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डेली न्यूज़

  • 14 Dec, 2019
  • 45 min read
भूगोल

वाटर टावर्स

प्रीलिम्स के लिये:

वाटर टावर्स, सिंधु तथा उसकी सहायक नदियाँ

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन और वाटर टावर्स की संवेदनशीलता

चर्चा में क्यों?

नीदरलैंड के अध्ययनकर्त्ताओं द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन के अनुसार भारत, चीन और पाकिस्तान से होकर बहने वाली सिंधु तथा उसकी सहायक नदियाँ दुनिया के सबसे कमज़ोर ‘वाटर टावर्स’ (Water Towers) में से एक हैं।

प्रमुख बिंदु

  • सिंधु नदी के अलावा इस सूची में मध्य एशिया की तारिम नदी, आमू दरिया नदी और सीर दरिया नदी तथा दक्षिण एशिया की गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी भी शामिल हैं।
  • अध्ययन के अनुसार, सिंधु और उसकी सहायक नदियों की संवेदनशीलता का प्रभाव भारत के अतिरिक्त अफगानिस्तान, नेपाल और पाकिस्तान जैसे देशों पर भी देखने को मिलेगा।
  • अध्ययन के निष्कर्षों के मुताबिक दुनिया के लगभग सभी ‘वाटर टावर्स’, जिन पर विश्व के तकरीबन 1.9 बिलियन लोग निर्भर हैं, मुख्यतः जलवायु परिवर्तन के कारण खतरनाक स्थिति का सामना कर रहे हैं।

क्या होते हैं ‘वाटर टावर्स’?

  • वाटर टावर्स एक प्रकार से प्राकृतिक भंडारण टैंक होते हैं, जो हिमनदों तथा पर्वतों पर उपलब्ध बर्फ के पिघलने से भरते हैं और आस-पास रहने वाले कई लोगों को स्वच्छ पानी उपलब्ध करते हैं।
  • हालाँकि यदि किसी कारणवश सभी हिमनद एक साथ पिघल जाएँ तो ये ‘वाटर टावर्स’ बड़ी आपदा का रूप ले सकते हैं। गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन के कारण यह स्थिति काफी हद तक संभव है।

जलवायु परिवर्तन और वाटर टावर्स की संवेदनशीलता

  • जलवायु परिवर्तन का अर्थ है कि वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है और वैश्विक तापमान में जितनी अधिक वृद्धि होगी हिमनद उतनी ही तेज़ी से पिघलेंगे।
  • अध्ययन के अनुसार, यह संभव है कि गर्म तापमान के साथ वर्षा की मात्रा में भी वृद्धि हो, परंतु यह हिमनदों/ग्लेशियरों के पिघलने से पानी के नुकसान की भरपाई हेतु पर्याप्त नहीं होगा।
  • चूँकि वाटर टावर्स की संवेदनशीलता का प्रभाव किसी एक देश तक सीमित नहीं होगा, इसलिये भविष्य में पानी को लेकर युद्ध की संभावना भी काफी प्रबल है।

निष्कर्ष

  • आवश्यक है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिमनदों और पहाड़ों के संरक्षण तथा जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन नीतियों और रणनीतियों को विकसित किया जाए।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


सामाजिक न्याय

आंध्र प्रदेश दिशा विधेयक

प्रीलिम्स के लिये:

आंध्र प्रदेश दिशा विधेयक

मेन्स के लिये:

दुष्कर्म तथा यौन अपराधों से निपटने के लिये सरकार द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

आंध्र प्रदेश सरकार ने हाल ही में हैदराबाद में हुए सामूहिक दुष्कर्म के मामले के बाद एक अहम निर्णय लेते हुए राज्य में दुष्कर्म के मामलों की सुनवाई 21 दिनों के अंदर करने का निर्णय किया है। इस विषय में कैबिनेट ने मसौदा विधेयक भी पारित कर दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में यह निर्णय लिया गया।
  • यह कानून, आंध्र प्रदेश अपराध कानून में एक संशोधन होगा जिसे 'आंध्र प्रदेश दिशा कानून' नाम दिया गया है। इस मसौदा विधेयक को हैदराबाद मामले की पीड़ित दिशा के नाम पर यह नाम दिया गया है। राज्य पुलिस ने पीड़िता की पहचान को गुप्त रखने के लिये इसे दिशा नाम दिया है।
  • कैबिनेट ने आंध्र प्रदेश में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिये फास्ट-ट्रैक अदालतों के निर्माण को मंज़ूरी दी है।
  • मसौदा विधेयक के अनुसार, मामले से संबंधित जाँच एक सप्ताह के भीतर और परीक्षण का कार्य दो सप्ताह के भीतर समाप्त हो जाना चाहिये। 21 कार्य दिवसों के भीतर अपराधियों को सज़ा दी जानी चाहिये।
  • इस कानून के तहत सभी ज़िलों में विशेष अदालतें गठित की जाएंगी जो महिलाओं और बच्चों के खिलाफ होने वाले अत्याचार के मामलों में मुकदमा चलाएंगी।
  • इसके अतिरिक्त आंध्र प्रदेश सरकार ने बच्चों के साथ यौन शोषण के दोषियों हेतु जेल की सजा की अवधि बढ़ाने का प्रावधान भी तय किया है। इस विधेयक के अंतर्गत, अब बच्चों के साथ दुष्कर्म के दोषियों के लिये पाँच वर्ष की सज़ा को बढ़ाकर दस वर्ष से उम्रकैद में तब्दील करने का प्रस्ताव है।

