इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 19 Jan, 2019
  • 36 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

मेथनॉल मिश्रित पेट्रोल

चर्चा में क्यों?


हाल ही में ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (Automotive Research Association of India-ARAI) द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि मेथनॉल मिश्रित पेट्रोल को मौजूदा BS-IV मानक कारों में उपयोग कर कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।


प्रमुख बिंदु

  • कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के आकलन हेतु इस अध्ययन को वास्तविक परिस्थितियों में किया गया। वाहनों में 15 प्रतिशत मेथनॉल (M-15) मिश्रण का इस्तेमाल किया गया और लगभग 3,000 किमी. तक चलाकर उनका परीक्षण किया गया।
  • अध्ययन के ये निष्कर्ष परिवहन मंत्रालय को सौंप दिये गए हैं। मंत्रालय भी मेथनॉल सम्मिश्रण पर अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये तैयार है क्योंकि 2030 तक सरकार का लक्ष्य ईंधन सम्मिश्रण को 20 प्रतिशत तक बढ़ाना है।

मेथनॉल अर्थव्यवस्था

  • मेथनॉल अर्थव्यवस्था कच्चे तेल के आयात को कम करने के साथ-साथ देश में कोयले के विशाल भंडार का उपयोग करने में मदद कर सकती है।
  • एक अनुमान के मुताबिक, भारत कच्चे तेल के आयात पर प्रत्येक वर्ष 7 लाख करोड़ रुपए खर्च करता है।
  • आयात कम करते हुए वैकल्पिक ईंधनों के उपयोग से लगभग 2 लाख करोड़ रुपए की बचत की जा सकती है। इस बचत का इस्तेमाल देश में कमज़ोर पड़ते जा रहे कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने में किया जा सकता है।
  • भारत वर्तमान में सऊदी अरब और ईरान से मेथनॉल आयात करता है। नीति आयोग ने अकेले मेथनॉल की सहायता से कच्चे तेल के आयात में 20 प्रतिशत तक की कमी लाने हेतु एक व्यापक योजना तैयार की है।
  • मेथनॉल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये गेम चेंजर साबित हो सकता है।
  • मेथनॉल दुनिया के कई हिस्सों में इस्तेमाल होने वाला एक अच्छा ईंधन है।
  • अधिकांश देशों में यह प्राकृतिक गैस से बनता है, जबकि भारत में यह स्थानीय रूप से उपलब्ध कोयले से प्राप्त हो सकता है।

मेथनॉल क्या है?

  • मेथनॉल एक हल्का, वाष्पशील, रंगहीन, ज्वलनशील द्रव है।
  • यह आसानी से निर्मित अल्कोहल है। यह जैव ईंधन के उत्पादन में भी उपयोगी है।
  • यह कार्बनिक यौगिक है और इसे काष्ठ अल्कोहल भी कहते हैं।
  • यह प्राकृतिक गैस, कोयला एवं विभिन्न प्रकार के पदार्थों से बनता है।

स्वच्छ क्यों?

  • क्योंकि इसके दहन से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम होता है।

सस्ता कैसे?

  • क्योंकि यह स्थानीय स्तर पर उपलब्ध है।
  • मेथनॉल का निर्माण कृषि उत्पादों, कोयला एवं नगरपालिका के कचरे से भी किया जा सकता है।
  • यह जल परिवहन के लिये एक भरोसेमंद ईंधन है क्योंकि यह स्वच्छ, जीवाश्म ईंधन की तुलना में सस्ता तथा भारी ईंधन का एक अच्छा विकल्प है।

स्रोत- द हिंदू बिज़नेस लाइन


शासन व्यवस्था

DMF/PMKKKY पर पहली राष्ट्रस्तरीय कार्यशाला

चर्चा में क्यों?


