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  • 09 Jul, 2019
  • 15 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

हिंद-प्रशांत के लिये आसियान नीति

इस Editorial में The Hindu, Indian Express, Business Line, Observer Research Foundation में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस आलेख में हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर आसियान नीति के विभिन्न पक्षों की चर्चा की गई है तथा आवश्यकतानुसार यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में आसियान (Association of Southeast Asian Nations) का 34वाँ शिखर सम्मेलन संपन्न हुआ। इस सम्मेलन में हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये आसियान की नीति स्पष्ट की गई। इस संगठन के सदस्यों ने सामूहिक रूप से एक विज़न दस्तावेज़- द आसियान आउटलुक ऑन द इंडो-पैसिफिक जारी किया है।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र

हिंद-प्रशांत क्षेत्र हाल के वर्षों में भू-राजनीतिक रूप से विश्व की विभिन्न शक्तियों के मध्य कूटनीति एवं संघर्ष का नया मंच बन चुका है। साथ ही यह क्षेत्र अपनी अवस्थिति के कारण महत्त्वपूर्ण हो गया है। वर्तमान में विश्व व्यापार की 75 प्रतिशत वस्तुओं का आयात-निर्यात इसी क्षेत्र से होता है तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र से जुड़े हुए बंदरगाह विश्व के सर्वाधिक व्यस्त बंदरगाहों में शामिल हैं। विश्व GDP के 60 प्रतिशत का योगदान इसी क्षेत्र से होता है। यह क्षेत्र ऊर्जा व्यापार (पेट्रोलियम उत्पाद) को लेकर उपभोक्ता और उत्पादक दोनों राष्ट्रों के लिये संवेदनशील बना रहता है।

आसियान (Association of Southeast Asian Nations- ASEAN)

  • आसियान की स्थापना 8 अगस्त,1967 को थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में की गई थी।
  • वर्तमान में दस देश ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम इसके सदस्य हैं।
  • इसका मुख्यालय इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में स्थित है।
  • भारत और आसियान देश अपने द्विपक्षीय व्यापार को $100 अरब के लक्ष्य तक ले जाने के लिये जूझ रहे हैं।
  • इसके लिये अन्य बातों के साथ-साथ स्थल, समुद्र और वायु कनेक्टिविटी में सुधार पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, ताकि माल और सेवाओं के आवागमन की लागत में कटौती की जा सके।

आसियान के लक्ष्य एवं उद्देश्य

  • सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देना
  • पारस्परिक सहयोग एवं संधि को बढ़ावा देना।
  • प्रशिक्षण एवं अनुसंधान की सुविधा प्रदान करना।
  • कृषि एवं उद्योग तथा संबंधित क्षेत्रों का विकास।
  • अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों के साथ अनुपूरक संबंध।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र हेतु विभिन्न देशों की नीति

अमेरिका और जापान मुक्त एवं खुली हिंद-प्रशांत नीति (Free and Open Indo-Pacific-FOIP) पर बल दे रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया ने भी इस क्षेत्र के लिये वर्ष 2017 में ज़ारी अपने विज़न दस्तावेज़ में सुरक्षित, खुली और समृद्ध क्षेत्र की नीति पर ज़ोर दिया है। चीन भी बेल्ट एंड रोड पहल (Belt and Road Initiative) के जरिये इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। इन देशों के साथ ही भारत ने भी वर्ष 2018 में शांगरिला वार्ता (Shangri-la) में हिंद-प्रशांत क्षेत्र हेतु अपनी नीति स्पष्ट की है। कुछ समय पूर्व ही भारत ने अपनी नीति को फिर से स्पष्ट किया है, भारत ने ज़ोर दिया है कि भारत की नीति किसी के विरोध में नहीं है तथा भारत अपनी नीति से शांति, सुरक्षा, स्थायित्व और नियम आधारित व्यवस्था की कामना करता है।

हिंद-प्रशांत के लिये आसियान नीति

हिंद-प्रशांत क्षेत्र भू-राजनीतिक तथा आर्थिक कारणों से पिछले कुछ वर्षों में महत्त्वपूर्ण हो गया है। इसी संदर्भ विभिन्न राष्ट्र अपने हित संवर्द्धन के लिये प्रयास कर रहे हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि आसियान के 10 सदस्य देश महत्त्वपूर्ण रूप से इस क्षेत्र में अवस्थित हैं। किंतु ये देश व्यक्तिगत स्तर पर चीन एवं अन्य चुनौतियों का सामना करने में सक्षम नहीं हैं। इस क्षेत्र की कुछ राजनीतिक घटनाओं ने उपर्युक्त तथ्य को सिद्ध भी किया है-