दुष्कर्म तथा यौन अपराधों से निपटने के लिये सरकार द्वारा किये गए प्रयास

देश में महिलाओं के साथ होने वाली यौन हिंसा तथा हत्या के बढ़ते मामलों के संदर्भ में कुछ समय पहले गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) की तरफ से भी एक बयान जारी किया गया। इसमें महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये सरकार के प्रयासों का उल्लेख किया गया।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

आवश्यक दवाओं की कीमत में वृद्धि

प्रीलिम्स के लिये

राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण, एपीआई क्या है?

मेन्स के लिये

दवाओं की कीमतों में वृद्धि का स्वास्थ्य योजनाओं पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (National Pharmaceuticals Pricing Authority-NPPA) द्वारा 12 आवश्यक दवाओं (Essential Medicines) की कीमतों में 50 प्रतिशत की वृद्धि की गई।

मुख्य बिंदु:

  • NPPA द्वारा पहली बार दवाओं की कीमतों में वृद्धि की गई है, जबकि यह दवाओं की कीमतों में नियंत्रण के लिये जानी जाती है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) के अनुसार, आवश्यक दवा उन दवाओं को कहा जाता है जो लोगों की प्राथमिक स्वास्थ्य आवश्यकतों की पूर्ति करती हैं तथा लोगों के स्वास्थ्य के लिये इन दवाओं का पर्याप्त मात्रा में मौजूद होना आवश्यक है।
  • ये दवाएँ पहली पंक्ति के उपचार (First Line of Treatment) के तौर पर प्रयोग की जाती हैं तथा देश के स्वास्थ्य कार्यक्रम के लिये अतिमहत्त्वपूर्ण हैं।
  • कीमतों में वृद्धि का यह निर्णय टी.बी. (Tuberculosis) के इलाज के लिये बी.सी.जी. वैक्सीन, विटामिन C, एंटीबायोटिक दवा मेट्रोनिडाज़ोल (Metronidazole) तथा बेंजाइलपेनिसिलिन (Benzylpenicillin), मलेरिया के उपचार की दवा क्लोरोक्वीन (Chloroquine) और लेप्रोसी की दवा डेस्पोन (Dapsone) आदि पर लागू होगा।

मूल्य वृद्धि का कारण:

  • इन दवाओं की सही कीमत न मिल पाने की वजह से निर्माता कंपनियों ने इनका उत्पादन करने से मना कर दिया था।
  • NPPA के अनुसार, ड्रग्स मूल्य नियंत्रण आदेश (Drug Price Control Order-DPCO) के पैरा-19 के तहत पिछले दो वर्षों से कंपनियों की तरफ से दवाओं के मूल्य में वृद्धि हेतु प्रार्थना-पत्र भेजे जा रहे थे।
  • इन दवाओं की निर्माता कंपनियों का कहना है कि दवा बाज़ार में एपीआई (Active Pharmaceutical Ingredient-API) की बढ़ती कीमतों, लागत मूल्य तथा विनिमय दर (exchange rates) में वृद्धि की वजह से इनके उत्पादन को जारी रखना नामुमकिन था।

भारतीय दवा कंपनियाँ दवाओं के निर्माण के लिये आवश्यक 60 प्रतिशत API के लिये चीन पर निर्भर हैं।

  • NPPA ने इस मामले की पूरी जाँच के लिये एक समिति का गठन किया जिसने इन दवाओं की आवश्यकता, प्रार्थी कंपनियों का मार्केट शेयर तथा इन दवाओं के अन्य विकल्पों का अध्ययन किया।
  • समिति की रिपोर्ट को पुनर्वीक्षण हेतु नीति आयोग की वहनीय दवाओं तथा स्वास्थ्य उत्पादों पर स्थायी समिति (Standing Committee on Affordable Medicines and Health Products-SCAMHP) को सौंपा गया। जिसने 12 दवाओं की कीमतों में 50 प्रतिशत की वृद्धि का सुझाव दिया।
  • NPPA के अनुसार, इन आवश्यक दवाओं की वहनीयता (Affordability) सुनिश्चित करने के लिये इनकी उपलब्धता (Access) से समझौता नहीं किया जा सकता तथा लोगों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए इनकी कीमतों में वृद्धि करना जरूरी है।

राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA):

यह एक स्वायत्त निकाय है तथा देश के लिये स्वास्थ्य संबंधी आवश्यक दवाओं (National List of Essential Medicines-NLEM) एवं उत्पादों की कीमतों को नियंत्रित करता है।

NPPA के कार्य:

  • विनियंत्रित थोक औषधियों व फॉर्मूलों का मूल्य निर्धारित व संशोधित करना।
  • निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुरूप औषधियों के समावेशन व बहिर्वेशन के माध्यम से समय-समय पर मूल्य नियंत्रण सूची को अद्यतन करना।
  • दवा कंपनियों के उत्पादन, आयात-निर्यात और बाज़ार हिस्सेदारी से जुड़े डेटा का रखरखाव।
  • दवाओं के मूल्य निर्धारण से संबंधित मुद्दों पर संसद को सूचनाएँ प्रेषित करने के साथ-साथ दवाओं की उपलब्धता का अनुपालन व निगरानी करना।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