18 जनवरी, 2019 को नई दिल्‍ली में खान मंत्रालय (Ministry of Mines) ने ज़िला खनिज फाउंडेशन (District Mineral Foundation-DMF)/प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्‍याण योजना (Pradhan Mantri Khanij Kshetra Kalyan Yojna-PMKKKY) पर प्रथम राष्‍ट्रस्‍तरीय कार्यशाला का आयोजन किया।

  • इसमें ज़िला कलेक्‍टरों/ज़िला मजिस्‍ट्रेट/ज़िला परिषदों के मुख्‍य कार्यकारी अधिकारी, राज्‍य खनन विभागों के अधिकारियों, स्‍वास्‍थ्‍य, महिला एवं बाल विकास, ग्रामीण विकास मंत्रालयों सहित अन्‍य केंद्रीय मंत्रालयों के वरिष्‍ठ अधिकारियों आदि ने इस कार्यशाला में भाग लिया।
  • इस कार्यशाला का मुख्‍य उद्देश्‍य DMF के कार्यान्‍वयन में तेज़ी लाने और DMF के कार्यान्‍वयन में चुनौतियों के समाधान के लिये कार्यनीतियाँ विकसित करने, लेखा-परीक्षा एवं समायोजन, PMKKKY दिशा-निर्देशों को बेहतर बनाने, प्रभावित लोगों और क्षेत्रों की पहचान करने के मानदंड आदि जैसे विभिन्‍न मुद्दों पर चर्चा करना था।
  • DMF/PMKKKY पर अपनी तरह की इस पहली कार्यशाला खनन से प्रभावित क्षेत्रों के सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में खनन क्षेत्र को पूर्ण योगदान देने तथा राष्‍ट्रीय अर्थव्‍यवस्‍था के विकास को बढ़ावा देने की दिशा में मंत्रालय के प्रयासों को सशक्‍त करने में बहुत लाभप्रद सिद्ध होगी।
  • यह प्रयास देश के सभी क्षेत्रों में बेहतर परिपाटियों को बढ़ावा देने के लिये नीतिगत परिवेश में और अधिक सुधार की दिशा में केंद्र सरकार को सहायता प्रदान करेंगे।

पृष्ठभूमि


वर्षों से खदानों का लाभ खनन कंपनियों, निजी खनिकों तथा सरकारों को लाभ मिलता रहा न कि वहाँ रहने वाले समुदायों को। खनन के कारण स्थानीय लोगों को न केवल अपनी ज़मीन से विस्थापित होना पड़ता है बल्कि समाज का विखंडन और पर्यावरण प्रदूषण जैसे नकारात्मक प्रभावों का भी सामना करना पड़ रहा है। लेकिन इन सबके बदले स्थानीय समुदायों को उचित मुआवज़ा भी नहीं मिलता है जिसके चलते खनन प्रभावित ज़िले की सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिति दयनीय है।

खनन प्रभावित क्षेत्रों के समुदायों/व्यक्तियों को लाभ सुनिश्चित करने के लिये ज़िला खनिज फाउंडेशन (DMF) की स्थापना की गई है।

    ज़िला खनिज फाउंडेशन (DMF)

    • DMF एक गैर-लाभकारी स्वायत्त ट्रस्ट है, जो खनन संबंधी संचालन से प्रभावित प्रत्येक ज़िले के समुदायों के हितों की रक्षा करता है और उन क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों को लाभ पहुँचाने का कार्य करता है।
    • DMF को केंद्रित खनन कानून, खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम (MMDR) 1957, जिसमें वर्ष 2015 में संशोधन किया गया था, के तहत मान्यता प्राप्त है।
    • DMF के उद्देश्य और कार्य भी संवैधानिक प्रावधानों द्वारा निर्देशित किया गए हैं क्योंकि यह आदिवासी क्षेत्रों के लिये लागू पाँचवी और छठी अनुसूचियों, पंचायतों के लिये प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम (PESA) 1996 और अनुसूचित जनजाति एवं परंपरागत वनवासी अधिनियम, 2006 (वन अधिकारों की मान्यता), वन अधिकार अधिनियम (FRA) से संबंधित है।

    PMKKKY (Pradhan Mantri Khanij Kshetra Kalyan Yojna-PMKKKY)

    • सितंबर 2015 में खान मंत्रालय ने DMF की निधियों के उपयोग के लिये दिशा-निर्देश जारी किये थे। इस योजना को प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना कहा जाता है और यह सभी राज्य सरकारों पर लागू होती है।
    • यह योजना 12 जनवरी, 2015 से प्रभावी है।
    • विकास, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति और दीर्घकालिक संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना के तीन लक्ष्य हैं-
    1. खनन प्रभावित क्षेत्रों में विभिन्न विकासात्मक और कल्याणकारी परियोजनाओं/ कार्यक्रमों का कार्यान्व्यन जो राज्य एवं केंद्र सरकार के मौजूदा योजनाओं/ परियोजनाओं के अनुरूप हों।
    2. पर्यावरण, स्वास्थ्य एवं खनन मिलों में लोगों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को समाप्त करना।
    3. खनन क्षेत्र के प्रभावित लोगों  के लिये दीर्घकालीन टिकाऊ, आजीविका सुनिश्चित करना।
    • योजना के तहत उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में 60 फीसदी और अन्य प्राथमिक क्षेत्रों में 40 फीसदी निधि खर्च की जाएगी।

    उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्र अन्य प्राथमिकता वाले क्षेत्र
    पेयजल आपूर्ति भौतिक संरक्षण
    पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण उपाय सिंचाई
    स्वास्थ्य सेवा ऊर्जा एवं आमूल विकास
    शिक्षा खनन ज़िलों की गुणवत्ता बढ़ाने के अन्य उपाय
    महिला एवं बाल कल्याण
    वृद्धजनों एवं नि:शक्तजनों का कल्याण
    कौशल विकास
    स्वच्छता


    स्रोत : पी.आई.बी


    विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

    शनि (Saturn) पर उपस्थित वलयों (घेरा) की आयु अनुमान से कम

    चर्चा में क्यों?


    हाल ही में वैज्ञानिकों द्वारा नासा के कैसिनी मिशन (Cassini spacecraft) के अंतिम चरण के अध्ययन से यह पता लगाया गया कि शनि ग्रह पर पाए जाने वाले वलय/छल्ले (Ring) अनुमान से बहुत कम आयु के हैं।

    महत्त्वपूर्ण बिंदु

    • हाल ही में वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया गया कि कैसिनी मिशन के प्रयोगों के अंतिम चरण में शनि और इसके आंतरिक भाग में उपस्थित वलयों के बीच की जानकारियों को इकठ्ठा किया गया।
    • इसके तहत छह क्रॉसिंगों के दौरान, ग्रह के वलय में उपस्थित पदार्थों की मात्रा का सटीक अनुमान लगाने के लिये पृथ्वी के साथ एक रेडियो लिंक की निगरानी की गई थी।
    • शनि के चंद्रमा ‘मीमास’ (Mimas) के द्रव्यमान का लगभग 40%, जो पृथ्वी के चंद्रमा से 2,000 गुना छोटा है, के अध्ययन से यह पता चलता है कि शनि ग्रह पर उपस्थित गैसों के विशालकाय छल्ले हाल ही के हैं, जिनकी उत्पत्ति लगभग 100 मिलियन से 10 मिलियन वर्ष पहले हुई है।

    Saturn

    • हमारे सौर मंडल के शुरुआती वर्षों में ही शनि का निर्माण हुआ था।
    • इससे पहले किये गये अध्ययनों में वलय (छल्ले) का आकार छोटा तो पाया गया, लेकिन इनकी उम्र का अनुमान लगाने के लिये आवश्यक इनके द्रव्यमान आदि महत्वपूर्ण आँकड़ों का अभाव बना रहा।
    • नासा के वायेज़र अंतरिक्ष यान के 1980 के आँकड़ों के आधार पर यह पाया गया कि वलयों का द्रव्यमान (रिंग मास) इसके संबंध में व्यक्त पिछले अनुमानों की तुलना में 45% कम निकला। शोधकर्त्ताओं के अनुसार कम द्रव्यमान इनकी कम उम्र का संकेत देते हैं।

    शनि ग्रह

    • शनि सौरमंडल में सूर्य के नज़दीक स्थित छठा और हमारे सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है।
    • इसमें बर्फीले वलयों की चमकदार सुसज्जित प्रणाली पाई जाती है।
    • हालाँकि यह एकमात्र वलय-युक्त ग्रह नहीं है, लेकिन अन्य ग्रह शनि के समान सुसज्जित एवं जटिल नहीं है।
    • बृहस्पति की तरह शनि भी एक विशालकाय गेंद के समान है जिसमें ज़्यादातर हाइड्रोजन और हीलियम गैसें पाई जाती हैं।

    महत्त्वपूर्ण तथ्य


    दिन की अवधि - 10.7 घंटे 1 वर्ष - पृथ्वी के 29 वर्ष के बराबर 

    त्रिज्या - 36,183.7 मील/58,232 किमी०

    ग्रह का प्रकार – गैसीय

    उपग्रह - 53 स्थाई, 9 अस्थाई

    कैसिनी मिशन (Cassini spacecraft)

