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डेली न्यूज़

  • 13 Jan, 2020
  • 36 min read
भारतीय विरासत और संस्कृति

बोज्जनकोंडा तथा लिंगलामेत्ता-बौद्ध स्थल

प्रीलिम्स के लिये:

बोज्जनकोंडा बौद्ध स्थल

मेन्स के लिये:

बोज्जनकोंडा तथा लिंगलामेत्ता बौद्ध स्थल से संबंधित प्रथा

चर्चा में क्यों?

आंध्र प्रदेश के शंकरम में स्थित बोज्जनकोंडा (Bojjannakonda) नामक बौद्ध स्थल पर पत्थर फेंकने की एक पुरानी प्रथा को रोकने में प्रशासन ने सफलता हासिल की है।

मुख्य बिंदु:

  • यहाँ के ग्रामीण एक प्राचीन प्रथा के भाग के रूप में बोज्जनकोंडा स्थित एक पेट के आकार की आकृति को राक्षस का रूप मानते हुए इस पर पत्थर फेंकते थे।
  • हालाँकि ‘इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज’ (Indian National Trust for Art and Cultural Heritage-INTACH) के हस्तक्षेप के बाद मकर संक्राति के बाद 16 जनवरी को कनुमा दिवस (Kanuma day) पर आयोजित होने वाली यह प्रथा लगभग समाप्त हो चुकी है।

प्रशासन और INTACH का साझा प्रयास:

  • बोज्जनकोंडा नामक बौद्ध स्थल पर पत्थर फेंकने की इस परंपरा पर INTACH ने स्थानीय पुलिस तथा ज़िला प्रशासन के साथ मिलकर कुछ वर्षों से इस पर रोक लगाई है।
  • INTACH ने इस बार भी इस पुरातात्त्विक रूप से महत्त्वपूर्ण इस स्थल को नुकसान से बचाने के लिये कनुमा दिवस के अवसर पर इस प्रथा को रोकने के लिये जिला प्रशासन से पर्याप्त सहायता की माँग की है।

बोज्जनकोंडा तथा लिंगलामेत्ता:

(Bojjannakonda and Lingalametta):

  • बोज्जनकोंडा तथा लिंगलामेत्ता ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में स्थापित जुड़वां बौद्ध मठ हैं।
  • ये बौद्ध स्थल बौद्ध धर्म की तीन शाखाओं (थेरवाद, महायान, वज्रयान) से संबंधित हैं-
    • थेरवाद- बुद्ध को एक शिक्षक के रूप में मान्यता।
    • महायान- बौद्धधर्म अधिक भक्तिपूर्ण था।
    • वज्रयान- जहाँ बौद्ध परंपरा में तंत्र एवं गूढ़ रूप में अधिक विश्वास।
  • शंकरम (Sankaram) शब्द की व्युत्पत्ति ‘संघरम’ (Sangharama) शब्द से हुई है।
  • यह स्थल अत्यधिक स्तूपों, पत्थरों को काटकर निर्मित गुफाओं, ईंट-निर्मित संरचनात्मक आकृतियों, प्रारंभिक ऐतिहासिक मृदभांडों और पहली शताब्दी ईस्वी पूर्व के सातवाहन काल के सिक्कों के लिये प्रसिद्ध है।
  • यहाँ स्थित मुख्य स्तूप को पत्थर की चट्टान को तराशकर बनाया गया है और फिर ईंटों से ढका गया है। यहाँ स्थित पहाड़ियों में पत्थरों पर बुद्ध की छवियों को उकेरा गया है।
  • यहाँ स्थित लिंगलामेत्ता में एकाश्म पत्थर से निर्मित स्तूपों को देखा जा सकता है।

पर्यटन के लिये आकर्षण का बिंदु:

  • यहाँ स्थित अवशेष मंजूषा (Relic Casket), तीन चैत्यगृह, स्तूप और वज्रयान मूर्तिकला को देखने के लिये बड़ी संख्या में पर्यटक इन बौद्ध स्थलों पर आते हैं।
  • विशाखापत्तनम थोटलाकोंडा (Thotlakonda), एप्पिकोंडा (Appikonda) और बाविकोंडा (Bavikonda) जैसे बौद्ध स्थलों के लिये भी प्रसिद्ध है।

इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज

(Indian National Trust for Art and Cultural Heritage):

  • INTACH की स्थापना भारत में संस्कृतिक विरासत के बारे में जानकारी के प्रसार और संरक्षण के उद्देश्य से वर्ष 1984 में नई दिल्ली में की गई थी।
  • वर्तमान में INTACH को विश्व के सबसे बड़े विरासत संगठनों में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • INTACH की भारत में में 190 से अधिक शाखाएँ हैं।
  • INTACH ने न केवल अमूर्त विरासत बल्कि प्राकृतिक विरासत के संरक्षण में अभूतपूर्व कार्य किया है।

स्रोत-द हिंदू


शासन व्यवस्था

H9N2: इन्फ्लूएंज़ा वायरस

प्रीलिम्स के लिये:

H9N2 वायरस,वायरस और इनके प्रकार, तथा वायरस से होने वाले रोग

मेन्स के लिये:

वायरस के लक्षण और बचाव

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में देश में इन्फ्लूएंज़ा वायरस A के एक दुर्लभ उप-प्रकार H9N2 वायरस का पहला मामला सामने आया , जो एवियन इन्फ्लूएंजा (Avian Influenza) या बर्ड फ्लू (Bird Flu) रोग का कारण बनता है।

प्रमुख बिंदु:

Bird-flu

  • दिसंबर 2019 में संयुक्त राज्य अमेरिका के रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र (Centers for Disease Control and Prevention-CDC) तथा भारत के राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (National Institute of Virology-NIV) के वैज्ञानिकों ने इमर्जिंग इन्फेक्शस डिसीज़ जर्नल (Emerging Infectious Diseases journal) में इस वायरस के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
  • भारत में H9N2 इन्फ्लूएंज़ा वायरस का पहला मामला महाराष्ट्र में देखा गया है।

H9N2 वायरस

  • H9N2 वायरस, इन्फ्लूएंज़ा वायरस A का एक उप-प्रकार है, जो ह्यूमन इन्फ्लूएंजा के साथ-साथ बर्ड फ्लू का भी कारण है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इनफार्मेशन (National Centre for Biotechnology Information-NCBI) के अनुसार H9N2 वायरस जंगली पक्षियों में विशेष रूप से पाए जाते है।
  • NCBI के शोधकर्त्ता टी.पी. पीकॉक की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, H9N2 वायरस संभावित रूप से इन्फ्लूएंज़ा के विश्वव्यापी उद्भव में प्रमुख भूमिका निभा सकता है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, एवियन इन्फ्लूएंज़ा वायरस पोल्ट्री फर्मों में तेज़ी से फैल रहा है , संक्रमित पोल्ट्री या दूषित वातावरण के संपर्क में आने के कारण इससे मानव समूहों के लिये भी जोखिम उत्त्पन्न हो गया है।
  • मनुष्यों में H9N2 वायरस का संक्रमण दुर्लभ हैं, हालाँकि संक्रमण के अस्पष्ट लक्षणों के कारण इसके मामले प्रकाश में नहीं आ पाते हैं।
  • मनुष्यों में, H9N2 वायरस के संक्रमण का पहला मामला वर्ष 1998 में हॉन्गकॉन्ग में सामने आया।

वर्ष 1966 में H9N2 वायरस का पहला मामला संयुक्त राज्य अमेरिका के विस्कोंसिन में प्रवासी पक्षियों के झुंड टर्की फ्लोक्स (Turkey Flocks) में देखा गया।

  • विगत कुछ वर्षो में H9N2 वायरस के कारण मनुष्यों में संक्रमण फैलने के मामले हॉन्गकॉन्ग के अतिरिक्त चीन, बांग्लादेश, पाकिस्तान तथा मिस्र में भी देखे गए है।
  • म्याँमार में वर्ष 2014 से 2016 के दौरान पोल्ट्री फर्मों में किये गए सर्विलांस द्वारा H9N2 वायरस के संक्रमण के मामले सामने आए।
  • इस वायरस के सामान्य लक्षणों में बुखार, खांसी तथा श्वसन क्रिया में बाधा जैसी समस्याएँ उत्त्पन्न होती हैं।
  • भारत में यह वायरस फरवरी 2019 में महाराष्ट्र के मेलघाट ज़िले के कोरकू जनजाति के 93 गाँवों में समुदाय आधारित निगरानी अध्ययन के दौरान देखा गया था।