सातवीं आर्थिक जनगणना

प्रीलिम्स के लिये:

आर्थिक जनगणना 2019, पूर्व में आयोजित आर्थिक जनगणनाएँ, कॉमन सर्विस सेंटर ई-गवर्नेंस सर्विसेज़ इंडिया लिमिटेड

मेन्स के लिये:

आर्थिक जनगणना का उद्देश्य एवं इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

13 दिसंबर, 2019 को दिल्ली में सातवीं आर्थिक जनगणना (Economic census) की शुरुआत की गई।

  • दिल्ली आर्थिक जनगणना शुरू करने वाला 26वाँ राज्य है, जबकि 20 राज्यों और 5 केंद्रशासित प्रदेशों में यह कार्य पहले से ही चल रहा है।

Economic Census

आर्थिक जनगणना के बारे में

  • आर्थिक जनगणना भारत की भौगोलिक सीमाओं के भीतर स्थित सभी प्रतिष्ठानों का संपूर्ण विवरण है।
  • आर्थिक जनगणना देश के सभी प्रतिष्ठानों के विभिन्न संचालनगत एवं संरचनागत परिवर्ती कारकों पर भिन्न-भिन्न प्रकार की सूचनाएँ उपलब्ध कराती है।
  • आर्थिक जनगणना देश में सभी आर्थिक प्रतिष्ठानों की आर्थिक गतिविधियों के भौगोलिक विस्तार/क्लस्टरों, स्वामित्व पद्धति, जुड़े हुए व्यक्तियों इत्यादि के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी भी उपलब्ध कराती है।
  • आर्थिक जनगणना के दौरान संग्रहित सूचना राज्य एवं ज़िला स्तरों पर सामाजिक-आर्थिक विकास संबंधी योजना निर्माण के लिये उपयोगी होती है।

आर्थिक जनगणना-2019

  • वर्ष 2019 में 7वीं आर्थिक जनगणना का संचालन सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation-MoSPI) द्वारा किया जा रहा है।
  • वर्तमान आर्थिक जनगणना में सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने 7वीं आर्थिक जनगणना के लिये कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत एक स्पेशल पर्पज़ व्हिकल्स, कॉमन सर्विस सेंटर ई-गवर्नेंस सर्विसेज़ इंडिया लिमिटेड (Common Service Center e-Governance Services India Limited) के साथ साझेदारी की है।
  • 7वीं आर्थिक जनगणना में आँकड़ों के संग्रहण, सत्यापन, रिपोर्ट सृजन एवं प्रसार के लिये एक आईटी आधारित डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जाएगा।
  • 7वीं आर्थिक जनगणना के परिणामों को प्रक्षेत्र कार्य के प्रमाणन एवं सत्यापन के बाद उपलब्ध कराया जाएगा।
  • आर्थिक जनगणना के तहत गैर-फार्म कृषि एवं गैर-कृषि क्षेत्र में वस्तुओं/सेवाओं (स्वयं के उपभोग के एकमात्र प्रयोजन के अतिरिक्त) के उत्पादन या वितरण में जुड़े घरेलू उद्यमों सहित सभी प्रतिष्ठानों को शामिल किया जाएगा।

पूर्व में आयोजित आर्थिक जनगणनाएँ

  • अभी तक केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने 6 आर्थिक जनगणनाएँ (Economic censuses) संचालित की हैं।
    • पहली आर्थिक जनगणना, वर्ष 1977 में
    • दूसरी आर्थिक जनगणना, वर्ष 1980 में
    • तीसरी आर्थिक जनगणना, वर्ष 1990 में
    • चौथी आर्थिक जनगणना, वर्ष 1998 में
    • पाँचवीं आर्थिक जनगणना, वर्ष 2005 में
    • छठी आर्थिक जनगणना, वर्ष 2013 में

कॉमन सर्विस सेंटर ई-गवर्नेंस सर्विसेज़ इंडिया लिमिटेड

(CSC e-Governance Services India Limited)

  • CSC ई-गवर्नेंस सर्विसेज़ इंडिया लिमिटेड को कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा स्थापित किया गया है जिसका उद्देश्य CSC योजना के कार्यान्वयन की निगरानी करना है।
  • योजना को प्रणालीगत व्यवहार्यता और स्थिरता प्रदान करने के अलावा यह CSC के माध्यम से नागरिकों को सेवाओं की डिलीवरी हेतु एक केंद्रीकृत और सहयोगी रूपरेखा भी प्रदान करता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

आंशिक ऋण गारंटी योजना

प्रीलिम्स के लिये:

आंशिक ऋण गारंटी योजना, NBFCs, HFCs

मेन्स के लिये:

NBFCs/HFCs की अस्‍थायी तरलता (लिक्विडिटी) अथवा नकद प्रवाह में असंतुलन को दूर करने में आंशिक ऋण गारंटी योजना का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री की अध्‍यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘आंशिक ऋण गारंटी योजना' को मंज़ूरी दी है जिसकी पेशकश भारत सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) को करेगी।

