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डेली न्यूज़

  • 28 Jan, 2020
  • 39 min read
शासन व्यवस्था

शहरी क्षेत्रों में बाल देखभाल योजना

प्रीलिम्स के लिये:

समेकित बाल विकास योजना

मेन्स के लिये:

समेकित बाल विकास योजना के उद्देश्य

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार शहरी क्षेत्रों के लिये बाल देखभाल योजना (Child Care Scheme) हेतु नीति आयोग के माध्यम से एक मसौदा नीति (Draft Policy) विकसित करने पर विचार कर रही है।

मुख्य बिंदु:

  • केंद्र सरकार शहरी क्षेत्रों के लिये एकीकृत बाल विकास योजना (Integrated Child Development Scheme- ICDS) कार्यक्रम पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित कर रही है, इसे देश में पोषण और पूर्व-स्कूली शिक्षा प्रदान करने के लिये देश भर के आँगनवाड़ियों या डे-केयर केंद्रों के माध्यम से संचालित किया जा रहा है।
  • नीति आयोग (NITI Aayog) द्वारा मसौदे के अनुमोदन के बाद इसे निम्नलिखित मंत्रालयों के पास सलाह के लिये भेजा जाएगा-
    • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare)
    • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (Ministry of Women and Child Development)
    • शहरी आवास और मामलों के मंत्रालय (Ministry of Urban Housing and Affairs)
    • जल शक्ति मंत्रालय के अधीन पेयजल एवं स्वच्छता विभाग (Ministry of Jal Shakti-Department of Drinking Water and Sanitation)
  • वर्ष 2018 के सरकारी आँकड़ों के अनुसार, देश भर में स्थित 14 लाख आँगनवाड़ी केंद्रों में से शहरी क्षेत्रों में केवल 1.38 लाख आँगनवाड़ी केंद्र हैं।

ICDS के प्रमुख उद्देश्य-

  • 6 वर्ष तक के बच्चों और गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य व पोषण की स्थिति में सुधार करना तथा उनकी मृत्यु दर और बच्चों की स्कूल छोड़ने की घटनाओं में कमी लाना।
  • बच्चे के उचित मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और सामाजिक विकास के लिये उसे एक दृढ़ आधार प्रदान करना।
  • बाल विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विभिन्न विभागों के बीच नीतियों का क्रियान्वयन करना और जागरूकता कार्यक्रमों को आयोजित करना।

ICDS के तहत प्रदान की जाने वाली सेवाएँ :

  • पूरक पोषण (Complementary Nutrition)।
  • विटामिन ए (Vitamin A)।
  • आयरन और फोलिक एसिड की गोलियाँ (Iron and Folic Acid Tablets)।
  • टीकाकरण (Immunization)।
  • स्वास्थ्य जाँच (Health check up)।
  • सामान्य बीमारियों का उपचार (Treatment of Minor Ailments)।
  • रेफरल सेवाएँ (Referral Services)।
  • महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण पर गैर-औपचारिक शिक्षा (Non-formal Education। on Health and Nutrition to Women।
  • 3 से 6 वर्ष के बच्चों के लिये पूर्व-स्कूली शिक्षा (Preschool education to children 3–6 year old।
  • अन्य सहायक सेवाओं जैसे पानी, स्वच्छता आदि का अभिसरण (Convergence of other supportive services like Water, Sanitation etc)।

शहरी क्षेत्र में बाल देखभाल योजना की आवश्यकता:

शहरी क्षेत्र में बच्चों के पोषण की स्थिति पर पहली बार वर्ष 2019 में हुए अखिल भारतीय सर्वेक्षण में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि-

  • शहरी बच्चों में कुपोषण का कारण स्तनपान की कमी है।
    • इसके पीछे यह तथ्य निहित है कि काम की वजह से महिलाओं को लंबी दूरी तय करनी होती है जिसके कारण वे बच्चों को स्तनपान के लिये पर्याप्त समय नही दे पाती हैं।
  • शहरी क्षेत्र में सापेक्ष समृद्धि के कारण जीवन शैली में परिवर्तन के साथ-साथ आयरन और विटामिन-डी की कमी के कारण बच्चों में मोटापे का एक उच्च स्तर पाया गया।
  • दूसरी तरफ ग्रामीण क्षेत्रों में दूध की कमी के कारण बच्चे स्टंटिंग के उच्च स्तर (Higher levels of Stunting) तथा कम भार (Underweight) से ग्रसित थे।
  • सर्वेक्षण से पता चला कि शहरी क्षेत्र के बच्चों की सबस्कैपुलर स्किनफोल्ड थिकनेस (Subscapular Skinfold Thickness-SSFT) के कारण ये बच्चे अधिक वज़न और मोटापे से ग्रस्त थे।
  • शहरों में 5 से 9 वर्ष की आयु के बच्चों में SSFT का स्तर 14.5% था जबकि ग्रामीण क्षेत्र में इसी आयु वर्ग के बच्चों में SSFT का स्तर 5.3% था।
  • इस सर्वेक्षण में शहरी क्षेत्रों में 10-19 आयु वर्ग के किशोरों में SSFT का स्तर 10.4% जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 4.3% पाया गया।

