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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ब्रेक्ज़िट और उसके निहितार्थ

  • 01 Feb 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये:

ब्रेक्ज़िट

मेन्स के लिये:

ब्रेक्ज़िट के वैश्विक प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ब्रिटेन औपचारिक तौर पर 28 सदस्यीय यूरोपीय यूनियन (European Union- EU) से अलग हो गया है।

मुख्य बिंदु:

  • ब्रिटेन 28 सदस्यीय यूरोपीय यूनियन के समूह को छोड़ने वाला पहला देश बन गया है।
  • 23 जनवरी, 2020 को ब्रिटिश संसद और 29 जनवरी, 2020 को यूरोपीय यूनियन की संसद ने ब्रेक्ज़िट (Brexit) समझौते पर अपनी अनुमति दी।

पृष्ठभूमि:

  • ब्रिटेन सबसे पहले वर्ष 1973 में यूरोपियन इकोनॉमिक कम्युनिटी (European Economic Community-EEC) में शामिल हुआ था।
  • EU में शामिल होने के कुछ ही वर्षों में ब्रिटेन के कुछ नेताओं ने इसका विरोध शुरू कर दिया और यह मांग की कि जनमत संग्रह (Referendum) के माध्यम से तय किया जाए कि ब्रिटेन EU में रहेगा या नहीं।
  • लिस्बन संधि का अनुच्छेद 50 यूरोपीय संघ के मौजूदा सदस्यों को संघ छोड़ने का अधिकार देता है।
  • अगले 30 वर्षों तक इस क्षेत्र में कोई महत्त्वपूर्ण विकास नहीं हुआ, परंतु वर्ष 2010 में घटनाक्रम में कुछ ऐसे बदलाव हुए कि जनमत संग्रह की मांग तेज़ होने लगी।
  • ब्रिटेन की कंज़र्वेटिव पार्टी, जो कि वर्ष 2010 से 2015 के बीच सत्ता में रही, ने एक चुनावी वादा किया कि यदि कंज़र्वेटिव पार्टी पुनः सत्ता में आती है तो वह सर्वप्रथम जनमत संग्रह कराएगी कि ब्रिटेन को EU में रहना चाहिये या नहीं।
  • चुनाव जीतने के बाद डेविड कैमरून पर वादा पूरा करने का दबाव पड़ने लगा और जून 2016 में ब्रिटेन में जनमत संग्रह कराया गया जिसमें 52 प्रतिशत लोगों ने ब्रेक्ज़िट के पक्ष में मतदान किया, जबकि 48 प्रतिशत लोगों ने ब्रेक्ज़िट के विपक्ष में मतदान किया और कंज़र्वेटिव पार्टी के लिये ब्रेक्ज़िट का रास्ता साफ हो गया

ब्रेक्ज़िट की प्रक्रिया:

  • जून 2016 में ब्रेक्ज़िट के लिये ब्रिटेन में जनमत संग्रह कराया गया था। इसमें 71 प्रतिशत मतदान के साथ 30 मिलियन से अधिक लोगों ने मतदान किया था और इस प्रकार 52 फीसदी लोगों ने ब्रेक्ज़िट के पक्ष में मतदान किया।

क्या है ब्रेक्ज़िट?

  • यह मुख्यत: दो शब्दों Britain और Exit से मिलकर बना है जिसका अर्थ है ब्रिटेन का यूरोपीय संघ (European Union-EU) से बाहर निकलना।
  • ब्रिटेन की जनता ने ब्रिटेन की पहचान, आज़ादी और संस्कृति को बनाए रखने के उद्देश्य से यूरोपीय संघ से बाहर जाने का फैसला लिया।
  • 27 मार्च, 2017 को ब्रिटिश सरकार ने यूरोपीय यूनियन से अलग होने की प्रक्रिया शुरू की।
  • यूरोपीय यूनियन से ब्रिटेन के अलग होने की समयसीमा को पहली बार 29 मार्च, 2019 से बढ़ाकर 12 अप्रैल, 2019 किया गया।
  • उसके बाद इस समयसीमा को 31 अक्तूबर 2019 और फिर 31 जनवरी, 2020 तक बढ़ाया गया।
  • 23 जनवरी, 2020 को ब्रिटिश संसद और 29 जनवरी, 2020 को यूरोपीय यूनियन की संसद ने ब्रेक्ज़िट समझौते पर अनुमति दी।
  • यूरोपीय यूनियन से ब्रिटेन के अलग होने की पूरी प्रक्रिया में एक वर्ष का समय लगेगा।
  • इस अवधि के दौरान दोनों पक्ष अपने भावी संबंधों की रूपरेखा को अंतिम रुप देंगे।

