अंतर्राष्ट्रीय संबंध
लैटिन अमेरिका की ओर भारत का राजनयिक रुख
यह एडिटोरियल 14/07/2025 को द हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “Why India must have a standalone LatAm policy” लेख पर आधारित है। यह लेख लैटिन अमेरिका के प्रति भारत की कूटनीति में बढ़ते रणनीतिक बदलाव को रेखांकित करता है, साथ ही विविध वैश्विक जुड़ाव एवं दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देने के एक व्यापक प्रयास के तहत इस क्षेत्र के साथ संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के प्रयासों पर भी प्रकाश डालता है।
प्रिलिम्स के लिये:लैटिन अमेरिकी देश, फोकस LAC पहल, गुटनिरपेक्ष आंदोलन, MERCOSUR के साथ अधिमान्य व्यापार समझौता, G20, BRICS शिखर सम्मेलन, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, पनामा नहर, सेंट्रल बाय-ओशनिक रेलवे कॉरिडोर मेन्स के लिये:भारत के लिये लैटिन अमेरिका का महत्त्व, प्रभावी भारत-लैटिन अमेरिका संबंधों में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे। |
भारतीय प्रधानमंत्री की हाल ही में ब्राज़ील, अर्जेंटीना और अन्य लैटिन अमेरिकी देशों की बहु-राष्ट्र यात्रा इस संसाधन-समृद्ध क्षेत्र के साथ मज़बूत संबंध बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ का संकेत देती है। मौजूदा व्यापार गतिशीलता अवसर और असंतुलन, दोनों को उजागर करती है, जहाँ भारत ब्राज़ील का नौवाँ सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, वहीं ब्राज़ील भारत की प्राथमिकता सूची में बहुत ही नीचे है, जो इसकी विशाल अप्रयुक्त क्षमता का संकेत देता है। यह विकसित होता संबंध भारत की व्यापक महत्त्वाकांक्षा को दर्शाता है कि वह अपने पारंपरिक सहयोगियों और पड़ोसियों से आगे बढ़कर अपनी अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियों में विविधता लाए और दक्षिण-दक्षिण सहयोग में एक प्रमुख अग्रणी के रूप में स्वयं को स्थापित करे।
समय के साथ भारत-लैटिन अमेरिका संबंध किस प्रकार विकसित हुए?
- प्रारंभिक ऐतिहासिक जुड़ाव (1947 से पूर्व)
- साझा औपनिवेशिक विरासत: भारत और लैटिन अमेरिका दोनों ने एक औपनिवेशिक इतिहास साझा किया है, हालाँकि भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था तथा लैटिन अमेरिकी देश अधिकतर स्पेन एवं पुर्तगाल के उपनिवेश थे।
- सीमित सहभागिता: इस अवधि के दौरान, न्यूनतम राजनयिक या आर्थिक संपर्क था तथा भारत ने स्वतंत्रता के लिये अपने संघर्ष पर ध्यान केंद्रित किया और लैटिन अमेरिका ने अपनी उत्तर-औपनिवेशिक चुनौतियों से निपटने पर ध्यान केंद्रित किया।
- स्वतंत्रता-पश्चात् काल (1947-1970 का दशक)
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM): वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, शीत युद्ध के दौरान भारत और कई लैटिन अमेरिकी देशों ने गुटनिरपेक्षता को अपनाया।
- इस साझा आधार के कारण अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कभी-कभी सहयोग भी हुआ।
- राजनीतिक सहयोग: भारत ने पश्चिमी प्रभाव को कम करने और वैश्विक राजनीति में स्वायत्तता हासिल करने के लैटिन अमेरिकी देशों के प्रयासों का समर्थन किया, लेकिन व्यापार एवं राजनयिक संबंध सीमित रहे।
- वर्ष 1968 में, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 8 लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों का दौरा करके एक महत्त्वपूर्ण कूटनीतिक प्रयास किया।
