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एडिटोरियल

  • 06 May, 2025
  • 24 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

गिग इकॉनमी की वास्तविकता

यह एडिटोरियल 02/05/2025 को द हिंदू बिज़नेस लाइन में प्रकाशित “The harsh reality of gig work in India” पर आधारित है। इस लेख के तहत भारत की गिग इकॉनमी में तेज़ विकास के बावजूद कम वेतन, सामाजिक सुरक्षा की कमी एवं श्रमिकों के निराशाजनक भविष्य जैसी कठोर वास्तविकताओं को उजागर किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

गिग वर्कर, गिग इकॉनमी, भारत की गिग और प्लेटफॉर्म इकॉनमी पर NITI आयोग की रिपोर्ट (2022), ई-श्रम पोर्टल, प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन (PMSYM)

मेन्स के लिये

भारत की आर्थिक वृद्धि में गिग इकॉनमी की भूमिका, भारत में गिग इकॉनमी से जुड़े प्रमुख मुद्दे। 

भारत की तेज़ी से बढ़ती गिग इकॉनमी, जो वर्ष 2025 तक 12 मिलियन लोगों को रोज़गार देने की संभावना रखती है, कम वेतन, सामाजिक सुरक्षा की कमी और श्रमिकों के निराशाजनक भविष्य जैसी कठोर वास्तविकताओं को छिपाए हुए है। हालाँकि गिग वर्कर की संख्या लगातार बढ़ रही है, फिर भी उन्हें थकाऊ वर्क ऑवर (कार्य अवधि), न्यूनतम वेतन से भी कम पारिश्रमिक और सामाजिक सुरक्षा लाभों के पूर्ण अभाव का सामना करना पड़ता है। 'स्वतंत्र ठेकेदार' के रूप में उन्हें औपचारिक संरक्षणों से अपवर्जित रखा जाता है, जिससे उन्हें सेवानिवृत्ति की निराशाजनक संभावनाओं का भी सामना करना पड़ता है। गिग वर्कर के शोषण को अवसर में बदलने के लिये आवश्यक है कि गिग कार्य क्षेत्र में सख्त विनियमन, सामाजिक सुरक्षा का समावेश और कौशल विकास के मार्गों के माध्यम से सक्रिय सशक्तीकरण सुनिश्चित किया जाए।

Report on India's Gig Economy

भारत की आर्थिक वृद्धि को गति देने में गिग इकॉनमी की क्या भूमिका है?