    • 15,अक्तूबर 1997 को इस मिशन को प्रारंभ किया गया तथा यह 15 सितंबर, 2017 को समाप्त हो गया।
    • कैसिनी द्वारा शनि और इसके चंद्रमाओं की परिक्रमा तथा इसका अध्ययन किया गया।
    • जनवरी 2005 में इस मिशन के द्वारा शनि के सबसे बड़े चंद्रमा टाइटन पर जानकारी एकत्र करने के लिये ह्यूजेंस प्रोब (Huygens probe) को भी उतारा गया था।

    वलय (Ring)


    शनि पर पाए जाने वाले वलय सौर मंडल के किसी भी ग्रह की सबसे व्यापक वलय प्रणाली हैं। इनमें अनगिनत छोटे-छोटे कण पाए जाते हैं, जिनका आकार मिलीमीटर (mm) से मीटर (m) तक होता है। यह वलय शनि ग्रह पर चारो ओर परिक्रमा करते हैं, जो चट्टानी पदार्थों के सूक्ष्म घटकों और बर्फ से बने होते हैं।


    स्रोत – द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस ,आधिकारिक वेबसाइट


    जैव विविधता और पर्यावरण

    चिल्का झील में समुद्री घास

    चर्चा में क्यों?


    हाल ही में यह दावा किया गया है कि भारत में कुल समुद्री घासों का लगभग 20% हिस्सा चिल्का झील में है। गौरतलब है कि यह घास ऑक्सीजन उत्पन्न करने और कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।


    प्रमुख बिंदु

    • चिल्का विकास प्राधिकरण, झील के प्रबंधन हेतु मुख्य निकाय के अनुसार, चिल्का झील की वार्षिक निगरानी के दौरान होलोड्यूल यूनिनर्विस (Holodule Uninervis), होलोड्यूल पिनिफ़ोलिया (Holodule Pinifolia), हेलोफिला ओवलिस (Halophila Ovalis), हेलोफिला ओवेटा (Halophila Ovata) और हेलोफिला बीकेरी (Halophila Beccarii) जैसी समुद्री प्रजातियाँ पाई गईं।
    • पिछले वर्ष चिल्का झील के 135 वर्ग किमी. क्षेत्र की तुलना में इस वर्ष 152 वर्ग किमी. क्षेत्र में समुद्री घासें पाई गई हैं।
    • दुनिया भर में कम होती समुद्री घासों के मुकाबले भारत में इसकी वृद्धि जलीय पारिस्थितिकी के संदर्भ में सकारात्मक संदेश प्रस्तुत करती है। समुद्री घासों में वृद्धि तभी होती है जब पानी साफ होता है।
    • समुद्री घासों में यह वृद्धि समुद्री मछलियों की महत्त्वपूर्ण प्रजातियों को प्राकृतिक आवास प्रदान करेगी और परिणामस्वरूप मत्स्यिकी क्षेत्र को भी बढ़ावा मिलेगा।

    समुद्री घास

    • यह समुद्री नितल पर उगने वाले लवणीय पुष्पीय पादप होते हैं।
    • विश्व भर में समुद्री घासों की लगभग 60 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
    • इन घासों की उत्पत्ति छिछले सागरों के प्रकाशित मंडल में होती है ताकि इन्हें पर्याप्त प्रकाश की प्राप्ति हो सके।

    पर्यावरणीय महत्त्व

    • समुद्री घासें, सागरीय जल में घुलित ऑक्सीजन का प्रमुख स्रोत होती हैं जो जलीय जीवन के लिये आवश्यक हैं।
    • समुद्री घासें जल में घुलित कार्बन डाइऑक्साइड का प्रकाश संश्लेषण में प्रयोग कर, ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में सहायक है।
    • समुद्री घासें जलीय जीवों को भोजन एवं आवास भी उपलब्ध कराती हैं।

    स्रोत-द हिंदू


    सामाजिक न्याय

    प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना अपने लक्ष्य से पीछे

    चर्चा में क्यों?