आगे की राह:

  • ICDS कार्यक्रम के तहत सेवा वितरण में सुधार पर ध्यान देने के लिये शहरी क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे में सुधार आवश्यक है।
  • ICDS कार्यक्रम को सफल बनाने में आँगनवाड़ी केंद्रों एवं कार्यकर्त्रियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है अतः उनकी सुरक्षा पर भी ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

ब्राज़ील-भारत डब्लूटीओ विवाद

प्रीलिम्स के लिये:

विश्व व्यापार संगठन, उचित और लाभप्रद मूल्य

मेन्स के लिये:

ब्राज़ील-भारत संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कई किसान समूहों ने केंद्र सरकार से मांग की है कि ब्राज़ील द्वारा विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation-WTO) में भारत की चीनी सब्सिडी नीतियों के खिलाफ की गई शिकायत वापस लेने के लिये ब्राज़ील पर दवाब डाला जाए।

मुख्य बिंदु:

  • ध्यातव्य है कि इस वर्ष ब्राज़ील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो (Jair Bolsonaro) भारत में 71वें गणतंत्र दिवस के दौरान मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

पृष्ठभूमि:

  • ब्राज़ील दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक और निर्यातक देश है।
  • फरवरी 2019 में ब्राज़ील और कई अन्य देशों ने भारत के खिलाफ WTO में शिकायत की थी।
  • इन देशों का आरोप है कि भारत द्वारा अपने किसानों को दी जाने वाली चीनी सब्सिडी वैश्विक व्यापार नियमों के खिलाफ है।

भारतीय किसानों का पक्ष:

  • किसानों के समूहों ने सरकार को पत्र लिखकर कहा है कि ब्राज़ील द्वारा WTO में की गई शिकायत को वापस लेने के लिये उस पर दवाब डाला जाए।
  • प्रधानमंत्री को लिखे एक पत्र में ‘अखिल भारतीय किसान आंदोलन समन्वय समिति’ ( Indian Coordination Committee of Farmers Movements-ICCFM) ने कहा है कि बोल्सोनारो के नेतृत्व में ब्राज़ील सरकार गन्ने के न्यूनतम मूल्य निर्धारण को चुनौती देकर सीधे तौर पर पाँच करोड़ भारतीय गन्ना किसानों की आजीविका को खतरे में डाल रही है।
  • भारतीय किसान यूनियन के अनुसार, इस पूरे मामले में विडंबना यह है कि भारत सरकार किसानों को केवल चीनी मिलों द्वारा भुगतान किये जाने वाले उचित और लाभप्रद मूल्य (Fair and Remunerative Prices-FRP) की घोषणा करती है।

ब्राज़ील का पक्ष:

  • ब्राज़ील का आरोप है कि भारत ने हाल के वर्षों मे गन्ने और चीनी के घरेलू समर्थन मूल्य में बड़े पैमाने पर वृद्धि की है।
  • ब्राज़ील के अनुसार, भारत ने गन्ने के लिये उचित और लाभकारी मूल्य को लगभग दोगुना कर दिया है।
  • इस विवाद पर ब्राज़ील के विदेश मंत्री ने कहा कि ब्राज़ील इस मामले के संतोषजनक समाधान के लिये तैयार है।
  • ब्राज़ील के अनुसार, यह मुद्दा गन्ने से प्राप्त जैव ईंधन पर दोनों देशों के बीच हुए द्विपक्षीय सहयोग को प्रभावित नहीं करेगा।

आगे की राह:

  • ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील और ग्वाटेमाला भारत के विशाल घरेलू बाज़ार में प्रवेश करने के लिये विश्व व्यापार संगठन के विवाद तंत्र का उपयोग कर रहे हैं। इन शिकायतकर्त्ता सदस्यों ने हाल के वर्षों में अपने चीनी उत्पादन का 70 प्रतिशत से अधिक निर्यात किया है।
  • वर्ष 2017-18 में इन तीन देशों का संयुक्त चीनी निर्यात कुल वैश्विक निर्यात का लगभग 53 प्रतिशत था।
  • निश्चय ही भारत विश्व व्यापार संगठन में अपने हितों का सफलतापूर्वक बचाव करेगा, लेकिन नीति निर्माताओं को एक आकस्मिक योजना के साथ भी तैयार रहना चाहिये ताकि देश किसी प्रतिकूल निर्णय का सफलतापूर्वक सामना कर सके।

