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डेली न्यूज़

  • 18 Jan, 2020
  • 50 min read
भारतीय समाज

यौन अपराधों पर मृत्यु-दंड संबंधी रिपोर्ट

प्रीलिम्स के लिये:

रिपोर्ट से संबंधित आँकड़े

मेन्स के लिये:

आपराधिक न्याय प्रणाली व समाज पर पड़ने वाले प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (National Law University-NLU) द्वारा जारी रिपोर्ट में ये तथ्य प्रकाश में आए हैं कि पिछले कुछ वर्षों में यौन अपराधों के मामलों में मृत्यु-दंड दिये जाने की संख्या में वृद्धि हुई है।

प्रमुख बिंदु:

  • राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के प्रोजेक्ट 39A के द्वारा जारी ‘भारत में मृत्यु-दंड: वार्षिक सांख्यिकी (The Death Penalty in India: Annual Statistics)’ नामक रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2019 में यौन अपराधों में हुई हत्याओं के मामलों में मृत्यु-दंड दिये जाने की संख्या में पिछले 4 वर्षों में सर्वाधिक वृद्धि हुई है।
  • वर्ष 2019 में देश के सत्र न्यायालयों में 102 व्यक्तियों को मृत्यु-दंड की सजा दी गई जबकि वर्ष 2018 में यह संख्या 162 थी।
  • इससे प्रतीत होता है कि मृत्यु-दंड की संख्या में महत्त्वपूर्ण गिरावट हुई है परंतु यदि आँकड़ों पर गहन विश्लेषण किया जाए तो यह पता चलता है कि यौन अपराधों के मामलों में मृत्यु दंड की प्रतिशतता में वर्ष 2018 के 41.35 प्रतिशत (162 मामलों में 67) के सापेक्ष वर्ष 2019 में 52.94 प्रतिशत (102 मामलों में 54) की वृद्धि हुई है।
  • वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने 27 मामलों में मृत्यु-दंड पर सुनवाई की जो वर्ष 2001 के बाद सर्वाधिक है।

Criminal-Justice

  • वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने सात मामलों में मृत्यु-दंड की पुष्टि की, जिसमे चार मामले यौन अपराधों से संबंधित थे।
  • इस रिपोर्ट में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (The Protection of Children from Sexual Offences, Act- POCSO) पर व्यापक चर्चा करते हुए यह बताया गया है कि बच्चों के प्रति होने वाले यौन अपराधों पर मृत्यु-दंड इस दिशा में उठाया गया अनिवार्य एवं आवश्यक कदम था।
  • रिपोर्ट में इस तथ्य पर भी चर्चा की गई है कि यौन अपराधों के दंड और आपराधिक न्याय प्रणाली (Criminal Justice System) के बीच विद्यमान अंतराल ने जन आक्रोश को बढ़ावा देकर कठोर दंड की माँग में वृद्धि की है।

आपराधिक न्याय प्रणाली

  • आपराधिक न्याय प्रणाली एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी अपराध करने वाले व्यक्ति को अपना बचाव करने का पूर्ण अवसर दिया जाता है।
  • आपराधिक न्याय प्रणाली के प्राथमिक स्रोत पुलिस, अभियोजन और बचाव पक्ष के अधिवक्ता, न्यायालय तथा कारागार हैं।
  • इसका ज्वलंत उदाहरण हैदराबाद में देखने को मिला, जहाँ पर गैंगरेप पीड़िता की मृत्यु के बाद जन आक्रोश भड़कने की आशंका के कारण आंध्र प्रदेश सरकार ने भारतीय दंड संहिता में संशोधन करते हुए रेप के मामलों में मृत्यु-दंड का प्रावधान किया।
  • वर्ष 2018 में डेथ वारंट की संख्या में वृद्धि देखी गई, परंतु आपराधिक न्याय प्रणाली की प्रक्रिया का सही अनुपालन न करने के कारण न्यायालयों द्वारा इन पर रोक लगा दी गई।
  • डेथ वारंट के समय पर क्रियान्वयन हेतु आपराधिक न्याय प्रणाली की प्रक्रिया के सही अनुपालन पर ध्यान देने की आवश्यकता व्यक्त की गई है।

डेथ वारंट

  • दंड प्रक्रिया संहिता- 1973 के अंतर्गत 56 श्रेणियों में फॉर्म (Form) होते हैं। इसी में एक श्रेणी फॉर्म नंबर- 42 है। इस फॉर्म नंबर- 42 को ही डेथ वारंट कहा जाता है। इसे ब्लैक वारंट भी कहा जाता है। इसके जारी होने के बाद ही किसी व्यक्ति को फाँसी की सज़ा दी जाती है।

स्रोत: द हिंदू


भूगोल

असम अंतर्देशीय जल परिवहन परियोजना

प्रीलिम्स के लिये:

असम अंतर्देशीय जल परिवहन परियोजना

मेन्स के लिये:

परियोजना का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व बैंक ने असम अंतर्देशीय जल परिवहन परियोजना (Assam Inland Water Transport -AIWT Project) के लिये 630 करोड़ रुपए के ऋण को मंज़ूरी दी।

प्रमुख बिंदु:

  • AIWT परियोजना की कुल लागत 770 करोड़ रुपए है जिसमे विश्व बैंक द्वारा प्रदान की जाने वाली कुल सहायता राशि 630 करोड़ रुपए है। परियोजना की शेष लागत राशि का वहन सरकार द्वारा किया जाएगा।
  • विश्व बैंक द्वारा अपनी शाखा, इंटरनेशनल बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट (International Bank for Reconstruction and Development-IBRD) के माध्यम से प्रदान किये जाने वाले इस ऋण की परिपक्वता अवधि 14.5 वर्ष है जिसमें पाँच साल की छूट अवधि भी शामिल है।
  • इस परियोजना का उद्देश्य ब्रह्मपुत्र और राज्य की अन्य नदियों पर यात्री नौका सेवाओं का आधुनिकीकरण तथा नौका सेवाओं के बुनियादी ढाँचे में सुधार करना है। इसके साथ ही इस योजना का उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा पर भी विशेष ध्यान देना है।
  • इस परियोजना को गुवाहाटी और माजुली में शुरू किया जाएगा।
  • यह परियोजना ‘प्रकृति अभिप्रेरित निर्माण के सिद्धांत’ यानी ‘Working with Nature’ के सिद्धांत पर कार्य करेगी जिसका उद्देश्य नदी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं के अनुरूप नई आधारिक संरचनाओं का निर्माण और मौजूदा संरचनाओं को पुनः स्थापित करना है।
  • बेहतर नेविगेशन सहायता, उचित सुरक्षा गियर तथा उपयुक्त समुद्री इंजन के साथ, नौका सेवाओं को और अधिक विश्वसनीय एवं सुरक्षित बनाया जाएगा जिससे आधुनिक नौका टर्मिनलों के निर्माण में मदद मिलेगी।
  • बेहतर डिज़ाइन एवं तकनीकी युक्त टर्मिनलों का विकास किया जाएगा जिससे आवागमन में आसानी होगी साथ ही टर्मिनल में उचित प्रकाश की व्यवस्था भी की जाएगी।
  • जहाज़ों (नए और रेट्रोफिटेड) और नौका सेवाओं को प्रकृति के अनुकूल तथा और अधिक टिकाऊ बनाया जाएगा। साथ ही नए जहाज़ों को व्यक्तिगत सीटों और वॉशरूम सुविधा से सुसज्जित किया जाएगा। इनमें कम ओवरलोडिंग, समय सारणी और बेहतर चालक दल के मानकों को लागू किया जाएगा।

परियोजना के लाभ:

  • AIWTP परियोजना असम यात्री नौका के बुनियादी ढाँचे और सेवाओं को और बेहतर बनाने के साथ ही अंतर्देशीय जल परिवहन का संचालन करने वाले संस्थानों की क्षमता को मज़बूती प्रदान करेगी।
  • यह परियोजना ब्रह्मपुत्र घाटी के शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में हज़ारों यात्रियों को परिवहन का महत्त्वपूर्ण साधन प्रदान करेगी।
  • असम में नौगम्य जलमार्गों का सबसे बड़ा नेटवर्क होने के कारण, यह परियोजना अंतर्देशीय जलमार्ग को परिवहन के रूप में मुख्य धारा से जोड़ने में मदद करेगी।
  • यह परियोजना असम सरकार की नौका संचालन गतिविधियों को कारपोरेट रूप देने के प्रयासों को बढ़ावा देगी। इसमे असम शिपिंग कंपनी (Assam Shiping Compny-ASC) सरकारी नौका सेवाओं का संचालन करेगी तथा असम पोर्ट्स कंपनी (Assam Port Compny- APC) सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के नौका सेवा ऑपरेटरों के उपयोग के आधार पर टर्मिनल एवं टर्मिनल सेवाएँ प्रदान करेगी।

स्रोत: द इकोनोमिक टाइम


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन-म्याँमार आर्थिक गलियारा

प्रीलिम्स के लिये:

चीन-म्याँमार आर्थिक गलियारा, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, चीन-नेपाल आर्थिक गलियारा, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, विशेष आर्थिक क्षेत्र, BCIM गलियारा

मेन्स के लिये:

CMEC के निहितार्थ, भारत-चीन-म्याँमार के मध्य आर्थिक एवं कूटनीतिक संबंध

चर्चा में क्यों?

17 जनवरी, 2020 से चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीन और म्याँमार के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 70वीं वर्षगाँठ मनाने के लिये म्याँमार की यात्रा पर हैं।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • चीन और म्याँमार के राजनयिक संबंधों की 70वीं वर्षगाँठ पर शी ज़िनपिंग म्याँमार में अवरुद्ध चीनी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को पुनः शुरू करने, बीजिंग को नैपीदॉ (Naypyidaw) के सबसे महत्त्वपूर्ण आर्थिक भागीदार के रूप में समेकित करने और दोनों देशों के बीच विशेष ऐतिहासिक संबंधों को फिर से जीवंत करने की दिशा में कदम उठा सकते हैं।
  • राष्ट्रपति शी जिनपिंग की म्याँमार यात्रा में एक ऐसे क्षेत्र जिसे कभी चीन का ‘बैक डोर’ कहा जाता था, को चीन-म्याँमार आर्थिक गलियारे (China-Myanmar Economic Corridor- CMEC) के अंतर्गत विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से राजमार्ग में बदलने की घोषणा की जा सकती है, साथ ही CMEC को चीन के महत्त्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के एक महत्त्वपूर्ण भाग के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।
  • हालाँकि आर्थिक जुड़ाव के मामले में दोनों देशों के बीच मतभेद है। गौरतलब है कि म्याँमार में राजनीतिक आरक्षण (Political Reservation) के कारण हाल के वर्षों में कई परियोजनाएँ ठप हो गई हैं। शी जिनपिंग की इस यात्रा से चीन के दक्षिणी-पश्चिमी प्रांत युन्नान (Yunnan) और पूर्वी हिंद महासागर के बीच संपर्क हेतु व्यवस्था सुनिश्चित किये जाने की संभावना है।
  • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) जो कि बीजिंग के सुदूर पश्चिमी प्रांत शिनजियांग (Xinjiang) से अरब सागर में कराची और ग्वादर को जोड़ता है, की तरह CMEC से भी बंगाल की खाड़ी में नए कूटनीतिक आयामों की शुरुआत हो सकती है।
  • चीन-नेपाल आर्थिक गलियारे (China-Nepal Economic Corridor-CNEC) का अनावरण पिछले साल अपनी नेपाल यात्रा के दौरान शी ज़िनपिंग द्वारा किया गया था। ध्यातव्य है कि यह गलियारा तिब्बत को नेपाल से जोड़ता है और गंगा के मैदान में चीन की उपस्थिति दर्ज़ करता है। एक साथ तीन गलियारे चीन के आर्थिक उदय और उपमहाद्वीप में उसके प्रभाव को रेखांकित करते हैं।

