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सुनामी: एक उत्पाती प्राकृतिक विपदा

सुनामी का नाम लेते ही हम भारतीय लोगों के लिये समुद्री लहरों द्वारा तटीय क्षेत्रों में किये गए अप्रतिम विनाश की तस्वीरें आंखों के आगे नाच उठती हैं, जबकि वास्तव में यह पृथ्वी पर सबसे कम आने वाली प्राकृतिक आपदाओं में से है और कुछेक अपवादों को छोड़ दिया जाए  तो सुनामी द्वारा होने वाला विनाश भी अधिक नहीं देखा गया है। यह चक्रवात से अलग एक विशिष्ट प्रकार की प्राकृतिक आपदा है जिसका संबंध समुद्र के साथ-साथ अन्य कारकों से भी है।

'सुनामी' जापानी शब्द है जो वास्तव में दो शब्दों 'सू' अर्थात 'बंदरगाह ' और 'नामी' अर्थात 'विनाशकारी लहरें' से मिलकर बना है यानि 'ऐसी समुद्री लहरें जो अत्यंत व्यापक नुकसान करती हैं'। यदि परिभाषा की बात करें तो वह इस प्रकार दी जा सकती है- “समुद्री नितल पर विवर्तनिक हलचलों के कारण आने वाले तीव्र भूकंप के परिणामस्वरुप जिन विनाशक समुद्री लहरों की उत्पत्ति होती है, उन्हें सुनामी कहते हैं”. इन लहरों की गति अपने उत्पत्ति स्थान पर अत्यधिक होती है (लगभग 600 kmph) परंतु ऊँचाई काफी कम होती है (लगभग 3-5 फीट) किंतु जैसे-जैसे ये तटीय क्षेत्रों की ओर बढ़ती हैं, इनकी ऊँचाई बढ़ती जाती है और गति कम होती जाती है तथा तट से ये 80-100 फीट की ऊँचाई व 150-200 kmph की गति के साथ टकराती हैं। अपनी अधिक ऊँचाई व गति के कारण ही ये तटीय भागों में व्यापक विनाश करती हैं।

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इस प्राकृतिक आपदा के कई कारण हो सकते हैं किंतु इन सभी की परिणिति समुद्री नितल पर आने वाले तीव्र भूकंप के रूप में ही होती है। जैसे-

समुद्री नितल पर तीव्र भूकंप के कारण प्लेटों में टूटन- 

यह सुनामी आपदा का सबसे प्रमुख कारण है। कई बार समुद्री नितल के नीचे भूगर्भ से मुक्त ऊर्जा की मात्रा इतनी अधिक होती है और भूकंपीय तरंगें इतने प्रचण्ड रूप में भूपर्पटी पर आघात करती हैं कि विवर्तनिक प्लेटों में दरारें आ जाती हैं और प्लेट टूट भी जाती है। प्लेटों में अचानक आई इसी विषमता के कारण समुद्री नितल पर जल का संतुलन बिगड़ जाता है जिसके कारण महासागरीय जल की अति विशाल मात्रा एक ओर से दूसरी ओर तेजी से चल पड़ती है जिससे सुनामी तरंगे पैदा होती हैं। दिसंबर 2004 में हिंद महासागर में आने वाली सुनामी का कारण ऐसा ही एक भूकंप था जो रिक्टर स्केल पर 9.0 तीव्रता का था। इसने समुद्री क्षेत्र के नीचे भारतीय प्लेट व बर्मा प्लेट के बीच के हिस्से को तोड़ दिया था जिसके कारण सुनामी पैदा हुई।

इसी प्रकार मार्च, 2021 में दक्षिणी अटलांटिक महासागर (दक्षिणी सैंडविच द्वीप) और अगस्त, 2021 में दक्षिणी-पश्चिमी प्रशांत महासागर क्षेत्र (न्यूजीलैंड-केरमाडेक क्षेत्र) में सुनामी आई यद्यपि विनाश अधिक नहीं हुआ।

तटीय क्षेत्र या महासागर के भीतर स्थित किसी ज्वालामुखी में प्रचंड विस्फोट होना- 

समुद्र के किनारे या समुद्र के अंदर स्थित किसी ज्वालामुखी में भीषण विस्फोट के कारण भी सुनामी तरंगों का जन्म हो सकता है। जैसे 1883 में क्राकाटोआ ज्वालामुखी उद्गार और हाल में जनवरी 2022 में हूंगा-टोंगा ज्वालामुखी उद्गार से पैदा होने वाली सुनामी.

