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एडिटोरियल

  • 07 Mar, 2023
  • 12 min read
शासन व्यवस्था

भारत में अनुसंधान और विकास की कमी

यह एडिटोरियल "भारत की अनुसंधान और विकास (R&D) अपर्याप्तता को संबोधित करना" पर आधारित है, जिसे 26/02/2023 को द हिंदू बिज़नेस लाइन में प्रकाशित किया गया था। इसमें भारत में अनुसंधान और विकास में निजी क्षेत्र की अपर्याप्त भागीदारी के मुद्दे पर चर्चा की गई है, जिसे संबोधित करने की आवश्यकता है।

संदर्भ

फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की दुनिया में कोडक एक प्रसिद्ध कंपनी थी, जिसकी स्थापना वर्ष 1888 में जॉर्ज ईस्टमैन ने 'द ईस्टमैन कोडक कंपनी' के रूप में की थी। हालाँकि कंपनी का पतन उन शक्तिशाली कंपनियों के लिये भी चेतावनी है जो नवाचार की उपेक्षा करती ।

  • नवाचार और तकनीकी प्रगति आर्थिक विकास के लिये पूर्वापेक्षाएँ हैं। रचनात्मक विकास की केंद्रीय अवधारणा यह है कि नए नवाचारों के उभरने के साथ ही पिछले नवाचार अप्रचलित हो जाते हैं।
  • अतः अर्थव्यवस्था के विकास के लिये नवाचार आवश्यक है। भारत में सरकार, अन्य देशों के विपरीत जहां निजी उद्यम प्राथमिक चालक है, 60% अनुसंधान एवं विकास (R&D) पर व्यय करती है। R&D को बढ़ावा देने के प्रयासों के बावजूद देश R&D पर सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.7% खर्च करता है।
  • वर्ष 2020 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा प्रकाशित नवीनतम अनुसंधान और विकास सांख्यिकी ने 60.9 बिलियन रुपये का अनुमान प्रदान किया है। वर्ष 2017-18 में विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा 60.9 बिलियन R&D पर खर्च किया गया, जो कि यू.एस. फर्मों द्वारा भारत में R&D पर खर्च किये जाने की रिपोर्ट का केवल 10% है।
  • अनुसंधान और विकास में निजी क्षेत्र की अपर्याप्त भागीदारी के मुद्दे से निपटना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसका देश की प्रगति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

R&D में निजी खिलाड़ियों की भागीदारी सीमित क्यों?

  • कमज़ोर पेटेंट प्रणाली:
    • ऐतिहासिक रूप से वाणिज्यिक नवाचारों की सुरक्षा में भारत की पेटेंट प्रणाली कमज़ोर और अविश्वसनीय रही है, जिसने फर्मों के बीच असंतोष की भावना पैदा की है क्योंकि उन्हें डर है कि उनकी बौद्धिक संपदा को पर्याप्त रूप से संरक्षित नहीं किया जा सकता है, जिससे उनके संभावित लाभ कम हो सकते हैं।
  • नकल का जोखिम:
    • स्थानीय प्रतिस्पर्द्धियों द्वारा नकल के जोखिम के कारण निजी कंपनियाँ भारत में अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने से हिचकिचाती हैं, जो R&D में निवेश को और हतोत्साहित करता है।
  • प्रतिभा की कमी:
    • निजी कंपनियाँ भारत की तुलना में अमेरिका और चीन में अनुसंधान एवं विकास में अधिक निवेश करती हैं क्योंकि उनके उच्च शिक्षा संस्थान की प्रतिभा क्षमता कंपनियों को आकर्षित करते हैं। शीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित करने और नवाचार को बढ़ावा देने के लिये भारत को अपने उच्च शिक्षा संस्थानों को विकसित करने की आवश्यकता है।
  • उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान का अभाव:
    • भारत में लगभग 40,000 उच्च शिक्षा संस्थानों में से 1% से भी कम वैज्ञानिक और सामाजिक विज्ञान अनुसंधान दोनों में उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
    • इसका तात्पर्य यह है कि 99% उच्च शिक्षा संस्थान देश के उच्च गुणवत्ता वाले ज्ञान निर्माण में योगदान नहीं दे रहे हैं।
  • संकीर्ण अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र:
    • राज्यों और शैक्षणिक संस्थानों पर राजकोषीय अनुशासन थोपने के सरकार के प्रयास ने आईआईएससी, आईआईटी और आईआईएसईआर जैसे संस्थानों में अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र को कमज़ोर किया है।
  • प्रयोगशाला उपकरणों की खरीद में चुनौतियाँ:
    • नौकरशाही लालफीताशाही और सिस्टम में देरी के कारण प्रयोगशाला उपकरणों की खरीद शोधकर्त्ताओं के लिये एक दुःस्वप्न हो सकती है।
  • क्षमता का मुद्दा:
    • भारतीय पेटेंट कार्यालय में मार्च, 2022 तक केवल 860 पेटेंट परीक्षक और नियंत्रक थे, जो चीन के 13,704 और अमेरिका के 8,132 परीक्षकों और नियंत्रकों की तुलना में काफी कम है, जिससे भारतीय पेटेंट कार्यालय मांग को संभालने के लिये जूझ रहा है।

R&D में कम निजी खिलाड़ियों के अन्य कारण क्या हैं?