  • रोज़गार सृजन और रोज़गार लचीलापन: गिग इकॉनमी लचीले, अल्पकालिक रोज़गार के अवसर प्रदान करके भारत के रोज़गार संकट को दूर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • औपचारिक क्षेत्र में ठहराव के बीच, गिग कार्य क्षेत्र लाखों लोगों, विशेषकर युवाओं को कार्यबल में भाग लेने का अवसर प्रदान करता है। 
      • NITI आयोग के आँकड़ों का अनुमान है कि भारत में गिग वर्कर्स की संख्या वर्ष 2020 में 7.7 मिलियन से बढ़कर सत्र 2029-30 तक 23.5 मिलियन हो जाएगी। यह उछाल इस क्षेत्र की अल्प-रोज़गार आबादी के एक बड़े हिस्से को समाहित करने की क्षमता को दर्शाता है।
  • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में परिवर्तन का समर्थन: गिग इकॉनमी अनौपचारिक क्षेत्र से अधिक संरचित रोज़गार मॉडल में परिवर्तन करने वाले श्रमिकों के लिये एक सेतु के रूप में कार्य करती है तथा सुरक्षा संजाल और संरचित आय प्रदान करती है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत के गिग कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा, जैसे ड्राइवर और डिलीवरी कर्मचारी, कृषि एवं अकुशल श्रम जैसे अनौपचारिक क्षेत्रों से आते हैं।
    • ज़ोमैटो और स्विगी जैसे प्लेटफॉर्म के उदय के साथ, लाखों अनौपचारिक श्रमिकों को खाली समय में काम करने के लिये अतिरिक्त स्थान मिल गया है, NITI आयोग ने ऐसे कार्यबल की भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि का अनुमान लगाया है।
  • नवप्रवर्तन और उद्यमशीलता को बढ़ावा देना: गिग प्लेटफॉर्म श्रमिकों को स्वतंत्र ठेकेदारों के रूप में काम करने के लिये सशक्त बनाते हैं, जिससे लाखों लोगों में उद्यमशीलता की मानसिकता विकसित होती है। 
    • यह लचीलापन परिवहन, खाद्य वितरण और फ्री-लांसिंग जैसे क्षेत्रों में नवीन सेवा मॉडल के विकास को प्रेरित करता है।
    • गिग कार्य "अपना मालिक स्वयं बनें" का पर्याय बन गया है, उबर और अर्बनक्लैप जैसी कंपनियाँ श्रमिकों को अपनी व्यावसायिक सूझबूझ विकसित करने के अवसर प्रदान कर रही हैं। 
      • इन प्लेटफॉर्मों पर 80% से अधिक गिग वर्कर्स स्व-नियोजित हैं, जो इस मॉडल द्वारा प्रेरित उद्यमशीलता विकास को दर्शाता है।
  • डिजिटल परिवर्तन और आर्थिक विकास को बढ़ावा: गिग इकॉनमी भारत में डिजिटल एक्सेस का एक महत्त्वपूर्ण चालक है, जो स्मार्टफोन, डिजिटल भुगतान और अन्य ऑनलाइन सेवाओं के उपयोग को बढ़ावा दे रही है। 
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म, मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था में गिग वर्क को एकीकृत करके, भारत के तकनीक-संचालित आर्थिक विस्तार में योगदान करते हैं।
    • भारत का बढ़ता ई-कॉमर्स क्षेत्र इस बदलाव का प्रमाण है, जैसा कि त्यौहारों के दौरान वर्ष 2023 में गिग-आधारित डिलीवरी में हुई वृद्धि से स्पष्ट हुआ है। 
      • ब्लिंकिट और स्विगी जैसे प्लेटफॉर्म ने ऐसी अवधि के दौरान 40-50% तक आय में वृद्धि दर्ज की, जो आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहित करने में गिग वर्कर की भूमिका को दर्शाता है।
  • कर राजस्व सृजन में योगदान: गिग प्लेटफॉर्म भारत के कर राजस्व में योगदान करते हैं, विशेष रूप से डिजिटल भुगतान के कार्यान्वयन और नियामक कार्यढाँचे के उदय के साथ। 
    • भुगतान और कार्य को औपचारिक बनाकर, गिग प्लेटफॉर्म सरकारों को पहले से कर-मुक्त आर्थिक गतिविधियों का लाभ उठाने में सक्षम बनाते हैं।
    • वर्ष 2024 में, भारत सरकार ने ई-श्रम पोर्टल के तहत गिग वर्कर्स के पंजीकरण के लिये रूपरेखा पेश की, जिसका उद्देश्य उद्योग को ट्रैक एवं विनियमित करना है। 
  • समावेशिता को बढ़ाना और सीमांत समूहों को सशक्त बनाना: गिग इकॉनमी सीमांत समूहों, विशेष रूप से महिलाओं और ग्रामीण आबादी को स्वतंत्र रूप से धनार्जन का अवसर प्रदान करती है, जिससे उनकी वित्तीय स्वायत्तता एवं सामाजिक गतिशीलता में सुधार होता है। 
    • कई गिग जॉब्स की घर से काम करने की प्रकृति महिलाओं को कम प्रतिबंधात्मक वातावरण में कार्यबल में प्रवेश करने में सहायक सिद्ध हुई है।
    • रिपोर्टों से पता चलता है कि भारत के गिग इकॉनमी वर्कर्स में लगभग 28% महिलाएँ हैं और कई महिलाएँ घर-आधारित सेवाओं के लिये अर्बनक्लैप जैसे प्लेटफॉर्म की ओर रुख कर रही हैं।

