मुख्य परीक्षा
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा
चर्चा में क्यों?
भारत–मध्य पूर्व–यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC), जिसे वर्ष 2023 G20 शिखर सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया, का उद्देश्य भारत को मध्य पूर्व के माध्यम से यूरोप से जोड़ना है।
- हालाँकि, पश्चिम एशिया में चल रहे संघर्ष और उभरते आर्कटिक मार्ग इसके कार्यान्वयन एवं रणनीतिक व्यवहार्यता के लिये गंभीर चुनौतियाँ पेश करते हैं।
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा क्या है?
- परिचय: IMEC एक रणनीतिक मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी पहल है जिसे नई दिल्ली में वर्ष 2023 में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन के दौरान एक समझौता ज्ञापन (MoU) के माध्यम से लॉन्च किया गया था। इसके दो कॉरिडोर सेगमेंट हैं: पूर्वी कॉरिडोर (भारत को खाड़ी क्षेत्र से जोड़ता है) और उत्तरी कॉरिडोर (खाड़ी क्षेत्र को यूरोप से जोड़ता है)।
- IMEC के हस्ताक्षरकर्ता देशों में भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, फ्राँस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ (EU) शामिल हैं। यह G7 की पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट (PGII, 2021) का हिस्सा है।
- IMEC 2023 में अनुकूल भू-राजनीतिक परिस्थितियों के बीच उभरा, जिसे अब्राहम एकॉर्ड (Abraham Accord) और भारत-UAE, सऊदी अरब तथा अमेरिका के संबंधों में सुधार का समर्थन प्राप्त था। इसका लक्ष्य इज़राइल के हाइफा पोर्ट को जॉर्डन की रेलवे प्रणाली और गल्फ क्षेत्र के बंदरगाहों से जोड़ना है।
- उद्देश्य: IMEC का उद्देश्य भारत, मध्य पूर्व एवं यूरोप के बीच व्यापार और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिये बंदरगाहों, रेलवे, सड़कों, समुद्री मार्गों, ऊर्जा पाइपलाइनों तथा डिजिटल अवसंरचना (अंडरसी डिजिटल केबल्स) का एक समेकित नेटवर्क विकसित करना है।
- IMEC को चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के पारदर्शी, सतत् और ऋण-मुक्त विकल्प के रूप में डिज़ाइन किया गया है, जो राष्ट्रीय संप्रभुता को प्रभावित किये बिना अवसंरचना विकास सुनिश्चित करता है।
- भारत के लिये आर्थिक और रणनीतिक लाभ: IMEC स्वेज़ नहर मार्ग की तुलना में लॉजिस्टिक्स लागत को लगभग 30% और परिवहन समय को लगभग 40% कम करता है, जिससे निर्यात प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि होती है।
- भारत के लिये, IMEC व्यापार मार्गों में विविधता लाने का एक रणनीतिक अवसर है, जिससे स्वेज़ नहर जैसे चोकपॉइंट्स पर निर्भरता कम होती है। यह गलियारा भूमध्य सागर के माध्यम से यूरोपीय बाज़ारों तक पहुँच बढ़ाता है और चीन की BRI के विकल्प के रूप में कार्य करता है।
- EU, भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है (2024-25 में 136 बिलियन USD का व्यापार) और मज़बूत कनेक्टिविटी निर्यात प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा दे सकती है।
- IMEC भारत की एक्ट वेस्ट नीति के साथ भी मेल खाता है, जो ऊर्जा सुरक्षा, विप्रेषण एवं डायस्पोरा संबंधों के लिये मध्य पूर्व के साथ सहभागिता को गहरा करता है और साथ ही पाकिस्तान के क्षेत्रीय रणनीतिक प्रभाव का मुकाबला करता है।
- यह भारत की वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड (OSOWOG) पहल के अनुरूप है, जो मध्य पूर्व से सौर और हरित हाइड्रोजन ऊर्जा का उपयोग करने का प्रयास करती है तथा भारत के कम-कार्बन अर्थव्यवस्था में संक्रमण का समर्थन करती है।