स्रोत-द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

STEM क्षेत्र में महिलाएँ

प्रीलिम्स के लिये:

STEM सम्मेलन

मेन्स के लिये:

STEM सम्मेलन का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 23-24 जनवरी को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Science and Technology) के तत्त्वावधान में नई दिल्ली में महिलाओं की विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (Science,Technology, Engenering, Mathmatics- STEM) क्षेत्र में भागीदारी पर अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया।

मुख्य बिंदु:

  • दुनिया भर में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और चिकित्सा क्षेत्र (STEM) में महिलाओं की तुलना में पुरुष अधिक सक्रिय हैं।
  • अब तक 866 नोबेल विजेताओं में भी केवल 53 महिलाएँ शामिल हैं।

इस लिंग असमानता के पीछे का समाजशास्त्र:

  • अध्ययन से पता चलता है कि जब पुरुष और महिलाएँ नौकरियों के लिये श्रम बाज़ार या उन जगहों पर जहाँ उच्च स्तर की योग्यता की ज़रूरत होती है, आवेदन करते हैं तो ऐसी जगहों पर पुरुष स्वंय को अधिक श्रेष्ठ मानते हैं, जबकि समान रूप से योग्य महिलाएँ स्वयं को अधिक विनम्र रूप में प्रस्तुत करती हैं।
  • समूहों में भी जहाँ पुरुष और महिलाएँ सहकर्मियों के रूप में उपस्थित होते है वहाँ भी महिलाओं के विचारों की या तो अनदेखी की जाती है या फिर उनके विचारों को पुरुषों की तुलना में कम गंभीरता से सुना जाता है।
  • परिणामत: कार्यस्थल पर महिलाएँ सार्वजनिक तौर पर बात करते समय अपनी क्षमता को पुरुषों से कम आँकती हैं।

इस असंतुलन का कारण?

इस असंतुलन के मुख्य तीन सामाजिक-मनोवैज्ञानिक कारण हैं जो कि इस प्रकार हैं-

  • पुरुषवादी संस्कृति (Masculine Culture)।
  • पहुँच का अभाव (Lack of Exposure )
  • आत्म-प्रभावकारिता में लैंगिक-अंतर (Gender Gap in Self-Efficacy)।

स्टीरियोटाइप्स और रोल मॉडल:

पुरुषवादी संस्कृति (Masculine Culture)

  • यह असंतुलन पुरुषवादी संस्कृति की रूढ़िवादी सोच के कारण है कि महिलाओं की तुलना में पुरुष कुछ नौकरियों के लिये ज्यादा उपयुक्त होते हैं, जबकि कुछ कठिन कार्यों के लिये महिलाएँ अधिक नाज़ुक एवं संवेदनशील होती हैं।
  • इसके अलावा महिला रोल मॉडल्स का अभाव है, जिनका महिलाएँ अनुसरण कर सकें।

पहुँच का अभाव (Lack of Exposure )

  • प्रारंभिक स्तर (बचपन में) पर लड़कों की तुलना में लड़कियों की कंप्यूटर, भौतिकी और संबंधित क्षेत्रों में पर्याप्त पहुँच का अभाव।

आत्म-प्रभावकारिता में लैंगिक-अंतर

(Gender Gap in Self-Efficacy)

  • ऊपर वर्णित दो स्टीरियोटाइप्स (पुरुषवादी संस्कृति,पहुँच का अभाव) के कारण आत्म-प्रभावकारिता में लैंगिक-अंतर उत्पन्न होता है।
  • इसके कारण महिलाओं और लड़कियाँ सीमित क्षेत्रों में कार्य करने की सोच से पूर्वाग्रहित हो जाती हैं यह सोच स्पष्ट रूप से पुरुषवादी संस्कृति को प्रतिबिंबित करती है।

भारत में स्थिति:

  • भारत में भी पुरुष मानसिकता की प्रधानता है तथा भारत इस विचार के साथ पितृसत्तात्मक समाज का प्रतिनिधित्व करता है जो यह विश्वास करता है कि महिलाओं को नौकरी करने की आवश्यकता नहीं है, हालाँकि इस धारणा में हाल में परिवर्तन देखा गया है।
  • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institutes of Technology-IIT), वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research-CSIR), अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (All India Institute of Medical Sciences-AIIMS) तथा चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान के स्नातकोत्तर संस्थान (Postgraduate Institute of Medical Education and Research- PGIs) में 10-15% महिलाएँ ही STEM शोधकर्त्ताओं और संकाय सदस्यों के रूप में शामिल हैं।
  • निजी ‘रिसर्च एंड डेवलपमेंट’ (Research and Development- R&D) प्रयोगशालाओं में भी बहुत कम महिला वैज्ञानिक कार्यरत हैं।

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

बोडो समूहों के साथ समझौता

प्रीलिम्स के लिये:

बोडो समूह, बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद

मेन्स के लिये:

बोडो समूहों के साथ समझौता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने बोडो समूहों के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

मुख्य बिंदु:

  • यह समझौता केंद्र सरकार, बोडो समुदाय और असम सरकार के बीच हुआ है।
  • केंद्र सरकार ने असम के विद्रोही समूहों में से एक ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ (National Democratic Front of Boroland- NDFB) के विभिन्न समूहों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

पृष्ठभूमि:

  • बोडो ब्रह्मपुत्र घाटी के उत्तरी हिस्से में बसी असम की सबसे बड़ी जनजाति है। यह राज्य की कुल आबादी के 5-6 प्रतिशत से अधिक है। बोडो (असमिया) समुदाय के लोग पूर्वोत्तर भारत के असम राज्य के मूल निवासी हैं तथा यह भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत भारत की एक महत्त्वपूर्ण जनजाति है।
  • असम के चार ज़िले कोकराझार (Kokrajhar), बक्सा (Baksa), उदलगुरी (Udalguri) और चिरांग (Chirang) बोडो प्रादेशिक क्षेत्र ज़िला (Bodo Territorial Area District- BTAD) का गठन करते हैं।
  • 1960 के दशक से ही बोडो अपने लिये बोडोलैंड नामक अलग राज्य की मांग करते आए हैं।

बोडोलैंड का मुद्दा:

  • असम में इनकी ज़मीन पर अन्य समुदायों का आकर बसना और ज़मीन पर बढ़ता दबाव ही बोडो असंतोष की प्रमुख वज़ह है।
  • अलग राज्य के लिये बोडो आंदोलन 1980 के दशक के बाद हिंसक हो गया और तीन धड़ो में बँट गया। पहले समूह का नेतृत्व NDFB ने किया जो अपने लिये अलग राज्य चाहता था। दूसरा समूह बोडोलैंड टाइगर्स फोर्स है जिसने अधिक स्वायत्तता की मांग की। तीसरा समूह ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (All Bodo Students Union-ABSU) है जिसने मध्यम मार्ग की तलाश करते हुए राजनीतिक समाधान की मांग की।
  • वर्ष 1993 में ABSU के साथ पहली बार बोडो समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे जिसके फलस्वरूप सीमित राजनीतिक शक्तियों के साथ एक बोडोलैंड स्वायत्त परिषद का निर्माण हुआ।
  • बोडो अपने क्षेत्र की राजनीति, अर्थव्यवस्था और प्राकृतिक संसाधनों पर वर्चस्व चाहते थे और यह उन्हें 2003 में तब मिला जब बोडो समूहों ने हिंसा का रास्ता छोड़ मुख्यधारा की राजनीति में आने पर सहमति जताई।

क्या है वर्तमान समझौता?

  • वर्तमान समझौते के अनुसार, बोडो वर्चस्व वाले गाँव जो वर्तमान में BTAD क्षेत्र से बाहर हैं, उन्हें BTAD क्षेत्र में शामिल किया जाएगा तथा गैर-बोडो आबादी के व्यक्तियों को इससे बाहर रखा जाएगा।
  • अब तक हुए समझौतों में BTAD क्षेत्र में गैर-अधिवासियों के लिये ‘नागरिकता या कार्य परमिट’ के मुद्दे से संबंधित प्रावधान नहीं किया गया था।
  • इस समझौते के अनुसार, ‘गैर-जघन्य अपराधों’ (Non-Heinous Crimes) के लिये NDFB समूहों के सदस्यों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले असम सरकार द्वारा वापस लिये जाएंगे और जघन्य अपराध संबंधी मामलों की समीक्षा की जाएगी।
  • इस समझौते से पहले भारत सरकार ने यह साफ कर दिया है कि असम की एकता बरकरार रहेगी और उसकी सीमाओं में कोई बदलाव नहीं होगा।
  • बोडो आंदोलन के दौरान मारे गए लोगों के परिवार को 5 लाख रुपए प्रदान किये जाएंगे।
  • बोडो क्षेत्रों के विकास की विशिष्ट परियोजनाओं के लिये केंद्र सरकार द्वारा 1500 करोड़ रुपए विशेष आर्थिक पैकेज के तौर पर प्रदान किये जाएंगे।
  • BTAD में नए क्षेत्रों को शामिल करने और न करने के संबंध में निर्णय करने के लिये एक समिति का गठन किया जाएगा। इस परिवर्तन के बाद विधानसभा की कुल सीटों की संख्या मौजूदा 40 से बढ़कर 60 हो जाएगी।
  • देवनागरी लिपि के साथ बोडो पूरे असम के लिये सहयोगी आधिकारिक भाषा होगी।
  • BTAD और संविधान की छठी अनुसूची के तहत उल्लिखित अन्य क्षेत्रों को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 [Citizenship (Amendment) Act, 2019] से छूट प्रदान की गई है।