    हाल ही में मिली जानकारी के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना (Pradhan Mantri Grameen Awas Yojana-PMGAY) के तहत शुरू किये गए एक करोड़ घरों को पूरा करने के लक्ष्य का केवल 66% हिस्सा ही हासिल किया जा सका है।

    महत्त्वपूर्ण बिंदु

    • ग्रामीण गरीबों को आवास प्रदान करने के लिये प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के तहत 2019 तक एक करोड़ घरों को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था जिसमें से अभी तक सिर्फ 66% ही हासिल किया गया है।
    • इस पर केंद्र सरकार ने तर्क देते हुए ने बताया है कि राज्य सरकारें भूमिहीन लाभार्थियों को भूमि आवंटन में देरी कर रही हैं क्योंकि बहुत से लाभार्थियों के पास PMAY घरों का निर्माण कराने के लिये खुद की ज़मीन नहीं है।
    • हालाँकि ग्रामीण विकास मंत्रालय अभी भी मार्च के अंत (तय की समय सीमा) तक तय लक्ष्य की ओर आगे बढ़ने की उम्मीद कर रहा है, जबकि अभी लगभग 15 लाख घरों का निर्माण किया जाना बाकी है, बहुत से घरों का आधा निर्माण कार्य हो चुका है जिनके अतिशीघ्र पूरा होने की संभावना जताई जा रही है।
    • पिछले कुछ दिनों में राज्यों को लिखे गए पत्र में मंत्रालय द्वारा बताया गया है कि लगभग 4.72 लाख चिह्नित भूमिहीन लाभार्थियों में से केवल 12% को ही मकान निर्माण के लिये भूमि उपलब्ध कराई गई थी।

    भूमि आवंटन से संबंधित उपलब्ध आँकड़े


    एक आँकड़े के अनुसार, जुलाई 2018 तक कुछ सबसे पिछड़े हुए राज्यों महाराष्ट्र में लगभग 1.39 लाख भूमिहीन लाभार्थियों में से केवल 890 को ही भूमि प्रदान की गई। असम में 48,283 भूमिहीन लाभार्थियों में से 574 को भूमि प्रदान की गई। बिहार में 5,348 लाभार्थियों में से केवल 55 लोगों को भूमि आवंटित की गई, जबकि पश्चिम बंगाल ने अपने 34,884 भूमिहीन लाभार्थियों में से एक को भी भूमि आवंटित नहीं की।

    प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना - (ग्रामीण विकास मंत्रालय)


    उद्देश्य - पूर्ण अनुदान के रूप में सहायता प्रदान करके आवास इकाइयों के निर्माण और मौजूदा गैर-लाभकारी कच्चे घरों के उन्नयन में गरीबी रेखा (बीपीएल) से नीचे के ग्रामीण लोगों की मदद करना।

    लाभार्थी - लाभार्थी एससी / एसटी, मुक्त बंधुआ मज़दूर और गैर-एससी / एसटी श्रेणियाँ, विधवाओं या कार्रवाई में मारे गए रक्षा कर्मियों के परिजन, पूर्व सैनिकों और अर्धसैनिक बलों के सेवानिवृत्त सदस्य, विकलांग व्यक्तियों और अल्पसंख्यकों से संबंधित लोग हैं।

    लाभार्थियों का चयन - 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) के आँकड़ों के अनुसार लाभार्थियों का चयन किया जाता है।

    समय सीमा- इस परियोजना को तीन साल की अवधि के लिये लागू किया जाएगा और ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार सृजन को बढ़ावा मिलेगा।

    प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना - (शहरी मामलों का मंत्रालय)

    • यह मिशन 2015- 2022 के लिये लागू किया जा रहा है। यह शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) एवं अन्य कार्यान्वयन एजेंसियों को राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के माध्यम से केंद्रीय सहायता प्रदान करता है।
    • 2011 की जनगणना के अनुसार सभी वैधानिक शहर और बाद में अधिसूचित शहर मिशन के अंतर्गत शामिल किये जाएंगे।

    इसके निम्नलिखित प्रावधान हैं -

    ♦ निजी भागीदारी के माध्यम से संसाधन के रूप में भूमि का उपयोग करने वाले मौजूदा झुग्गी निवासियों का इन-सीटू (उसी स्थान पर) पुनर्वास किया जाएगा।
    ♦ क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी।
    ♦ साझेदारी में किफायती आवास।
    ♦ लाभार्थी के नेतृत्व वाले निजी घर निर्माण / मरम्मत के लिये सब्सिडी।