वायरस (VIRUS)

  • ‘विषाणु’ एक सूक्ष्मजीव है, जो जीवित कोशिकाओं के भीतर ही अपना विकास एवं प्रजनन करता है।
  • ‘विषाणु’ स्वयं को जीवित रखने एवं अपनी प्रतिकृति तैयार करने हेतु जीवित कोशिकाओं पर आक्रमण करते हैं।
  • वर्ष 1892 में दमित्री इवानोवास्की (Dmitri Ivanovsky) ने विषाणु की खोज की।

वायरस के प्रकार:

  • ये मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं- DNA वायरस व RNA वायरस।
  • वायरस के वर्गीकरण में ‘इन्फ्लूएंजा वायरस’ RNA प्रकार के वायरस होते हैं तथा ये ‘ऑर्थोमिक्सोविरिदे’ (Orthomyxoviridae) वर्ग से संबंधित होते हैं। इन्फ्लूएंजा वायरस के तीन वर्ग निम्नलिखित हैं:-
  1. इन्फ्लूएंज़ा वायरस A: यह एक संक्रामक वायरस है। ‘जंगली जलीय पशु-पक्षी’ इसके प्राकृतिक वाहक होते हैं। मनुष्यों में संचारित होने पर यह काफी घातक सिद्ध हो सकता है।
  2. इन्फ्लूएंज़ा वायरस B: यह विशेष रूप से मनुष्यों को प्रभावित करता है तथा इन्फ्लुएन्ज़ा-A से कम सामान्य तथा कम घातक होता है।
  3. इन्फ्लूएंज़ा वायरस C: यह सामान्यतः मनुष्यों, कुत्तों एवं सूअरों को प्रभावित करता है। यह इन्फ्लूएंजा के अन्य प्रकारों से कम घातक होता है तथा आमतौर पर केवल बच्चों में सामान्य रोग का कारण बनता है।

आगे की राह:

  • वायरस के प्रकोप से बचने के लिये सख्त जैव-सुरक्षा (Biosecurity) उपाय अपनाने और अच्छी स्वच्छता व्यवस्था को बनाए रखने की आवश्यकता है।
  • यदि पक्षियों में इसके संक्रमण का पता चलता है, तो वायरस से संक्रमित और संपर्क वाले पक्षियों को चुनकर अलग करने की नीति का अनुपालन किया जाना चाहिये ताकि वायरस के प्रसार को नियंत्रित किया जा सकें और इसे नष्ट करने के प्रभावी उपाय अपनाए जा सकें।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

लुप्तप्राय नेपाली ‘सेके’ भाषा

प्रीलिम्स के लिये:

‘सेके’ भाषा

मेन्स के लिये:

भाषाई विविधता का देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में योगदान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नेपाल की ‘सेके’ (Seke) नामक एक भाषा विश्व भर में चर्चा का विषय बनी रही, लुप्तप्राय भाषाओं पर काम करने वाली एक संस्था इंडेंज़र्ड लैंवेज़ अलायंस (Endangered Language Alliance-ELA) के अनुसार, वर्तमान में विश्वभर में ‘सेके’ भाषी लोगों की संख्या मात्र 700 ही रह गई है।

सेके भाषा:

  • सेके, जिसका अर्थ होता है ‘सुनहरी भाषा’ (Golden Language) यह नेपाल में बोली जाने वाली 100 जनजातीय भाषाओं में से एक है।
  • इस भाषा को ‘सेके’ भाषा को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन-यूनेस्को (United Nations Educational Scientific and Cultural Organization-UNESCO) की संकटग्रस्त (Definitely Endangered) भाषाओं की सूची में रखा गया है।
  • यह भाषा मुख्यतः नेपाल के ऊपरी मुस्तांग ज़िले के पाँच गाँवों- चुकसंग, सैले , ग्याकर, तांग्बे और तेतांग में बोली जाती है।
  • इन गाँवों में सेके भाषा की बोली और इसकी स्पष्टता भी एक-दूसरे से भिन्न है।
  • इस भाषा के इतिहास को हिमालय की चोटियों पर बसे गाँवों से जोड़कर देखा जाता है, जहाँ के लोग बाद में आकर मुस्तांग ज़िले में बस गए।
  • अधिकांश सेके भाषी समुदाय के लोग सेब की खेती से जुड़े रहे हैं, परंतु पिछले कुछ वर्षों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से इस क्षेत्र में पड़ रही कड़क ठंड और अनियमित वर्षा ने इस क्षेत्र की कृषि को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, जिससे अधिकांश सेके भाषी लोगों को इस क्षेत्र से पलायन करने पर विवश होना पड़ा।
  • व्यवसायों और सरकारी नौकरियों में नेपाली (नेपाल की राष्ट्रीय भाषा) के प्रभुत्व और ‘सेके’ भाषा के लिए अवसरों की कमी इस भाषा के विलुप्त होने का प्रमुख कारण है।
  • वर्तमान में बचे 700 सेके भाषी लोगों में लगभग 100 न्यूयार्क के ब्रूक्लिन (Brooklyn) व क्वींस (Queens) क्षेत्र में बसे हैं, जिनमें से 50 लोग एक ही बिल्डिंग/इमारत में रहते हैं।

यूनेस्को द्वारा परिभाषित लुप्तप्राय भाषाओं की 6 श्रेणियाँ:

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन-यूनेस्को (United Nations Educational Scientific and Cultural Organization-UNESCO) ने भाषाओं को उनके बोलने-समझने वाले लोगों की संख्या के आधार पर 6 श्रेणियों में विभाजित किया है-

  1. सुरक्षित (Safe): वे भाषाएँ जो सभी पीढ़ियों (Generations) के लोग बोलते हैं तथा उन्हें एक-दूसरे से संवाद में कोई कठिनाई नहीं होती है।
  2. सुभेद्य (Vulnerable): वे भाषाएँ जो नई पीढ़ी (बच्चों) द्वारा बोली जाती है परंतु वे कुछ क्षेत्रों/परिस्थितियों तक सीमित हों।
  3. लुप्तप्राय/संकटग्रस्त (Definitely Endangered): वे भाषाएँ जिन्हें बच्चे मातृभाषा के रूप में नहीं सीखते हैं।
  4. गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Severely Endangered): वे भाषाएँ जो बुजुर्ग पीढ़ी (दादा-दादी) द्वारा बोली जाती हैं और जिन्हें उनके बच्चे समझते तो हों लेकिन अगली पीढ़ी से उस भाषा में बात नहीं करते हैं।
  5. अत्यंत संकटग्रस्त (Critically Endangered): वे भाषाएँ जिन्हें केवल बुजुर्ग पीढ़ी के लोग समझते हों और इनका प्रयोग भी बहुत ही कम अवसरों पर किया जाता है।
  6. विलुप्त भाषाएँ (Extinct Languages): वे भाषाएँ जिन्हें अब कोई भी बोलता-समझता न हो।

यूनेस्को के अनुसार, विश्व में अनुमानित 6000 भाषाओं में से मात्र 57% भाषाओं को सुरक्षित (Safe) की श्रेणी में रखा जा सकता है जबकि 10% भाषाएँ सुभेद्य (Vulnerable), 10.7% लुप्तप्राय (Definitely Endangered), लगभग 9% गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Severely Endangered), 9.6 अत्यंत संकटग्रस्त (Critically Endangered) तथा लगभग 3.8% भाषाएँ विलुप्त (Extinct) हो चुकी हैं।

Endangered Languages Project (ELP):

  • इस परियोजना की शुरूआत विभिन्न देशों के भाषाविदों और भाषा संस्थानों के सहयोग से वर्ष 2012 में की गई थी।
  • इसका प्रमुख उद्देश्य लुप्तप्राय भाषाओं से संबंधित जानकारी का आदान-प्रदान और उनके संरक्षण को बढ़ावा देना है।
  • गूगल और इस्टर्न मिशिगन यूनिवर्सिटी (Eastern Michigan University) जैसी संस्थाएँ इस परियोजना की संस्थापक सदस्य हैं।
  • ELP के आँकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 201 भाषाएँ विलुप्त होने के कगार पर हैं जबकि नेपाल में ऐसी भाषाओं की संख्या 71 बताई गई है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

निजी संपत्ति एक मानवाधिकार

प्रीलिम्स के लिये:

संपत्ति का अधिकार

मेन्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निजी संपत्ति के अधिकार को मानवाधिकार घोषित करने के संबंध में दिया गया निर्णय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए एक निर्णय में नागरिकों के निजी संपत्ति पर अधिकार को मानवाधिकार घोषित किया गया है।

मुख्य बिंदु:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय संपत्ति के अधिकार की 44वें संशोधन से पूर्व की स्थिति को आधार मानते हुए दिया है।

क्या था मामला?