- भारत के लिये, IMEC व्यापार मार्गों में विविधता लाने का एक रणनीतिक अवसर है, जिससे स्वेज़ नहर जैसे चोकपॉइंट्स पर निर्भरता कम होती है। यह गलियारा भूमध्य सागर के माध्यम से यूरोपीय बाज़ारों तक पहुँच बढ़ाता है और चीन की BRI के विकल्प के रूप में कार्य करता है।
भारत–मध्य पूर्व–यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) की प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- पश्चिम एशिया में भू-राजनीतिक अस्थिरता: अक्तूबर 2025 में हमास के हमले तथा उसके बाद इज़राइली सैन्य कार्रवाई ने क्षेत्रीय सुरक्षा को और बिगाड़ दिया है, विशेषकर इज़राइल और अरब राज्यों के बीच, जिससे IMEC के मुख्य मार्ग को खतरा उत्पन्न हुआ है।
- इज़राइल के सऊदी अरब और जॉर्डन जैसे देशों के साथ संबंधों में गिरावट उनके क्षेत्रों के माध्यम से योजनाबद्ध रेलवे तथा ऊर्जा अवसंरचना परियोजनाओं को रोक सकती है।
- पश्चिम एशिया की अस्थिर राजनीतिक स्थिति दीर्घकालिक बुनियादी ढाँचे में निवेश को जोखिमपूर्ण और अनिश्चित बनाती है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण व्यापार गतिशीलता में बदलाव: आर्कटिक समुद्री मार्ग, जो अब जलवायु परिवर्तन के कारण अधिक सुलभ हो गए हैं, एशिया और यूरोप के बीच छोटे एवं लागत-प्रभावी शिपिंग मार्ग प्रदान करते हैं, जिससे IMEC की प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त कम होती है।
- अमेरिका, रूस, चीन और उत्तरी यूरोप जैसे देश आर्कटिक कनेक्टिविटी से IMEC के हस्ताक्षरकर्त्ता देशों की तुलना में अधिक लाभ उठा सकते हैं।
- इटली और फ्राँस जैसे भूमध्यसागरीय देश IMEC को आर्कटिक मार्गों के कारण संभावित आर्थिक हाशियेकरण का मुकाबला करने वाला विकल्प मानते हैं।
- लाल सागर में विघटन और समुद्री असुरक्षा: लाल सागर में हूती विद्रोहियों द्वारा बार-बार हमलों के कारण शिपिंग प्रभावित हुई है, जिससे केप ऑफ गुड होप के माध्यम से मार्ग परिवर्तन करना पड़ा और परिवहन समय तथा लागत में वृद्धि हुई।
- IMEC, जो संघर्ष क्षेत्रों के निकट समुद्री मार्गों पर निर्भर करता है, इसी प्रकार के विघटन के जोखिम का सामना करता है।
- क्षेत्रीय अभिकर्त्ताओं को बाहर करना और रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा: तुर्की, मिस्र या ईरान जैसे देश, अपने रणनीतिक भौगोलिक स्थान के बावजूद, IMEC का हिस्सा नहीं हैं, जिससे प्रतिद्वंद्वी या समानांतर गलियारों के निर्माण की संभावना बनती है।
- पाकिस्तान के अरब देशों, विशेषकर सऊदी अरब के साथ बढ़ते संबंधों का लाभ उठाकर IMEC का मुकाबला किया जा सकता है और क्षेत्र में भारत के प्रभाव को कमज़ोर किया जा सकता है।
- कार्यान्वयन और निवेश चुनौतियाँ: उच्च गति रेलवे, ऊर्जा पाइपलाइन और डिजिटल अवसंरचना का निर्माण कई सर्वेक्षणशील क्षेत्रों में करना अत्यधिक वित्तीय तथा तकनीकी संसाधनों की मांग करता है।
- IMEC का उद्देश्य वर्ष 2027 तक 600 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाना है, लेकिन इसके लिये स्टेकहोल्डर्स के बीच स्पष्ट वित्तपोषण रोडमैप और लागत साझा करने की योजना नहीं है।
- वृहद पैमाने की अवसंरचना परियोजनाओं के लिये दीर्घकालिक निवेश (प्रत्येक परियोजना में 3–8 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की आवश्यकता होती है, जो वैश्विक आर्थिक मंदी के बीच अनिश्चित बनी हुई है।
- गाजा संघर्ष में शांति की अनिश्चित संभावनाएँ: भले ही शांति पहलें प्रस्तावित की जा रही हों, गाज़ा या व्यापक इज़राइल–पैलेस्टाइन क्षेत्र में दीर्घकालिक स्थिरता की कोई गारंटी नहीं है।
- भविष्य में किसी भी प्रकार की हिंसक घटनाएँ इज़राइल और जॉर्डन में गलियारे के चल रहे या योजनाबद्ध खंडों को बाधित कर सकती है।
IMEC के सफल कार्यान्वयन के लिये भारत कौन-सी रणनीतियाँ अपना सकता है?