    • सहकारी संघवाद की भावना के तहत यह मिशन राज्यों को उनके राज्य में आवास की मांग को पूरा करने के लिये उपरोक्त चार माध्यमों से सबसे अच्छा विकल्प चुनने हेतु सुविधा प्रदान करता है।
    • मिशन के दिशा-निर्देशों के अनुसार, परियोजना तैयार करने और अनुमोदन की प्रक्रिया राज्यों पर छोड़ दी गई है ताकि परियोजनाओं को तेजी से लागू किया जा सके।

    स्रोत – द हिंदू


    विविध

    नहीं खुलेंगे नए इंजीनियरिंग कॉलेज

    चर्चा में क्यों?


    हाल ही में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (All India Council for Technical Education -AICTE) ने बी.वी.आर मोहन रेड्डी की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया। गौरतलब है कि इस समिति का गठन इंजीनियरिंग शिक्षा हेतु लघु और मध्यम अवधि की योजना पर सिफारिशें प्रदान करने के लिये किया गया था।

    समिति की मुख्य सिफारिशें

    • 2020 के बाद किसी भी नए इंजीनियरिंग कॉलेज को मंज़ूरी नहीं।
    • पहले से ही आवेदन करने वालों को रियायतें दी जानी चाहिये।
    • मौजूदा इंजीनियरिंग संस्थानों में से केवल उन संस्थानों का अनुरोध स्वीकार किया जाना चाहिये जो नई तकनीकों में शिक्षा कार्यक्रम शुरू करने या पारंपरिक इंजीनियरिंग विषयों में मौजूदा क्षमता को बदलते हुए कृत्रिम बुद्धिमत्ता या रोबोटिक्स जैसी उभरती तकनीकों को शामिल करते हों।
    • कॉलेज में नई क्षमता के निर्माण की समीक्षा हर दो साल में की जानी चाहिये।
    • समिति ने अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (All India Council for Technical Education -AICTE) को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉकचैन, रोबोटिक्स, क्वांटम कंप्यूटिंग, डेटा साइंसेज, साइबर स्पेस, 3डी प्रिंटिंग और डिज़ाइन जैसी उभरती तकनीकों में अंडर-ग्रेजुएट इंजीनियरिंग प्रोग्राम शुरू करने का सुझाव दिया है।
    • समिति ने पाया कि शैक्षिक संस्थानों में नवाचार, इन्क्यूबेशन और स्टार्ट-अप के लिये उचित माहौल का अभाव है। इसलिये प्रत्येक शिक्षण संस्थान हेतु निम्नलिखित अनिवार्य होने चाहिये-

    ♦ अंडर-ग्रेजुएट्स के लिये उद्यमिता ऐच्छिक पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिये।
    ♦ अटल इनोवेशन प्रयोगशालाओं के समान ही टिंकरिंग प्रयोगशालाएँ प्रत्येक संस्थान में होनी चाहिये।
    ♦ शैक्षिक संस्थानों को इन्क्यूबेटर सेंटर, मेंटर क्लब और एक्सेलरेटर प्रोग्राम शुरू करने की आवश्यकता है।

    • मौजूदा संस्थानों में अतिरिक्त सीटों को मंज़ूरी देने के संदर्भ में समिति ने कहा है कि AICTE को संबंधित संस्थान की क्षमता के आधार पर ही अनुमोदन देना चाहिये।

    पृष्ठभूमि

    • देश में हर साल सैकड़ों की संख्या में इंजीनियरिंग कॉलेज बंद होते जा रहे हैं क्योंकि उनमें छात्र प्रवेश नहीं ले रहे हैं। पिछले वर्ष करीब 800 इंजीनियरिंग संस्थानों ने बंद करने के प्रस्ताव पेश किये थे।
    • ये आँकड़े हैरत में डालने वाले हैं जिनसे पता चलता है कि देश में उच्च शिक्षा को लेकर रुख बदल रहा है।
    • निजी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेने में छात्रों की रुचि में काफी गिरावट आई है। इन संस्थानों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता पर पिछले दिनों काफी सवाल खड़े किये गए।
    • एक जाँच में इन संस्थानों को खराब बुनियादी ढाँचे, संबंधित उद्योगों से जुड़ाव और प्रयोगशाला की कमी जैसी समस्याओं से जूझता पाया गया।
    • इन संस्थानों में फीस तो भारी भरकम वसूली जाती है, लेकिन इंटर्नशिप और रोज़गार का कोई इंतजाम नहीं होता है।
    • अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) के मुताबिक, 60 फीसदी से अधिक इंजीनियरिंग छात्र बेरोज़गार ही रह जाते हैं। शेष छात्रों को कम वेतन वाली नौकरी मिलती है क्योंकि उनकी शिक्षा का स्तर अच्छा नहीं होता है।