- यह इस क्षेत्र के साथ भारत की कूटनीतिक भागीदारी का एक मज़बूत दावा था, जिसमें तृतीय विश्व के साथ एकजुटता पर बल दिया गया तथा शांतिपूर्ण सहयोग और एकीकरण को बढ़ावा दिया गया।
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM): वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, शीत युद्ध के दौरान भारत और कई लैटिन अमेरिकी देशों ने गुटनिरपेक्षता को अपनाया।
- आर्थिक उदारीकरण और विकास (1990 का दशक)
- भारतीय अर्थव्यवस्था का उदारीकरण: 1990 के दशक के प्रारंभ में भारत के आर्थिक उदारीकरण ने लैटिन अमेरिका के साथ व्यापार संबंधों के विस्तार में अधिक रुचि उत्पन्न की, क्योंकि दोनों क्षेत्र अमेरिका और यूरोप जैसे पारंपरिक भागीदारों के बाहर नए आर्थिक अवसरों की तलाश कर रहे थे।
- व्यापार और निवेश में वृद्धि: द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि हुई, विशेष रूप से ब्राज़ील और अर्जेंटीना के साथ, जो भारत की तेल जैसे कच्चे माल की मांग तथा लैटिन अमेरिका की भारत की तकनीकी विशेषज्ञता एवं दवा निर्यात में रुचि से प्रेरित था।
- भारत ने सात LAC देशों के साथ व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किये और निर्यात एवं आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिये वर्ष 1997 में फोकस LAC कार्यक्रम शुरू किया।
- 21वीं सदी की भागीदारी (2000 के दशक से वर्तमान तक)
- अधिमान्य व्यापार समझौता: MERCOSUR के साथ भारत का अधिमान्य व्यापार समझौता वर्ष 2009 में लागू हुआ, जिसके तहत अधिकांश ऊर्जा उत्पादों के लिये आयात शुल्क को पूर्णतः या आंशिक रूप से हटा दिया गया।
- उच्च स्तरीय कूटनीतिक जुड़ाव: BRICS शिखर सम्मेलन के लिये प्रधानमंत्री मोदी की वर्ष 2014 की ब्राज़ील यात्रा एक महत्त्वपूर्ण मोड़ थी, जिसने मज़बूत संबंधों के लिये मंच तैयार किया।
- भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर का लैटिन अमेरिका के साथ निरंतर जुड़ाव, जिसमें विदेश मंत्री बनने के बाद से कई यात्राएँ शामिल हैं, संबंधों को गहरा करने के लिये भारत की नई प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- रणनीतिक साझेदारियाँ: भारत ने ब्राज़ील, मैक्सिको एवं अर्जेंटीना जैसे प्रमुख देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करने के साथ-साथ BRICS और G20 जैसे बहुपक्षीय मंचों में भागीदारी पर ध्यान केंद्रित किया।
- वर्तमान केंद्रित प्रयास और भविष्य की संभावनाएँ (वर्ष 2020 और उसके बाद)
- साझेदारियों का विविधीकरण: भारत अब अपने वैश्विक संबंधों में विविधता लाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जिसमें लैटिन अमेरिका भारत की आर्थिक और रणनीतिक स्वायत्तता की खोज में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
- वर्तमान चरण की विशेषता नवीकरणीय ऊर्जा, प्रौद्योगिकी, रक्षा और खाद्य सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में गहन सहयोग है तथा दोनों क्षेत्र मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) और संवर्द्धित राजनयिक जुड़ाव के माध्यम से अपने आर्थिक संबंधों को मज़बूत करने का लक्ष्य रखते हैं।
- साझेदारियों का विविधीकरण: भारत अब अपने वैश्विक संबंधों में विविधता लाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जिसमें लैटिन अमेरिका भारत की आर्थिक और रणनीतिक स्वायत्तता की खोज में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
भारत के लिये लैटिन अमेरिका का क्या महत्त्व है?