प्रमुख बिंदु

  • वित्‍तीय दृष्टि से मज़बूत गैर-बैंकिंग वित्‍तीय कंपनियों (Non-Banking Financial Companies-NBFCs)/आवास वित्‍त कंपनियों (Housing Finance Companies-HFCs) से उच्‍च रेटिंग वाली संयोजित परिसंपत्तियों की खरीद के लिये 'आंशिक ऋण गारंटी योजना' को मंज़ूरी दी गई है।
  • इसके तहत जो कुल गारंटी दी जाएगी, वह योजना के तहत बैंकों द्वारा खरीदी जा रही परिसंपत्तियों के उचित मूल्‍य के 10 प्रतिशत तक के प्राथमिक नुकसान अथवा 10,000 करोड़ रुपए, इनमें से जो भी कम हो, तक सीमित होगी, जैसा कि आर्थिक मामलों के विभाग (Department of Economic Affairs-DEA) ने सहमति जताई है।
  • इस योजना के दायरे में वे NBFCs/HFCs आएंगी, जो 01 अगस्‍त, 2018 से पहले की एक वर्ष की अवधि के दौरान संभवत: 'SMA-0' श्रेणी में शामिल हो गई हैं। इसी तरह इस योजना के दायरे में वे संयोजित परिसंपत्तियाँ भी शामिल होंगी, जिन्‍हें 'BBB++' अथवा उससे अधिक की रेटिंग प्राप्‍त है।
  • भारत सरकार द्वारा की गई यह पेशकश एकबारगी आंशिक ऋण गारंटी की सुविधा 30 जून, 2020 तक अथवा बैंकों द्वारा 1,00,000 करोड़ रुपए मूल्‍य की परिसंपत्तियां खरीद लिये जाने की तिथि तक (इनमें से जो भी पहले हो) खुली रहेगी। इस योजना की दिशा में हुई प्रगति को ध्‍यान में रखते हुए इसकी वैधता अवधि को तीन माह तक बढ़ाने का अधिकार वित्‍त मंत्री को दिया गया है।

प्रमुख प्रभाव:

  • सरकार की ओर से प्रस्‍तावित गारंटी सहायता और इसके परिणामस्‍वरूप संयोजित परि‍सम्‍पत्तियों की खरीद (बायआउट) से NBFCs/HFCs को अपनी अस्‍थायी तरलता (लिक्विडिटी) अथवा नकद प्रवाह में असंतुलन को दूर करने में मदद मिलेगी और इसके साथ ही वे ऋणों के सृजन में निरंतर योगदान करने और कर्जदारों को अंतिम विकल्‍प वाले ऋण मुहैया कराने में समर्थ हो जाएंगे, जिससे आर्थिक विकास की गति तेज़ होगी।

पृष्‍ठभूमि:

केंद्रीय बजट 2019-20 में यह घोषणा की गई थी कि 'चालू वित्‍त वर्ष के दौरान वित्‍तीय दृष्टि से मज़बूत एनबीएफसी की कुल एक लाख करोड़ रुपये मूल्‍य की उच्‍च रेटिंग वाली संयोजित परिसंपत्तियों की खरीद के लिये सरकार 10 प्रतिशत तक के प्रथम नुकसान के लिये सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को एकबारगी 6 माह की आंशिक ऋण गारंटी देगी।'

  • उपर्युक्‍त बजट घोषणा को ध्‍यान में रखते हुए पीएसबी द्वारा NBFCs/HFCs से परिसंपत्तियों की खरीद के लिये पीएसबी को सरकारी गारंटी देने के लिये 10 अगस्‍त, 2019 को एक योजना (23 सितंबर, 2019 को संशोधित) शुरू की गई थी।
    • इसके तहत गारंटी को इस योजना के तहत बैंकों द्वारा खरीदी गई परिसंपत्तियों के उचित मूल्‍य के 10 प्रतिशत अथवा 10,000 करोड़ रुपए, इनमें से जो भी कम हो, तक सीमित किया गया।
  • यह सुविधा इस योजना के शुरू होने की तिथि से लेकर 6 महीनों की अवधि अथवा बैंकों द्वारा 1,00,000 करोड़ रुपये मूल्‍य की परि‍सम्‍पत्तियों को खरीदे जाने की तिथि, इनमें से जो भी पहले हो, तक खुली रखी गई थी।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को इस योजना की पेशकश की जा रही है, जिससे इस योजना के तहत सरकार की गारंटी सहायता से संयोजित परिसंपत्तियों की खरीद संभव होने से दिवाला होने की स्थिति में आ चुकी NBFCs/HFCs की अस्‍थायी तरलता/नकद प्रवाह में असंतुलन को दूर करने में मदद मिलेगी। ऐसी स्थिति में NBFCs/HFCs को अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये अपनी-अपनी परि‍सम्‍पत्तियों की अंधाधुंध बिक्री करने के लिये विवश नहीं होना पड़ेगा। इससे अर्थव्‍यवस्‍था की ऋण संबंधी मांग का वित्‍तपोषण करने के साथ-साथ इस तरह की NBFCs/HFCs के विफल या दिवालिया होने के प्रतिकूल असर से देश की वित्‍तीय प्रणाली को संरक्षित करने के लिये संबंधित NBFCs/HFCs को आवश्‍यक तरलता प्राप्‍त होगी।