    स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस, बिज़नेस स्टैंडर्ड


    विविध

    Rapid Fire करेंट अफेयर्स (19 जनवरी)

    • भारत सरकार ने पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के जवाब में कहा है कि पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान भारत का हिस्सा था और रहेगा| पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को गलत ठहराते भारत ने कहा कि पाकिस्तान गैर-कानूनी तरीके से भारत के हिस्सों पर अपना हक न जताए। गौरतलब है कि पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों को संविधान के तहत मूलभूत अधिकार देते हुए कहा था कि यह इलाका पाकिस्तान की सीमा और उसके अधिकार क्षेत्र में आता है।
    • केंद्र सरकार ने मिलिट्री पुलिस में महिलाओं को शामिल करने का निर्णय लिया है। मिलिट्री पुलिस की कुल टुकड़ियों के 20 फीसदी पदों पर महिलाओं की भर्ती चरणबद्ध तरीके से की जाएगी। सेना ने 52 महिलाएँ प्रतिवर्ष के हिसाब से मिलिट्री पुलिस में 800 महिलाओं को शामिल करने की योजना तैयार की है। आपको बता दें कि अभी सेना में महिलाओं की नियुक्ति मेडिकल, लीगल, एजुकेशनल, सिग्नल और इंजीनियरिंग जैसी कुछ विशेष शाखाओं में ही की जाती है।
    • केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर के लेह और कारगिल (लद्दाख) में दुनिया का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने की तैयारी कर रही है। इसके तहत लेह में पाँच हज़ार मेगावाट का और कारगिल में ढाई हज़ार मेगावाट का सौर ऊर्जा संयंत्र लगाया जा रहा है। इसमें लेह में लगाया जा रहा सोलर प्लांट दुनिया में सबसे बड़ा होगा। केंद्र सरकार ने 2023 तक इस परियोजना को पूरा करने का लक्ष्य रखा है।
    • महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय ने उनके जीवन पर एक डिजिटल स्टडी किट तैयार की है। 16 GB की पेन ड्राइव में उपलब्ध इस किट में गांधी जी के जीवन के तमाम पहलुओं से जुड़ी जानकारियाँ, किताबें, ऑडियो, वीडियो और तस्वीरें मौज़ूद हैं। इस डिजिटल स्टडी किट को My Life My Message नाम दिया गया है। इसमें गांधी जी की लिखी 20 पुस्तकें, उन पर लिखी गई 10 किताबें और 9 डाक्यूमेंट्री फिल्में शामिल हैं। कई ऑडियो के साथ लगभग 100 तस्वीरें भी इस स्टडी किट में शामिल हैं।
    • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात की राजधानी गांधीनगर में नौवें वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस सम्मेलन का उद्देश्य गुजरात में निवेश को आकर्षित करना है। वाइब्रेंट गुजरात को राष्ट्र प्रमुखों की उपस्थिति का एक वैश्विक मंच माना जाता है। इस अवसर पर उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शौकत मिरजियोयेव, डेनमार्क के प्रधानमंत्री लार्स लोक रासम्युसिन, चेक गणराज्य के प्रधानमंत्री आंद्रेज बबिज और माल्टा के प्रधानमंत्री डॉ. जोसेफ मस्कट भी मौज़ूद थे। इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये इसमें शामिल हुए। वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन के पहले संस्करण का आयोजन 2003 में किया गया था, उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे।
    • भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL) और लिबकॉइन भारत में 1 GwH लिथियम आयन बैट्री संयंत्र के निर्माण की दिशा में काम कर रहे हैं। बाद में इस संयंत्र की क्षमता 30 GwH तक बढ़ाई जाएगी। इस परियोजना से ऊर्जा आत्मनिर्भरता तथा तेल आयात में कमी आएगी। यह परियोजना मेड बाई इंडिया फॉर इंडिया के तहत शुरू की जाएगी। इसके अतंर्गत प्रमुख मशीनों का निर्माण देश में किया जाएगा। BHEL जल्द ही सुविधाओं, R&D, इन्फ्रास्ट्रक्चर और अन्य तकनीकी-वाणिज्यिक मुद्दों के अध्ययन के लिये एक टीम भेजेगा। टीम के मूल्यांकन और सिफारिशों के आधार पर संयुक्त उद्यम लगाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाएगा।
    • हवाई जहाज़ के ईंधन में 25 फीसदी तक बायोफ्यूल मिलाने की दिशा में कदम उठाते हुए भारतीय पेट्रोलियम संस्थान ने प्रतिदिन 10 हज़ार लीटर बायोफ्यूल तैयार करने के लिये प्रयास शुरू किये हैं। इसके तहत 50 करोड़ रुपए की लागत से बायोफ्यूल बनाने का संयंत्र लागाया जाएगा। इसके लिये ऐसे स्थान की तलाश की जा रही है जहाँ अधिक मात्रा में बेकार खाद्य तेल तथा बेकार पाम आयल सहजता से उपलब्ध हो, क्योंकि बायोफ्यूल बनाने के लिये इनका इस्तेमाल होता है।
    • वियतनाम के हा लोंग शहर में आसियान देशों तथा भारत के पर्यटन मंत्रियों की सातवीं बैठक का आयोजन हुआ। इसमें भारत का प्रतिनिधित्व केंद्रीय पर्यटन मंत्री के.जे. अल्फोंस ने किया। उन्होंने वियतनाम के संस्कृति, खेल तथा पर्यटन मंत्री एनगुयेन एनगोक थियेन के साथ इस बैठक की सह-अध्यक्षता की।  पर्यटन मंत्रियों ने आसियान-भारत पर्यटन सहयोग 2019 लॉन्च किया। इससे दोतरफा पर्यटन आगमन की दृष्टि से सहयोग बढ़ेगा और आसियान तथा भारत के बीच People-to-People Contact को प्रोत्साहन मिलेगा। इस बैठक में ब्रुनेई, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलिपींस, सिंगापुर तथा थाईलैंड के पर्यटन मंत्री भी शामिल हुए।
    • अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी प्रशासन के अहम पदों पर तीन भारतीय मूल के लोगों की नियुक्ति की है। रीता बरनवाल को ऊर्जा कार्यालय की अगुवाई करने के लिये चुना गया है। वह विभाग के परमाणु तकनीक अनुसंधान और परमाणु तकनीक अवसंरचना के विकास का काम देखेंगी। आदित्य बमजई को प्राइवेसी एंड सिविल लिबर्टीज़ ओवरसाइट बोर्ड का सदस्य बनाया गया है। बिमल पटेल को सहायक वित्त मंत्री पद के लिये नामित किया गया है। इन सभी की नियुक्तियाँ अमेरिकी सीनेट की मंज़ूरी के बाद प्रभावी होंगी।
    • आरिफ सईद खोसा को पाकिस्तान का नया मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया है। पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने उन्हें देश के 26वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ दिलाई। भारत के सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एवं राष्ट्रमंडल न्यायिक शिक्षा संस्थान की शासी समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मदन बी. लोकूर भी शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। उनके अलावा, कनाडा, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका एवं नाइजीरिया के वरिष्ठ न्यायाधीशों ने भी समारोह में हिस्सा लिया।
    • दुनिया में अपनी प्रजाति के अकेले बचे मेढक ‘रोमियो’ को उसकी साथी मिल गई है। इससे बोलीविया के वर्षा वनों में पाए जाने वाले सेहुएनकास (Sehuencas) प्रजाति के इस मेढक को विलुप्त होने से बचाने की संभावना बढ़ गई है। पिछले एक दशक से यह माना जा रहा था कि रोमियो इस प्रजाति का आखिरी मेढक है। अब शोधकर्त्ताओं को इस प्रजाति की मादा मेढक मिली है, जिससे प्रजनन कराकर इसे विलुप्त होने से बचाया जा सकेगा।

    close
    एसएमएस अलर्ट
    Share Page
    images-2
    images-2
    × Snow