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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

लुप्तप्राय नेपाली ‘सेके’ भाषा

  • 13 Jan 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

‘सेके’ भाषा

मेन्स के लिये:

भाषाई विविधता का देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में योगदान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नेपाल की ‘सेके’ (Seke) नामक एक भाषा विश्व भर में चर्चा का विषय बनी रही, लुप्तप्राय भाषाओं पर काम करने वाली एक संस्था इंडेंज़र्ड लैंवेज़ अलायंस (Endangered Language Alliance-ELA) के अनुसार, वर्तमान में विश्वभर में ‘सेके’ भाषी लोगों की संख्या मात्र 700 ही रह गई है।

सेके भाषा:

  • सेके, जिसका अर्थ होता है ‘सुनहरी भाषा’ (Golden Language) यह नेपाल में बोली जाने वाली 100 जनजातीय भाषाओं में से एक है।
  • इस भाषा को ‘सेके’ भाषा को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन-यूनेस्को (United Nations Educational Scientific and Cultural Organization-UNESCO) की संकटग्रस्त (Definitely Endangered) भाषाओं की सूची में रखा गया है।
  • यह भाषा मुख्यतः नेपाल के ऊपरी मुस्तांग ज़िले के पाँच गाँवों- चुकसंग, सैले , ग्याकर, तांग्बे और तेतांग में बोली जाती है।
  • इन गाँवों में सेके भाषा की बोली और इसकी स्पष्टता भी एक-दूसरे से भिन्न है।
  • इस भाषा के इतिहास को हिमालय की चोटियों पर बसे गाँवों से जोड़कर देखा जाता है, जहाँ के लोग बाद में आकर मुस्तांग ज़िले में बस गए।
  • अधिकांश सेके भाषी समुदाय के लोग सेब की खेती से जुड़े रहे हैं, परंतु पिछले कुछ वर्षों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से इस क्षेत्र में पड़ रही कड़क ठंड और अनियमित वर्षा ने इस क्षेत्र की कृषि को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, जिससे अधिकांश सेके भाषी लोगों को इस क्षेत्र से पलायन करने पर विवश होना पड़ा।
  • व्यवसायों और सरकारी नौकरियों में नेपाली (नेपाल की राष्ट्रीय भाषा) के प्रभुत्व और ‘सेके’ भाषा के लिए अवसरों की कमी इस भाषा के विलुप्त होने का प्रमुख कारण है।
  • वर्तमान में बचे 700 सेके भाषी लोगों में लगभग 100 न्यूयार्क के ब्रूक्लिन (Brooklyn) व क्वींस (Queens) क्षेत्र में बसे हैं, जिनमें से 50 लोग एक ही बिल्डिंग/इमारत में रहते हैं।

यूनेस्को द्वारा परिभाषित लुप्तप्राय भाषाओं की 6 श्रेणियाँ:

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन-यूनेस्को (United Nations Educational Scientific and Cultural Organization-UNESCO) ने भाषाओं को उनके बोलने-समझने वाले लोगों की संख्या के आधार पर 6 श्रेणियों में विभाजित किया है-

  1. सुरक्षित (Safe): वे भाषाएँ जो सभी पीढ़ियों (Generations) के लोग बोलते हैं तथा उन्हें एक-दूसरे से संवाद में कोई कठिनाई नहीं होती है।
  2. सुभेद्य (Vulnerable): वे भाषाएँ जो नई पीढ़ी (बच्चों) द्वारा बोली जाती है परंतु वे कुछ क्षेत्रों/परिस्थितियों तक सीमित हों।
  3. लुप्तप्राय/संकटग्रस्त (Definitely Endangered): वे भाषाएँ जिन्हें बच्चे मातृभाषा के रूप में नहीं सीखते हैं।
  4. गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Severely Endangered): वे भाषाएँ जो बुजुर्ग पीढ़ी (दादा-दादी) द्वारा बोली जाती हैं और जिन्हें उनके बच्चे समझते तो हों लेकिन अगली पीढ़ी से उस भाषा में बात नहीं करते हैं।
  5. अत्यंत संकटग्रस्त (Critically Endangered): वे भाषाएँ जिन्हें केवल बुजुर्ग पीढ़ी के लोग समझते हों और इनका प्रयोग भी बहुत ही कम अवसरों पर किया जाता है।
  6. विलुप्त भाषाएँ (Extinct Languages): वे भाषाएँ जिन्हें अब कोई भी बोलता-समझता न हो।

यूनेस्को के अनुसार, विश्व में अनुमानित 6000 भाषाओं में से मात्र 57% भाषाओं को सुरक्षित (Safe) की श्रेणी में रखा जा सकता है जबकि 10% भाषाएँ सुभेद्य (Vulnerable), 10.7% लुप्तप्राय (Definitely Endangered), लगभग 9% गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Severely Endangered), 9.6 अत्यंत संकटग्रस्त (Critically Endangered) तथा लगभग 3.8% भाषाएँ विलुप्त (Extinct) हो चुकी हैं।

Endangered Languages Project (ELP):

  • इस परियोजना की शुरूआत विभिन्न देशों के भाषाविदों और भाषा संस्थानों के सहयोग से वर्ष 2012 में की गई थी।
  • इसका प्रमुख उद्देश्य लुप्तप्राय भाषाओं से संबंधित जानकारी का आदान-प्रदान और उनके संरक्षण को बढ़ावा देना है।
  • गूगल और इस्टर्न मिशिगन यूनिवर्सिटी (Eastern Michigan University) जैसी संस्थाएँ इस परियोजना की संस्थापक सदस्य हैं।
  • ELP के आँकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 201 भाषाएँ विलुप्त होने के कगार पर हैं जबकि नेपाल में ऐसी भाषाओं की संख्या 71 बताई गई है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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