ब्रेक्ज़िट का प्रभाव:

ब्रिटेन पर:

  • EU हर वर्ष सदस्यता शुल्क के तौर पर ब्रिटेन से कई बिलियन पाउंड लेता है तथा बदले में उसे बहुत कम राशि मिलती है। इस समझौते से ब्रिटेन इस राशि को देने से मुक्त हो जाएगा।
  • ब्रिटेन में कोई भी प्रशासनिक कार्य करने के दौरान आने वाली अड़चनें समाप्त होंगी।
  • ब्रिटेन को अपने अधिकारों और स्वयं के कानून बनाने में बाधाएँ उत्पन्न नहीं होंगी।
  • ब्रिटेन को अपनी खुद की इमीग्रेशन नीति तय करने का अधिकार होगा।\
  • ब्रेक्ज़िट के कारण पौंड के मूल्य में गिरावट भी आ सकती है
  • ब्रिटेन के अलग होने से EU को आर्थिक तौर पर नुकसान का सामना करना पड़ेगा। उसकी अर्थव्यवस्था में लगभग 15 प्रतिशत की कमी आ जाएगी।

भारत पर प्रभाव:

  • सकारात्मक प्रभाव:
    • दीर्घकाल में ब्रेक्ज़िट भारत-ब्रिटेन संबंधों को मजबूत करेगा क्योंकि ब्रिटेन यूरोपीय संघ के बाज़ारों तक अपनी पहुँच के नुकसान की क्षतिपूर्ति करना चाहेगा।
    • भारत के एक निर्यातक देश की तुलना में अधिक आयातक देश होने के कारण यह समझौता भारत के लिये सकारात्मक हो सकता है।
    • पौंड के मूल्य में गिरावट के कारण कई कंपनियाँ ब्रिटेन में संपत्ति खरीदने में सक्षम हो सकेंगी।
    • ब्रेक्ज़िट समझौते जैसे अशांत समय में निवेशकों के लिये भारत स्थिरता और विकास दोनों पैमानों पर सुरक्षित गंतव्य बनकर उभर सकता है।
    • ब्रेक्ज़िट भारत और ब्रिटेन के बीच पारस्परिक व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा दे सकता है क्योंकि अब ब्रिटेन भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर चर्चा के लिये स्वतंत्र होगा।
    • ब्रिटेन भारतीय कंपनियों के लिये कर ढाँचे को सरल बनाकर, विनिमय दर घटाकर एवं अन्य वित्तीय सुविधाएँ प्रदान कर अपने यहाँ निवेश को प्रोत्साहित कर सकता है।
  • नकारात्मक प्रभाव:
    • विदेशी पूंजी निकालने और डॉलर की कीमत बढ़ने से रुपए का मूल्य गिर सकता है।
    • अल्पावधि में भारतीय शेयर बाज़ार में तीव्र गिरावट आ सकती है।
    • पौंड का गिरता हुआ मूल्य कई मौजूदा अनुबंधों के लिये घाटे का सौदा हो सकता है।
    • देश के सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र पर अल्पकाल में नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • पौंड की कीमतों में गिरावट के कारण ब्रिटेन से होने वाले भारतीय निर्यात को नुकसान होगा।
    • यूरोपीय संघ में प्रवेश के लिये ब्रिटेन सदैव भारत के लिये प्रवेश द्वार रहा है, अतः ब्रेक्ज़िट के बाद भारतीय कंपनियों के लिये यह अल्पकालिक संकट उत्पन्न करेगा।
    • भारतीय आईटी कंपनियों को अलग-अलग कार्यालय स्थापित करने और यूरोप तथा ब्रिटेन के लिये अलग-अलग टीमें नियुक्त करने की आवश्यकता पड़ेगी जिससे आईटी कंपनियों पर भारी वित्तीय बोझ पड़ेगा।

अन्य वैश्विक प्रभाव:

  • ब्रेक्ज़िट समझौते से निर्यात के क्षेत्र में अग्रणी देश प्रभावित हो सकते हैं।
  • ब्रिटेन का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी होने के कारण सर्वाधिक प्रभाव अमेरिका पर देखने को मिल सकता है।
  • हालाँकि वैश्विक स्तर पर इस समझौते का प्रभाव तात्कालिक रूप से सैद्धांतिक ही होगा लेकिन व्यावहारिक रूप से अभी किसी भी अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव पड़ने की आशंका नगण्य है।

स्रोत- द हिंदू

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