शासन व्यवस्था
चुनावी प्रक्रिया में सुधार
यह एडिटोरियल 10/06/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “Tighten the process: On the Election Commission of India, election processes” पर आधारित है। यह लेख 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में कथित मतदाता सूची विसंगतियों और मतदान अनियमितताओं और CCTV फुटेज तक सीमित पहुँच पर चिंताओं के बारे में प्रकाश डालता है तथा चुनावी प्रक्रिया में बेहतर पारदर्शिता की आवश्यकता पर ज़ोर देता है।
प्रिलिम्स के लिये:भारत का चुनाव आयोग, लोक प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951, परिसीमन अधिनियम, 2002, सर्वोच्च न्यायालय, जनहित याचिका, वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) , मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC), आधार से ईपीआईसी, स्वीप (व्यवस्थित मतदाता शिक्षा और चुनावी भागीदारी)। मेन्स के लिये:चुनाव प्रक्रिया, पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया के लिये आवश्यक चुनौतियाँ और सुधार। |
चुनाव भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की आधारशिला हैं, जो नागरिकों को अपने प्रतिनिधियों को चुनने और सार्वजनिक शासन को आकार देने का अवसर प्रदान करते हैं। 96.88 करोड़ से अधिक पंजीकृत मतदाताओं के साथ, भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र है, जो एक मज़बूत संवैधानिक और कानूनी ढाँचे द्वारा संचालित होता है। हालाँकि, चुनावी प्रक्रिया धनबल, राजनीति के अपराधीकरण, मतदान धोखाधड़ी और अभियान संबंधी अनियमितताओं जैसी समस्याओं से लगातार प्रभावित हो रही है। ऐतिहासिक सुधारों और न्यायिक हस्तक्षेपों के बावजूद, व्यवस्थागत चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
भारत में चुनावों के संचालन को कौन-से प्रमुख प्रावधान विनियमित करते हैं?
- ECI का संवैधानिक अधिकार: अनुच्छेद 324 भारत के चुनाव आयोग को भारत में चुनावों का पर्यवेक्षण, निर्देशन और नियंत्रण करने का अधिकार प्रदान करता है।
- यह स्वतंत्र एवं निष्पक्ष संसदीय और राज्य चुनाव कराने के लिये संस्थागत प्राधिकरण की स्थापना करता है।
- मतदाता सूची तैयार करना: लोक प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1950 मतदाता सूची को तैयार और संशोधनों को नियंत्रित करता है।
- इसमें निर्वाचन अधिकारियों की नियुक्ति और निर्वाचन क्षेत्रवार मतदाता सूचियों का प्रबंधन शामिल है।
- लोक प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 की नियामक भूमिका: लोक प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 चुनाव-पूर्व प्रक्रिया और चुनावों के संचालन को नियंत्रित करता है।
- इसमें योग्यता, अयोग्यता और चुनाव विवाद प्रक्रियाओं के साथ-साथ अपराध एवं दंड का भी उल्लेख किया गया है।
- मतदाता सूची प्रबंधन के नियम: मतदाता पंजीकरण नियम, 1960, मतदाता सूची में सुधार और नाम हटाने से संबंधित 1950 के अधिनियम को लागू करता है ।
- इससे राज्यों में प्रक्रियात्मक एकरूपता सुनिश्चित होती है तथा मतदाता डेटाबेस की सटीकता और अखंडता मज़बूत होती है।
- परिसीमन: परिसीमन अधिनियम, 2002 आयोगों को जनगणना के बाद संसदीय और विधानसभा की सीमाओं को पुनः निर्धारित करने का अधिकार प्रदान करता है।
- यह जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के आधार पर निष्पक्ष और आनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है।
