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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

भारत में हरित ऊर्जा की संभावनाएँ

मानव सभ्यता का भविष्य या तो हरा होगा या होगा ही नहीं।

बॉब ब्राउन की लिखी ये पंक्तियाँ जलवायु परिवर्तन से त्रस्त धरती के प्रत्येक जीव की तकलीफ को बहुत संजीदगी से बयां करती हैं। बढ़ती जनसंख्या की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये कार्बन ईंधन पर निर्भरता और उनसे उत्पन्न ग्रीन हाउस गैसें पर्यावरणीय संकट के लिये उत्तरदायी हैं और भारत भी इससे अछूता नहीं है। तकनीकीगत विकास और बढ़ते विद्युतीकरण के कारण भारत में ऊर्जा की माँग तेजी से बढ़ रही है और इस माँग को हरित ऊर्जा के विभिन्न विकल्पों के माध्यम से पूरा किया जा सकता है। इसलिए भारत को लोगों के बेहतर स्वास्थ्य, कच्चे तेल के आयात से बढ़ते खर्च, अम्लीय वर्षा और कार्बन उत्सर्जन को कम करके पर्यावरण की सुरक्षा के लिये हरित ऊर्जा में अपनी संभावनाएँ तलाशनी होंगी।

सौर ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, समुद्री ऊर्जा और पवन ऊर्जा आदि हरित ऊर्जा के कुछ महत्वपूर्ण स्रोत हैं जो ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के साथ जलवायु परिवर्तन को रोकने में मददगार हो सकते हैं। तो चलिये जानते हैं हरित ऊर्जा के इन स्रोतों के बारे में-

सौर ऊर्जा- भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है और यहाँ की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएँ मौजूद हैं। सौर ऊर्जा, हरित ऊर्जा का सर्वाधिक प्रचलित विकल्प है। वहीं, देश के अधिकांश भागों में लगभग 300 सूर्य दिवस होते हैं जिससे 3000 घंटों की धूप प्राप्त होती है और अगर इस धूप को बिजली में परिवर्तित करें तो यह कई हजार खरब किलोवाट के बराबर होती है। जिससे भारत में बढ़ रही ऊर्जा समस्या का समाधान किया जा सकता है।

सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए भारत ने फ्रांस के साथ साल 2015 में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance) की स्थापना की। और अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये सौर ऊर्जा मिशन, पीएम-कुसुम योजना और 40 से ज्यादा सौर पार्कों के जरिये विद्युत परियोजनाओं को विकसित कर रहा है। भारत के आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में उनकी भौगोलिक स्थिति के आधार पर सौर ऊर्जा की व्यापक संभावनाएँ विद्यमान हैं। किंतु, यह भी सच है कि सोलर उत्पाद काफी महँगे हैं और सबकी पहुँच में नहीं है। इसके लिये तकनीकीगत निवेश को बढ़ाना होगा जिससे साल 2030 तक भारत अपने 280 गीगावाट की स्थापित सौर क्षमता के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त कर सके।

पवन ऊर्जा- धरती के खुले हवादार स्थानों पर पवन चक्कियों द्वारा उत्पन्न की जाने वाली पवन उर्जा भी हरित ऊर्जा का अच्छा विकल्प है। पवन ऊर्जा भारत में सबसे सफल नवीकरणीय ऊर्जा के विकल्प के रूप में उभरी है। भारत में पवन ऊर्जा की परियोजनाओं को तटीय और अपतटीय भागों में व्यापक रूप से विकसित किया जा रहा है । नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2021-22 के अनुसार, भारत विश्व में पवन बिजली का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक देश है और इसकी संस्थापित क्षमता 40.08 गीगावाट है। जबकि, देश में लगभग 60 गीगावाट पवन ऊर्जा की क्षमता मौजूद है। वहीं, तीन तरफ से समुद्र से घिरा होने के कारण भारत के पास 7600 किलोमीटर का लंबा समुद्री तट है जिसमें पवन ऊर्जा से बिजली उत्पादन की अपार संभावनाएँ मौजूद हैं।