  • वर्ष 1967 में हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा सड़क निर्माण के लिये अधिग्रहण प्रक्रियाओं का पालन किये बिना एक विधवा महिला की 4 एकड़ ज़मीन अधिगृहीत कर ली गई थी।
  • एक ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाली अशिक्षित महिला होने के कारण अपीलकर्त्ता अपने अधिकारों तथा विधिक प्रक्रियाओं से अनभिज्ञ थी, अतः उसने राज्य द्वारा अनिवार्य रूप से अधिगृहित भूमि के मुआवज़े के लिये कोई विधिक कार्यवाही नहीं की।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:

  • इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि विधि द्वारा संचालित किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में राज्य विधि की अनुमति के बिना नागरिकों को उनकी संपत्ति से वंचित नहीं कर सकता है।
  • राज्य द्वारा किसी नागरिक की निजी भूमि का अधिग्रहण करके उस भूमि पर अपना दावा करना राज्य को अतिक्रमणकारी बनाता है।
  • राज्य किसी भी नागरिक की संपत्ति पर ‘एडवर्स पजेशन’ (Adverse Possession) के नाम पर अपने स्वामित्त्व का दावा नहीं कर सकता है।

एडवर्स पजेशन:

(Adverse Possession)

  • यह एक विधिक शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ ‘प्रतिकूल कब्ज़ा’ है।
  • अगर किसी ज़मीन या मकान पर उसके वैध या वास्तविक मालिक के बजाय किसी अन्य व्यक्ति का 12 वर्ष तक अधिकार रहा है और अगर वास्तविक या वैध मालिक ने अपनी अचल संपत्ति को दूसरे के कब्जे से वापस लेने के लिये 12 वर्ष के भीतर कोई कदम नहीं उठाया है तो उसका मालिकाना हक समाप्त हो जाएगा और उस अचल संपत्ति पर जिसने 12 वर्ष तक कब्ज़ा कर रखा है, उस व्यक्ति को कानूनी तौर पर मालिकाना हक दिया जा सकता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य को अपने स्वयं के नागरिकों की संपत्ति के अधिग्रहण के लिये एडवर्स पजेशन के सिद्धांत को लागू करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार ने उस विधवा महिला के अशिक्षित होने का लाभ उठाते हुए उसे 52 वर्षों तक मुआवज़ा प्रदान नहीं किया।
  • इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश सरकार को अपीलकर्त्ता को 1 करोड़ रुपए का मुआवज़ा प्रदान करने का आदेश दिया है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार ने जब अपीलकर्त्ता की ज़मीन का अधिग्रहण किया था उस समय संविधान के अनुच्छेद-31 के तहत निजी संपत्ति का अधिकार एक मौलिक अधिकार था।

संपत्ति का अधिकार:

(Right to Property):

  • संपत्ति के अधिकार को वर्ष 1978 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा मौलिक अधिकार से विधिक अधिकार में परिवर्तित कर दिया गया था।
  • 44वें संविधान संशोधन से पहले यह अनुच्छेद-31 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार था, परंतु इस संशोधन के बाद इस अधिकार को अनुच्छेद- 300(A) के अंतर्गत एक विधिक अधिकार के रूप में स्थापित किया गया।
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार भले ही संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं रहा इसके बावजूद भी राज्य किसी व्यक्ति को उसकी निजी संपत्ति से उचित प्रक्रिया और विधि के अधिकार का पालन करके ही वंचित कर सकता है।

स्रोत- द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र

प्रीलिम्स के लिये :

साइबर क्राइम, (I4C) के घटक

मेन्स के लिये :