- आदर्श आचार संहिता (MCC): यद्यपि कानूनी रूप से लागू करने योग्य नहीं है, लेकिन आदर्श आचार संहिता नैतिक चुनाव आचरण का मार्गदर्शन करती है, जिसमें भारतीय न्याय संहिता (BNS) और RPA 1951 के तहत कानूनों द्वारा समर्थित कई प्रावधान हैं।
- 1960 में शुरू की गई इस नीति को चुनावी अनुशासन और शिष्टाचार सुनिश्चित करने के लिये दशकों तक मज़बूत किया गया है।
- न्यायिक निगरानी और जवाबदेही: भारत का सर्वोच्च न्यायालय चुनावी नियमों को बरकरार रखने और चुनाव कानूनों के प्रगतिशील व्याख्या में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है।
- न्यायिक हस्तक्षेप चुनावी प्रक्रिया की लोकतांत्रिक अखंडता सुनिश्चित करने के लिये आज भी एक अनिवार्य तत्त्व है।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म एकीकरण: भारत निर्वाचन आयोग की ईरोनेट (ERONET - इलेक्टोरल रोल मैनेजमेंट) प्रणाली राज्यों में मतदाता सूचियों के प्रबंधन के लिये एक केंद्रीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराती है।
- यह तकनीकी समाधान पहले के विकेंद्रीकरण संबंधी मुद्दों का समाधान करता है, जिनके कारण डुप्लिकेट EPIC नंबर की समस्या उत्पन्न होती थी।
चुनाव प्रक्रिया से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- VVPAT मिलान का सीमित दायरा: वर्तमान VVPAT सत्यापन में विवाद के स्तर के बावजूद प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में केवल पाँच EVM को ही शामिल किया जाता है।
- वर्ष 2024 में, सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्ण वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मिलान को खारिज कर दिया।
- हालाँकि, उम्मीदवार 5% मशीनों का सत्यापन निर्माता के इंजीनियरों से करा सकते हैं।
- आलोचकों का तर्क है कि इससे जनता के विश्वास और चुनाव की पारदर्शिता कमें कमी आती है, इसलिये व्यापक रूप से क्रॉस-वेरिफिकेशन की मांग की जाती है।
- वर्ष 2024 में, सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्ण वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मिलान को खारिज कर दिया।
- मतदाता सूची में हेराफेरी के आरोप: चुनावी चक्रों के दौरान मतदाता सूचियों में छेड़छाड़ को लेकर समय-समय पर चिंताएँ सामने आती रहती हैं।
- हालाँकि, चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि मतदाता पहचान पत्रों की दोहराव की समस्या पूर्ववर्ती विकेंद्रीकृत मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC) प्रणाली के कारण हुई, जिसे बाद में ERONET प्लेटफॉर्म के साथ मानकीकृत कर दिया गया है।
- विभिन्न राज्यों में एक समान EPIC संख्या वाले मतदाताओं के कारण मतदान में धोखाधड़ी की आशंका बढ़ जाती है।
- चुनाव आयोग ने जवाब में कहा कि मतदाता केवल निर्धारित मतदान केंद्रों पर ही मतदान कर सकते हैं।
- प्रचारकों द्वारा आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन: स्टार प्रचारक अक्सर आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करते हुए घृणास्पद भाषण और सांप्रदायिक बयानबाजी करते हैं।
- दंडात्मक परिणाम के अभाव के कारण बिना किसी रोक-टोक के बार-बार अभियान उल्लंघन संभव हो जाता है।
- राजनीतिक दलों का अनियमित व्यय: उम्मीदवारों के लिये व्यय सीमा निर्धारित होती है, जबकि राजनीतिक दलों के लिये चुनाव व्यय पर कोई आधिकारिक सीमा नहीं होती है।