- रणनीतिक आर्थिक विविधीकरण: लैटिन अमेरिका के साथ बढ़े हुए सहयोग से भारत को अपने व्यापार और निवेश पोर्टफोलियो में विविधता लाने में सहायता मिलेगी, जिससे अमेरिका और चीन जैसे पारंपरिक आर्थिक साझेदारों पर निर्भरता कम होगी।
- सत्र 2023-24 में, लैटिन अमेरिका के साथ भारत का व्यापार 35.73 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया, जिसमें निर्यात 14.50 बिलियन डॉलर था, जो बढ़ते आर्थिक संबंधों का संकेत देता है।
- वर्ष 2025 तक 100 बिलियन डॉलर (लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों के साथ) का लक्ष्य रखते हुए बढ़ता व्यापार भारत की वैश्विक रणनीति में इस क्षेत्र के महत्त्व को दर्शाता है।
- ऊर्जा सुरक्षा: लैटिन अमेरिका कच्चे तेल और नवीकरणीय ऊर्जा के सतत् और विविध स्रोत प्रदान करके भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिये रणनीतिक महत्त्व रखता है।
- यह सहयोग भारत की मध्य पूर्व और रूस पर निर्भरता को कम करता है, विशेष रूप से वैश्विक ऊर्जा उतार-चढ़ाव के दौरान।
- भारत अपने कच्चे तेल का लगभग 15% से 20% हिस्सा लैटिन अमेरिका से आयात करता है, जिसमें ब्राज़ील और मैक्सिको जैसे प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता भी शामिल हैं।
- हाल ही में, विश्व की सबसे बड़ी तांबा उत्पादक कंपनी चिली की कोडेल्को, भारत के अडानी समूह को गुजरात में उसके कच्छ कॉपर स्मेल्टर के लिये तांबा सांद्रण की आपूर्ति करने जा रही है।
- तकनीकी और औद्योगिक सहयोग: लैटिन अमेरिका तेज़ी से प्रौद्योगिकी अंतरण में भागीदार बन रहा है, विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा, फार्मास्यूटिकल्स और IT क्षेत्रों में, जो भारत के आर्थिक हितों के अनुरूप है।
- IT और फार्मास्यूटिकल्स में भारत की विशेषज्ञता लैटिन अमेरिका की तकनीकी नवाचार की आवश्यकता को पूरा करती है।
- लैटिन अमेरिका में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम 99.5% से अधिक व्यापारिक कार्यढाँचे का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसका भारत लाभ उठा सकता है।
- भारतीय IT कंपनियाँ लैटिन अमेरिका में 40,000 से अधिक स्थानीय लोगों को रोज़गार देती हैं, जो भारत के तकनीकी विस्तार में इस क्षेत्र के महत्त्व को रेखांकित करता है।
- भू-राजनीतिक और सामरिक गठबंधन: लैटिन अमेरिका के साथ संबंधों को मज़बूत करने से भारत की भू-राजनीतिक स्थिति भी सुदृढ़ होगी, विशेष रूप से इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने में।
- उदाहरण के लिये, BRICS और G20 जैसे बहुपक्षीय मंचों के माध्यम से अर्जेंटीना और ब्राज़ील के साथ भारत की भागीदारी वैश्विक शासन में इसकी स्थिति को मज़बूत करती है।
- वैश्विक भू-राजनीति में ‘सक्रिय गुटनिरपेक्षता’ पर साझा ध्यान (विशेष रूप से यूक्रेन युद्ध जैसे मुद्दों पर) भारत-लैटिन अमेरिका संबंधों को मज़बूत करता है।
