अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-मॉरीशस संबंध
प्रिलिम्स के लिये: व्यापक आर्थिक सहयोग एवं भागीदारी समझौता, AIKEYME, अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र, अगालेगा द्वीप
मेन्स के लिये: बदलते हिंद-प्रशांत परिदृश्य में भारत-मॉरीशस संबंधों का महत्त्व, भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी और इसके क्षेत्रीय निहितार्थ।
चर्चा में क्यों?
वाराणसी की यात्रा के दौरान मॉरीशस के प्रधानमंत्री ने भारत को मॉरीशस के सामाजिक–आर्थिक विकास में एक विश्वसनीय भागीदार बताया और कहा कि भारत ने हर समय उसे निरंतर समर्थन प्रदान किया है।
मॉरीशस के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के मुख्य परिणाम क्या हैं?
- विकास और आर्थिक सहयोग: भारत ने मॉरीशस के लिये एक विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की, जिसमें पोर्ट लुई का विकास, चागोस मरीन संरक्षित क्षेत्र की निगरानी तथा अवसंरचना, रोज़गार और स्वास्थ्य परियोजनाओं में सहयोग शामिल है।
- भारत के बाहर पहला जन औषधि केंद्र मॉरीशस में स्थापित किया गया है और भारत वहाँ आयुष उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना में भी सहयोग देगा।
- सामुदायिक विकास और क्षमता निर्माण: विकास साझेदारी को सुदृढ़ करने हेतु उच्च प्रभाव वाली सामुदायिक विकास परियोजनाओं के दूसरे चरण के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए।
- भारत, मिशन कर्मयोगी को एक संदर्भ मंच के रूप में उपयोग करते हुए मॉरीशस की सिविल सेवा क्षमता निर्माण में सहयोग करेगा।
- ऊर्जा: ऊर्जा और विद्युत क्षेत्र में सहयोग के लिये एक MoU पर हस्ताक्षर किये गए, जिसके अंतर्गत मॉरीशस की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु 17.5 मेगावाट का फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट स्थापित किया जाएगा।
- अंतरिक्ष सहयोग: उपग्रह टेलीमेट्री, नेविगेशन, रिमोट सेंसिंग और क्षमता निर्माण के लिये अंतरिक्ष सहयोग पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए।
भारत के मॉरीशस के साथ संबंध कैसे हैं?
- राजनयिक और राजनीतिक संबंध: भारत ने मॉरीशस की स्वतंत्रता (1968) से पहले वर्ष 1948 में राजनयिक संबंध स्थापित किये थे।
- भारत–मॉरीशस व्यापक आर्थिक सहयोग और साझेदारी समझौता (CECPA), 2021 भारत का किसी अफ्रीकी देश के साथ किया गया पहला व्यापार समझौता है। संबंधों को वर्ष 2025 में एक उन्नत सामरिक साझेदारी तक बढ़ाया गया।
- व्यापार और निवेश: भारत, एक व्यापारिक साझेदार के रूप में, वर्ष 2024 में मॉरीशस के कुल आयात का 11% हिस्सा रखता है और उसके शीर्ष व्यापारिक साझेदारों में तीसरे स्थान पर रहा।
- भारत के प्रमुख निर्यातों में पेट्रोलियम, फार्मास्यूटिकल्स, अनाज, कपास, झींगा और गोजातीय माँस शामिल हैं।
- मॉरीशस के प्रमुख निर्यातों में वेनिला, चिकित्सा उपकरण, एल्युमीनियम मिश्र धातु, परिष्कृत तांबा और सूती शर्ट शामिल हैं।
- मॉरीशस ने वर्ष 2000 से वर्ष 2025 के बीच भारत में कुल 180 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) किया है, जो कुल प्रवाह का 25% है और इसे दोहरे कराधान बचाव समझौता (Double Taxation Avoidance Convention) ने सुगम बनाया।
- वित्त वर्ष 2023–24 में सिंगापुर के बाद मॉरीशस भारत का दूसरा सबसे बड़ा FDI स्रोत था।
- विकास और सांस्कृतिक संबंध: भारत स्वास्थ्य, शिक्षा और सांस्कृतिक संस्थानों जैसे महात्मा गांधी संस्थान और भारतीय सांस्कृतिक केंद्र (जो विदेशों में सबसे बड़ा है) को सहयोग प्रदान करता है, जिससे प्रतिवर्ष 2,500 से अधिक मॉरीशस के छात्र लाभान्वित होते हैं।