समझौते से लाभ:

  • इस समझौते से असम में शांति, सद्भाव और एकजुटता की भावना को बल मिलेगा।
  • इस समझौते से सशस्त्र संघर्ष समूहों से जुड़े हुए लोग मुख्यधारा में शामिल होंगे और राष्ट्र की प्रगति में योगदान देंगे।
  • बोडो समूहों के साथ हुआ यह समझौता बोडो लोगों की विशिष्ट संस्कृति को संरक्षित कर उसे लोकप्रिय बनाएगा।
  • इस समझौते के बाद NDFB में शामिल लोग हिंसा का मार्ग छोड़ देंगे तथा अपने हथियारों के साथ आत्मसमर्पण कर समझौते पर हस्ताक्षर करने के एक महीने के भीतर अपने सैन्य संगठनों को भंग करेंगे।

स्रोत- द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

प्रवाल भित्तियों का पुनर्स्थापन

प्रीलिम्स के लिये:

भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण, भारत में प्रवाल भितियाँ, कच्छ की खाड़ी

मेन्स के लिये:

प्रवाल भित्तियों का पुनर्स्थापन

चर्चा में क्यों?

भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण (Zoological Survey of India-ZSI) ने वन विभाग (गुजरात) के साथ मिलकर पहली बार कच्छ की खाड़ी में प्रवाल भित्तियों को पुनर्स्थापित करने का प्रयास किया है।

मुख्य बिंदु:

  • प्रवाल भित्तियों को पुनर्स्थापित करने के लिये बायोरॉक या खनिज अभिवृद्धि तकनीक (Biorock or Mineral Accretion Technology) का उपयोग किया जा रहा है।

बायोरॉक या खनिज अभिवृद्धि तकनीक

(Biorock or Mineral Accretion Technology)

  • बायोरॉक, इस्पात संरचनाओं पर निर्मित समुद्री जल में विलेय खनिजों के विद्युत संचय से बनने वाला पदार्थ है। इन इस्पात संरचनाओं को समुद्र के तल पर उतारा जाता है और सौर पैनलों की सहायता से इनको ऊर्जा प्रदान की जाती है जो समुद्र की सतह पर तैरते रहते हैं।
  • यह प्रौद्योगिकी पानी में इलेक्ट्रोड के माध्यम से विद्युत की एक छोटी मात्रा को प्रवाहित करने का काम करती है।
  • जब एक धनावेशित एनोड और ऋणावेशित कैथोड को समुद्र के तल पर रखकर उनके बीच विद्युत प्रवाहित की जाती है तो कैल्शियम आयन और कार्बोनेट आयन आपस में संयोजन करते हैं जिससे कैल्शियम कार्बोनेट का निर्माण होता है, कोरल लार्वा कैल्शियम कार्बोनेट की उपस्थिति में तेज़ी से बढ़ते हैं।
  • वैज्ञानिक बताते हैं कि टूटे हुए कोरल के टुकड़े बायोरॉक संरचना से बंधे होते हैं जहाँ वे अपनी वास्तविक वृद्धि की तुलना में कम-से-कम चार से छह गुना तेज़ी से बढ़ने में सक्षम होते हैं क्योंकि उन्हें स्वयं के कैल्शियम कार्बोनेट कंकाल के निर्माण में अपनी ऊर्जा खर्च करने की आवश्यकता नहीं होती है।

कच्छ की खाड़ी को ही क्यों चुना गया?