भारत में गिग इकॉनमी से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • सामाजिक सुरक्षा और लाभों का अभाव: भारत की गिग इकॉनमी में एक प्रमुख मुद्दा सामाजिक सुरक्षा का अभाव है, जिसमें स्वास्थ्य बीमा, पेंशन योजना और सवेतन अवकाश शामिल हैं। गिग वर्कर को प्रायः स्वतंत्र श्रमिकों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जिससे उन्हें कोई औपचारिक लाभ नहीं मिलता। इससे वित्तीय असुरक्षा होती है, विशेषकर बीमारी या दुर्घटना के मामले में।
  • आय अस्थिरता और कम वेतन: लचीली आय के वादे के बावजूद, गिग वर्कर्स को आय अस्थिरता और राष्ट्रीय न्यूनतम मानक से कम वेतन का सामना करना पड़ता है। कई कर्मचारी बुनियादी जीवनयापन के खर्चों को पूरा करने हेतु भी पर्याप्त धनार्जन के लिये संघर्ष करते हैं और कम वेतन पर लंबे समय तक काम करने को विवश होते हैं।
    • फेयर वर्क इंडिया स्टडी- 2023 में पाया गया कि डिलीवरी सेवाओं और राइड-हाइलिंग प्लेटफॉर्मों में गिग वर्कर्स प्रति माह 15,000-20,000 रुपए कमाते हैं, जो उनके काम के घंटों के लिये न्यूनतम मज़दूरी से कम है।
      • 70% से अधिक गिग वर्कर ने अनियमित आय के कारण घरेलू खर्चों को प्रबंधित करने में कठिनाई की बात कही, उनकी आय का एक बड़ा हिस्सा प्लेटफॉर्म कमीशन को चला जाता है।
  • शोषण और अनुचित कार्य स्थितियाँ: गिग वर्कर को प्रायः शोषणकारी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें पर्याप्त पारिश्रमिक या नौकरी की सुरक्षा के बिना लंबे समय तक काम करना शामिल है। 
    • इन श्रमिकों पर उच्च निष्पादन लक्ष्य पूरा करने का दबाव होता है, जिसके कारण कभी-कभी उन्हें शारीरिक और मानसिक थकावट का सामना करना पड़ता है।
    • ‘प्रिज़नर्स ऑन व्हील्स’ रिपोर्ट में पाया गया कि 78% गिग वर्कर प्रतिदिन 10 घंटे से अधिक कार्य करते हैं।
      • इतने लंबे समय तक काम करने से गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। साथ ही, 10 मिनट डिलीवरी की दौड़ गिग वर्कर्स के लिये रोज़ाना की भागदौड़ बन जाती है, जिससे उनकी सुरक्षा ख़तरे में पड़ जाती है क्योंकि उन्हें उपभोक्ता सुविधा का खामियाज़ा भुगतना पड़ता है। 
  • कानूनी सुरक्षा और मान्यता का अभाव: भारत में गिग वर्कर को पारंपरिक श्रम कानूनों के तहत मान्यता नहीं दी जाती है, जिससे उन्हें न्यूनतम मज़दूरी, ओवरटाइम या विवाद समाधान तंत्र जैसी कानूनी सुरक्षा नहीं मिलती है। 
    • मान्यता का अभाव निष्पक्ष व्यवहार सुनिश्चित करने के प्रयासों को जटिल बनाता है।
    • सामाजिक सुरक्षा संहिता- 2020 गिग वर्कर का समावेशन तो करती है, लेकिन न्यूनतम मज़दूरी की गारंटी और विनियमित कार्य घंटे जैसे पूर्ण श्रम अधिकार प्रदान करने में विफल रहती है।
  • डिजिटल अपवर्जन और तकनीकी निर्भरता: यद्यपि डिजिटल प्लेटफॉर्म गिग कार्य के अवसर प्रदान करते हैं, प्रौद्योगिकी पर बढ़ती निर्भरता पर्याप्त डिजिटल कौशल या प्रौद्योगिकी तक अभिगम के बिना श्रमिकों को अपवर्जित कर देती है। 
    • इंटरनेट कनेक्टिविटी और प्लेटफॉर्म की अपर्याप्त उपलब्धता के कारण ग्रामीण श्रमिकों को प्रायः उच्च वेतन वाले गिग अवसरों तक पहुँच की कमी (NITI आयोग, 2022) होती है।
    • इसके अलावा, दैनिक कार्यों के लिये मोबाइल ऐप्स पर निर्भरता से तकनीकी या एल्गोरिदम संबंधी त्रुटियाँ बढ़ जाती हैं, जिससे ये श्रमिक और अधिक हाशिये पर चले जाते हैं।
  • मनमाना निष्क्रियण और ग्राहक दुर्व्यवहार: गिग वर्कर के समक्ष आने वाली एक प्रमुख समस्या खातों को मनमाने ढंग से निष्क्रियण करना और ग्राहकों द्वारा उत्पीड़न है।
    • इसके अतिरिक्त, 72% ड्राइवरों और 68% डिलीवरी कर्मचारियों ने ग्राहकों के दुर्व्यवहार को प्रमुख तनाव का कारण बताया, जिससे पर्याप्त शिकायत निवारण तंत्र की कमी पर ज़ोर दिया गया।
  • प्लेटफॉर्म प्रायः बिना किसी स्पष्ट कारण के श्रमिकों के खातों को ब्लॉक या निष्क्रिय कर देते हैं, जिससे आय की हानि और नौकरी की असुरक्षा उत्पन्न होती है।
    • एक सर्वेक्षण में 83% कैब ड्राइवरों और 87% डिलीवरी कर्मियों ने बताया कि निष्क्रियता से उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। 

गिग इकॉनमी को मज़बूत और अनुकूलतम बनाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?

