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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

क्या है C0P-27

" खुदा का शुक्र है कि इन्सान उड़ नहीं सकते
और आसमान तथा धरती दोनों को ही बर्बाद नहीं कर सकते।”
~हेनरी डेविड थोरू

यदि इस वाक्य के संदर्भ में विचार किया जाए तो यह बताना निरर्थक होगा कि जलवायु परिवर्तन का संकट मानव के जीवन को किस हद तक नुकसान पहुँचा सकता है। यही कारण की कि जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत ज़ोर-शोर से कार्य किया जा रहा है। इस विषय में बहुत सी योजनाएँ, नीतियों एवं सम्मेलनों का भी आयोजन किया जा रहा है, ताकि आने वाली पीढ़ी को जलवायु परिवर्तन के होने वाले गंभीर परिणामों से सुरक्षित रखा जा सके। इस विषय पर इस लेख में हम चर्चा करेंगे।

वर्तमान में जलवायु परिवर्तन एक प्रमुख वैश्विक समस्या बनी हुई है। जिसे दूर करने हेतु भारत सहित समस्त वैश्विक समुदायों द्वारा विभिन्न पहले की जा रही है। जलवायु परिवर्तन तापमान और मौसम के पैटर्न में दीर्घकालिक परिवर्तन को संद‌र्भित करता है। ये परिवर्तन प्राकृतिक भी हो सकते हैं, जैसे - सौर चक्र में बदलाव के माध्यम से।

यूएनएफसीसीसी (UNFCCC) यानि जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय का COP-27 सम्मेलन 7-18 नवंबर 2022 के मध्य, मिस्र के शर्म-अल-शेख मे संपन्न हुआ। इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन को प्रमुख संकट मानते हुए वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने के साथ-साथ क्षति के समाधान को आधिकारिक तौर पर एजेंडे में शामिल किया गया।

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संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की अनुकूलन अंतराल रिपोर्ट, 2022 (Adaptation Gap Report- 2022) के अनुसार- अनुकूलन योजना, वित्तपोषण और कार्यान्वयन की दिशा में किये जा रहे वैश्विक प्रयास दुनिया भर में कमज़ोर समुदायों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बढ़ते जोखिमों के अनुकूलन हेतु सक्षम करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं। वैश्विक अनुसंधानों के अनुसार, यदि कार्बन उत्सर्जन की वर्तमान दर निरंतर रूप से जारी रही तो इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान 3°C से ज़्यादा बढ़ सकता है।

गौरतलब है कि, ग्लोबल वार्मिंग के चलते बाढ़, सूखे और बढ़ते समुद्री स्तर जैसी चरम जलवायु घटनाओं में तेज़ी से बढ़ोतरी हो रही है। हाल में बाढ़ के कारण जहाँ एक तरफ पाकिस्तान का 1/3 हिस्सा जलमग्न हो गया था, वहीं केन्या के मकुनी काउंटी में विनाशकारी सूखा पिछले तीन साल से अधिक समय से फैला हुआ है। दूसरी तरफ, भारत मे जलवायु परिवर्तन के चलते रिकॉर्ड स्तर की गर्मी पड़ी, जिसके कारण गर्मी से होने वाली मौतें बढ़ी हैं और फसलों की अत्यधिक बर्बादी हुई।

COP-27

अत: C0P-27 में भागीदार रहे विश्व के प्रमुख राष्ट्रों द्वारा निम्नलिखित कदम उठाने पर सहमति बनी -

  • संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन COP-27 ने कमज़ोर देशों को 'लॉस एंड डैमेज' (Loss and damage fund) के तहत वित्तपोषण प्रदान करने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
  • COP-27 में विकासशील देशों में जलवायु प्रौद्योगिकी समाधानों को बढ़ावा देने के लिये एक नया पंचवर्षीय कार्यक्रम शुरू किया गया था।
  • शमन महत्वाकांक्षा और क्रियान्वयन को तत्काल बढ़ाने के उद्देश्य से एक शमन कार्यक्रम शुरू किया गया है। ध्यातव्य है कि, कार्यक्रम COP-27 के तुरंत बाद शुरू होगा और वर्ष 2030 तक जारी रहेगा, जिसमें प्रतिवर्ष कम-से- कम दो वैश्विक संवाद होंगे।
  • संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन COP-27 में प्रतिनिधियों ने पेरिस समझौते के तहत महत्वाकांक्षा बढाने के लिये पहले वैश्विक स्टॉक्टेक (Ist Global stocktake) की दूसरी तकनीकी वार्ता की। अगले साल COP-28 में स्टॉकटेक के समापन से पहले वर्ष 2023 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव 'जलवायु महत्वाकांक्षा शिखर सम्मेलन' आयोजित करेंगे।
  • शर्म-अल-शेख अनुकूलन एजेंडा के तहत वर्ष 2030 तक सबसे अधिक जलवायु संवेदनशील समुदायों में रहने वाले 4 अरब लोगों के लिये लचीलापन बढ़ाने हेतु 30 अनुकूलन परिणामों की रुपरेखा तैयार करना है।
  • जलवायु परिवर्तन समस्या और संभावित समाधानों दोनों के रूप में जल के महत्व को प्रतिबिंबित करने हेतु जल अनुकूलन और लचीलापन पहल पर कार्यवाही (AWARe) कार्यक्रम शुरू किया गया है।
  • कार्बन क्रेडिट उत्पादन के विकास हेतु एवं अफ्रीका में रोज़गार के अवसर पैदा करने हेतु अफ्रीकी कार्बन बाज़ार पहल (ACMI) शुरू की गयी है।
  • वैश्विक नवीकरणीय गठबन्धन जिसके तहत पहली बार एक त्वरित ऊर्जा संक्रमण सुनिश्चित करने के लिये ऊर्जा संक्रमण के लिये आवश्यक सभी तकनीकों को एक साथ लेकर आता है। जो अक्षय ऊर्जा को सतत् विकास और आर्थिक विकास के स्तंभ के रूप में स्थापित कर सके।

भारत सरकार द्वारा जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु किए जा रहे प्रयासों में शामिल हैं:-

  • COP-26 के तहत प्रधानमंत्री द्वारा दिये गए 'पंचामृत घटक'।
  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना, 2008 (NAPCC)।
  • जलवायु परिवर्तन पर राज्यीय कार्य योजना (SAPCC)
  • राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (National Adaptation Fund)।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन।
  • पेरिस समझौते के प्रति प्रतिबद्धता।
  • राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन।
  • राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति इत्यादि।

निष्कर्ष:

अंततः जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न समस्या ने विश्व के लिये नवीन चुनौतियाँ पैदा की हैं, जिससे निपटने हेतु अनेक प्रयास किये जा रहे है। इसमे COP-27 सम्मेलन उत्सर्जन को कम करने एवं वित्तीयन समस्या को सुलझाने की दृष्टि से आशाजनक प्रतीत होता है। हालाँकि जलवायु परिवर्तन की इस वैश्विक समस्या में विश्व के तीन सबसे बड़े उत्सर्जकों, विकसित देशों और निस्संदेह भारत द्वारा एक अधिक व्यापक भूमिका का निर्वाह किया जाना अभी शेष है।

  शिवानी सिंह  

शिवानी ने हरियाणा के सिरसा से स्नातक किया है। अभी वह राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर करने के साथ ही यूपीएससी और राज्य लोक सेवा आयोग की तैयारी कर रही हैं। इन सब के साथ ही आज कल वे अपने लेखन कला का प्रयोग कर दृष्टि संसथान के लिए ब्लॉग लिखती हैं।

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