ष ने तुर्की और रूस के बीच के संबंधों को बाधित किया है और इस क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका एवं अन्य देशों के बीच के संबंधों को भी तनावपूर्ण बना दिया है।
    • इसके साथ ही, यूक्रेन में जारी संघर्ष और दक्षिण चीन सागर में क्षेत्रीय विवादों के कारण पड़ोसी देशों के बीच तनाव बढ़ गया है।
  • राजनीतिक परिवर्तन:
    • इस भूभाग में आए राजनीतिक परिवर्तनों, जैसे ब्रेक्ज़िट (Brexit) और यूरोप में लोकलुभावन आंदोलनों के उदय का भी यूरेशिया की गतिशीलता पर प्रभाव पड़ा है।
    • कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इन परिवर्तनों से क्षेत्र के शक्ति संतुलन में बदलाव आ सकता है, जिसके अंतर्राष्ट्रीय संबंधों एवं व्यापार पर संभावित प्रभाव पड़ सकते हैं।

नव यूरेशिया के उभार के भारत के लिये निहितार्थ

  • समुद्री और महाद्वीपीय शक्तियों को संतुलित करना कठिन:
    • अभी तक, एक ओर भारत समुद्री गठबंधन (हिंद-प्रशांत में क्वाड) के साथ आसानी से सहयोग कर सकता था तो दूसरी ओर रूस एवं चीन के नेतृत्व वाले महाद्वीपीय गठबंधन के साथ भी भी समानांतर रूप से आगे बढ़ सकता था।
    • लेकिन अब, एक ओर अमेरिका, यूरोप और जापान तो दूसरी ओर चीन और रूस के बीच के संघर्ष में भारत के लिये इन दोनों पक्षों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने में चुनौती उत्पन्न होगी।
  • चीन की ओर से सुरक्षा चुनौतियाँ:
    • चीन के क्षेत्रीय दावे और हिमालय क्षेत्र में उसका सैन्य विस्तार प्रमुख चुनौतियों में से एक है, जिसके कारण दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है।
    • इसके अतिरिक्त, चीन के आर्थिक एवं सैन्य उभार ने हिंद महासागर क्षेत्र में (जो भारत के लिये सामरिक महत्त्व रखता है) शक्ति प्रदर्शन करने की उसकी क्षमता को लेकर नवीन चिंताओं को जन्म दिया है।
    • इसके अलावा, ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के माध्यम से पड़ोसी देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव ने भारत को घेरने और उसकी सुरक्षा के लिये संभावित खतरों के रूप में चिंता उत्पन्न की है।
  • चीन और रूस के बीच सहयोग:
    • इसमें चीन और रूस के पक्ष में क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को बदलने की क्षमता है, जिसके भारत की सुरक्षा और सामरिक हितों के लिये नकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं।
    • इसके अतिरिक्त, चीन और रूस के बीच बढ़ते सहयोग से सैन्य एवं आर्थिक समन्वय में वृद्धि हो सकती है, जो इस क्षेत्र में भारत की स्थिति को और चुनौती दे सकती है।
    • चीन और रूस का गहन संबंध उन्हें आतंकवाद-रोध, संयुक्त राष्ट्र शांति व्यवस्था एवं क्षेत्रीय स्थिरता जैसे प्रमुख मुद्दों पर भारत का विरोध करने के लिये प्रेरित कर सकता है, जो फिर वैश्विक मंच पर भारत के अपने हितों को आगे बढ़ाने की क्षमता को सीमित करेगा।

नव यूरेशिया के उभार के युग में भारत अपने हितों की रक्षा कैसे कर सकता है?

  • मज़बूत आर्थिक संबंधों का निर्माण:
    • भारत को क्षेत्र के अन्य देशों के साथ, विशेष रूप से जो देश BRI में भागीदारी नहीं कर रहे हैं, अपने आर्थिक संबंधों को सुदृढ़ करने की दिशा में कार्य करना चाहिये ताकि व्यापार एवं निवेश के लिये वैकल्पिक विकल्प तैयार किये जा सकें।
  • कूटनीतिक संलग्नता:
    • चीन और रूस के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिये भारत को क्षेत्र के अन्य देशों के साथ मज़बूत संबंधों के निर्माण के लिये कूटनीतिक प्रयासों में शामिल होना चाहिये।
      • इसमें अमेरिका, जापान और क्षेत्र के अन्य देशों के साथ मज़बूत संबंध बनाना शामिल हो सकता है।
  • सैन्य सहयोग:
    • भारत को क्षेत्र के अन्य देशों के साथ अपने सैन्य सहयोग को भी प्रबल करना चाहिये, विशेष रूप से उन देशों के साथ जो चीन के क्षेत्रीय दावों और सैन्य विस्तार को लेकर साझा चिंताएँ रखते हैं।
  • सामरिक स्वायत्तता बनाए रखना:
    • भारत को किसी विशिष्ट गुट या शक्ति संरचना के साथ गठबंधन करने से बचटे हुए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखनी चाहिये।
  • घरेलू उत्पादन में निवेश:
    • भारत को आयात पर निर्भरता कम करने और महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिये घरेलू उत्पादन एवं प्रौद्योगिकी में निवेश पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।

आगे की राह

  • महाद्वीपीय और समुद्री हितों को सुनिश्चित करना:
    • यह प्रकट है कि भारत के पास एक के ऊपर दूसरे को चुनने की का खुला अवसर नहीं होगा; इसे समुद्री क्षेत्र में अपने हितों की अनदेखी किये बिना अपने महाद्वीपीय हितों को आगे बढ़ाने के लिये रणनीतिक दृष्टि हासिल करने तथा आवश्यक संसाधनों की तैनाती करने की आवश्यकता होगी।
  • मध्य एशियाई देशों की केंद्रीयता:
    • चीन महाद्वीपीय यूरेशिया पर दीर्घकालिक रणनीतिक लाभ प्राप्त करने हेतु प्रयासरत है, लेकिन इसके समुद्री विस्तारवादी लाभ को पलटना अपेक्षाकृत आसान है।
      • दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन/आसियान (ASEAN) की तरह हिंद-प्रशांत के लिये भी केंद्रीयता महत्त्वपूर्ण है। यूरेशिया के लिये मध्य एशियाई राज्यों की केंद्रीयता महत्त्वपूर्ण होनी चाहिये।
    • भारत को मध्य एशियाई देशों के साथ सुदृढ़ आर्थिक एवं राजनयिक संबंध विकसित करने पर ध्यान देना चाहिये।
      • इसके तहत क्षेत्र में व्यापार एवं निवेश की वृद्धि के साथ-साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान एवं क्षेत्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर सहयोग को बढ़ावा देना शामिल हो सकता है।
  • आर्थिक और व्यापारिक संबंधों का विस्तार:
    • भारत इस क्षेत्र के देशों के साथ अपने आर्थिक और व्यापारिक संबंधों को अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (International North-South Transport Corridor) और चाबहार बंदरगाह परियोजना जैसी पहलों के साथ विस्तारित करने का भी प्रयास कर सकता है।

अभ्यास प्रश्न: नव यूरेशिया के संदर्भ में भारत के लिये प्रमुख चुनौतियों और विद्यमान अवसरों की चर्चा कीजिये।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

Q. नई त्रि-राष्ट्र साझेदारी AUKUS का उद्देश्य भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना है। क्या यह क्षेत्र में मौजूदा साझेदारियों का स्थान लेने जा रहा है? वर्तमान परिदृश्य में AUKUS की शक्ति और प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (वर्ष 2021)


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