  • कच्छ की खाड़ी में गुजरात के मीठापुर तट से एक नॉटिकल मील की दूरी पर बायोरॉक संरचना स्थापित की गई है।
  • कच्छ की खाड़ी में उच्च ज्वार के आयाम को ध्यान में रखते हुए बायोरॉक को स्थापित करने के लिये चुना गया था।
  • निम्न ज्वार संभावित जगह जहाँ बायोरॉक स्थापित किया गया है, की गहराई 4 मीटर है और उच्च ज्वार वाली जगह की गहराई 8 मीटर है।

प्रवाल विरंजन का प्रमुख कारण:

भारत में प्रवाल भितियाँ:

  • भारत में प्रवाल भितियाँ 3,062 वर्ग किमी. क्षेत्रफल में विस्तृत हैं।
  • कई प्रवाल प्रजातियों को बाघों के समान ही वन्यजीव संरक्षण अधिनियम,1972 की अनुसूची-I में शामिल कर संरक्षण प्रदान किया गया हैं।
  • लक्षद्वीप में ये चक्रवातों के लिये अवरोधक का कार्य कर तटीय कटाव की रोकथाम में भी सहायता करते हैं।
  • भारत में चार प्रमुख प्रवाल भित्ति क्षेत्र हैं: अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, मन्नार की खाड़ी और कच्छ की खाड़ी।

पहले भी किया गया है ऐसा प्रयोग:

  • वर्ष 2015 में गुजरात वन विभाग के साथ मिलकर भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण के वैज्ञानिकों ने एक्रोपोरिडे परिवार (एक्रोपोरा फॉर्मोसा, एक्रोपोरा ह्यूमिलिस, मोंटीपोरा डिजिटाटा) से संबंधित प्रजातियों (स्टैग्नोर्न कोरल) को सफलतापूर्वक पुनर्स्थापित किया था जो लगभग 10,000 साल पहले कच्छ की खाड़ी से विलुप्त हो गए थे।
  • शोधकर्त्ताओं का दावा है कि इन मूंगों को फिर से बनाने के लिये प्रवाल के नमूनों को मन्नार की खाड़ी से लाया गया था।

स्रोत- द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

A-SAT एवं ADTCR

प्रीलिम्स के लिये:

A-SAT, ADTCR, CDS

मेन्स के लिये:

अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की सामरिक शक्ति, भारत का सॉफ्ट एवं हार्ड पॉवर

चर्चा में क्यों?

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Reserch and Development Organisation- DRDO) ने 71वें गणतंत्र दिवस परेड के दौरान अपनी एंटी-सैटेलाइट (Anti-Satellite) मिसाइल और वायु रक्षा सामरिक नियंत्रण रडार (Air Defence Tactical Control Radar- ADTCR) का प्रदर्शन किया।

71वें गणतंत्र दिवस से संबंधित मुख्य बातें

  • 71वें गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में ब्राज़ील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो (Jair Bolsonaro) को आमंत्रित किया गया था।
  • भारतीय वायु सेना के चिनूक हेलीकॉप्टर और अपाचे हेलीकॉप्टर ने गणतंत्र दिवस पर फ्लाईपास्ट (Flypast) में पहली बार भाग लिया।
  • इसके अलावा सेना ने अपने 155 मिमी. धनुष और हॉवित्जर तोप एवं K9-वज्र स्व-चालित तोपखाने का प्रदर्शन किया।
  • यह पहला अवसर था जब चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) सहित चार सैन्य अधिकारी गणतंत्र दिवस समारोह/परेड में शामिल रहे।
  • गणतंत्र दिवस परेड में पहली बार सेना की मार्चिंग टुकड़ियों के बीच कोर ऑफ आर्मी एयर डिफेंस की एक टुकड़ी भी थी।
  • ध्यातव्य है कि सेना की सिग्नल कोर टुकड़ी का नेतृत्व चौथी पीढ़ी की अधिकारी कैप्टन तान्या शेरगिल ने किया।

A-SAT मिसाइल के बारे में

  • यह एक इंटरसेप्टर मिसाइल है जो अंतरिक्ष में उपग्रहों को नष्ट या जाम कर देती है।
  • A-SAT मिसाइल मुख्यतः दो प्रकार की हैं:
    • काइनेटिक ए-सैट (Kinetic A-SAT):
      बैलिस्टिक मिसाइलों की भाँति यह किसी उपग्रह को नष्ट करने के लिये प्रत्यक्ष रूप से उस पर प्रहार करता है।
    • नॉन-काइनेटिक ए-सैट (Non-Kinetic A-SAT):
      गैर-काइनेटिक ए-सैट वे हैं जो अंतरिक्ष में वस्तुओं को अप्रत्यक्ष रूप से निष्क्रिय या नष्ट करते हैं, इसमें आवृत्ति जैमिंग (Frequency Jamming), ब्लाइंडिंग लेजर (Blinding Lasers) या साइबर-हमले शामिल हैं।
  • ध्यातव्य है कि इस मिसाइल का परीक्षण मार्च 2019 में मिशन शक्ति (Mission Shakti) के अंतर्गत किया गया था।