- सांस्कृतिक एवं जन-जन समन्वय: भारत और लैटिन अमेरिका के बीच बढ़ता सहयोग सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ावा देता है, लोगों के बीच गहरे संबंधों को बढ़ावा देता है तथा भारत के सॉफ्ट पावर को बढ़ाता है।
- लैटिन अमेरिकी देशों की भारतीय संस्कृति में बहुत रुचि है, जिसका उदाहरण बॉलीवुड और योग की लोकप्रियता है।
- यह बढ़ते सांस्कृतिक समन्वय में परिलक्षित होता है, जैसे कि इंडियन सुपर लीग में अधिक संख्या में लैटिन अमेरिकी फुटबॉल खिलाड़ियों की मेज़बानी तथा लैटिन अमेरिकी मनोरंजन उद्योग में भारत की बढ़ती भागीदारी।
- लैटिन अमेरिकी अभिनेता भारतीय फिल्मों में दिखाई दे रहे हैं, जैसे ‘काइट्स’ में अभिनेत्री बारबरा मोरी।
- इस तरह के समन्वय से सामाजिक एवं सांस्कृतिक अंतर को कम करने में सहायता मिलती है तथा द्विपक्षीय संबंध और मज़बूत होते हैं।
- कृषि एवं खाद्य सुरक्षा सहयोग: लैटिन अमेरिका भारत की खाद्य सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करने में एक प्रमुख साझेदार है, जो खाद्य तेलों और दालों जैसे महत्त्वपूर्ण कृषि उत्पाद प्रदान करता है।
- यूक्रेन में युद्ध के कारण खाद्य तेल के आयात में हाल में आए बदलाव के कारण लैटिन अमेरिका ने इस कमी को पूरा करने के लिये कदम बढ़ाया है तथा ब्राज़ील और अर्जेंटीना ने भारत को अपने निर्यात में वृद्धि की है।
- वर्ष 2022 में, लैटिन अमेरिका से भारत का खाद्य तेलों का आयात बढ़कर 5.6 बिलियन डॉलर हो गया, जो भारत की कृषि आपूर्ति शृंखला में इस क्षेत्र की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।
- यह सहयोग भारत में खाद्यान्न कीमतों को स्थिर बनाए रखने तथा खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- सतत् विकास और हरित ऊर्जा परिवर्तन: सतत् कृषि, नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु अनुकूलन में लैटिन अमेरिका का अनुभव भारत के लिये बहुमूल्य शिक्षण अवसर प्रस्तुत करता है।
- सौर ऊर्जा, लिथियम निष्कर्षण और जैव ईंधन में संयुक्त उद्यम दोनों क्षेत्रों की हरित ऊर्जा महत्त्वाकांक्षाओं में योगदान दे सकते हैं।
- भारत पहले से ही अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) पर ब्राज़ील और अन्य लैटिन अमेरिकी देशों के साथ सहयोग कर रहा है तथा जलवायु परिवर्तन एवं ऊर्जा सुरक्षा के लिये मिलकर कार्य कर रहा है।
- इसके अलावा, लिथियम उत्पादन में चिली का नेतृत्व और स्वच्छ ऊर्जा समाधानों में भारत की रुचि, दोनों क्षेत्रों को वैश्विक हरित परिवर्तन को आगे बढ़ाने में साझेदार के रूप में स्थापित करती है।
भारत-लैटिन अमेरिका के प्रभावी संबंधों में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- भौगोलिक दूरी और संपर्क चुनौती: हालाँकि भौतिक दूरी हमेशा एक बाधा रही है, किंतु भारत और लैटिन अमेरिका के बीच प्रत्यक्ष संपर्क की कमी भी एक प्रमुख मुद्दा बनी हुई है।
- सीमित नौ-परिवहन मार्ग और विमानन संपर्क सुचारू व्यापार एवं यात्रा में बाधा डालते हैं, जिससे द्विपक्षीय संबंध धीमे हो जाते हैं।