स्रोत: PIB


जैव विविधता और पर्यावरण

हरित ऊर्जा वित्‍त के लिये ‘ग्रीन विंडो'

प्रीलिम्स के लिये:

ग्रीन विंडो, COP 25, IREDA, IRDA

मेन्स के लिये:

ग्रीन विंडो का पर्यावरण संरक्षण में महत्त्व तथा ‘नवीकरणीय ऊर्जा सुलभ कराने में इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (इरेडा) ‘नवीकरणीय ऊर्जा की सुविधा से वंचित तबकों को ऊर्जा सुलभ कराने के लिये ग्रीन विंडो’ का निर्माण करेगी।

प्रमुख बिंदु

  • स्‍पेन के मैड्रिड में आयोजित संयुक्‍त राष्‍ट्र जलवायु सम्‍मेलन (COP 25) में केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, इरेडा ग्रीन विंडो का निर्माण करेगी।
  • भारत के रणनीतिक हितों के लिये नवीकरणीय ऊर्जा निरंतर सस्‍ती एवं बेहतर होती जा रही है और यह इरेडा की ग्रीन विंडो नवीकरणीय ऊर्जा के बाज़ार को काफी बढ़ावा देगी।
  • भारत 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था बनने की ओर अग्रसर है, ऐसे में 450 गीगावाट की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्‍थापित करने संबंधी भारत का लक्ष्‍य देश में आर्थिक विकास की गति तेज़ करने में एक प्रमुख वाहक साबित होगा।
  • ग्रीन विंडो के लिये लगभग 20 मिलियन अमेरिकी डॉलर के आवंटन पर विचार किया जा रहा है।
  • इतना ही नहीं, 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर की सुविधा सुनिश्चित करने के लिये अन्‍य एजेंसियों से 80 मिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाने की योजना की परिकल्‍पना की गई है।
  • विशेषकर स्‍वच्‍छ ऊर्जा की अपेक्षाकृत कम मात्रा वाले बाज़ारों के साथ-साथ स्‍वच्‍छ ऊर्जा वाली नई प्रौद्योगिकियों का बड़े पैमाने पर उपयोग सुनिश्चित करने में आवश्‍यक सहायता प्रदान करने के लिये ग्रीन विंडो की स्‍थापना की जाएगी।
  • निजी घरेलू बैंकों और अंतर्राष्‍ट्रीय स्रोतों दोनों से ही पूंजी के अतिरिक्‍त स्रोतों से लाभ उठाने के लिये आरंभिक पूंजी का उपयोग किया जाएगा।

वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति

  • भारत भी उन शीर्ष तीन देशों में शामिल है, जो वैश्विक स्‍तर पर नवीकरणीय ऊर्जा के विकास में अगुवाई कर रहे हैं। अक्‍तूबर 2019 तक भारत की स्‍थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता पहले ही 175 गीगावाट के अपने वर्ष 2022 के लक्ष्‍य के लगभग आधे हिस्‍से को प्राप्‍त कर चुकी है।
  • 175 गीगावाट के लक्ष्‍य को हासिल कर लेने से लाखों भारतीयों की हरित ऊर्जा तक पहुंच बढ़ जाएगी।
  • इतना ही नहीं, इससे वर्ष 2022 तक देश में 3,00,000 से भी अधिक कामगारों के लिये एक मिलियन तक रोजगार अवसर सृजित हो सकते हैं।
  • प्रधानमंत्री ने वर्ष 2022 तक के लिये तय लक्ष्‍य से भी काफी आगे बढ़ जाने और 450 गीगावाट की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्‍थापित करने संबंधी भारतीय प्रतिबद्धता की घोषणा की है, जो नवीकरणीय ऊर्जा की मौजूदा स्‍थापित क्षमता से पाँच गुने से भी अधिक है।

भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (इरेडा)

(Indian Renewable Energy Development Agency Ltd-IREDA)

  • यह भारत सरकार के ‘नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय’ के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन कार्यरत एक मिनीरत्न (श्रेणी 1) प्रकार की कंपनी है।
  • इसका कार्य नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से संबंधित परियोजनाओं को प्रोत्साहित करना तथा इनके विकास हेतु इन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
  • इसे ‘कंपनी अधिनियम, 1956’ की धारा 4’ए’ के तहत ‘सार्वजनिक वित्तीय संस्थान’ (Public Financial Institution) के रूप में अधिसूचित किया गया है।
  • इसे ‘भारतीय रिज़र्व बैंक’ के नियमों के अंतर्गत ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी’ (Non-Banking Financial Company) के रूप में पंजीकृत किया गया है।
  • इसे वर्ष 1987 में ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्था’ के रूप में एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी के तौर पर गठित किया गया था।
  • इसका उद्देश्य नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से संबंधित परियोजनाओं को प्रोमोट करना, इनका विकास करना तथा इन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
  • कुछ समय पहले भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (आई.आर.ई.डी.ए.) द्वारा तैयार किये जा रहे सोलर पार्कों के आंतरिक बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये विश्व बैंक द्वारा 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण प्रदान किया गया है, जिसे आई.आर.ई.डी.ए. के माध्यम से सोलर पावर पार्क डेवलपर्स (Solar Power Park Developers - SPPDs) को प्रदान कराया जाएगा।