- बहुपक्षीय सहयोग और शासन को बढ़ावा देना: भारत को IMEC सचिवालय स्थापित करने में नेतृत्व करना चाहिये ताकि समन्वय, विवाद निवारण और निगरानी सुनिश्चित हो सके। इसके साथ ही सदस्य देशों के बीच नीतिगत समन्वय और नियामक संरेखण को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- भू-राजनीतिक सहभागिता को मज़बूत करना: भारत को सभी सदस्य देशों और क्षेत्रीय अभिकर्त्ताओं के साथ सक्रिय कूटनीतिक संपर्क बनाए रखना चाहिये।
- पश्चिम एशियाई अस्थिरता (जैसे गाज़ा संघर्ष, सऊदी–ईरान प्रतिद्वंद्विता) को संबोधित करने के लिये विवाद समाधान को सुविधाजनक बनाना चाहिये।
- तुर्की, ईरान, कतर एवं मिस्र को शामिल करने को बढ़ावा देना तथा IMEC की पहुँच बढ़ाने, भारत-अरब आर्थिक संबंधों को मज़बूत करने और पाकिस्तान के क्षेत्रीय प्रभाव का मुकाबला करने के लिये सऊदी एवं मिस्र के और बंदरगाहों को शामिल करना।
- निवेश प्रतिबद्धताओं को सुरक्षित करना: सदस्य देशों के बीच स्पष्ट वित्तीय रोडमैप और लागत साझा करने की व्यवस्था विकसित करना चाहिये।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), ग्रीन बॉण्ड और सतत् वित्त का उपयोग करके बजट पर दबाव कम करना।
- व्यापार और सुरक्षा जोखिमों को कम करना: मार्गों में विविधता लाना और समुद्री विघटन के खिलाफ आकस्मिक योजनाएँ तैयार करना।
- इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) और खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के माध्यम से क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करना, ताकि पाइरेसी, आतंकवाद तथा साइबर खतरों का मुकाबला किया जा सके।
- प्रौद्योगिकी एकीकरण को बढ़ावा देना: भारत डिजिटल कनेक्टिविटी पहलों जैसे एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI)-आधारित भुगतान, अंडरसी डेटा केबल्स और 5G अवसंरचना में नेतृत्व कर सकता है। इसके साथ ही ई-कॉमर्स, फिनटेक और स्मार्ट सिटी परियोजनाओं का समर्थन करना तथा IMEC नोड्स पर डिजिटल विभाजन को कम करना।
निष्कर्ष
IMEC भारत को व्यापार में विविधता लाने, यूरोप और मध्य पूर्व के साथ कनेक्टिविटी को मज़बूत करने तथा निर्यात प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने का एक रणनीतिक मार्ग प्रदान करता है। हालाँकि चुनौतियाँ बनी हुई हैं, समन्वित सहभागिता, मज़बूत अवसंरचना और प्रौद्योगिकी एकीकरण महत्त्वपूर्ण आर्थिक अवसर उत्पन्न कर सकते हैं तथा भारत को गलियारे में समृद्धि के एक प्रमुख प्रेरक के रूप में स्थापित कर सकते हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत के लिये भारत–मध्य पूर्व–यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) के रणनीतिक और आर्थिक महत्त्व की समालोचनात्मक समीक्षा कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. भारत–मध्य पूर्व–यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) क्या है?
IMEC एक बहु-माध्यमीय कनेक्टिविटी पहल है, जिसे G20 शिखर सम्मेलन 2023 में लॉन्च किया गया था। इसका उद्देश्य बंदरगाहों, रेलवे, ऊर्जा पाइपलाइनों और डिजिटल अवसंरचना के माध्यम से भारत, मध्य पूर्व तथा यूरोप को जोड़ना है।
2. IMEC के हस्ताक्षरकर्त्ता देश कौन-कौन हैं?
वर्तमान में भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, फ्राँस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ (EU) IMEC के हस्ताक्षरकर्त्ता हैं।
3. भारत के ये IMEC के रणनीतिक लाभ क्या हैं?
IMEC स्वेज़ नहर की तुलना में लॉजिस्टिक्स लागत (~ 30%) और परिवहन समय (~ 40%) को कम करता है, निर्यात प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाता है, भारत के OSOWOG ऊर्जा लक्ष्यों का समर्थन करता है तथा एक्ट वेस्ट नीति के तहत संलग्नता को मज़बूत करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रीलिम्स:
प्रश्न. ‘कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का उल्लेख किसके संदर्भ में किया जाता है? (2016)
(a) अफ्रीकी संघ
(b) ब्राज़ील
(c) यूरोपीय संघ
(d) चीन
उत्तर: (d)