- उदाहरण के लिये, नई दिल्ली और ब्यूनस आयर्स जैसे प्रमुख शहरों के बीच सीधी उड़ानों का अभाव व्यावसायिक यात्राओं को प्रतिबंधित करता है तथा उच्च स्तरीय समन्वय एवं संपर्क की आवृत्ति को कम करता है।
- धारणाएँ और जागरूकता का अभाव: यद्यपि लैटिन अमेरिकी लोग प्रायः भारत को आध्यात्मिकता की भूमि के रूप में देखते हैं, तथापि कई भारतीय अभी भी इस क्षेत्र को ‘बनाना रिपब्लिक’ और राजनीतिक अस्थिरता के दृष्टिकोण से देखते हैं।
- यह सांस्कृतिक और सूचनात्मक अंतर गहन सहयोग को सीमित करता है। उदाहरण के लिये, वैश्विक IT और फार्मास्यूटिकल्स में भारत की उभरती भूमिका के बावजूद, लैटिन अमेरिकी अभी भी भारत की तकनीकी क्षमता से अनभिज्ञ हैं। यह अंतर भारत के फार्मास्यूटिकल्स निर्यात में स्पष्ट दिखाई देता है, जहाँ भारत की मज़बूत स्थिति के बावजूद, चीन से प्रतिस्पर्द्धा जारी है।
- आर्थिक अवसंरचना अंतराल: भौतिक संपर्क एवं वित्तीय प्रणालियों दोनों के संदर्भ में अपर्याप्त अवसंरचना, भारत और लैटिन अमेरिका के बीच व्यापार तथा निवेश की क्षमता को सीमित करती है।
- हाल के व्यापार सुधारों के बावजूद, केवल कुछ लैटिन अमेरिकी देश (जैसे: ब्राज़ील और मैक्सिको) ही भारत के साथ मज़बूत व्यापार से लाभान्वित हो रहे हैं तथा कई अन्य देश पीछे छूट रहे हैं।
- वर्ष 2022 के आँकड़ों से पता चलता है कि ब्राज़ील का भारत के साथ अधिकांश व्यापार में योगदान है तथा ब्राज़ील का भारत को निर्यात 6.43 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है, जो वर्ष 2017 से 5.68% की वार्षिक दर से बढ़ रहा है।
- लेकिन पनामा और ग्वाटेमाला जैसे देशों की हिस्सेदारी बहुत कम है तथा अपर्याप्त व्यापार सुविधा तंत्र के कारण इसमें बाधा आ रही है।
- असंगत राजनीतिक इच्छाशक्ति और सहभागिता: यद्यपि दोनों पक्ष मज़बूत संबंधों में रुचि दिखाते हैं, फिर भी उनके बीच सुसंगत राजनीतिक सहभागिता का अभाव है।
- उदाहरण के लिये, भारत के राजनीतिक नेतृत्व ने अपनी नियमित विदेश नीति के एजेंडे के हिस्से के रूप में लैटिन अमेरिका को प्राथमिकता नहीं दी है।
- प्रधानमंत्री मोदी की वर्ष 2014 में BRICS के लिये ब्राज़ील यात्रा के बावजूद, उसके बाद कोई उच्च स्तरीय यात्रा नहीं हुई।
- यह विसंगति इस तथ्य से प्रतिबिंबित होती है कि वर्ष 2014 के बाद से केवल 5 लैटिन अमेरिकी राजनेताओं ने भारत का दौरा किया है, जो सतत् कूटनीतिक प्रयासों में अंतर एवं आर्थिक समझौतों में और अधिक विलंब को दर्शाता है।
- व्यापार बाधाएँ और संरक्षणवादी नीतियाँ: उच्च व्यापार शुल्क (विशेष रूप से लैटिन अमेरिका के कृषि उत्पादों पर) भारत और इस क्षेत्र के बीच व्यापार के विस्तार में बाधाएँ उत्पन्न करते हैं।
- यद्यपि लैटिन अमेरिका का उद्देश्य अधिमान्य व्यापार समझौतों (PTA) को पूर्ण FTA में अपग्रेड करना है, फिर भी भारत ने इन बाधाओं को कम करने के लिये अभी तक स्पष्ट राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ प्रतिक्रिया नहीं दी है (हालाँकि यह प्रधानमंत्री की हालिया यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण एजेंडा हो सकता है)।