जलमग्न भूस्खलन- यह स्थिति तब बनती है जब गुरुत्वाकर्षण या अन्य किसी कारण (मुख्यतः भूकंप) से, छिछले महाद्वीपीय मग्न तट से मलबे और अवसाद की बहुत बड़ी मात्रा काफी तेजी से गहरे समुद्र में अंदर ढाल की ओर खिसक जाती है। इस स्थिति में भी सुनामी का जन्म होता है।

भूस्खलन या हिमस्खलन- यह स्थिति तब बनती है जब गुरुत्वाकर्षण या अन्य किसी कारण (मुख्यतः भूकंप) से, किसी समुद्री क्षेत्र या बाँध के किनारे स्थित स्थलीय भाग से मलबे और अवसाद की बहुत बड़ी मात्रा काफी तेज़ी से जलीय क्षेत्र में अंदर की ओर खिसक जाती है। इस स्थिति में भी सुनामी का जन्म होता है। जैसे 1963 में इटली के वैनजोंट बाँध क्षेत्र में ऐसी घटना का होना। ध्रुवीय क्षेत्रों में भी हिमस्खलन के प्रभाव से ऐसी घटनाएँ होती हैं।

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टेलीसुनामी (Teletsunami) क्या है? 

जब सुनामी लहरों का प्रसार व प्रभाव इतना अधिक व्यापक हो कि वे अपनी उत्पत्ति वाले समुद्री क्षेत्र को भी पार करते हुए हज़ारों मील दूर स्थित क्षेत्र तक को भी अपनी चपेट में ले लें, तो उसे टेलीसुनामी या मेगासुनामी या समुद्रपारीय सुनामी (Trans-oceanic tsunami) कहते हैं। 1883 की क्राकाटोआ सुनामी, 2004 की हिंद महासागर सुनामी, 2021 की दक्षिणी अटलांटिक महासागर सुनामी आदि इसी प्रकार की सुनामी थीं जिनका प्रभाव हज़ारों मील दूर के क्षेत्रों पर भी देखा गया. 2004 की हिंद महासागर सुनामी का प्रभाव पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के तटीय भाग, मेडागास्कर और अफ्रीका महाद्वीप के पूर्वी व सुदूर दक्षिणी भाग तक देखा गया था।

सुनामी से विनाश

यूँ तो मोटे तौर पर सुनामी से अधिक विनाश होता नहीं देखा गया है, परंतु फिर भी अपवादस्वरूप कुछ सुनामी ऐसी अवश्य रही हैं जिनके द्वारा मचाई गई विनाशलीला इतिहास में दर्ज हो चुकी है और जिनके प्रभाव से उबरने में कई वर्षों तक का समय लगा। ऐसी ही सुनामी 1883 में क्राकातोआ ज्वालामुखी विस्फोट के समय उत्पन्न हुई थी। इसके प्रभाव से जावा और सुमात्रा क्षेत्रों के लगभग 170 गाँव पूरी तरह समाप्त हो गए थे। तटीय क्षेत्रों में सुनामी तरंगों की ऊँचाई लगभग 100 फीट तक थी। जावा का मेराक शहर भी पूर्णतः नष्ट हो गया था। इस सुनामी का प्रभाव न्यूज़ीलैंड तक भी देखा गया था और इस सुनामी से लगभग 21000 से अधिक लोगों की जानें गई थीं।

2004 की हिंद महासागर सुनामी भी अत्यंत विनाशकारी सुनामी थी। इसका उद्गम बिंदु इंडोनेशिया के समीप था और इसका प्रभाव हिंद-प्रशांत क्षेत्र के अतिरिक्त श्रीलंका, भारत के पूर्वी तट, मॉरीशस, अरब प्रायद्वीप, यहाँ तक कि मेडागास्कर व सुदूर दक्षिण अफ्रीका, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया तक महसूस किया गया था। हिंद-प्रशांत क्षेत्रों और भारत, श्रीलंका के तटीय भागों से ये तरंगें लगभग 300 Kmph की चाल से व करीब 80-100 फीट की ऊँचाई के साथ टकराई थीं और इन क्षेत्रों में जो महाविनाश हुआ उसमें लगभग 2.50 लाख से अधिक लोग मारे गए।

सुनामी का पूर्वानुमान व चेतावनी तंत्र

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प्रौद्योगिकी और वैज्ञानिक जानकारियों के विकास के साथ-साथ सुनामी जैसी काफी कम आवृत्ति वाली प्राकृतिक विपदाओं के पूर्वानुमान व चेतावनी तंत्र को भी विकसित करने का प्रयास किया गया है। यद्यपि समुद्री नितल पर आने वाले भूकंप का पूर्वानुमान अभी भी सटीकता से नहीं किया जा सकता है लेकिन भूकंप आने के बाद भूकम्प जनित समुद्री तरंगों की रफ्तार, उनकी ऊँचाई व प्रभाव का पूर्वानुमान उस क्षेत्र विशेष की भौगोलिक व भूगर्भीय परिस्थितियों और अतीत की घटनाओं को देखते हुये एक हद तक अवश्य किया जा सकता है। 