म्याँमार में लंबित चीनी परियोजनाएँ

  • विचाराधीन प्रमुख अवसंरचना परियोजनाओं में एक विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zone- SEZ) का विकास और क्यौकप्यु (Kyaukpyu) में एक गहरे समुद्री बंदरगाह (Deep Sea Port) का विकास तथा चीन की सीमा से मध्य म्याँमार में मांडले तक एक रेलवे लाइन का निर्माण किया जाना शामिल है।
  • उपर्युक्त रेलवे की शाखा का विस्तार म्याँमार के समुद्री तट पर स्थित क्यौकप्यु (Kyaukpyu) और दक्षिणी म्याँमार के यांगून तक होगा। क्यौकप्यु (Kyaukpyu) के लिये रेलवे लाइन जुड़वा पाइपलाइन प्रणाली (Twin Pipeline System) के साथ संरेखित होगी ध्यातव्य है कि यह पाइपलाइन कुछ वर्षों से युन्नान की राजधानी कुनमिंग में तेल और प्राकृतिक गैस का परिवहन कर रही है।

Mandalay

  • शी जिनपिंग करीब एक दशक पहले चीनी परियोजनाओं के खिलाफ ज़मीनी स्तर पर राजनीतिक उलटफेर के बीच माइट्सोन (Myitsone) में हाइडल बांध (Hydel Dam) और तांबा खनन परियोजनाओं को पुनर्जीवित करना चाहेंगे। गौरतलब है कि शी जिनपिंग ने श्रीलंका में इन्ही हालातों में विरोध को रोकने में कामयाबी पाई थी।

चीन-म्याँमार संबंधों के मायने

  • म्याँमार के लिये चीन के समर्थन को म्याँमार के अमेरिका और पश्चिमी देशों से बिगड़ते संबंधों के परिपेक्ष्य में देखा जा रहा है। ध्यातव्य है कि रोहिंग्या समस्या से निपटने को लेकर म्याँमार के संबंध इन देशों से खराब हुए हैं।
  • इसके विपरीत चीन ने कुछ सहानुभूति का संकेत दिया है तथा म्याँमार और बांग्लादेश के बीच वार्ता असफल होने पर मध्यस्थता करने की भी बात कही है।
  • चीन यह दर्शाना चाहता है कि इसकी BRI (Belt and Road Initiative- BRI) परियोजनाएँ अराकान क्षेत्र के विकास में तेज़ी लाकर रोहिंग्या संघर्ष को कम करने में मदद कर सकती हैं। ध्यातव्य है कि चीन, म्याँमार के संघर्ष-ग्रस्त उत्तरी मोर्चे पर आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये परियोजनाओं की पेशकश भी कर रहा है।
  • म्याँमार के लिये पश्चिम के साथ मौजूदा रिश्तों के बीच बीजिंग से एक मजबूत साझेदारी निश्चित रूप से आकर्षक है।

चीन-म्याँमार संबंधों का भारत पर प्रभाव

  • CMEC के माध्यम से चीन की बंगाल की खाड़ी में पहुँच भारत के लिये बड़ी सुरक्षा चुनौती होगी। जिससे बंगाल की खाड़ी में नौसेना की उपस्थिति और नौसेना सहयोग की आवश्यकता में वृद्धि होगी।
  • बंगाल की खाड़ी में चीन की पहुँच बढ़ने से इस शांत क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धात्मक संघर्ष की संभावना बढ़ सकती है।
  • इसके अतिरिक्त म्याँमार के साथ चीन के संबंधों में सुधार से भारत और म्याँमार के द्विपक्षीय संबंध प्रभावित हो सकते हैं।

चीन-म्याँमार संबंधों के संदर्भ में भारत की रणनीति

  • म्याँमार में चीन की उपस्थिति खुद के लिये प्रतिस्पर्द्धी के रूप में देखने की बजाय भारत को म्याँमार के विकास और सुरक्षा में अधिक प्रभावी योगदान देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • भारत को म्याँमार में अपने स्वयं के बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को जल्दी पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करने और नैपीदॉ के साथ वाणिज्यिक साझेदारी के लिए एक नई रणनीति विकसित करने की आवश्यकता है।
  • अपने स्वयं के संसाधनों को लेकर बाधाओं को देखते हुए भारत, जापान जैसे समान विचारधारा वाले सहयोगियों के साथ अपने संबंध मज़बूत करना चाहेगा।
  • भारत को बांग्लादेश, चीन, भारत और म्याँमार से जुड़े तथाकथित BCIM (Bangladesh, China, India, Myanmar) गलियारे पर बीजिंग के साथ पुनः वार्ता शुरू करने की आवश्यकता है।
  • हालाँकि भारत ने चीन के BRI को अस्वीकार कर दिया है लेकिन उसने BCIM गलियारे पर चीन के साथ सहयोग के लिये दरवाज़ा खुला छोड़ रखा है।
  • 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारतीय रेलवे ने अराकान तट से युन्नान तक एक रेलवे लाइन के लिये मार्ग का सर्वेक्षण किया था, लेकिन वह आगे नही बढ़ सका किंतु चीन ने इसी दिशा में बेहतर प्रयास किया है। अतः भारत को अपनी लंबित परियोजनाओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • साथ ही भारत को CMEC के विकास को देखते हुए नई आर्थिक संभावनाओं का लाभ उठाने के तरीके खोजने चाहिये।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

डेटा पॉइंट: महिलाओं के विरुद्ध अपराध पर NCRB के आँकड़े

संदर्भ:

हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Record Bureau- NCRB) ने वर्ष 2018 के अपराध संबंधी आँकड़े जारी किये।

मुख्य बिंदु:

  • इसके अनुसार वर्ष 2018 में महिलाओं के साथ होने वाले अपराध के सर्वाधिक 3.78 लाख मामले दर्ज किये गए।
  • हालाँकि पिछले कई वर्षों से इन मामलों में बढ़ोतरी हुई है लेकिन पुलिस और न्यायालयों द्वारा मामलों के निष्पादन की दर निराशाजनक बनी हुई है।

महिलाओं के विरुद्ध मामले:

  • आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 1992 से अपराधों का लिंग आधारित वर्गीकरण प्रारंभ किया गया था तब से लगातार महिलाओं के विरुद्ध अपराध के मामलों में बढ़ोतरी हुई है।
  • इस आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2013 में महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों की संख्या में सर्वाधिक वृद्धि देखी गई।
  • नीचे दिये गए ग्राफ में दर्शाए गए मामले भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) तथा विशेष तथा स्थानीय कानूनों (Special and Local Laws- S&LL) के तहत दर्ज किये गए हैं।

women crime

अपराध के प्रकार:

  • महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराध के लगभग सभी मामलों जैसे- बलात्कार, शीलभंग के उद्देश्य से यौन हिंसा, अपहरण तथा बंधक बनाने के मामलों में वृद्धि हुई है।
  • इनमें शीलभंग के उद्देश्य से यौन हिंसा के मामलों में वर्ष 2013 से तीव्र वृद्धि हुई है।

Rape-Kidnapping

  • इन आँकड़ों के अनुसार, पति या रिश्तेदारों द्वारा प्रताड़ित किये जाने के मामलों में कमी आई है।
  • इसके अलावा दहेज़ के कारण होने वाली मौतों के मामलों में कमी हुई है तथा दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम (Dowry Prohibition Act) के अंतर्गत दर्ज मामलों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।
  • इसका आशय है कि दहेज़ के प्रति लोगों की मानसिकता में बदलाव आया है तथा दहेज़ के विरुद्ध लोग आवाज़ उठा रहे हैं।

Dowry-deaths

पुलिस की सक्रियता:

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 में पुलिस द्वारा महिलाओं के विरुद्ध मामलों में चार्जशीट दाखिल करने की दर (Charge-Sheeting Rate) तथा विचाराधीनता दर (Pendency Rate) निराशाजनक रही।
  • चार्जशीट दाखिल करने की दर का अर्थ किसी वर्ष में दाखिल की गई चार्जशीट तथा उस वर्ष दाखिल किये गए नए मामले तथा पिछले वर्ष के मामले के योग का अनुपात है।
  • विचाराधीनता दर का अर्थ किसी वर्ष के अंत में पुलिस अन्वेषण हेतु लंबित मामले तथा कुल मामलों का अनुपात है।

Cases pending

न्यायालयों की सक्रियता:

  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 में न्यायालयों द्वारा महिलाओं के विरुद्ध हुए अपराध के विभिन्न मामलों पर दोषसिद्धि दर (Conviction Rate) तथा विचाराधीनता दर (Pendency Rate) दयनीय रही।
  • दोषसिद्धि दर का अर्थ किसी वर्ष में न्यायालयों में दोषसिद्ध किये गए मामले तथा नए दाखिल मामले और लंबित मामलों के योग का अनुपात है।
  • न्यायालयों के मामले में विचाराधीनता दर का अर्थ न्यायालयों में लंबित मामलों तथा कुल मामलों का अनुपात है।

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स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

सदाबहार वनों से संबंधित अध्ययन

प्रीलिम्स के लिये:

अन्नामलाई टाइगर रिज़र्व

मेन्स के लिये:

वनों में कार्बन संचय एवं भंडारण से संबंधित तथ्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था द्वारा अन्नामलाई टाइगर रिज़र्व (Anamalai Tiger Reserve) में ‘कार्बन संचय’ (Carbon Storage) संबंधी अध्ययन किया गया है।

मुख्य बिंदु:

  • यह अध्ययन अंतर्राष्ट्रीय अध्ययनकर्त्ताओं की एक टीम ने छह महीने से अधिक समय में उपग्रह आधारित आँकड़ों के आधार पर किया है।
  • इस अध्ययन में एक प्रमुख तथ्य यह पाया गया कि विभिन्न प्रजातियों से समृद्ध सदाबहार वनों में सर्वाधिक कार्बन संचय होता है।
  • ‘एन्वायरनमेंटल रिसर्च लैटर्स’ (Environmental Research Letters) नामक जर्नल में छपे एक लेख के अनुसार, हालिया वृक्षारोपण की तुलना में प्राकृतिक वनों में वर्षों से कार्बन अवशोषण (Carbon Capture) की दर अधिक थी।

अध्ययन संबंधी प्रमुख बिंदु:

कहाँ और किन वृक्षों पर किया गया अध्ययन:

  • यह अध्ययन प्राकृतिक सदाबहार, पर्णपाती वनों और सागौन और यूकेलिप्टस (Eucalyptus) के वृक्षों के संदर्भ में किया गया था।
  • यूकेलिप्टस के वृक्षारोपण के संबंध में किये गए अध्ययन में अन्य वृक्षों की तुलना में यूकेलिप्टस के वृक्ष द्वारा कम कार्बन भंडारण पाया गया।
  • सागौन के वृक्षों द्वारा भी पर्णपाती जंगलों के बराबर कार्बन संग्रहीत किया जाता है।
  • शोधकर्त्ताओं ने अन्नामलाई टाइगर रिज़र्व में वृक्षों के तने की परिधि तथा ऊँचाई को मापा और विभिन्न वनों एवं वृक्षों द्वारा कार्बन भंडारण का अनुमान लगाया।
  • अध्ययनकर्त्ताओं ने वर्ष 2000 से 2018 के दौरान कार्बन अवशोषण की दर और उसमें आई भिन्नता का आकलन करने के लिये अन्नामलाई टाइगर रिज़र्व के साथ परम्बिकुलम टाइगर रिज़र्व (Parambikulam Tiger Reserve), राजीव गांधी टाइगर रिज़र्व (Rajiv Gandhi Tiger Reserve), वायनाड वन्यजीव अभयारण्य (Wayanad Wildlife Sanctuary) और भद्रा टाइगर रिज़र्व ( Bhadra Tiger Reserve) से संबंधित उपग्रह आधारित आँकड़ों का उपयोग किया।
  • अध्ययन किये गए क्षेत्रों के वृक्षों का उपयोग अतीत में इमारती लकड़ी तथा व्यावसायिक प्रयोग के लिये किया जाता था लेकिन वन्यजीवों के संरक्षण के संदर्भ में इन्हें अब संरक्षित किया गया है।
  • इस अध्ययन में औसत वार्षिक वर्षा तथा सूखे जैसी स्थितियों का भी सर्वे किया गया।