वायु रक्षा सामरिक नियंत्रण रडार (ADTCR) के बारे में

  • ADTCR का उपयोग वॉल्यूमेट्रिक सर्विलांस (Volumetric Surveillance), ​​डिटेक्शन (Ditection), ट्रैकिंग और विभिन्न प्रकार के हवाई लक्ष्यों (मित्र/दुश्मन) की पहचान और कई कमांड पोस्ट तथा हथियार प्रणालियों के लिये प्राथमिकता वाले टारगेट डेटा के प्रसारण हेतु किया जाता है।
  • यह बहुत छोटे लक्ष्यों और कम उड़ान वाले लक्ष्यों का पता लगाने में भी सक्षम है।

गणतंत्र दिवस परेड के मायने

  • गणतंत्र दिवस परेड के माध्यम से भारत विश्व के समक्ष अपनी सांस्कृतिक विविधता, सामरिक शक्ति, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार और गणतांत्रिक तथा लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रदर्शित करता है।
  • ध्यातव्य है कि परेड में शामिल राज्यों की झांकियाँ भारत की संस्कृति, सांस्कृतिक विविधता एवं सॉफ्ट पॉवर को प्रदर्शित करती हैं तथा सैन्य टुकड़ियाँ एवं हथियारों के प्रदर्शन का उद्देश्य भारत की सामरिक शक्ति एवं हार्ड पॉवर को सबके समक्ष (देशवासियों एवं अन्य राष्ट्रों) प्रदर्शित करना है।
  • A-SAT मिसाइल, ADTCR, चिनूक हेलीकॉप्टर, अपाचे हेलीकॉप्टर सहित अन्य सैन्य उपकरणों का प्रदर्शन भारत को वैश्विक पटल पर एक सशक्त राष्ट्र के रूप में प्रदर्शित करेगा।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

मिस्र की 3000 वर्ष पुरानी ममी

प्रीलिम्स के लिये:

3-डी प्रिंटर, मिस्र की 3000 वर्ष पुरानी ममी

मेन्स के लिये:

ध्वनि संश्लेषण तकनीक से मानव जाति को लाभ, चिकित्सा क्षेत्र के तकनीकी आयाम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिकों ने मिस्र के 3000 वर्ष पुराने प्राचीन मानव की आवाज़ को दोबारा सुनने में कामयाबी पाई है। ध्यातव्य है कि इन संरक्षित प्राचीन मानवों/शवों को ममी (Mummy) कहा जाता है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • वैज्ञानिकों ने ध्वनि संश्लेषण तकनीक के माध्यम से नेस्यामूं के ममी की आवाज़ की पुनरोत्पत्ति की है।
  • ध्यातव्य है कि वैज्ञानिकों ने CT-Scan, 3D प्रिंटिंग तकनीक और एक इलेक्ट्रॉनिक स्वरयंत्र (Larynx) का उपयोग करके स्वर तंत्र (Vocal Tract) के पुनर्निर्माण द्वारा 3,000 साल पुरानी मिस्र की ममी की आवाज़ की नकल तैयार की है।

3000 वर्ष पुरानी ममी के बारे में

  • 3000 वर्षीय मिस्र की ममी का नाम नेस्यामूं (Nesyamun) था। ध्यातव्य है कि यह नाम उसके ताबूत के शिलालेख के अनुसार है।
  • ऐसा माना जाता है कि नेस्यामूं रामसेस XI के शासन के दौरान का था। उस दौरान वह थेब्स में एक मुंशी या पुजारी के रूप में काम करता था।
  • यह पहली बार नहीं है जब नेस्यामूं एक वैज्ञानिक अध्ययन का विषय बना है। वर्ष 1824 में उसके शरीर के आवरण को खोलने (Unwrapped) के बाद इसकी जाँच लीड्स फिलोसोफिकल एंड लिटरेरी सोसाइटी (Leeds Philosophical and Literary Society) के सदस्यों द्वारा की गई थी।
  • इस पर कुछ अन्य वैज्ञानिकों ने भी अध्ययन किया था जिसमें पता चला था कि नेस्यामूं की मृत्यु 50 के दशक के मध्य में हुई थी और वह मसूड़ों की बीमारी तथा गंभीर रूप से खराब दाँतों से पीड़ित था।

वैज्ञानिकों ने ममी की आवाज़ की पुनरोत्पत्ति कैसे की?