अमेरिका में इसके लिये National Oceanic and Atmospheric Administration (NOAA) के तत्त्वावधान में दो सुनामी वार्निंग सेंटर (TWC) स्थापित किये गये हैं। पहला प्रशांत महासागर में हवाई द्वीप पर है (जिसे 1946 में यहाँ आई सुनामी के बाद स्थापित किया गया) और दूसरा अलास्का में है (1964 में आएअति भीषण भूकम्प और सुनामी जिसमें 200 से अधिक लोग मारे गये थे, उसके बाद यह केंद्र बनाया गया)। ये दोनों केंद्र, अपने दक्ष वैज्ञानिकों व उनकी पूरी टीम के साथ 24×7 आवृत्ति पर कार्य करते हैं। सुनामी पूर्वानुमान के लिये ये केंद्र DART (Deep Ocean Assessment and Reporting of Tsunami) सिस्टम की मदद लेते हैं जो समुद्र में तैनात अत्याधुनिक सेंसर युक्त, इलेक्ट्रॉनिक पीपों (जिनका संपर्क उपग्रहों से होता है) से प्राप्त सिग्नलों पर आधारित है। NOAA ने अमेरिका के चारों ओर प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर, मेक्सिको की खाड़ी आदि समुद्री क्षेत्रों में ऐसे लगभग 40 पीपों का अंतर्संबंधित नेटवर्क तैयार किया है। ये पीपे समुद्री नितल पर होने वाली हलचलों और समुद्री तल में होने वाले बदलाव की जानकारी न केवल अमेरिका को देते हैं बल्कि उसके पड़ोसी देशों के साथ भी साझा करते हैं।

भारत में 2004 तक सुनामी के विषय में ऐसी कोई विशेष जानकारी नहीं थी जिसके कारण इस दिशा में तब तक कुछ प्रयास भी नहीं किये गये थे। 2004 में हिंद महासागर सुनामी की जो विनाशलीला भारत व पड़ोसी देशों में देखने को मिली, उसके बाद से इस क्षेत्र के सभी देशों ने इस दिशा में प्रयास आरंभ किये।

भारत में पृथ्वी मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत Indian National Centre for Ocean Information System (INCOIS) संगठन ने वर्ष 2007 में देश में सुनामी त्वरित वार्निंग सिस्टम (ITEWS) की स्थापना की जो वास्तव में INCOIS, अंतरिक्ष विभाग, विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय, CSIR, सर्वे ऑफ इंडिया, भारतीय समुद्री प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) के संयुक्त प्रयासों का प्रतिफल था। भारत का यह त्वरित सुनामी वार्निंग सिस्टम देश के तटीय भागों में कार्यरत भूकंपमापी स्टेशनों, समुद्री क्षेत्रों में कार्यरत ज्वारमापी स्टेशनों तथा देश के 24×7 कार्यरत सुनामी वार्निंग सेंटर का एक जटिल किंतु सक्षम नेटवर्क है जो US के DART सिस्टम की तर्ज़ पर ही कार्य करते हुए समुद्री नितल पर होने वाली भूगर्भीय हलचलों और समुद्र तल के घटने-बढ़ने की सूचना देता है, जिससे समय रहते आवश्यक उपाय किये जा सकें। INCOIS ने तटीय भागों में 35 प्लेट मॉनिटरिंग स्टेशन भी स्थापित किये हैं जिनकी मदद से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्लेटों की मूवमेंट और विशेष रूप से प्लेटों की ऊर्ध्व गतियों पर बारीकी से निगाह रखी जाती है।

इस सिस्टम की उपयोगिता सितंबर, 2007 में पुनः साबित भी हुई जब सुमात्रा के पास लगभग 8.4 तीव्रता के भूकंप आने के कारण देश के पूर्वी तटीय राज्यों के लिये सुनामी का पूर्वानुमान किया गया और उन्हें कुछ दिनों के लिये हाई-अलर्ट पर रखा गया।