सदाबहार वन तथा अन्य वृक्षों द्वारा किये जाने वाले कार्बन संचय से संबंधित आँकड़े:

  • इस अध्ययन के अनुसार, विभिन्न प्रजातियों से समृद्ध सदाबहार वन लगभग 300 टन प्रति हेक्टेयर कार्बन का भंडारण करते हैं।
  • सदाबहार वनों की तुलना में सागौन और यूकेलिप्टस के वृक्षों द्वारा कार्बन भंडारण क्रमशः 43% और 55% कम पाया गया।
  • अध्ययनकर्त्ताओं ने यह भी पाया कि रोपित वृक्षों की तुलना में प्राकृतिक वनों द्वारा वर्ष-दर-वर्ष अधिक कार्बन अवशोषण किया गया।

अध्ययन के लाभ:

  • यह अध्ययन वनीकरण संबंधी नीतियों के निर्माण में सहायता कर सकता है।
  • सरकारी आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में प्रतिपूरक वनीकरण के लिये किये जाने वाले आधे से अधिक वृक्षारोपण में पाँच या उससे कम प्रजाति वाले वृक्षों का प्रयोग किया जाता है जो कि प्राकृतिक वनों की तुलना में कम और अपर्याप्त है।
  • अध्ययनकर्त्ताओं ने कहा कि यह स्थिति जैव विविधता और कार्बन अवशोषण की स्थिरता के लिये अच्छी नहीं है।
  • अध्ययनकर्त्ताओं के अनुसार, घास के मैदान स्वयं कार्बन अवशोषित कर सकते हैं, इनमें वृक्षारोपण किया जाना लाभ के स्थान पर हानिकारक सिद्ध हो सकता है।

दीर्घावधि प्रभाव:

  • अध्ययनकर्त्ताओं के अनुसार, दीर्घकाल में जलवायु परिवर्तन को कम करने की रणनीति के रूप में एकल कृषि या कम प्रजातियों के वृक्षारोपण को बढ़ाने की तुलना में प्राकृतिक वनों की रक्षा तथा उन्हें पुनर्जीवित करना और देशी प्रजाति के विविध वृक्षों के मिश्रण को अधिक वरीयता देना अधिक प्रभावी हो सकता है।
  • प्रजातियों से समृद्ध जंगल जैव विविधता के लिये लाभदायक हैं क्योंकि वे कई अन्य वन्यजीवों तथा प्रजातियों को आवास भी प्रदान करते हैं।
  • अध्ययन के अनुसार, प्रजातियों से समृद्ध वन रोगों के लिये भी प्रतिरोधी होते हैं।

स्रोत- द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

जीसैट- 30 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण

प्रीलिम्स के लिये:

जीसैट- 30, INSAT-4A, एरियन- 5, नौवहन उपग्रह, GSLV, गगनयान, संचार उपग्रह

मेन्स के लिये:

जीसैट- 30 का अंतरिक्ष कूटनीति में योगदान, भारत की अंतरिक्ष कूटनीति, संचार उपग्रहों का भारतीय संचार व्यवस्था पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

भारत के नवीनतम संचार उपग्रह जीसैट- 30 (GSAT- 30) को 17 जनवरी, 2020 को फ्रेंच गुयाना के कौरु (Kourou) स्थित गुयाना स्पेस सेंटर से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • GSAT- 30 इनसैट/जीसैट उपग्रह शृंखला का एक संचार उपग्रह है और यह 15 वर्षों तक कार्य करेगा। गौरतलब है कि इस उच्च शक्ति उपग्रह में 12 C-बैंड और 12 Ku-बैंड ट्रांसपोंडर लगे हुए हैं।
  • GSAT-30 को यूरोपीय प्रक्षेपण यान एरियन- 5 VA-251 से भू-तुल्यकालिक कक्षा में स्थापित किया गया है।
  • ध्यातव्य है कि एरियन- 5 के माध्यम से GSAT- 30 के अतिरिक्त यूरोपीय संचार उपग्रह यूटेलसैट कनेक्ट (EUTELSAT KONNECT) को भी अंतरिक्ष में स्थापित किया गया है ।
  • यह उपग्रह वर्ष 2005 में भेजे गए INSAT-4A उपग्रह का स्थान लेगा। ध्यातव्य है कि यह मिशन वर्ष 2020 का इसरो का पहला मिशन है।
  • यह संचार उपग्रह उच्च गुणवत्ता वाली टेलीविज़न, दूरसंचार एवं प्रसारण सेवाएँ मुहैया कराएगा।
  • जीसैट- 30 का उपयोग डायरेक्ट-टू-होम (DTH) टेलीविज़न सेवाएँ, VSAT कनेक्टिविटी (जो बैंकों के कामकाज में सहयोग करती है) प्रदान करने, एटीएम, स्टॉक एक्सचेंज, टेलीविज़न अपलिंकिंग और टेलीपोर्ट सेवाएँ, डिजिटल उपग्रह समाचार संग्रहण (Digital Satellite News Gathering) तथा ई-गवर्नेंस एप्लीकेशन इत्यादि सेवाओं के लिये किया जाएगा।
  • यह उपग्रह लचीला आवृत्ति खंड (Flexible Frequency segment) और फ्लेक्सिबल कवरेज (Flexible Coverage) प्रदान करेगा। यह उपग्रह Ku-बैंड के माध्यम से भारतीय मुख्य भूमि और द्वीपों को संचार सेवाएँ प्रदान करेगा और C-बैंड के माध्यम से खाड़ी देशों, बहुत से एशियाई देशों तथा ऑस्ट्रेलिया में व्यापक कवरेज प्रदान करेगा।
  • GSAT- 30 को अल्फा डिज़ाइन टेक्नोलॉजीज़ लिमिटेड (Alpha Design Technologies Ltd.) द्वारा बंगलूरू में असेंबल किया गया है। ध्यातव्य है कि इसके पहले यह समूह IRNSS- 1H एवं IRNSS- 1I नौवहन उपग्रह में भी काम कर चुका है।