[नोट: भारत में इरेडा और इरडा नाम से दो अलग-अलग निकाय मौजूद हैं। इन दोनों निकायों के बीच आपको किसी प्रकार की विभ्रांति न हो, इसके लिये हमने उक्त दोनों निकायों के विषय में संक्षिप्त में विवरण प्रस्तुत किया है।]

‘इरडा’

(Insurance Regulatory and Development Authority-IRDA)

  • यह एक सांविधिक निकाय है, जिसका गठन ‘इरडा अधिनियम, 1999’ के द्वारा किया गया है, जो भारतीय बीमा क्षेत्र का विनियमन करता है।
  • इस प्रधिकरण के कुछ महत्त्वपूर्ण उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
    • पॉलिसीधारकों के हितों की रक्षा करना।
    • अर्थव्यवस्था के विकास में तेज़ी लाने हेतु दीर्घकालिक धन उपलब्ध कराने तथा आम आदमी के हितों को सुनिश्चित करने के लिये बीमा उद्योग की त्वरित एवं व्यवस्थित वृद्धि के लिये।
    • बीमा धोखाधड़ी और अन्य कदाचारों को रोकने तथा इनके लिये प्रभावी शिकायत निवारण मशीनरी को लागू करने हेतु वास्तविक दावों का शीघ्र निपटान सुनिश्चित करना।
    • विनियमन अथवा इसके नियंत्रण के क्षेत्र में कार्यरत लोगों में उच्च स्तर की अखंडता, वित्तीय सुदृढ़ता और निष्पक्ष व्यवहार की योग्यता को स्थापित करना आदि।
  • इस अधिनियम की धारा 4 इस प्राधिकरण की संरचना के संदर्भ में बताती है।
  • इसके अनुसार, यह एक 10 सदस्यीय प्राधिकरण है, जिसमें 1 अध्यक्ष, 5 पूर्णकालिक सदस्य तथा 4 अंशकालिक सदस्य होते हैं तथा सभी को भारत सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।

स्रोत: PIB


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

ट्रेकिया सॉफ्टवेयर

प्रीलिम्स के लिये:

ट्रेकिया सॉफ्टवेयर

मेन्स के लिये:

अपराधों को कम करने में प्रौद्योगिकी की भूमिका।

चर्चा में क्यों?

हरियाणा पुलिस ने छेड़छाड़ मुक्त आपराधिक जाँच सुनिश्चित करने के लिये अद्वितीय बारकोडिंग सॉफ्टवेयर “ट्रेकिया” (Trakea) को अपनाया है।

सॉफ्टवेयर के बारे में

  • यह एक फोरेंसिक साक्ष्य प्रबंधन प्रणाली है जो फोरेंसिक विशेषज्ञों द्वारा आपराधिक घटनास्थल से महत्त्वपूर्ण सैंपल/नमूने एकत्रित करने के समय से ही आपराधिक जाँच से संबंधित समग्र प्रक्रिया के स्वचालन में मदद करती है।
  • ट्रेकिया का उद्देश्य फोरेंसिक रिपोर्टों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और इन रिपोर्टों की छेड़छाड़ मुक्त ट्रैकिंग प्रणाली विकसित करना है। यह फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं के के अनुरूप कार्य करता है।
  • इसके अलावा इस सॉफ्टवेयर के माध्यम से फोरेंसिक टीमों का चयन भी यादृच्छिक तरीके से किया जाता है।
  • ट्रेकिया अपराधिक घटना स्थल से एकत्र किए गए नमूनों और फोरेंसिक लैब द्वारा विश्लेषित रिपोर्ट की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। यह प्रणाली राज्य पुलिस बल द्वारा दशकों से प्रयोग की जा रही पारंपरिक प्रणालियों से अलग तरीके से कार्य करती है।
  • हरियाणा पुलिस के अनुसार, यह देश की पहली पुलिस बल है जिसने फोरेंसिक रिपोर्ट की सुरक्षा के लिये इस अनूठी बार-कोडिंग की शुरुआत की है।

ऐसी प्रणाली की आवश्यकता

  • पूरे देश में चली आ रही पारंपरिक प्रणाली के अनुसार, अपराध से संबंधित दस्तावेज़ों में अपराध से जुड़े विभिन्न विवरणों को शामिल किया जाता है। इन विवरणों में अपराध/मामले की FIR संख्या सहित पुलिस थाना, पीड़ित, आरोपी, चिकित्सा अधिकारी आदि का नाम व पता आदि को शामिल किया जाता है।
  • इन विवरणों के उपलब्ध होने से घटित अपराध के बारे में आसानी से जानकारी प्राप्त की जा सकती है तथा मामले को किसी भी व्यक्ति द्वारा ट्रैक किया जा सकता है।
  • अपराध से जुड़े दस्तावेज़ में DNA सैंपल, लिखित प्रमाण और प्राक्षेपिक (Ballistics) परीक्षणों, सीरम विज्ञान (Serology), जीव विज्ञान, विष विज्ञान, झूठ का पता लगाने आदि से जुड़ी रिपोर्ट शामिल हो सकती हैं।
  • सैंपल/नमूना एकत्र करने के समय से फोरेंसिक विशेषज्ञ अपना अंतिम निष्कर्ष देने तक की प्रक्रिया कई चरणों में होती है ऐसे में अभियुक्त अपने प्रभुत्व का प्रयोग कर सैंपल के साथ छेड़छाड़ कर सकते है ताकि उनके अनुकूल फोरेंसिक रिपोर्ट तैयार की जा सके।