साइबर अपराध को रोकने के संदर्भ में भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र की भूमिका

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा साइबर क्राइम से निपटने के लिये ‘भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र’ (Indian Cyber Crime Coordination Centre-I4C) का उद्घाटन किया गया है।

महत्वपूर्ण बिंदु :

  • इस योजना को संपूर्ण भारत में लागू किया गया है।
  • I4C की स्थापना की योजना को व्यापक और समन्वित तरीके से सभी प्रकार के साइबर अपराधों से निपटने के लिये अक्टूबर 2018 में मंज़ूरी दी गई थी।
  • साइबर क्राइम से बहेतर तरीके से निपटने के लिये तथा I4C को समन्वित और प्रभावी तरीके से लागू करने हेतु इस योजना के निम्नलिखित सात प्रमुख घटक है-
  • नेशनल साइबरक्राइम थ्रेट एनालिटिक्स यूनिट
    (National Cybercrime Threat Analytics Unit)
  • नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल
    (National Cyber Crime Reporting Portal)
  • संयुक्त साइबर अपराध जाँच दल के लिये मंच
    (Platform for Joint Cyber Crime Investigation Team)
  • राष्ट्रीय साइबर अपराध फोरेंसिक प्रयोगशाला पारिस्थितिकी तंत्र
    (National Cyber Crime Forensic Laboratory Ecosystem)
  • राष्ट्रीय साइबर क्राइम प्रशिक्षण केंद्र
    (National Cyber Crime Training Centre)
  • साइबर क्राइम इकोसिस्टम मैनेजमेंट यूनिट
    (Cyber Crime Ecosystem Management Unit)
  • राष्ट्रीय साइबर अनुसंधान और नवाचार केंद्र
    (National Cyber Research and Innovation Centre.)
  • फिलहाल 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने क्षेत्रीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र स्थापित करने के लिये अपनी सहमति व्यक्त की है।
  • यह अत्याधुनिक केंद्र दिल्ली में स्थित है।

राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल:

  • यह पोर्टल नागरिकों को ऑनलाइन साइबर अपराध के खिलाफ शिकायत करने में सक्षम बनता है।
  • यह पोर्टल महिलाओं, बच्चों, विशेष रूप से बाल पोर्नोग्राफी, बाल यौन शोषण सामग्री, बलात्कार/सामूहिक बलात्कार से संबंधित ऑनलाइन सामग्री के खिलाफ अपराधों पर विशेष ध्यान देने के साथ सभी साइबर अपराधों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने पर केंद्रित है।
  • नागरिक इस पोर्टल की वेबसाइट के माध्यम से किसी भी तरह के साइबर अपराध के बारे में शिकायत दर्ज कर सकेगे, चाहे वह किसी भी स्थान पर हो।
  • इस पोर्टल को प्रायोगिक आधार पर 30 अगस्त 2019 को लॉन्च किया गया था।
  • यह पोर्टल वित्तीय अपराध तथा सोशल मीडिया से संबंधित अपराधों जैसे कि स्टॉकिंग (Stalking) एवं साइबरबुलिंग (Cyberbullying) आदि जैसे अपराधों पर भी ध्यान केंद्रित करता है।

अन्य तथ्य :

  • केंद्र सरकार द्वारा साइबर अपराध के प्रति जागरूकता फैलाने और साइबर अपराध से बचाव के लिये साइबर अलर्ट/एडवाइजरी, कानून प्रवर्तन अधिकारियों/न्यायाधीशों/अभियोजकों की क्षमता निर्माण करने तथा साइबर फोरेंसिक सुविधाओं में सुधार करने आदि के लिये भी कदम उठाए गए हैं।
  • पुलिस और लोक व्यवस्था राज्य सूची का विषय हैं। अतः राज्य/संघ राज्य क्षेत्र अपने यहाँ कानून के माध्यम से अपराधों की रोकथाम, अपराधियों का पता लगाने, जाँच और अभियोजन के लिये मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं।

साइबर अपराध:

ये ऐसे गैर-कानूनी कार्य हैं जिनमें कंप्यूटर एवं इंटरनेट नेटवर्क का प्रयोग एक साधन अथवा लक्ष्य अथवा दोनों के रूप में किया जाता है। ऐसे अपराधों में हैकिंग, चाइल्ड पॉर्नोग्राफी, साइबर स्टॉकिंग, सॉफ्टवेयर पाइरेसी, क्रेडिट कार्ड फ्रॉड, फिशिंग आदि को शामिल किया जाता हैं।