  • वित्त की समस्या:
    • भारत में अनुसंधान एवं विकास की अपर्याप्तता का एक मुख्य कारण अनुसंधान और विकास के लिये पर्याप्त धन की कमी है।
    • सरकार अनुसंधान में बहुत कम निवेश करती है और निजी कंपनियाँ भी उच्च जोखिम और अनिश्चितताओं के कारण अनुसंधान एवं विकास में अधिक राशि का निवेश करने को तैयार नहीं हैं।
  • आधारभूत संरचना की कमी:
    • भारत में अनुसंधान और विकास के लिये पर्याप्त आधारभूत संरचना का अभाव है। देश में केवल कुछ ही अच्छी तरह से सुसज्जित प्रयोगशालाएँ और अनुसंधान सुविधाएँ हैं, जो शोधकर्त्ताओं की उन्नत अनुसंधान करने की क्षमता को सीमित करती हैं।
  • शिक्षा और उद्योग के बीच सीमित सहयोग:
    • भारत में शिक्षा और उद्योग के बीच सीमित सहयोग है, जो नवाचार और अनुसंधान के व्यावसायीकरण में बाधा डालता है। अनुप्रयुक्त अनुसंधान पर कम ध्यान दिया गया है, जो नए उत्पादों और प्रौद्योगिकियों के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • प्रतिभा का पलायन:
    • भारत के कई प्रतिभाशाली लोग बेहतर अवसरों के लिये दूसरे देशों में चले जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रतिभा पलायन होता है जो देश की अनुसंधान और विकास क्षमताओं को कमज़ोर करता है।
  • अपर्याप्त शिक्षण और प्रशिक्षण:
    • भारत की शिक्षा प्रणाली अनुसंधान और विकास करियर के लिये छात्रों को पर्याप्त रूप से तैयार नहीं करती है। शोधकर्त्ताओं के लिये अपने कौशल में सुधार करने और अपने क्षेत्रों में नवीनतम प्रगति के साथ बनाए रखने के लिये प्रशिक्षण के अवसरों की भी कमी है।
  • नौकरशाही से उत्पन्न बाधाएँ:
    • कई बाधाएँ नौकरशाही से उत्पन्न होती हैं जिनका सामना शोधकर्त्ताओं को भारत में धन प्राप्त करने और अनुसंधान परियोजनाओं को पूरा करने के लिये करना होता है। यह नौकरशाही लालफीताशाही अनुसंधान प्रक्रिया को धीमा कर देती है और कई शोधकर्त्ताओं को भारत में परियोजनाओं को आगे बढ़ाने से हतोत्साहित करती है।

आगे की राह

  • एक सक्षम विनियामक वातावरण बनाना:
    • सरकार एक अनुकूल विनियामक वातावरण बना सकती है जो निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करे।
    • इसमें नियामक प्रक्रियाओं को सरल बनाने, निजी क्षेत्र को निवेश के लिये प्रोत्साहन प्रदान करने और सभी वर्गों के लिये समान अवसर सुनिश्चित करने जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP):
    • सरकार सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से निजी क्षेत्र के कंपनियों के साथ काम कर सकती है, जहां निजी क्षेत्र सड़कों, हवाई अड्डों और बिजली संयंत्रों जैसी सार्वजनिक आधारभूत संरचना से जुड़ी परियोजनाओं में निवेश और संचालन करता है।
    • यह निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता और संसाधनों का लाभ उठाने में मदद कर सकता है साथ ही, यह भी सुनिश्चित कर सकता है कि सार्वजनिक हित सुरक्षित रहे।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को प्रोत्साहित करना:
    • भारत सरकार निवेश नियमों को उदार बनाकर, प्रक्रियाओं को सरल बनाकर और विदेशी निवेशकों के लिये प्रोत्साहन प्रदान करके प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को प्रोत्साहित कर सकती है।
    • यह आर्थिक विकास को गति देने में मदद करने के लिये, अत्यधित आवश्यक, विदेशी पूंजी और विशेषज्ञता लाने में मदद कर सकता है।
  • कौशल विकास और शिक्षा:
    • सरकार कुशल श्रमिकों का पूल बनाने में मदद करने के लिये कौशल विकास और शिक्षा पहलों में निवेश कर सकती है जो निजी क्षेत्र के विकास का समर्थन करने में मदद कर सकते हैं। यह कौशल अंतर को दूर करने में मदद कर सकता है जिसका सामना कई निजी क्षेत्र के खिलाड़ी अपने संचालन का विस्तार करने की कोशिश करते समय करते हैं।
  • आधारभूत संरचना का विकास:
    • सरकार आधारभूत संरचना के विकास में निवेश कर सकती है, जैसे नई सड़कों, हवाई अड्डों और बंदरगाहों का निर्माण, जो निजी क्षेत्र के निवेश को आकर्षित करने में मदद कर सकता है। बेहतर आधारभूत संरचना उत्पादकता में सुधार और व्यवसायों के लिये लागत कम करने में भी मदद कर सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में अनुसंधान और विकास (R&D) की अपर्याप्तता के मुख्य कारक क्या हैं एवं देश की नवाचार क्षमताओं को बढ़ाने के लिये उनका समाधान कैसे किया जा सकता है?

 यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

मुख्य परीक्षा

प्र. सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत संयुक्त उद्यमों के माध्यम से भारत में हवाई अड्डों के विकास की जांच कीजिये इस संबंध में संबंधित अधिकारियों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं? (वर्ष 2017)

प्र. आधारभूत परियोजनाओं में सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) की आवश्यकता क्यों है? भारत में रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास में PPP मॉडल की भूमिका का परीक्षण कीजिये। (वर्ष 2022)


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