विदेशी प्रक्षेपण यान के उपयोग के कारण

  • भारत ने यूरोपीय प्रक्षेपण यान एरियन-5 को GSAT-30 (वज़न 3357 किलोग्राम) के प्रक्षेपण हेतु चुना है क्योंकि GSAT-30 का भार भारतीय भू-तुल्यकालिक प्रक्षेपण यान- MK II (GSLV- MK II) के भार उठाने की क्षमता से काफी अधिक है।
  • इसरो द्वारा नए और अधिक शक्तिशाली GSLV-MkIII, जिसकी भार उठाने की क्षमता 4,000 किलोग्राम तक है, को वर्ष 2022 में गगनयान मिशन और दो पूर्ववर्ती क्रू-लेस परीक्षणों (two preceding crew-less trials) के लिए बचाने के उद्देश्य से इसका उपयोग इस मिशन हेतु नहीं किया गया। साथ ही GSLV- MKIII के उपयोग से मिशन की लागत में वृद्धि को देखते हुए भी इसका प्रयोग प्रक्षेपण हेतु नहीं किया गया।
  • गौरतलब है कि हाल के वर्षों में इसरो अपने परिसर में नियमित अंतरिक्षयान बनाने के लिये मध्यम आकार के उद्योगों के समूह का सहारा ले रहा है।

एरियन- 5 के बारे में

  • यह यूरोपीय प्रक्षेपण यान है।
  • इसने पिछले 30 वर्षों में भारत के लगभग 24 संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित किया है। गौरतलब है कि इसकी शुरुआत वर्ष 1981 के एप्पल (APPLE) प्रयोगात्मक उपग्रह के प्रक्षेपण से हुई थी।
  • इसने आखिरी बार फरवरी 2019 में एक प्रतिस्थापन उपग्रह जीसैट- 31 को लॉन्च किया था।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

राजस्थान में पहला जैव प्रौद्योगिकी पार्क

प्रीलिम्स के लिये:

जैव प्रौद्योगिकी पार्क, इनक्यूबेशन केंद्र

मेन्स के लिये:

जैव प्रौद्योगिकी पार्क, इनक्यूबेशन केंद्र का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

राजस्थान सरकार राज्य में पहले जैव प्रौद्योगिकी पार्क (Biotechnology Park) की स्थापना हेतु योजना बना रही है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस पार्क की स्थापना हेतु भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग तथा राजस्थान के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के मध्य एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये जाएंगे।
  • समझौते के तहत राज्य में जैव प्रौद्योगिकी पार्क के साथ-साथ एक इनक्यूबेशन सेंटर (Incubation Center) भी स्थापित किया जाएँगे।
  • जैव प्रौद्योगिकी पार्क एवं इक्यूबेशन केंद्र को भारत सरकार की सरकारी कंपनी, बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च अंसिस्टेंस कांउसिल (Biotechnology Industry Research Assistance Council- BIRAC) के सहयोग से स्थापित किया जाएगा।

महत्त्व:

  • इस पार्क की स्थापना से राज्य में जैव प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहन मिलेगा जिससे औद्योगिक विकास एवं अनुसंधान के क्षेत्र को गति मिलेगी।
  • राज्य में बायो-इनफार्मेशन, बायोमेडिकल इंजीनियरिंग एवं नैनो मेडिसीन इत्यादि के क्षेत्र में में प्रगति होगी।
  • राज्य में बायो टेक्नोलॉजी कोर्स संचालित करने वाले सभी विश्वविद्यालयों एवं इससे जुड़े स्टार्टअप को मदद मिलेगी।
  • पार्क और इनक्यूबेशन केंद्र की स्थापना से युवाओं को रोज़गार प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी।

जैव प्रौद्योगिकी पार्क

जैव प्रौद्योगिकी पार्क मुख्य रूप से छोटे और मध्यम जैव प्रौद्योगिकी उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिये बनाई गई सुविधाएँ हैं। यह पार्क एक सीमांकित क्षेत्र में होता है जिसमे एक प्रयोगशाला का निर्माण इस उद्देश्य के किया जाता है ताकि उद्यमियों को उनके उद्यम क्षेत्र और अन्य सभी बुनियादी सुविधाएँ एवं खोजों के वित्तपोषण में सहायता मिले सके।

इनक्यूबेशन केंद्र

इनक्यूबेटर या इनक्यूबेशन केंद्र शब्द का उपयोग परस्पर सहयोग के लिये किया जाता है। इसे नए स्टार्टअप को सफल बनाने में मदद करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।

स्रोत: द हिंदू एवं टाइम्स ऑफ इंडिया


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता

प्रीलिम्स के लिये:

रिपोर्ट से संबंधित आँकड़े

मेन्स के लिये:

संरचनात्मक सुधारों की दिशा में उठाए गए कदम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित वर्ल्ड इकोनॉमिक सिचुएशन एंड प्रॉस्पेक्ट्स (WESP) रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्तमान में आर्थिक मंदी का सामना कर रही भारतीय अर्थव्यवस्था की संवृद्धि दर में बढ़ोत्तरी के लिये निरंतर संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है।