  • गिग वर्कर्स के लिये व्यापक कानूनी कार्यढाँचा: भारत को एक सख्त कानूनी कार्यढाँचा पेश करना चाहिये जो गिग वर्कर्स के अधिकारों और जिम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता हो। 
    • इस कार्यढाँचे में न्यूनतम मज़दूरी मानकों, कार्य घंटों और अनुचित बर्खास्तगी के विरुद्ध सुरक्षा जैसे मुद्दों पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
      • इस कार्यढाँचे में सामूहिक सौदाकारी के प्रावधान भी शामिल हो सकते हैं, जिससे गिग वर्कर को प्लेटफॉर्मों के साथ सौदाकारी में एकीकृत समर्थन मिल सकेगा।
  • पोर्टेबल सामाजिक सुरक्षा लाभ: पोर्टेबल सामाजिक सुरक्षा लाभ की एक प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये, जहाँ गिग वर्कर जिस भी प्लेटफॉर्म के लिये काम करते हैं, उन्हें लाभ (जैसे: बीमा और सवेतन अवकाश) मिल सकें।
    • इससे एक से अधिक नियोक्ताओं का मुद्दा हल हो जाएगा तथा कल्याणकारी प्रावधानों की निरंतरता सुनिश्चित होगी। 
    • इससे यदि कोई कर्मचारी विभिन्न प्लेटफॉर्म या परियोजनाओं के बीच स्थानांतरित होता है तो उसे मिलने वाले लाभों का अंतरण आसान हो जाएगा तथा उसे अपनी सामाजिक सुरक्षा पात्रताओं को भी नहीं खोना पड़ेगा। 
      • ऐसा मॉडल गिग वर्कर को स्थिरता और वित्तीय सुरक्षा प्रदान करेगा, जो उनके दीर्घकालिक कल्याण के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • डिजिटल साक्षरता और समावेशन कार्यक्रम: डिजिटल डिवाइड को समाप्त करने के लिये, भारत को विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में गिग वर्कर पर लक्षित बड़े पैमाने पर डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम लागू करना चाहिये।
    • इन कार्यक्रमों में उनके तकनीकी कौशल को बढ़ाने और उन्हें डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्रभावी ढंग से काम करने के लिये डिजिटल ज्ञान से लैस करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
    • डिजिटल साक्षरता में सुधार करके, श्रमिकों को अधिक रोज़गार के अवसरों तक पहुँच, अपने प्रदर्शन में सुधार करने और तकनीकी त्रुटियों या शोषण के प्रति संवेदनशीलता को कम करने में सक्षम बनाया जाएगा। 
      • सरकार गिग वर्कर की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रशिक्षण मॉड्यूल बनाने के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्मों के साथ साझेदारी कर सकती है।
  • शिकायत निवारण तंत्र को सुदृढ़ करना: भारत को यह अनिवार्य करना चाहिये कि गिग प्लेटफॉर्म पारदर्शी और सुलभ शिकायत निवारण तंत्र को लागू करें।
    • इन प्रणालियों से श्रमिकों को अनुचित व्यवहार, मनमाने ढंग से निष्क्रियता या शोषण के बारे में स्पष्ट एवं कुशल तरीके से शिकायत दर्ज करने की सुविधा मिलनी चाहिये। 
    • इन शिकायतों का समय पर निपटान के लिये प्लेटफॉर्म को कानूनी रूप से बाध्य होना चाहिये तथा श्रम प्राधिकारियों द्वारा निगरानी की व्यवस्था होनी चाहिये। 
  • कल्याणकारी कानूनों के साथ प्लेटफॉर्म अनुपालन को प्रोत्साहन: भारत एक ऐसी नीति अपना सकता है जो कल्याणकारी कानूनों के साथ प्लेटफॉर्म अनुपालन को प्रोत्साहन देती है, जैसे कि सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के तहत श्रमिकों को शामिल करना एवं उचित भुगतान प्रथाओं का पालन करना।
    • इससे उन प्लेटफॉर्मों को प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ मिलेगा जो श्रमिक कल्याण को प्राथमिकता देते हैं तथा अन्य प्लेटफॉर्मों को भी ऐसा करने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा। 
    • इन प्रोत्साहनों में कर छूट, सब्सिडी या सरकारी निविदाओं में तरजीही व्यवहार शामिल हो सकते हैं।
      • ऐसे उपायों से प्लेटफॉर्म को स्वैच्छिक रूप से कानूनी आवश्यकताओं का अनुपालन करने तथा अधिक संधारणीय गिग इकॉनमी को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा।
  • ई-श्रम पोर्टल एकीकरण के माध्यम से गिग कार्य का औपचारिकीकरण: भारत गिग वर्कर को व्यापक रूप से शामिल करने के लिये ई-श्रम पोर्टल का विस्तार करके औपचारिक अर्थव्यवस्था में गिग वर्कर के एकीकरण को सुदृढ़ कर सकता है।
    • पोर्टल को अधिक उपयोगकर्त्ता-अनुकूल बनाया जाना चाहिये तथा श्रमिकों को एक डिजिटल पहचान प्रदान की जानी चाहिये जो उन्हें कल्याणकारी योजनाओं और रोज़गार के अवसरों से जोड़े। 
    • इस एकीकरण से न केवल गिग वर्कर पर नज़र रखने में मदद मिलेगी, बल्कि यह भी सुनिश्चित होगा कि उन्हें स्वास्थ्य कवरेज, पेंशन योजना और रोज़गार बीमा जैसे लाभ मिलें। 
  • गिग वर्कर के कल्याण के लिये राज्य स्तरीय पहल को प्रोत्साहन: राज्यों को क्षेत्र-विशिष्ट नीतियाँ विकसित करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये जो उनके क्षेत्रों में गिग वर्कर की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करें। 
    • स्थानीय संदर्भों के अनुरूप समाधान तैयार करके, जैसे कौशल विकास के लिये सब्सिडी प्रदान करना, श्रमिकों के लिये किफायती आवास बनाना, या श्रमिक सहायता केंद्रों की स्थापना करना, राज्य लाभों का अधिक न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित कर सकते हैं। 
    • यह विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण विभिन्न क्षेत्रों में गिग वर्कर के समक्ष आने वाली स्थानीय चुनौतियों का समाधान करते हुए राष्ट्रीय नीतियों के अधिक प्रभावी कार्यान्वयन को भी सक्षम करेगा।
      • राजस्थान का प्लेटफॉर्म-आधारित गिग वर्कर्स अधिनियम एक महत्त्वपूर्ण कदम है, अन्य राज्य भी इससे सीख ले सकते हैं। 