- भारत की व्यापार नीतियाँ अभी भी कृषि जैसे क्षेत्रों में संरक्षणवाद पर केंद्रित हैं, इसलिये लैटिन अमेरिका की पूरी क्षमता का सदुपयोग नहीं हो पाया है।
- चीन से प्रतिस्पर्द्धा: लैटिन अमेरिका में चीन का बढ़ता प्रभाव इस क्षेत्र में भारत की महत्त्वाकांक्षाओं के लिये प्रत्यक्ष चुनौती प्रस्तुत करता है।
- यद्यपि भारत फार्मास्यूटिकल्स और IT जैसे क्षेत्रों में साझेदार है, बुनियादी अवसंरचना एवं व्यापार में चीन के रणनीतिक निवेश ने इसे लैटिन अमेरिका में प्रमुख आर्थिक शक्ति बना दिया है।
- ब्राज़ील और चिली जैसे लैटिन अमेरिकी देश अब चीन को अपने शीर्ष व्यापारिक साझेदार के रूप में प्राथमिकता दे रहे हैं, जिससे भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता कमज़ोर हो रही है।
- हाल के वर्षों में, लैटिन अमेरिका के साथ चीन का व्यापार 427.4 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया, जो भारत के 35 बिलियन डॉलर से भी अधिक है तथा बीज़िंग ने बड़े बुनियादी अवसंरचना के सौदे हासिल किये हैं, जिनकी बराबरी भारत नहीं कर पाया है, विशेष रूप से सेंट्रल बाई-ओशनिक रेलवे कॉरिडोर जैसी परियोजनाओं के मामले में।
- सीमित बहुपक्षीय सहभागिता: प्रशांत गठबंधन या लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई राज्यों के समुदाय (CELAC) जैसे क्षेत्रीय मंचों में भारत की सहभागिता कम रही है तथा इसमें गहनता का अभाव है।
- प्रमुख बहुपक्षीय मंचों से यह अनुपस्थिति जलवायु परिवर्तन और सतत् विकास जैसे बड़े क्षेत्रीय मुद्दों पर मज़बूत, सहयोगात्मक संबंध बनाने की भारत की क्षमता को बाधित करती है।
- यद्यपि भारत प्रशांत गठबंधन में एक पर्यवेक्षक है, लेकिन ऐसे मंचों पर ठोस समझौतों या सक्रिय भागीदारी का अभाव इस क्षेत्र में इसकी स्थिति को कमज़ोर करता है, जैसा कि प्रशांत गठबंधन के साथ व्यापार वार्ता की सुस्त प्रगति से देखा जा सकता है।
- सांस्कृतिक और भाषाई बाधाएँ: भाषाई और सांस्कृतिक अंतर व्यापार एवं राजनयिक समन्वय को और अधिक जटिल बना देते हैं।
- यद्यपि भारत में अंग्रेज़ी व्यापक रूप से बोली जाती है, लैटिन अमेरिकी देशों में मुख्य रूप से स्पेनिश और पुर्तगाली भाषा बोली जाती है, जिससे संचार एवं साझेदारी अधिक कठिन हो जाती है।
- यह अंतर स्पेनिश और पुर्तगाली भाषा में पारंगत भारतीय पेशेवरों की सीमित संख्या में स्पष्ट है, जो लैटिन अमेरिकी बाज़ार में भारत की गहराई तक पैठ बनाने की क्षमता को सीमित करता है।
- सांस्कृतिक समन्वय बढ़ाने के हालिया प्रयासों के बावजूद, ये बाधाएँ अभी भी लैटिन अमेरिकी देशों के साथ प्रभावी ढंग से जुड़ने में महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ पेश करती हैं।
लैटिन अमेरिका के साथ संबंध बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?