सॉफ्टवेयर का विकास

  • इस सॉफ्टवेयर को मूल रूप से एक कैदी द्वारा डिज़ाइन किया गया है जो कि पेशे से एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और इस पर अपनी पत्नी की हत्या करने का आरोप है।
  • इसी सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने पहले भी हरियाणा की सभी 19 ज़ेलों के कैदियों और जेल संचालन से संबंधित डेटा को डिजिटल रूप देने वाला एक सॉफ्टवेयर डिज़ाइन किया था।
  • इस सॉफ्टवेयर का उपयोग करके न्यायपालिका भी परीक्षण के दौरान फोरेंसिक जाँच रिपोर्ट को ट्रैक करने में सक्षम होगी जिससे समय की बचत होगी।

सॉफ्टवेयर की वास्तविक कार्यविधि

  • इस प्रणाली में दो-चरणों वाली बार-कोडिंग की विशेषता को शामिल किया गया है जो कि सैंपल की गोपनीयता बनाए रखने में सक्षम है।
  • यह स्वचालित रूप से ई-मेल और SMS सूचनाओं के माध्यम से रिपोर्ट की स्थिति के संदर्भ में वास्तविक समय (Real Time) जानकारी देगा, जिससे वास्तविक साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ की संभावना लगभग समाप्त हो जाएगी।
  • साथ ही अपराध से जुड़े दस्तावेज़/सैंपल/पार्सल पर किसी भी केस का विवरण उल्लिखित नहीं होगा सिवाय अद्वितीय बार कोड के, जिसे केवल बायोमेट्रिक सिस्टम के माध्यम से पढ़ा जा सकता है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस 


एथिक्स

गांधी विश्वकोश

प्रीलिम्स के लिये:

गांधी विश्वकोश, राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद

मेन्स के लिये:

गांधीवादी दर्शन और विचार।

चर्चा में क्यों?

देश में जागरूकता फैलाने के लिये भारत सरकार “गांधी विश्वकोश” विकसित कर रही है।

प्रमुख बिंदु

  • इसका उद्देश्य सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से गांधीवादी दर्शन और विचारों को बढ़ावा देना है।
  • भारत सरकार ने महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में 5.25 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता को मंज़ूरी दी है।

राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद

National Council of Science Museums

  • यह परिषद एक स्वायत्त संगठन है जो संस्कृति मंत्रालय के तहत कार्यरत है। देश भर में लगभग 24 ऐसे संग्रहालय हैं। इन परिषदों की स्थापना का उद्देश्य देश में सभी अनौपचारिक विज्ञान संचार गतिविधियों का समन्वय करना है।
  • बिरला इंडस्ट्रियल एंड टेक्नोलॉजिकल म्यूजियम नामक पहला विज्ञान संग्रहालय 2 मई, 1959 में बनाया गया था। परिषद अब राज्य सरकारों के सहयोग से विज्ञान केंद्र विकसित कर रही है।
  • 2 मई, 1959 को CSIR के अंतर्गत प्रथम विज्ञान संग्रहालय– बिड़ला औद्योगिकी एवं प्रौद्योगिकी संग्रहालय की शुरुआत हुई।
  • जुलाई 1965 में देश के दूसरे विज्ञान संग्रहालय विश्वेश्वरैया औद्योगिकी एवं प्रौद्योगिकी संग्रहालय की शुरुआत बैंगलोर में हुई।
  • कोलकाता और बैंगलोर के बाद मुंबई में तृतीय संग्रहालय का कार्य वर्ष 1974 में शुरू किया गया।
  • अभी तक परिषद ने मुंबई, नागपुर, कालीकट, भोपाल और गोवा में 5 विज्ञान केंद्रों का निर्माण किया है।

स्रोत: PIB


विविध

RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (14 दिसंबर, 2019)

भारत-मालदीव संयुक्त आयोग की बैठक

द्विपक्षीय सहयोग को और मज़बूत बनाने के लिये भारत और मालदीव के विदेश मंत्रियों के बीच 13 दिसंबर को नई दिल्ली में वार्ता हुई। दोनों देशों के संयुक्त आयोग की यह बैठक चार साल बाद हुई। इससे पहले दोनों देशों के संयुक्त आयोग की पाँच बैठकें हो चुकी हैं। विदेश मंत्री एस. जयशंकर और मालदीव के उनके समकक्ष अब्दुल्ला शाहिद के बीच कई क्षेत्रों में सहयोग पर विस्तृत वार्ता हुई। मालदीव के विदेश मंत्री के साथ 31 सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल भी आया है, जिसमें कई विभागों के वरिष्ठ अधिकारी हैं। दोनों देशों के बीच संयुक्त आयोग की वार्ता से सहयोग का दायरा और विस्तृत होगा। ध्यातव्य है कि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि अपने खास और समुद्री इलाके के दोस्त मालदीव के विकास के लिये भारत वचनबद्ध है। अभी हाल ही में भारत-मालदीव की दोस्ती को बढ़ावा देते हुए नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये दोनों देशों की प्रमुख विकास परियोजनाओं का उद्घाटन किया था। कई तरह के क्षेत्रों को कवर करने वाली प्रमुख विकास परियोजनाओं का संयुक्त उद्घाटन यह बताने के लिये पर्याप्त है कि भारत की नेबरहुड फर्स्ट और मालदीव सरकार की इंडिया फर्स्ट नीतियों ने सभी क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग को मज़बूत किया है।