प्रमुख बिंदु:

  • वर्ल्ड इकोनॉमिक सिचुएशन एंड प्रॉस्पेक्ट्स (WESP) रिपोर्ट- 2020 ने भारत के लिये जीडीपी संवृद्धि का अनुमान कम कर दिया है, परंतु यह उम्मीद भी जताई है कि राजकोषीय प्रोत्साहन और वित्तीय क्षेत्र में सुधार के संयोजन से उपभोग को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
  • वर्ष 2018 के 6.8 प्रतिशत के सापेक्ष वर्ष 2019 में 5.7 प्रतिशत की दर से अर्थव्यवस्था में तीव्र गिरावट ने भारत की मौद्रिक नीति के पूरक के रूप में राजकोषीय विस्तार की आवश्यकता को इंगित किया है।
  • राजकोषीय प्रोत्साहन और वित्तीय क्षेत्र में सुधार के संयोजन, निवेश एवं उपभोग को बढ़ावा देकर जीडीपी में 6.6 प्रतिशत की संवृद्धि दर हासिल की जा सकती है।
  • रिपोर्ट में बताया गया है कि WESP द्वारा जीडीपी का पूर्वानुमान करते समय भारत के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office-NSO) द्वारा जारी नवीनतम आँकड़ों को शामिल नहीं किया गया है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का वृहद आर्थिक बुनियादी ढाँचा पूर्व की भांँति मजबूत है और इसमें अगले वित्त वर्ष तक सुधार की उम्मीद है।
  • संयुक्त राष्ट्र के अध्ययन के अनुसार, प्रत्येक पाँच देशों में से एक देश में इस वर्ष प्रति व्यक्ति आय में कमी या गिरावट होगी, लेकिन भारत को ऐसे देशों में सूचीबद्ध किया गया है जहाँ वर्ष 2020 में प्रति व्यक्ति जीडीपी संवृद्धि दर 4 प्रतिशत के स्तर से अधिक होने की संभावना है।
  • वैश्विक आर्थिक गतिविधियों में लंबे समय तक जारी गिरावट सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में बाधक बन सकती है, जिसमें गरीबी उन्मूलन और सभी के लिये रोज़गार के अवसरों का सृज़न करने जैसे लक्ष्य भी शामिल हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, पूर्वी एशिया दुनिया का सबसे तेज़ी से बढ़ता क्षेत्र है और वैश्विक विकास में सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता है।
  • संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में ब्राज़ील, भारत, मैक्सिको, रूसी संघ और तुर्की सहित अन्य बड़ी उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों की संवृद्धि दर में बढ़ोत्तरी होने की उम्मीद है।
  • संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य असमानता की समाप्ति की दिशा में उठाए गए उपायों पर निर्भर करेगा।
  • वर्ल्ड इकोनॉमिक सिचुएशन एंड प्रॉस्पेक्ट्स रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक कार्य विभाग द्वारा ज़ारी की जाती है ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आंतरिक सुरक्षा

ब्रू-रियांग ऐतिहासिक समझौता

प्रीलिम्स के लिये:

ब्रू जनजाति

मेन्स के लिये:

ब्रू-रियांग शरणार्थी समस्‍या के समाधान में नए समझौते का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

16 जनवरी, 2020 को नई दिल्ली में भारत सरकार, त्रिपुरा और मिज़ोरम सरकार तथा ब्रू-रियांग (Bru-Reang) प्रतिनिधियों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।

प्रमुख बिंदु

  • इस नए समझौते के तहत लगभग 23 वर्षों से चल रही ब्रू-रियांग शरणार्थी समस्‍या का स्थायी समाधान किया जाएगा और लगभग 34 हज़ार लोगों को त्रिपुरा में बसाया जाएगा।
  • इन सभी लोगों को राज्य के नागरिकों के समान सभी अधिकार दिये जाएंगे और ये केंद्र व राज्य सरकारों की सभी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठा सकेंगे।
  • इस नई व्‍यवस्‍था के अंतर्गत विस्‍थापित परिवारों को 40x30 फुट का आवासीय प्‍लॉट, आर्थिक सहायता के रूप में प्रत्‍येक परिवार को पहले समझौते के अनुसार 4 लाख रुपए फिक्स्ड डिपॉज़िट, दो साल तक 5 हज़ार रुपए प्रतिमाह नकद सहायता, दो साल तक फ्री राशन व मकान बनाने के लिये 1.5 लाख रुपए दिये जाएंगे।
  • इस नई व्‍यवस्‍था के लिये भूमि की व्‍यवस्‍था त्रिपुरा सरकार करेगी।
  • भारत सरकार, त्रिपुरा और मिज़ोरम सरकार तथा ब्रू-रियांग प्रतिनिधियों के बीच हुए समझौते के तहत लगभग 600 करोड़ रुपए की सहायता राशि केंद्र द्वारा दी जाएगी।

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1997 में जातीय तनाव के कारण करीब 5,000 ब्रू-रियांग परिवारों, जिसमें करीब 30,000 व्‍यक्‍ति थे, ने मिज़ोरम से त्रिपुरा में शरण ली।
  • इन लोगों को कंचनपुर, उत्‍तरी त्रिपुरा के अस्थायी शिविरों में रखा गया।
  • भारत सरकार वर्ष 2010 से ब्रू-रियांग परिवारों को स्थायी रूप से बसाने के लिये लगातार प्रयास करती रही है। इन प्रयासों के तहत वर्ष 2014 तक विभिन्‍न बैचों में 1622 ब्रू-रियांग परिवारों को मिज़ोरम वापस भेजा गया।
  • ब्रू-रियांग विस्‍थापित परिवारों की देखभाल व पुनर्स्‍थापन के लिये भारत सरकार त्रिपुरा व मिज़ोरम सरकारों की सहायता भी करती रही है।
  • 3 जुलाई, 2018 को भारत सरकार, मिज़ोरम व त्रिपुरा सरकार तथा ब्रू-रियांग प्रतिनिधियों के बीच हुए एक समझौते के बाद ब्रू-रियांग परिवारों को दी जाने वाली सहायता में काफी वृद्धि की गई है। समझौते के उपरांत वर्ष 2018-19 में 328 परिवार, जिसमें 1369 लोग शामिल थे, त्रिपुरा से मिज़ोरम वापस भेजे गए। लेकिन अधिकांश ब्रू-रियांग परिवारों की यह मांग थी कि सुरक्षा संबंधी आशंकाओं को ध्‍यान में रखते हुए उन्‍हें त्रिपुरा में ही बसा दिया जाए।