- प्रत्यक्ष संपर्क और अवसंरचना विकास की स्थापना: भारत को प्रमुख भारतीय शहरों और प्रमुख लैटिन अमेरिकी राजधानियों के बीच सीधे हवाई एवं समुद्री संपर्क की स्थापना को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- बंदरगाहों और व्यापार केंद्रों सहित लॉजिस्टिक्स अवसंरचना में सुधार से परिवहन लागत में कमी आएगी तथा व्यापार एवं राजनयिक समन्वय में सुगमता आएगी।
- भारत लैटिन अमेरिकी देशों के साथ मिलकर साझा परिवहन गलियारा विकसित कर सकता है, जिससे वस्तुओं का तीव्र और लागत-कुशल परिवहन संभव होगा तथा गहन आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
- राजनीतिक और कूटनीतिक जुड़ाव को मज़बूत करना: अधिक सुसंगत और रणनीतिक कूटनीतिक पहुँच की आवश्यकता है, जिसमें भारतीय राजनेताओं द्वारा लैटिन अमेरिका एवं लैटिन अमेरिका के उच्च-स्तरीय दौरे शामिल हों।
- CELAC एवं प्रशांत गठबंधन जैसे बहुपक्षीय मंचों में अधिक सक्रियता से भाग लेकर भारत अपनी दृश्यता और प्रभाव बढ़ा सकता है।
- नियमित राजनयिक वार्ता और विदेश मंत्रालय के भीतर एक समर्पित ‘लैटिन अमेरिकी डेस्क’ की स्थापना से इस क्षेत्र पर निरंतर एवं केंद्रित ध्यान सुनिश्चित होगा।
- व्यापक व्यापार समझौतों को बढ़ावा देना: भारत को प्रमुख लैटिन अमेरिकी देशों और मर्कोसुर जैसे क्षेत्रीय समूहों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) पर सक्रिय रूप से वार्ता करनी चाहिये तथा उन्हें लागू करना चाहिये।
- उन क्षेत्रों को प्राथमिकता देकर, जिनमें दोनों क्षेत्रों की पूरक शक्तियाँ हैं (जैसे: नवीकरणीय ऊर्जा, प्रौद्योगिकी और फार्मास्यूटिकल्स), भारत पारस्परिक रूप से लाभकारी व्यापार गतिशीलता का निर्माण कर सकता है।
- इसके अतिरिक्त, उद्योगों की एक व्यापक शृंखला को शामिल करने के लिये अधिमान्य व्यापार समझौतों (PTA) का विस्तार करने से व्यापार के नए मार्ग खुलेंगे और आर्थिक सहयोग गहरा होगा।
- शैक्षिक और सांस्कृतिक कूटनीति का विस्तार: भारत को लोगों के बीच गहरे संबंध बनाने के लिये सांस्कृतिक कूटनीति में निवेश करना चाहिये।
- इसमें छात्रवृत्ति, सांस्कृतिक समन्वय तथा नवीकरणीय ऊर्जा, सूचना प्रौद्योगिकी और वैश्विक शासन जैसे विषयों पर केंद्रित शैक्षणिक सहयोग शामिल हो सकते हैं।
- भारतीय संस्थानों में लैटिन अमेरिकी छात्रों की संख्या बढ़ाकर और इसके विपरीत, भारत अपनी संस्कृति एवं वैश्विक महत्त्वाकांक्षाओं की अधिक सूक्ष्म समझ को बढ़ावा दे सकता है, जिससे दीर्घकालिक सॉफ्ट पावर प्रभाव का मार्ग प्रशस्त होगा।
- गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो जैसे देशों में भारतीय समुदाय सांस्कृतिक एवं आर्थिक सेतु के रूप में कार्य कर सकते हैं।
- भारत को इस प्रवासी समुदाय को शामिल करने के लिये अधिक औपचारिक तंत्र स्थापित करना चाहिये, जिससे उन्हें व्यापार और सांस्कृतिक समन्वय को सुविधाजनक बनाने में सहायता मिले तथा साथ ही इस क्षेत्र में भारत के सामरिक एवं आर्थिक हितों को बढ़ावा मिले।
- सहयोगात्मक अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना: भारत अनुसंधान और नवाचार में लैटिन अमेरिकी देशों के साथ साझेदारी कर सकता है (विशेष रूप से संधारणीय कृषि) नवीकरणीय ऊर्जा और तटीय प्रबंधन के क्षेत्र में।
- दोनों क्षेत्रों में स्टार्टअप्स के लिये संयुक्त अनुसंधान प्लेटफॉर्म, नवाचार केंद्र और इनक्यूबेटर बनाने से सीमा पार सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
- यह दृष्टिकोण न केवल आम वैश्विक चुनौतियों का समाधान करता है, बल्कि जलवायु अनुकूलन और ऊर्जा परिवर्तन के मुद्दों को सुलझाने में दोनों क्षेत्रों को अग्रणी के रूप में स्थापित करता है।