सोशल मीडिया पोर्नोग्राफी पर अंकुश के लिये समिति

राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने सोशल मीडिया पर पोर्नोग्राफी के बढ़ते प्रसार और इससे बच्चों तथा समाज पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों की समस्या को लेकर उच्च सदन के सदस्यों की एक तदर्थ समिति गठित की है। यह समिति इस समस्या को दूर करने के उपाय सुझाएगी। इस विषय पर उच्च सदन के सदस्यों के औपचारिक समूह को ही तदर्थ समिति में तब्दील किया गया है। समूह के संयोजक कॉन्ग्रेस के राज्यसभा सदस्य जयराम रमेश को समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। सोशल मीडिया पर पोर्नोग्राफी के बच्चों सहित समूचे समाज पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करने के लिये बनाए गई इस तदर्थ समिति में सपा की जया बच्चन, आप के संजय सिंह, बीजद के डा. अमर पटनायक, कॉन्ग्रेस के एम.वी. राजीव गौड़ा और अमी याज्ञिक, तृणमूल कॉन्ग्रेस की डोला सेन, जदयू की कहकशां परवीन, भाजपा के राजीव चंद्रशेखर, विनय पी सहस्त्रबुद्धे तथा रूपा गांगुली, द्रमुक के तिरुचि शिवा, राकांपा की वंदना चव्हाण एवं अन्नाद्रमुक की विजिला सत्यनाथ शामिल हैं। समिति को इस विषय के सभी पहलुओं पर विचार कर समस्या के समाधान के बारे में अपनी रिपोर्ट एक महीने के भीतर पेश करने को कहा गया है।


मल्‍टी सेल बॉक्‍स लोड क्‍लास 70 पुल

जम्‍मू-कश्‍मीर के उपराज्‍यपाल गिरीश चंद्र मुर्मु ने राजौरी में हर मौसम के अनुकूल 72 मीटर लंबा मल्‍टी सेल बॉक्‍स लोड क्‍लास 70 पुल राष्‍ट्र को समर्पित किया। यह पुल द्राज नाला पर है और द्राज क्षेत्र को राजौरी ज़िले के अंतर्गत तहसील कोट्रान्‍का से जोड़ता है। इस पुल का निर्माण सीमा सड़क संगठन ने किया है। द्राज पुल सेना और साथ-ही-साथ राजौरी ज़िले के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है। यह पुल सेना और स्‍थानीय लोगों को सभी प्रकार की और त्‍वरित आवागमन की सुविधा प्रदान करेगा। यह पुल क्षेत्र में सड़क नेटवर्क को मज़बूती प्रदान करेगा। गौरतलब है कि आवागमन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण मौजूदा सेतु को राष्‍ट्रीय राजमार्ग विनिर्देशों से युक्‍त उन्‍नत बनाना आवश्‍यक था। द्राज पुल अब भारी यातायात के आवागमन में बिना किसी अवरोध के हर मौसम में आवागमन की सुविधा प्रदान करेगा, क्‍योंकि यह लोड क्‍लास 70 के लिये डिज़ाइन किया गया है।


बोरिस जॉनसन

ब्रेक्जिट को लेकर हुए आकस्मिक चुनाव में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को बहुमत मिल गया है। 1980 के दशक में मार्गरेट थैचर के दौर के बाद कंज़र्वेटिव पार्टी की यह सबसे बड़ी जीत मानी जा रही है। हाउस ऑफ कॉमन्स की कुल 650 सीटों में से बोरिस जॉनसन की कंज़र्वेटिव पार्टी को 360 सीटों पर जीत मिलीं, जबकि जेरेमी कॉर्बिन के नेतृत्व वाली लेबर पार्टी को 203 सीटें मिली। ध्यातव्य है कि ब्रिटेन में तय समय के मुताबिक, मई 2022 में चुनाव होने थे, लेकिन ब्रेक्जिट पर गतिरोध के चलते करीब ढाई साल पहले चुनाव कराने पड़े। संसद के निचले सदन हाउस ऑफ कॉमंस में 650 सीटों के लिये भारतीय मूल समेत 3,322 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे थे। इंग्लैंड, वेल्स, स्कॉटलैंड और नॉर्दर्न आयरलैंड के सभी निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान हुआ। इस चुनाव में मतदान बैलट पेपर पर कराया गया ताकि किसी तरह की आशंका न रहे। वर्ष 2017 के पिछले चुनाव में कंज़र्वेटिव पार्टी को 318 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि लेबर पार्टी को 262 सीटें मिली थीं।


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