- पीपल-टू-पीपल लिंक: मॉरीशस में लगभग 26,000 भारतीय नागरिक और 13,000 ओवरसीज सिटीजनशिप ऑफ इंडिया (OCI) कार्डधारक रहते हैं।
- भारतीय मूल के मॉरीशसवासियों के लिये OCI पात्रता को सात पीढ़ियों तक विस्तारित किया गया है।
- पर्यटन और शिक्षा: भारत और मॉरीशस के बीच पर्यटन मज़बूत है, जहाँ भारतीयों के लिये बिना वीज़ा प्रवेश और मॉरीशसवासियों के लिये निशुल्क वीज़ा की सुविधा उपलब्ध है।
- सामरिक और क्षेत्रीय सहयोग: मॉरीशस, भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीति और विज़न MAHASAGAR के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- भारत, AIKEYME जैसे अभ्यासों के माध्यम से मॉरीशस के कर्मियों को प्रशिक्षण देता है, तट रक्षक जहाजों का पुनः सुसज्जन करता है और समुद्री क्षमताओं को मज़बूत करता है।
भारत और मॉरीशस के बीच द्विपक्षीय संबंधों का क्या महत्त्व है?
भारत के लिये मॉरीशस का महत्त्व
- रणनीतिक स्थिति: पश्चिमी हिंद महासागर में मॉरीशस की स्थिति भारत को समुद्री मार्गों की सुरक्षा करने और सागर/महासागर (SAGAR/MAHASAGAR) के तहत क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा बनाए रखने में मदद करती है।
- यह चीन के बढ़ते प्रभाव का संतुलन साधने का कार्य करता है और भारत की क्षेत्रीय भूमिका को मज़बूत बनाता है।
- आर्थिक संबंध: मॉरीशस भारत के व्यापार और निवेश के लिये अफ्रीका का द्वार है, क्योंकि यह अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र (AfCFTA) का हिस्सा है।
मॉरीशस के लिये भारत का महत्त्व
- विकास सहयोगी: भारत ने पिछले एक दशक में 1 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक की सहायता प्रदान की है तथा मॉरीशस के अनन्य आर्थिक क्षेत्र की रक्षा करने तथा उसके कर्मियों को प्रशिक्षित करने में मदद की है।
- आपदा राहत: भारत संकट के समय प्रथम प्रत्युत्तरदाता (first responder) की भूमिका निभाता है, जैसे वाकाशियो तेल रिसाव (2020), चक्रवात चिडो (2024) और कोविड-19 महामारी के दौरान।
भारत-मॉरीशस संबंधों में चुनौतियाँ क्या हैं?
- भारतीय सहायता पर निर्भर: मॉरीशस विकास सहायता, रियायती ऋण और अनुदान के लिये भारत पर बहुत अधिक निर्भर है। अत्यधिक निर्भरता के कारण मॉरीशस अपनी आर्थिक और सुरक्षा आवश्यकताओं के लिये किसी एक देश पर निर्भरता से बचने के लिये अपनी साझेदारियों में विविधता ला सकता है।
- भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा: जिनफेई स्मार्ट सिटी और बंदरगाह परियोजनाओं सहित मॉरीशस में बढ़ते चीनी निवेश, भारत के रणनीतिक प्रभाव को चुनौती देते हैं।
- घरेलू नीतियाँ तथा चीन, फ्राँस और अमेरिका के साथ संबंधों में संतुलन भारत के लिये जटिल हो जाता है।
- भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा: जिनफेई स्मार्ट सिटी और बंदरगाह परियोजनाओं सहित मॉरीशस में बढ़ते चीनी निवेश, भारत के रणनीतिक प्रभाव को चुनौती देते हैं।
- निजी क्षेत्र की सीमित भागीदारी: मॉरीशस में आर्थिक गतिविधियों में भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का प्रभुत्व है, जबकि निजी क्षेत्र की भागीदारी कम बनी हुई है, जिससे नवाचार एवं व्यापार विविधीकरण सीमित हो रहा है।
- समुद्री सुरक्षा: समुद्री डकैती, मादक पदार्थों की तस्करी और अवैध मत्स्य संग्रहण से पश्चिमी हिंद महासागर में स्थिरता को खतरा है।
- व्यापार बाधाएँ: उच्च रसद लागत और सीमित प्रत्यक्ष शिपिंग मार्ग द्विपक्षीय व्यापार को प्रतिबंधित करते हैं।
भारत और मॉरीशस के बीच संबंधों को मज़बूत करने के लिये आगे की राह क्या होनी चाहिये?