- अनुमान है कि वर्ष 2024 के आम चुनाव में अकेले पार्टियों द्वारा ₹1.35 लाख करोड़ खर्च किये गए।
- राजनीति का अपराधीकरण निरंतर बना हुआ है: वर्ष 2024 में, निर्वाचित सांसदों में से 46% पर आपराधिक मामले दर्ज थे, जिनमें हत्या और बलात्कार जैसे गंभीर अपराध भी शामिल थे।
- यह स्थिति लोकतांत्रिक वैधता को कमज़ोर करती है तथा उम्मीदवारों की छानबीन करने वाली प्रणालियों की विफलता को उजागर करती है।
- प्रौद्योगिकी और फर्जी समाचार का दुरुपयोग: डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल गलत सूचना फैलाने और मतदाताओं के व्यवहार को प्रभावित करने के लिये खतरनाक तरीके से किया जा रहा है। नियमों के बावजूद, डीपफेक्स और झूठे प्रचार के खिलाफ कार्रवाई अभी भी कमज़ोर और देरी से होती है।
- एकाधिक सीटों पर चुनाव लड़ने का मुद्दा: वर्तमान सांसदों और विधायकों द्वारा एकाधिक सीटों पर चुनाव लड़ने से महगे और अनावश्यक उपचुनावों कराए जाते है।
- इससे शासन व्यवस्था बाधित होती है और मतदाता जवाबदेही पर राजनीतिक स्वार्थसिद्धि प्रतिबिंबित होती है ।
- इसके अलावा, कई सीटें जीतने के बाद इस्तीफों के कारण बार-बार उपचुनाव होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप मतदाता थक जाते हैं और उनमें अरुचि उत्पन्न हो जाती है।
- बढ़ती चुनावी लागत और बोझ: चुनाव आयोग द्वारा वर्ष 2024 के आम चुनावों में पार्टी और उम्मीदवार के व्यय को छोड़कर लगभग ₹6,931 करोड़ खर्च किये गए।
- उच्च चुनावी लागत से सार्वजनिक वित्त पर दबाव पड़ता है और अभियान की निष्पक्षता कम हो जाती है।
- पार्टियों में कमज़ोर आंतरिक लोकतंत्र: अधिकांश पार्टियों में पारदर्शी आंतरिक चुनाव या नेतृत्व की कार्यकाल सीमा का अभाव है, जिससे जवाबदेही कमज़ोर होती है।
- अलोकतांत्रिक पार्टी संरचनाएँ समावेशी राजनीतिक भागीदारी और उम्मीदवार विविधता में बाधा डालती हैं ।
- FPTP प्रणाली के माध्यम से अल्प प्रतिनिधित्व: जीतने वाले उम्मीदवार अक्सर 50% से कम वोट प्राप्त करते हैं, जिससे प्रतिनिधि वैधता पर सवाल उठते हैं।
- FPTP प्रणाली अत्यधिक विविध निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता बहुलता को प्रतिबिंबित नहीं कर सकती है।
- प्रतिनिधित्व में क्षेत्रीय असमानताएँ: इस बात पर चिंता व्यक्त की गई है कि परिसीमन में दक्षिणी या छोटे राज्यों की तुलना में अधिक जनसंख्या वाले राज्यों को प्राथमिकता दी जाएगी।
- इससे संघीय संतुलन और राजनीतिक समता में संभावित रूप से परिवर्तन आ सकता है।
लोकतंत्र को मज़बूत करने के लिये कौन से चुनाव सुधार आवश्यक हैं?
- वैज्ञानिक VVPAT मिलान तंत्र: वैज्ञानिक दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए नमूना-आधारित VVPAT सत्यापन के लिये क्षेत्र बनाए जाने चाहिये।
- यदि कोई विसंगति उत्पन्न होती है, तो उस क्षेत्र के लिये पूर्णतः मैन्युअल VVPAT गणना अनिवार्य की जानी चाहिये।
- टोटलाइज़र मशीनों की शुरूआत: मतदाता की गोपनीयता बनाए रखने के लिये, टोटलाइज़र मशीनें (ECI का 2016 का प्रस्ताव) कई मतदान केंद्रों के वोटों का मिलन कर सकती हैं।
- इस प्रणाली से मतदान केंद्र-वार परिणाम विश्लेषण कम होता है और चुनाव-पश्चात धमकी या भेदभाव की घटनाओं पर अंकुश लगता है।
- डुप्लिकेट EPIC नंबर को खत्म करना: आधार को ईपीआईसी नंबर से जोड़ने से डुप्लिकेट या फर्जी मतदाता प्रविष्टियों को हटाने में मदद मिल सकती है।