  • फिलीपींस, वियतनाम आदि देशों का चीन के साथ दक्षिण चीन सागर को लेकर विवाद बना हुआ है। इस मामले में चीन ने प्रायः मनमाना रुख अपनाया हुआ है जिससे अन्य देशों के हितों को नुकसान हुआ है।
  • अमेरिका-चीन के मध्य उपजे व्यापार युद्ध ने इन देशों की अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित किया है। परिणामस्वरुप सिंगापुर की आर्थिक वृद्धि दर में कमी आई है।
  • इंडोनेशिया भी आर्थिक रूप से मज़बूत देश बनकर उभरा है तथा इस क्षेत्र में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका तलाश रहा है। साथ ही वह अमेरिका की FOIP (Free and Open Indo-pacific) तथा चीन की BRI (Belt and Road Initiative) नीति में पिछलग्गू की भी भूमिका नहीं निभाना चाहता है। वहीं इंडोनेशिया इतनी बड़ी आर्थिक शक्ति नहीं है कि अपने बल पर इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सके। ज्ञात हो कि इंडोनेशिया आसियान संगठन का प्रमुख सदस्य देश है। अतः इस संगठन की भूमिका को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये महत्त्वपूर्ण बनाकर वह अपने हित संवर्द्धन का प्रयास कर रहा है।

उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर आसियान ने हिंद-प्रशांत के लिये अपनी नीति स्पष्ट की है। इस विज़न पर सभी देशों की आम सहमति बनाने में एक वर्ष से भी अधिक का समय लगा है। हालाँकि यह नीति सदस्य देशों पर गैर-बाध्यकारी है तथा चर्चा के लिये खुली हुई है। आसियान का यह विज़न दस्तावेज़ नियम आधारित निर्णय (Rule Based Order) के आधार पर इस क्षेत्र के विकास की पैरवी करता है। इस क्षेत्र के विकास के लिये आसियान ने चार क्षेत्रों- समुद्री सहयोग, कनेक्टिविटी, संयुक्त राष्ट्र के धारणीय विकास लक्ष्य (SDG) (जो वर्ष 2030 तक पूरे किये जाने हैं) तथा विभिन्न देशों के मध्य आर्थिक सहयोग को चुना है।

आसियान सदस्य देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, मुख्यतः यह चुनौती मुख्यतः चीन की साम्राज्यवादी नीति और अमेरिका-चीन के मध्य उपजे व्यापार युद्ध को लेकर है। लेकिन इस विज़न दस्तावेज़ में किसी भी विवादित मुद्दे को स्थान नहीं दिया गया है साथ ही किसी प्रतिद्वंदिता के आधार पर नहीं बल्कि सिर्फ सहयोग के बल पर इस क्षेत्र के विकास की बात कही गई है। आसियान का यह स्टैंड आसियान देशों तथा अन्य राष्ट्रों के मध्य संबंधों को सकारात्मक दिशा प्रदान कर सकता है। ज्ञात हो कि भारत भी इस क्षेत्र में चीन के साथ प्रतिद्वंदी की भूमिका में शामिल नहीं होना चाहता है, ऐसे में आसियान का यह स्टैंड भारत तथा आसियान देशों के मध्य संबंधों को बढ़ावा देने में भी महत्त्वपूर्ण होगा।