स्रोत : पी आई बी ,द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

वायनाड आर्द्रभूमि पक्षी गणना

प्रीलिम्स के लिये:

वायनाड आर्द्रभूमि पक्षी गणना, एशियन वॉटर-बर्ड सेंसस

मेन्स के लिये:

वायनाड आर्द्रभूमि पक्षी गणना का महत्त्व।

चर्चा में क्यों ?

11-12 जनवरी, 2020 को सामाजिक वानिकी वायनाड (Social Forestry Wayanad), ह्यूम सेंटर फॉर इकोलॉजी ( Hume Centre for Ecology-HCE), वाइल्ड लाइफ बायोलॉजी (Wildlife Biology) और कॉलेज ऑफ वेटरनरी एंड एनिमल साइंसेज (College of Veterinary and Animal Sciences-CVAS), पूकोड ( Pookode) द्वारा संयुक्त रूप से वायनाड आर्द्रभूमि पक्षी गणना (Wayanad Wetland Bird Count) केरल के वायनाड ज़िले में संपन्न हुई।

गणना के आयोजक :

इस गणना का आयोजन, एशियाई वॉटर-बर्ड जनगणना (Asian Waterbird Census-AWC) के तहत सिटिजन साइंस वेंचर (Citizen Science Venture- CSV) द्वारा किया गया।

प्रमुख बिंदु :

  • इस गणना में वायनाड ज़िले के प्रमुख आर्द्रभूमि पारिस्थितिक तंत्रों से जुड़े जलप्रपातों को शामिल कर स्थानिक और प्रवासी दोनों प्रकार के पक्षियों को शामिल किया गया।
  • इसमें कबीना नदी के तट पर स्थित पमामराना आर्द्रभूमि क्षेत्र (Pamamaraan wetlands on the banks of the Kabani river ) मनंथवादी के पास स्थित अरतुथारा धान के खेत (Arattuthara paddy field near Mananthavadi ), राज्य की दूसरी सबसे बड़ी मीठे पानी की झील- पूकोड झील (Pookode lake ), वायनाड वन्यजीव अभयारण्य में स्थित अमावयाल और गोलूर (Ammavayal and Golur inside the Wayanad Wildlife Sanctuary) तथा बाणासुर सागर एवं करपुझा जलाशयों के जल क्षेत्र (water belt areas of Banasura Sagar and Karapuzha reservoirs ) को शामिल किया गया है।
  • इस दौरान एक पक्षी पहचान कार्यशाला कार्यक्रम का आयोजन 11 जनवरी, 2020 को आयोजित किया गया।

गणना के लाभ:

  • वार्षिक घटना से उत्पन्न डेटा का आधार पर जलवायु और पारिस्थितिक तंत्र परिवर्तनों के चलते पक्षियों की आबादी में होने वाले बदलावों को समझने में मदद मिलती है जिससे वैश्विक प्रयासों को बढ़ाने में मदद मिलती हैं।
  • आर्द्र्भूमि पारिस्थितिकी किसी क्षेत्र के जल संसाधनों को बनाए रखने तथा कृषि उत्पादन प्रणालियों की जीवन रेखा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

एशियाई जलीय पक्षी गणना:

  • एशियाई जलपक्षी गणना (Asian WaterBirds Census-AWC) एक अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम है जो जल पक्षियों और आर्द्रभूमि की स्थिति की निगरानी पर केंद्रित है।
  • इसका उद्देश्य जल पक्षियों के संरक्षण और आर्द्रभूमि से संबंधित मुद्दों पर जन जागरूकता में वृद्धि करना है।
  • भारत में, AWC को बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) और वेटलैंड्स इंटरनेशनल द्वारा वार्षिक रूप से आयोजित किया जाता है।
  • यह पक्षी गणना वैश्विक परियोजना ‘द इंटरनेशनल वॉटर बर्ड सेंसस प्रोग्राम’ का एक अभिन्न अंग है।
  • इसका आयोजन हर साल जनवरी में किया जाता है। इसके तहत एशिया और ऑस्ट्रेलिया में हज़ारों स्वयंसेवक अपने देश की आर्द्रभूमि का भ्रमण कर जलपक्षियों/वाटरबर्ड्स की गणना करते हैं।
  • एशियन वॉटर बर्ड सेंसस को अफ्रीका, एशिया, पश्चिम एशिया, नियोट्रोपिक और कैरेबियन में अंतर्राष्ट्रीय वॉटर बर्ड जनगणना के अन्य क्षेत्रीय कार्यक्रमों के समानांतर आयोजित किया जाता है। भारतीय उपमहाद्वीप में AWC की शुरुआत वर्ष 1987 में की गई थी।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 13 जनवरी, 2020