  • पुनः प्राप्त ध्वनि स्वर-जैसी (Vowel-like) है और ममी के मौजूदा स्वर तंत्र (Vocal Tract) के सटीक मापों के आधार पर 3D स्वर तंत्र का निर्माण करके इस ध्वनि को पुनः प्राप्त किया गया है। ध्यातव्य है कि स्वर तंत्र की माप ममी का कंप्यूटरीकृत टोमोग्राफी स्कैन (Computerised Tomography Scan- CT Scan) करके की है।
  • शोधकर्त्ताओं ने 3 डी प्रिंटर का उपयोग करके ममी के स्वर तंत्र के त्रि-आयामी मॉडल का निर्माण किया और इसे एक इलेक्ट्रॉनिक स्वरयंत्र (Larynx) से जोड़कर ध्वनि की पुनरोत्पत्ति की।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, सटीक ध्वनि की उत्पत्ति के लिये स्वर तंत्र के नरम ऊतकों के सही संरक्षण की आवश्यकता होती है, जो उन व्यक्तियों में असंभव है जिनके अवशेष केवल कंकाल रूप में हैं।
  • यह प्रक्रिया केवल तभी संभव है जब प्रासंगिक स्वर तंत्र के नरम ऊतक यथोचित रूप से बरकरार रहें। गौरतलब है कि मिस्र के पुजारी नेस्यामूं के 3,000 साल पुराने शरीर में ये ऊतक सुरक्षित थे।

ध्वनि की पुनरोत्पत्ति का महत्त्व:

  • इस ध्वनि संश्लेषण तकनीक के प्रयोग से वर्तमान समय में किसी अघात या अन्य कारणों से अपनी आवाज़ गँवा चुके लोगों को पुनः आवाज़ प्रदान की जा सकती है।
  • इसके विस्तार से वैश्विक चिकित्सा पद्धति एवं चिकित्सा क्षेत्र में आमूलचूल सकारात्मक परिवर्तन होने की उम्मीद है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire: 28 जनवरी, 2020

गति (GATI) पोर्टल

हाल ही में केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने ऑनलाइन वेब पोर्टल ‘गति’ (GATI) की शुरुआत की है। इसे प्रधानमंत्री कार्यालय (Prime Minister Office-PMO) द्वारा प्रयोग किये जा रहे ‘प्रगति’ (PRAGATI) पोर्टल से प्रेरणा लेने के बाद भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (National Highways Authority of India- NHAI) द्वारा तैयार किया गया है। इस पोर्टल के माध्यम से न केवल राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण कार्यों में पारदर्शिता आएगी बल्कि निर्माण कार्य को बढ़ावा देने के निर्णय को भी गति मिलेगी। अधिकारियों के अनुसार, इस पोर्टल की निगरानी NHAI के अधिकारियों की एक टीम द्वारा की जाएगी। इस पोर्टल पर दर्ज शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई की जाएगी।

लाला लाजपत राय

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रखर नेता लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) की 28 जनवरी को जयंती मनाई जाती है। लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को फिरोज़पुर ज़िले के ढुडिके गांव में हुआ था। किशोरावस्था में वे स्वामी दयानंद सरस्वती (Dayananda Saraswati) से मिले और आर्य समाजी विचारों से काफी ज़्यादा प्रेरित हुए। लाला लाजपत राय ने स्वतंत्रता संघर्ष में कई बड़े आंदोलनों का नेतृत्व भी किया। जब साइमन कमीशन भारत आया तो लाला जी ने इसके विरोध में लाहौर में आयोजित बड़े आंदोलन का नेतृत्व किया। इस आंदोलन में अंग्रेजों ने जनता पर लाठियाँ बरसाई जिनकी चपेट में आने से 17 नवंबर, 1928 को लाला लाजपत राय जी की मृत्यु हो गई।

ग्रैमी अवॉर्ड्स

62वें ग्रैमी अवॉर्ड्स की घोषणा कर दी गई है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा को उनके बेस्ट सेलर संस्मरण 'बीकमिंग' (Becoming) के लिये ग्रैमी अवॉर्ड दिया गया। 'बीकमिंग' एक ऑडियोबुक है जिसे मिशेल ओबामा ने ही आवाज़ दी है। इसके अलावा युवा अमेरिकन पॉप सिंगर बिली एलिश ने पहली बार 5 ग्रैमी अवॉर्ड जीते। बिली इस वर्ष अवॉर्ड जीतने वाली (18 साल) सबसे युवा सिंगर हैं। सिंगर लेडी गागा ने भी दो अवॉर्ड जीतकर अपने कॅरियर के कुल 11 ग्रैमी अवार्ड पूरे कर लिये हैं।


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