- गोपनीयता संबंधी चिंताओं को डेटा संरक्षण उपायों और विधायी निगरानी के माध्यम से संबोधित किया जाना चाहिये।
- स्टार प्रचारक के विशेषाधिकार रद्द करना: चुनाव आयोग को बार-बार आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के लिये स्टार प्रचारक का दर्जा रद्द कर देना चाहिये।
- इससे व्यय छूट समाप्त हो जाएगी तथा नैतिक अभियान मानदंडों का अनुपालन बढ़ जाएगा।
- व्यय सीमा के लिये जनप्रतिनिधि कानून में संशोधन: संशोधनों में राजनीतिक दलों के व्यय को सीमित किया जाना चाहिये, न कि केवल उम्मीदवार स्तर के व्यय को।
- इससे अनियंत्रित चुनावी वित्त पर अंकुश लगाया तथा चुनाव के दौरान समान अवसर सुनिश्चित किया जा सकेगा।
- एक राष्ट्र, एक चुनाव से चुनाव प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करके चुनावी व्यय को कम किया जा सकता है तथा अलग-अलग समय पर कई चुनाव कराने से जुड़ी दोहरावपूर्ण लागतों में कटौती की जा सकती है।
- आपराधिक पृष्ठभूमि का अनिवार्य प्रकटीकरण: वर्ष 2018 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में यह अनिवार्य किया गया है कि आपराधिक रिकॉर्ड तीन बार घोषित किया जाए।
- मतदाताओं को सूचित करने के लिये इसे निर्वाचन आयोग की निगरानी और मीडिया प्रसार के माध्यम से सख्ती से लागू किया जाना चाहिये।
- वर्ष 1993 की वोहरा समिति ने अपराधियों, राजनेताओं और नौकरशाहों के बीच संबंधों पर प्रकाश डाला तथा आपराधिक-राजनीतिक गठजोड़ एवं काले धन पर अंकुश लगाने के लिये एक नोडल एजेंसी का प्रस्ताव रखा।
- शासन में नैतिकता पर द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने आपराधिक उम्मीदवारों के लिये फास्ट-ट्रैक अदालतों की सिफारिश की।
- विधि आयोग की 244वीं रिपोर्ट में आरोप तय होने पर उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित करने, झूठे हलफनामों के लिये दंड तथा अयोग्यता के लिये कड़े नियमों और मज़बूत कानूनी रोकथाम का समर्थन किया गया है।
- राजनीतिक अपराध मामलों में तेजी लाना: सर्वोच्च न्यायालय ने (कई अवसरों पर) उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया है कि वे सांसदों-विधायकों के विरुद्ध आपराधिक मामलों की निगरानी के लिये विशेष पीठ स्थापित करें तथा चुनाव से पहले राजनेताओं से संबंधित गंभीर आपराधिक मामलों को प्राथमिकता दें।
- इसका उद्देश्य जनता का विश्वास बढ़ाना तथा प्रक्रियागत देरी के माध्यम से अपराधियों को राजनीति में प्रवेश करने से रोकना है।
- एकाधिक सीटों के लिये त्यागपत्र नियम: किसी नई सीट के लिये नामांकन दाखिल करने से पहले मौजूदा विधायकों को त्यागपत्र देना होगा।
- इससे अनावश्यक उपचुनावों को रोका जा सकता है तथा अभियान संसाधनों की बर्बादी को कम किया जा सकता है।
- रिक्तियाँ सृजित करने वाले उम्मीदवारों को उप-चुनाव लागत का कुछ हिस्सा वहन करना चाहिये, अवसरवादिता को हतोत्साहित करना चाहिये तथा वित्तीय उत्तरदायित्व को बढ़ावा देना चाहिये।
- उम्मीदवारों के परिवर्तन और पैराशूटिंग को विनियमित करना: संवैधानिक संशोधनों द्वारा सीटों और निर्वाचन क्षेत्रों के बीच परिवर्तन को प्रतिबंधित किया जा सकता है।
- चुनावों के बाद कूलिंग-ऑफ अवधि लागू करने से विधायकों को जल्दी से निर्वाचन क्षेत्र बदलने से रोका जा सकेगा।
- इससे स्थानीय प्रतिनिधित्व सुरक्षित रहता है तथा जनता के विश्वास में कमी आती है।