कलकत्ता पोर्ट का नाम परिवर्तन

कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट का नाम बदलकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम पर कर दिया गया है। हाल ही में कलकत्ता पोर्ट ट्रस्ट की 150वीं वर्षगाँठ के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में यह निर्णय लिया गया। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कलकत्ता पोर्ट ट्रस्ट पर स्मारक डाक टिकट भी जारी किये। ज्ञात हो कि 6 जुलाई, 1901 को कलकत्ता में जन्मे श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक प्रसिद्ध राजनेता, शिक्षाविद् व बैरिस्टर थे। वे पंडित जवाहरलाल नेहरु की सरकार में उद्योग व आपूर्ति मंत्री रहे और जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर पंडित नेहरु से मतभेद के कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग हो गए। वर्ष 1951 में उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की सहायता से भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जिससे बाद में भारतीय जनता पार्टी (BJP) अस्तित्व में आई।

विश्व भविष्य उर्जा शिखर सम्मेलन

संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की राजधानी अबू धाबी में 13 जनवरी, 2020 को विश्व भविष्य उर्जा शिखर सम्मेलन (World Future Energy Summit) की शुरुआत की गई है। गौरतलब है कि यह शिखर सम्मेलन चार दिन तक चलेगा। भविष्य की ऊर्जा से संबंधित इस सम्मेलन में 170 देशों के 33,500 प्रतिनिधि‍ शामिल होंगे। इस वर्ष के शिखर सम्‍मेलन का विषय है- ऊर्जा के वैश्विक उपभोग, उत्‍पादन और निवेश पर पुनर्विचार। यह शिखर सम्‍मेलन प्रत्येक वर्ष अबू धाबी के राष्‍ट्रीय प्रदर्शनी केंद्र पर आयोजित किया जाता है।

जसप्रीत बुमराह पॉली उमरीगर अवार्ड से सम्मानित

भारतीय टीम के तेज़ गेंदबाज़ जसप्रीत बुमराह को 2018-19 सत्र में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन के लिये प्रतिष्ठित पॉली उमरीगर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 26 वर्षीय गेंदबाज़ बुमराह को BCCI के वार्षिक समारोह के दौरान ये पुरस्कार दिया गया। एक दिवसीय क्रिकेट में विश्व के सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज़ बुमराह ने जनवरी 2018 में भारत के दक्षिण अफ्रीका दौरे पर टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू किया था। पॉली उमरीगर अवार्ड अंतर्राष्ट्रीय पुरुष क्रिकेटर को बेहतरीन प्रदर्शन करने के लिये प्रदान किया जाता है, इस पुरस्कार के विजेता को एक ट्रॉफी और 15 लाख रुपए दिये जाते हैं।

ड्रोन और उनके संचालकों का स्‍वैच्छिक पंजीकरण

नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने सभी ड्रोन और उनके संचालकों के स्‍वैच्छिक पंजीकरण हेतु 31 जनवरी तक एक विंडो उपलब्‍ध कराने की योजना की घोषणा की है। मंत्रालय ने एक अधिसूचना में कहा कि जो लोग इस अवधि के भीतर पंजीकरण नहीं कराएँगे उनके विरूद्ध भारतीय दंड संहिता और विमानन कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी। ड्रोन के बारे में फिक्‍की की एक समिति ने अनुमान व्‍यक्‍त किया है कि पिछले वर्ष भारत में गैर कानूनी ड्रोन की संख्‍या 50 से 60 हजार के बीच में रही थी।


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