- व्यापार और आर्थिक साझेदारी: CECPA का विस्तार सेवाओं, फिनटेक और डिजिटल व्यापार को शामिल करने के लिये किया जाए।
- रुपया–मॉरीशस रुपया भुगतान प्रणाली शुरू की जाए और मॉरीशस को अफ्रीका के लिये भारत का वित्तीय द्वार के रूप में बढ़ावा (विशेष रूप से प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और वित्तीय सेवाओं में) दिया जाए, साथ ही निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित किया जाए।
- विकास और स्थिरता: तेल रिसाव और तटीय क्षरण मॉरीशस की अर्थव्यवस्था और पर्यटन के लिये खतरा है। इसलिये हरित ऊर्जा, जल सुरक्षा, नीली अर्थव्यवस्था परियोजनाएँ, जलवायु अनुकूलन, आपदा प्रबंधन तथा समुद्री संरक्षण को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- सामरिक सहयोग: भारत को समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने और MAHASAGAR के तहत क्षेत्रीय रणनीतिक उपस्थिति के लिये मॉरीशस के साथ मिलकर अगलेगा द्वीप के बुनियादी ढाँचे और निगरानी क्षमताओं को बढ़ाना चाहिये।
- वित्तीय एवं विनियामक सुदृढ़ीकरण: धन शोधन विरोधी सहयोग को बढ़ाना तथा वैश्विक वित्तीय केंद्र के रूप में मॉरीशस की भूमिका को सुदृढ़ करना।
- सांस्कृतिक और प्रवासी जुड़ाव: भारतीय संस्कृति, विरासत, हिंदी भाषा, छात्रवृत्तियों, भारतीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रमों को बढ़ावा देना और प्रवासी भारतीयों के साथ संवाद और सहयोग के लिए प्रवासी भारतीय केंद्र की स्थापना करना।
निष्कर्ष
भारत-मॉरीशस संबंध एक रणनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक साझेदारी हैं, जहाँ भारत विकास तथा सुरक्षा को बढ़ावा देता है एवं मॉरीशस MAHASAGAR में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। व्यापार, स्थिरता व प्रवासी समुदायों के साथ जुड़ाव को मज़बूत करने से एक मज़बूत और पारस्परिक रूप से लाभकारी संबंध सुनिश्चित होगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: MAHASAGAR पहल के संदर्भ में भारत के लिये मॉरीशस के सामरिक और आर्थिक महत्त्व पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
प्रिलिम्स:
प्रश्न 1. भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का एक बड़ा हिस्सा ब्रिटेन और फ्राँस जैसी कई प्रमुख एवं विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में मॉरीशस से आता है। क्यों? (2010)
(a) FDI प्राप्त करने के संबंध में भारत कुछ देशों को प्राथमिकता देता है।
(b) भारत का मॉरीशस के साथ दोहरा कराधान परिहार समझौता हुआ है।
(c) मॉरीशस के अधिकांश नागरिकों की भारत के साथ जातीय पहचान है और इसलिये वे भारत में निवेश करने में सुरक्षित महसूस करते हैं।
(d) वैश्विक जलवायु परिवर्तन के आसन्न खतरों के कारण मॉरीशस भारत में भारी निवेश कर रहा है।
उत्तर: (b)
मेन्स
प्रश्न 1. परियोजना 'मौसम' को भारत सरकार की अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों की सुदृढ़ करने की एक अद्वितीय विदेश नीति पहल माना जाता है। क्या इस परियोजना का एक रणनीतिक आयाम है? चर्चा कीजिये। (2015)


मुख्य परीक्षा
भारत-श्रीलंका मत्स्य ग्रहण विवाद
चर्चा में क्यों?