सुनामी जैसी विपदा से होने वाले संभावित नुकसान से बचने के लिये केवल किसी एक देश के प्रयास नाकाफी होते हैं क्योंकि इस विपदा की प्रकृति ऐसी है जो कई देशों के कई क्षेत्रों को अपनी चपेट में लेती है. इसे ही ध्यान में रखते हुए भारत व अन्य 28 पड़ोसी देशों (ऑस्ट्रेलिया सहित) जिनकी सीमाएँ हिंद महासागर व उसके सीमांत सागरों से लगती हैं, ने अपने यहाँ सुनामी त्वरित वार्निंग सेंटर्स स्थापित किये हैं जिससे इस क्षेत्र में आने वाले भूकम्प व भूकम्प जनित सुनामी की चेतावनी इस पूरे क्षेत्र के सभी देशों को दी जा सके। इन वार्निंग सेंटर्स को UNESCO के Intergovernmental Oceanographic Commission (UNESCO-IOC) की मदद से स्थापित किया गया और UNESCO-IOC द्वारा मान्यता दी गई है। 2009 की भारत की आपदा प्रबंधन नीति में सुनामी को विशेष स्थान दिया गया।

2016 में भारत सरकार द्वारा जारी आपदा प्रबंधन योजना (NDMP-2016) में भी सुनामी को विशेष महत्त्व दिया गया है। इस योजना में शेनदायी फ्रेमवर्क को आधार बनाते हुए सुनामी से बचाव करने हेतु सामुदायिक भागीदारी पर बल दिया गया है। इसमे क्षमता विकास कार्यक्रम, तटीय इलाकों में नियमित सुनामी ड्रिल आदि का संचालन शामिल हैं और जिसमें UNESCO-IOC के मानकों का पालन किया जाना बहुत ज़रूरी है।

सेंदाई फ्रेमवर्क और UNESCO-IOC के मानकों में सुनामी निरोधक गतिविधियों में जनता की सक्रिय भागीदारी अत्यंत महत्त्वपूर्ण पक्ष बताया गया है। इस कड़ी में सामुदायिक भागीदारी के साथ-साथ सरकारी कर्मचारियों, जनप्रतिनिधियों, प्रशासनिक अधिकारियों, गैर-सरकारी संगठनों तथा स्थानीय, ज़िला स्तर, प्रदेश स्तर व राष्ट्रीय स्तर की आपातकालीन सहायता एजेंसियों की भी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की गई है और इस पूरी कवायद का पूरा ज़ोर यह सुनिश्चित करने पर है कि स्थानीय समुदाय सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदा से निपटने में इतनी सक्षम हो जाए कि आपदा के फलस्वरुप होने वाले जान-माल के नुकसान को न्यूनतम किया जा सके और जनजीवन शीघ्र ही आपदा-पूर्व स्थिति की तरह सामान्य बनाया जा सके. इन्हीं मानकों के आधार पर देश के ओडिशा राज्य के दो समुद्रतटीय गाँवोंक्रमशः वेंकटरायपुर (गंजाम जनपद अंतर्गत) व नालियाशाही (जगतसिंहपुर जनपद अंतर्गत) को UNESCO-IOC द्वारा 'आदर्श सुनामी प्रतिरोधक गाँव' घोषित किया गया है।

समय के साथ-साथ ऐसी नयी तकनीकों की भी खोज की जा रही है जिनसे सुनामी का ज्यादा बेहतर और अधिक त्वरित पूर्वानुमान किया जा सकता है। NOAA के अनुसार वर्तमान में कार्यरत DART प्रणाली द्वारा भूकंप आने के बाद सुनामी तरंगों की मौजूदगी को सुनिश्चित करने में न्यूनतम लगभग 2 घंटे का समय लगता है। यदि किसी स्थान पर ये तरंगें इस अवधि से पहले पहुँच जाती हैं तो वहाँ जन-धन की हानि को रोका नहीं जा सकता। NOAA इसी कारण एक ऐसी तकनीक पर कार्य कर रहा है जिसकी सहायता से सुनामी की मौजूदगी भूकंप आने के कुछ मिनटों के भीतर ही सुनिश्चित की जा सकेगी। ऐसा करने में समुद्री तरंगों की गति के कारण उनके इर्द-गिर्द बनने वाली मैग्नेटिक फील्ड (वैज्ञानिकों के अनुसार, जो सूक्ष्म होती है परंतु डिटेक्ट की जा सकती हैं) की मदद ली जाएगी।

  हर्ष कुमार त्रिपाठी  

हर्ष कुमार त्रिपाठी ने पूर्वांचल विश्वविद्यालय से बी. टेक. की उपाधि प्राप्त की है तथा DU के दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स से भूगोल विषय में परास्नातक किया है। वर्तमान में वे शिक्षा निदेशालय, दिल्ली सरकार के अधीन Govt. Boys. Sr. Sec. School, New Ashok Nagar में भूगोल विषय के प्रवक्ता के पद पर कार्यरत हैं।

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