निष्कर्ष: 

भारत की गिग इकॉनमी में रोज़गार सृजन, नवाचार को बढ़ावा देने और डिजिटल परिवर्तन का समर्थन करने की अपार संभावनाएँ हैं। गिग वर्क की पूरी क्षमता का सदुपयोग करने के लिये, भारत को सख्त कानूनी कार्यढाँचे, पोर्टेबल सामाजिक सुरक्षा और विस्तृत शिकायत निवारण प्रणाली जैसे व्यापक उपायों को लागू करने की आवश्यकता है। केंद्रीय बजट 2025-26 के तहत विस्तारित सामाजिक सुरक्षा उपाय सही दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम सिद्ध होगा। 

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. भारत में गिग वर्कर के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये तथा वर्तमान श्रम कार्यढाँचे के भीतर उनके कल्याण और संरक्षण को सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. भारत में नियोजित अनियत मज़दूरों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये- (2021) 

  1. सभी अनियत मज़दूर, कर्मचारी भविष्य निधि सुरक्षा के हकदार हैं। 
  2. सभी अनियत मज़दूर नियमित कार्य-समय एवं समयोपरि भुगतान के हकदार हैं। 
  3. सरकार अधिसूचना के द्वारा यह विनिर्दिष्ट कर सकती है कि कोई प्रतिष्ठान या उद्योग केवल अपने बैंक खातों के माध्यम से मज़दूरी का भुगतान करेगा।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर:(d)


मेन्स 

प्रश्न 1. भारत में महिलाओं के सशक्तीकरण की प्रक्रिया में 'गिग इकॉनमी' की भूमिका का परीक्षण कीजिये। (2021)


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