भारत-श्रीलंका मत्स्य ग्रहण विवाद इस तर्क को उजागर करता है कि पाक जलडमरूमध्य और कच्चातिवु द्वीप (Katchatheevu Islands) के आसपास मत्स्य जीविकोपार्जन और पारिस्थितिक संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करने के लिये एक ‘मानवीय दृष्टिकोण’ अपनाने की आवश्यकता है।
भारत-श्रीलंका मत्स्य ग्रहण विवाद क्या है?
- स्थान: यह विवाद पाक जलडमरूमध्य को लेकर है, जो तमिलनाडु (भारत) और श्रीलंका के उत्तरी प्रांत को अलग करने वाला एक संकरा जलमार्ग है। पाक जलडमरूमध्य पाक खाड़ी को बंगाल की खाड़ी से जोड़ता है।
- कच्चातिवु पाक जलडमरूमध्य में स्थित एक छोटा, निर्जन द्वीप है। यह विवाद इस 285 एकड़ के द्वीप से संबंधित है, जिसे वर्ष 1974 का समुद्री सीमा समझौता (Maritime Boundary Agreement) के तहत श्रीलंका को सौंपा गया था।
- यद्यपि संप्रभुता कानूनी रूप से श्रीलंका के पक्ष में निश्चित है, फिर भी भारतीय मछुआरों को जाल सुखाने तथा धार्मिक उद्देश्यों के लिये उस द्वीप पर जाने की अनुमति है।
- मात्स्यिकी अधिकार एक अलग मामला है जो ऐतिहासिक प्रथा, अंतर्राष्ट्रीय कानून (सामुद्रिक कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCLOS), 1982) और द्विपक्षीय समझौतों द्वारा शासित होते हैं।
- कच्चातिवु पाक जलडमरूमध्य में स्थित एक छोटा, निर्जन द्वीप है। यह विवाद इस 285 एकड़ के द्वीप से संबंधित है, जिसे वर्ष 1974 का समुद्री सीमा समझौता (Maritime Boundary Agreement) के तहत श्रीलंका को सौंपा गया था।
- संबंधित समुदाय: परंपरागत तमिलनाडु के मछुआरे और श्रीलंका के उत्तरी प्रांत के मछुआरे सदियों से इन जलक्षेत्रों को साझा करते आए हैं।
- मुख्य विवाद: भारतीय यांत्रिक ट्रॉलर्स श्रीलंकाई जलक्षेत्रों में प्रवेश कर बॉटम ट्रॉलिंग करते हैं, जिसे श्रीलंका ने वर्ष 2017 से प्रतिबंधित किया हुआ है। यह प्रक्रिया प्रवाल भित्तियों, झींगा आवासों को क्षति पहुँचाती है और मत्स्य भंडार को नष्ट करती है।
- छोटे स्तर के शिल्पकार मछुआरे जीविका संकट का सामना करते हैं, क्योंकि यांत्रिक ट्रॉलर्स व्यावसायिक लाभ की खोज में साझा समुद्री संसाधनों को क्षति पहुँचाते हैं।
- इस प्रकार यह संघर्ष सीमापार (भारत–श्रीलंका) और समुदाय के भीतर (तमिलनाडु में कारीगर बनाम ट्रॉलर संचालक) दोनों है।
- हाई सीज़ (High Seas) संबंधी मुद्दे: मत्स्य भंडार के क्षय के कारण भारतीय मछुआरे बढ़ती संख्या में हाई सीज़ क्षेत्रों की ओर बढ़ रहे हैं, जिसके कारण मालदीव के जलक्षेत्र में और डिएगो गार्सिया के पास ब्रिटिश नौसेना द्वारा कथित तौर पर समुद्री सीमा पार करने के आरोप में गिरफ्तारियाँ हो रही हैं।
भारत तथा श्रीलंका के बीच मत्स्य-ग्रहण संबंधी समस्या का समाधान करने तथा धारणीय मात्स्यिकी सुनिश्चित करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- आजीविका में अंतर: परंपरागत और धारणीय तरीकों पर निर्भर कारीगर मछुआरों (Artisanal Fishers) को प्राथमिकता दें। इसके साथ ही यंत्र चालित बॉटम ट्रॉलिंग (Mechanised Bottom Trawling) को धीरे-धीरे समाप्त करें, क्योंकि यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाती है और भारतीय व श्रीलंकाई छोटे मछुआरों दोनों की आजीविका को प्रभावित करती है।