- आंतरिक पार्टी लोकतंत्र अधिदेश: राजनीतिक दलों को आंतरिक चुनाव कराना चाहिये तथा नेतृत्व की भूमिकाओं के लिये कार्यकाल सीमा लागू की जानी चाहिये।
- इससे राजनीतिक बहुलवाद को बढ़ावा मिलता है तथा नये एवं सक्षम नेतृत्व का विकास होता है।
- शासन में नैतिकता पर द्वितीय ARC ने स्वच्छ और कुशल चुनावी शासन के व्यापक लक्ष्य के साथ संरेखित करते हुए, दलों में आंतरिक लोकतंत्र की सिफारिश की है।
- चुनावी पारदर्शिता: राजनीतिक दलों को RTI अधिनियम के अंतर्गत लाने से वित्तपोषण में पारदर्शिता सुनिश्चित होगी, लोकतांत्रिक निगरानी मज़बूत होगी तथा चुनावी वित्त में जनता का विश्वास बढ़ेगा।
- इसके अतिरिक्त, राजनीतिक दलों पर आयकर विनियमन लागू करने से अवैध वित्तपोषण पर अंकुश लगाने तथा राजनीतिक दान में जवाबदेही सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
- मतदाता शिक्षा को मज़बूत करना: SVEEP (व्यवस्थित मतदाता शिक्षा और चुनावी भागीदारी) कार्यक्रम का विस्तार किया जाना चाहिये ताकि इसमें नैतिक मतदान और फेक न्यूज़ (फर्जी समाचार) साक्षरता को शामिल किया जा सके।
- इससे मतदाताओं को सूचित और सहभागी लोकतंत्र में शामिल होने का अधिकार मिलता है।
- डिजिटल अभियान और गलत सूचना को विनियमित करना: घृणापूर्ण भाषण और डीप फेक के खिलाफ सोशल मीडिया कोड को सख्ती से लागू किया जाना चाहिये।
- पूर्व-निवारक मॉडरेशन और सामग्री ट्रेसिंग के लिये प्लेटफार्मों के साथ सहयोग आवश्यक है।
- राज्य वित्तपोषण: टी.एस. कृष्णमूर्ति (भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त) ने अभियानों के सार्वजनिक वित्तपोषण को सुव्यवस्थित करने, अपारदर्शी निजी दान को कम करने और पारदर्शिता बढ़ाने के लिये एक राष्ट्रीय चुनाव कोष की स्थापना की सिफारिश की।
- इसी प्रकार, इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998) ने निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करने के लिये आंशिक राज्य वित्तपोषण का प्रस्ताव रखा तथा चुनावी मुकाबलों में समान अवसर और वित्तीय समानता की आवश्यकता पर बल दिया।
निष्कर्ष:
भारत की लोकतांत्रिक वैधता, नागरिक विश्वास और संस्थागत अखंडता को मज़बूत करने के लिये चुनावी सुधार अपरिहार्य हैं। प्रणालीगत खामियों को दूर करके, पारदर्शिता को अपनाकर और स्वतंत्र संस्थानों को सशक्त बनाकर, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि उसके चुनाव वास्तव में प्रतिनिधित्त्वपूर्ण और निष्पक्ष रहें। चुनावी न्याय के वादे को साकार करने के लिये एक प्रतिबद्ध, बहु-हितधारक दृष्टिकोण आवश्यक है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में चुनाव सुधारों की आवश्यकता का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। आपकी राय में लोकतांत्रिक जवाबदेही को मज़बूत करने के लिये कौन-से सुधार आवश्यक हैं? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न .1 निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर:(b) मेन्स:प्रश्न. लोक प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत संसद अथवा राज्य विधायिका के सदस्यों के चुनाव से उभरे विवादों के निर्णय की प्रक्रिया का विवेचन कीजिये। किन आधारों पर किसी निर्वाचित घोषित प्रत्याशी के निर्वाचन को शून्य घोषित किया जा सकता है? इस निर्णय के विरुद्ध पीड़ित पक्ष को कौन-सा उपचार उपलब्ध है? वाद विधियों का संदर्भ दीजिये। (2022) |