- उन्नत डिजिटल और तकनीकी सहयोग: भारत को डिजिटल अवसंरचना, साइबर सुरक्षा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे क्षेत्रों में संयुक्त उद्यमों एवं रणनीतिक साझेदारी के माध्यम से लैटिन अमेरिका में अपनी तकनीकी उपस्थिति बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- लैटिन अमेरिकी देशों में डिजिटल प्रशिक्षण केंद्रों और प्रौद्योगिकी पार्कों की स्थापना से न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को लाभ होगा, बल्कि वैश्विक तकनीकी अग्रणी के रूप में भारत की भूमिका भी बढ़ेगी।
- IT सेवाओं और समाधानों में भारत की विशेषज्ञता को बढ़ावा देने से भविष्य में आर्थिक विकास को गति मिल सकती है तथा भारतीय प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिये नए बाज़ार खुल सकते हैं।
- दक्षिण-दक्षिण सहयोग कार्यढाँचे में भागीदारी: भारत लैटिन अमेरिकी देशों की आवश्यकताओं के अनुरूप संयुक्त विकास कार्यक्रमों और पहलों को सक्रिय रूप से बढ़ावा देकर दक्षिण-दक्षिण सहयोग में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका को बढ़ा सकता है।
- ये सहयोग स्वास्थ्य, शिक्षा, गरीबी उन्मूलन और सतत् विकास जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित हो सकते हैं, जिससे गहन राजनयिक संबंधों को बढ़ावा मिलेगा तथा साथ ही वैश्विक चुनौतियों का समाधान भी हो सकेगा।
- BRICS और G20 जैसे वैश्विक मंचों पर भारत के नेतृत्व का लाभ लैटिन अमेरिका के हितों को बढ़ावा देने तथा उनकी विकासात्मक प्राथमिकताओं को भारत की विदेश नीति रणनीति में एकीकृत करने के लिये उठाया जाना चाहिये।
- सुरक्षा और रक्षा सहयोग को मज़बूत करना: भारत लैटिन अमेरिकी देशों के साथ अपने सामरिक रक्षा संबंधों का विस्तार कर सकता है, विशेष रूप से आतंकवाद-निरोध, समुद्री सुरक्षा और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में।
- संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण, सहयोगात्मक रक्षा प्रौद्योगिकी परियोजनाएँ और सूचना-साझाकरण तंत्र मज़बूत रक्षा साझेदारी बना सकते हैं।
- साइबर डिफेंस और आतंकवाद विरोधी अभियानों में भारत की विशेषज्ञता को लैटिन अमेरिकी देशों के साथ साझा किया जा सकता है, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों का समाधान किया जा सकेगा तथा साथ ही बहुआयामी तरीके से द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत किया जा सकेगा।
निष्कर्ष:
यद्यपि लैटिन अमेरिका की भारत से भौगोलिक दूरी पारंपरिक रूप से चुनौतियाँ प्रस्तुत करती रही है, फिर भी वैश्विक रसद एवं संचार का उभरता परिदृश्य इस बाधा को दूर करने का एक आशाजनक अवसर प्रस्तुत करता है। जैसा कि एस. जयशंकर ने बुद्धिमत्तापूर्वक कहा है, "हम एक वैश्वीकृत युग में रह रहे हैं और अब हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि दूरी अब कोई बाधा न बने। आधुनिक लॉजिस्टिक्स और आधुनिक संचार हमें सहयोगात्मक संभावनाएँ प्रदान करते हैं।"
बुनियादी अवसंरचना में रणनीतिक निवेश और कूटनीतिक इच्छाशक्ति के साथ, दोनों क्षेत्र संपर्क बढ़ा सकते हैं तथा आर्थिक, सांस्कृतिक एवं रणनीतिक सहयोग के लिये पारस्परिक रूप से लाभकारी मार्ग तैयार कर सकते हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. “लैटिन अमेरिका के साथ भारत के संबंध 21वीं सदी में महत्त्वपूर्ण रूप से विकसित हुए हैं, फिर भी इसकी पूरी क्षमता को साकार करने में अभी भी कई चुनौतियाँ हैं।” भारत और लैटिन अमेरिका के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों का परीक्षण कीजिये तथा गहन सहभागिता में बाधा डालने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न 1. निम्नलिखित में से किस समूह के सभी चारों देश G20 के सदस्य हैं? (2020) (a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका एवं तुर्की उत्तर: (a) |