भारत एवं आसियान

आसियान का यह विज़न दस्तावेज़ एक जैसे विचार रखने वाले देशों को सहयोग के माध्यम से जुड़ने पर भी ज़ोर देता है। भारत पहले से ही मुक्त, खुले, समावेशी तथा नियम आधारित हिंद-प्रशांत क्षेत्र की नीति पर बल देता रहा है इसलिये इस क्षेत्र हेतु आसियान की नीति का भारत द्वारा समर्थन किया जाना स्वाभाविक है। भारत और आसियान के मध्य ऐसे कई क्षेत्र हैं जिनमें कार्य करके हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाया जा सकता है जैसे- IORA (Indian Ocean Rim Association), BIMSTEC (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation), मेकोंग सहयोग फ्रेमवर्क आदि। भारत, आसियान देशों को ध्यान में रखते हुए बंगाल की खाड़ी (BoB) तथा BIMSTEC को अधिक महत्त्व दे रहा है। ज्ञात हो कि इंडोनेशिया और सिंगापुर बंगाल की खाड़ी के तट के करीब हैं। भारत इन देशों को बिम्सटेक का हिस्सा बनने के लिये आमंत्रित कर सकता है तथा खाड़ी क्षेत्र में अधिक सहयोग, कनेक्टिविटी तथा सुरक्षा स्थापित कर सकता है। इंडोनेशिया के साथ व्यापार में वृद्धि के लिये भारत, इंडोनेशिया के सुमात्रा में स्थित सबांग (Sabang) बंदरगाह का भी उपयोग कर सकता है। समुद्री सहयोग तथा कनेक्टिविटी भी ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें भारत और आसियान मिलकर कार्य कर सकते हैं। हिंद महासागर तथा प्रशांत महासागर क्षेत्र के देशों के बीच संपर्क तथा एकीकरण बढ़ रहा है। ऐसे में इन देशों को अवसंरचना जिसमें भौतिक, संस्थागत तथा लोगों के बीच मेल-जोल बढ़ाना शामिल है, के लिये भारी निवेश तथा अथक प्रयास करने की आवश्यकता होगी। भारत पहले ही सागरमाला परियोजना, भारत से कंबोडिया, लाओस एवं वियतनाम तक त्रिपक्षीय राजमार्ग तथा भारत और जापान के एशिया-अफ्रीका विकास गलियारा (Asia-Africa Growth Corridor AAGC) जैसी पहलों पर कार्य कर रहा है। उपर्युक्त प्रयास आसियान कनेक्टिविटी की योजना जो वर्ष 2025 (Master Plan for ASEAN Connectivity-MPAC) तक प्रस्तावित है, के लिये महत्त्वपूर्ण रूप से सहयोग प्रदान करेंगे।

निष्कर्ष

हिंद प्रशांत क्षेत्र वर्तमान समय में राजनीतिक-आर्थिक गतिविधयों का केंद्र बनकर उभरा है जिसमें चीन-अमेरिका अपने हितों को पूर्ण करने के लिये अपने स्तर पर प्रयासों को अंजाम दे रहे हैं। लेकिन आसियान देश जो कि प्रमुख रूप से इस क्षेत्र से संबंधित हैं, ने अब तक इस क्षेत्र के लिये अपनी नीति स्पष्ट नहीं की थी। किंतु हाल ही में हुए आसियान सम्मेलन में इस क्षेत्र के संबंध में आसियान देशों ने विज़न दस्तावेज़ प्रस्तुत किया है जो आसियान के रुख को साफ करता है। यह दस्तावेज़ आसियान देशों को एक विज़न उपलब्ध कराता जिससे ये देश सहयोग द्वारा अपने हितों की पूर्ति कर सकेंगे, साथ ही चीन की आक्रामक नीतियों का भी मिलकर प्रतिरोध करने का प्रयास कर पाएंगे। चीन पहले ही फिलिपींस, वियतनाम, इंडोनेशिया तथा मलेशिया आदि के लिये चुनौती बना हुआ है, यह चुनौती दक्षिण चीन सागर तथा आर्थिक क्षेत्र में अधिक गंभीर बनी हुई है। वहीं अमेरिका भी इस क्षेत्र में अपनी स्थिति को मज़बूत करना चाहता है जिसके लिये वह चीन के साथ विभिन्न मुद्दों पर तनाव की स्थिति में है। उपर्युक्त तथ्यों के प्रकाश में आसियान का विज़न दस्तावेज़ महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह किसी का पिछलग्गू बनने के स्थान पर इस क्षेत्र में आर्थिक सहयोग के आधार पर मुख्य भूमिका निभाने की वकालत करता है। साथ ही ऐसे देशों के साथ सहयोग बढ़ाने का भी इच्छुक है जिसके विचार इस क्षेत्र के विकास के लिये सुसंगत हैं। भारत पहले ही सहयोग के आधार पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के विकास किये जाने की बात कर चुका है, अतः भारत के लिये आसियान की यह नीति आर्थिक और कूटनीतिक स्तर पर संभावनाओं के द्वार खोल सकती है।

प्रश्न: आसियान देशों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के संबंध में विज़न दस्तावेज़ जारी किया है यह दस्तावेज़ इस क्षेत्र के लिये आसियान के रुख को स्पष्ट करता है। आसियान की इस नीति के भारत के लिये क्या निहितार्थ हैं?


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