ब्रू जनजाति के बारे में

  • ब्रू जनजाति को त्रिपुरा में रियांग के नाम से भी जाना जाता है। यह विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (Particularly Vulnerable Tribal Group-PVTG) के रूप में वर्गीकृत 75 जनजातीय समूहों में से एक है।
  • इस जनजाति के सदस्य त्रिपुरा और मिज़ोरम के अलावा असम तथा मणिपुर में भी निवास करते हैं।
  • त्रिपुरी जनजाति के बाद यह त्रिपुरा की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है। ब्रू-रियांग जनजाति मुख्य रूप से दो बड़े गुटों- मेस्का और मोलसोई में विभाजित है।
  • जी.के. घोष की पुस्तक ‘Indian Textiles: Past and Present’ के अनुसार, इस जनजाति की महिलाएँ बुनाई का काम भी करती हैं लेकिन ये कुछ गिने चुने कपड़े ही बुनती हैं जो इस प्रकार हैं-

Bru-Reang-Refugee

  • रिनाई (Rinai): महिलाओं द्वारा कमर से नीचे पहना जाने वाला वस्त्र।
  • रिसा (Risa): महिलाओं द्वारा वक्ष पर पहना जाने वाला वस्त्र।
  • बासेई (Basei): महिलाओं द्वारा बच्चों को शरीर पर बाँधने के लिये प्रयोग किया जाता है।
  • पानद्री (Pandri): पुरुषों द्वारा कमर के नीचे पहना जाने वाला वस्त्र।
  • कुताई (Kutai): शर्ट के समान होता है जिसे पुरुष और महिलाएँ दोनों द्वारा पहना जाता है।
  • रिकातु (Rikatu): आयताकार वस्त्र जिसे शरीर को लपेटने के लिये इस्तेमाल किया जाता है।
  • बाकी (Baki): यह रिकातु की तुलना में थोड़ा भारी होता है।
  • कामचाई (Kamchai): इसे सिर पर लपेटने के लिये इस्तेमाल किया जाता है।
  • हिंदू धर्म के वैष्णव संप्रदाय को मानने वाली रियांग जनजाति के प्रमुख को ‘राय’ कहा जाता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 18 जनवरी, 2020

इसरो का जीसैट-30 उपग्रह

इसरो (ISRO) का संचार उपग्रह जीसैट-30 (GSAT-30) सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित हो गया है। इसे 17 जनवरी, 2020 को सुबह 2:35 बजे फ्रेंच गुआना के कौरू स्थित स्पेस सेंटर यूरोपियन रॉकेट एरियन 5-वीटी 252 से लॉन्च किया गया। लॉन्च के करीब 38 मिनट 25 सेकंड बाद सैटेलाइट कक्षा में स्थापित हो गया। वैज्ञानिकों का मानना है कि 3357 किलोग्राम वजन की इस सैटेलाइट से देश की संचार प्रौद्योगिकी में काफी बदलाव आएगा। इसरो के मुताबिक, यह सैटेलाइट 15 वर्ष तक कार्य करेगा।

श्रीलंका की एकदिवसीय यात्रा पर अजित डोभाल

देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल एक दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर श्रीलंका में हैं। इस दौरान वे श्रीलंका के राष्ट्रपति गोताबया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के साथ बैठक करेंगे। बैठक के दौरान आर्थिक एवं रणनीतिक सहयोग पर चर्चा की जानी संभव है। ज्ञात हो कि भारत ने श्रीलंका में सात बड़ी परियोजनाएँ प्रस्‍तावित की हैं।

परवेज़ मुशर्रफ की अपील खारिज

पाकिस्‍तान की सर्वोच्च न्यायालय ने निर्वासित पूर्व राष्‍ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्‍होंने एक विशेष अधिकरण द्वारा उन्‍हें मौत की सजा सुनाए जाने को चुनौती दी गई थी। न्यायालय ने कहा कि आत्‍मसमर्पण किये बिना उन्‍हें अपील करने का अधिकार नहीं है। दुबई में रह रहे 74 वर्षीय मुशर्रफ को देशद्रोह के आरोप में मृत्‍यदंड दिया गया था।

यूक्रेन के प्रधानमंत्री ओलेक्सी हॉनशारूक

यूक्रेन के प्रधानमंत्री ओलेक्सी हॉनशारूक ने पद से इस्तीफा दे दिया है। उल्लेखनीय है कि हॉनशारूक 6 महीने से भी कम समय तक इस पद पर रहे। हालाँकि उनके इस्तीफे को अब तक राष्ट्रपति ने मंज़ूरी नहीं दी है। इस सप्ताह के शुरू में हॉनशारूक का एक रिकॉर्डिड बयान सामने आया था जिसमें उन्होंने कथित रूप से राष्ट्रपति ज़ीलेंसकी को देश की आर्थिक स्थिति को संभालने में विफल रहने की बात कही थी। उनका कहना था कि इस रिकॉर्डिंग के सामने आने से उनके पद की गरिमा प्रभावित हुई है। हॉनशारूक ने आरोप लगाया कि इस रिकॉर्डिंग के साथ छेड़छाड़ की गई है।


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