- सहयोग ढाँचे को मज़बूत करना: मछुआरा समूहों, वैज्ञानिकों और अधिकारियों को शामिल करते हुए भारत–श्रीलंका फिशरीज मैनेजमेंट काउंसिल (Fisheries Management Council) की स्थापना करना।
- अर्द्ध-संलग्न पाक जलडमरूमध्य और मन्नार की खाड़ी में सहयोग का मार्गदर्शन करने के लिये UNCLOS अनुच्छेद 123 का उपयोग करना।
- संयुक्त कोटा (बाल्टिक सागर मात्स्यिकी सम्मेलन के कोटा-साझाकरण मॉडल के समान), इसके अतिरिक्त मौसमी मछली पकड़ने के अधिकार या नियंत्रित मछली पकड़ने के दिन, विशेष रूप से कारीगर (परंपरागत) मछुआरों के लिये निर्धारित किये जा सकते हैं।
- विकल्पों में निवेश करना: भारत के 200 समुद्री मील के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में गहरे समुद्र में मछली पकड़ने को बढ़ावा दें ताकि तट के निकट संसाधनों पर दबाव कम किया जा सके।
- मछुआरों को विनाशकारी मछली पकड़ने की पद्धति से हटने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु उन्हें प्रशिक्षण, आधुनिक जहाज़ और वित्तीय सहायता प्रदान की जाए।
- कच्चातीवु का राजनीतिकरण न करना: यह स्वीकार किया जाए कि कच्चतीवु पर संप्रभुता का मामला 1974 की संधि के तहत कानूनी रूप से सुलझ चुका है। यह मिथक दूर किया जाना चाहिये कि इसे "उपहार में दिया गया" था, क्योंकि ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि श्रीलंका का दावा इस पर अधिक मज़बूत था।
- इस बात पर ज़ोर दिया जाए कि मछली पकड़ने के अधिकार संप्रभुता से अलग विषय हैं और इन पर अब भी आपसी सहयोग से बातचीत की जा सकती है। कच्चतीवु का उपयोग संयुक्त समुद्री अनुसंधान केंद्रों के लिये किया जा सकता है और इसे पारिस्थितिक सहयोग के एक केंद्र बिंदु के रूप में विकसित किया जा सकता है।
- सामुदायिक सहानुभूति को बढ़ावा देना: तमिलनाडु में सद्भावना बनाने के लिये श्रीलंकाई तमिल मछुआरों की युद्धकालीन कठिनाइयों को उजागर करना। जन-से-जन संबंधों को प्रोत्साहित करना, यह याद दिलाते हुए कि श्रीलंका के गृहयुद्ध के दौरान तमिलनाडु ने मानवीय सहयोग प्रदान किया था।
निष्कर्ष:
कच्चातिवु और पाक जलडमरूमध्य से जुड़े मुद्दों को संघर्ष नहीं, बल्कि सहयोग के अवसर के रूप में देखा जाना चाहिये। एक न्यायसंगत मात्स्यिकी व्यवस्था, जो पारंपरिक मछुआरों की आजीविका और पारिस्थितिकी की रक्षा करे, अत्यंत आवश्यक है। छोटे-छोटे विवाद दक्षिण एशिया में शांति और पारस्परिक सम्मान की बड़ी दृष्टि पर हावी नहीं होने चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत–श्रीलंका मत्स्य विवाद आजीविका की आवश्यकताओं और पारिस्थितिकीय स्थिरता के बीच टकराव को दर्शाता है। विवेचना कीजिए। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
मेन्स:
प्रश्न. भारत-श्रीलंका के संबंधों के संदर्भ में विवेचना कीजिये कि किस प्रकार आतंरिक (देशीय) कारक विदेश नीति को प्रभावित करते हैं। (2013)
प्रश्न. 'भारत श्रीलंका का बरसों पुराना मित्र है।' पूर्ववर्ती कथन के आलोक में श्रीलंका के वर्तमान संकट में भारत की भूमिका की विवेचना कीजिये। (2022)