जल ऊर्जा- जल एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन होने के साथ हरित ऊर्जा का भी प्रमुख स्रोत है और इसमें ज्वार-भाटा, तरंग ऊर्जा और जलविद्युत को शामिल किया जाता है। भारत में जल ऊर्जा को पनबिजली के नाम से जाना जात है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईए) ने अपनी एक रिपोर्ट में पनबिजली को 'स्वच्छ ऊर्जा के भूले बिसरे देव' कहा और राष्ट्रों से आग्रह किया कि वो शून्य उत्सर्जन तक पहुंचने के अपने प्रयास में इसे अपने ऊर्जा स्रोत के रूप में शामिल करें। बाँधों से होने वाले विस्थापन और पर्यावरणीय नुकसान को ध्यान में रखकर जल ऊर्जा का उचित उपयोग किया जाए तो भारत वर्ष 2070 तक नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो सकता है।

भू-तापीय ऊर्जा- पृथ्वी के आंतरिक भागों से ताप का प्रयोग कर उत्पन्न की जाने वाली बिजली को भूतापीय ऊर्जा कहते हैं। भारत में सैकड़ों गर्म पानी के झरने हैं, जिनका बिजली उत्पादन में प्रयोग किया जा सकता है। भारतीय भू-गर्भिक सर्वेक्षण के द्वारा देश में लगभग 340 भू-तापीय ऊष्ण झरनों की पहचान की गयी है। इन्हें हिमालय, सहारा घाटी, खंभात बेसिन, सोन-नर्मदा-ताप्ती लिनियामेंट बेल्ट, पश्चिमी तट, गोदावरी बेसिन और महानदी बेसिन भू-तापीय प्रांतों में समूहीकृत किया गया है। इन स्थलों पर बिजली उत्पादन की क्षमता लगभग 10,000 मेगावाट है। गहरे ड्रिलिंग वाले उपकरणों की कमी और उच्च आरम्भिक लागत के कारण देश में भूतापीय ऊर्जा के विकास को गति नहीं मिल पाई है। भू-तापीय ऊर्जा में देश की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने की असीम क्षमता है लेकिन तकनीक के महँगे होने के कारण इसका उचित उपयोग नहीं हो सका है। सार्वजनिक-निजी भागीदारी के जरिये भूतापीय ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश से इसके विकास को गति मिल रही है।

ज्वारीय ऊर्जा- महासागरों में आने वाले ज्वार-भाटे से बिजली का उत्पादन किया जाता है। प्रदूषण मुक्त होने के साथ यह असमाप्य है। भारत में ज्वारीय ऊर्जा की कुल संभावित क्षमता 9000 मेगावाट है। भारत में कच्छ और खंभात की खाड़ी के साथ सुंदरवन के डेल्टा से ज्वारीय ऊर्जा को प्राप्त किया जा सकता है।

जैव ईंधन- कोई भी हाइड्रोकार्बन ईंधन, जो किसी कार्बनिक पदार्थ से कम समय (दिन, सप्ताह या महीनों) में उत्पन्न होता है, उसे जैव ईंधन माना जाता है। जैसे- इथेनॉल, बायोडीज़ल, ग्रीन डीज़ल और बायोगैस आदि। पारम्परिक जीवाश्म ईंधन की तुलना में जैव ईंधन में सल्फर नहीं होता है और कार्बन मोनोऑक्साइड और विषाक्त उत्सर्जन भी कम होता है। कृषि प्रधान देश होने के कारण भारत के पास बड़ी मात्रा में कृषि अवशेष उपलब्ध हैं, इसलिये देश में जैव ईंधन के उत्पादन की प्रबल संभावना विद्यमान है। जैव ईंधन नई नकदी फसलों के रूप में ग्रामीण और कृषि विकास में मदद करने के साथ प्रदूषण को कम करने में भी मदद करता है।

लैंडफिल गैस- लैंडफिल गैस (एलएफजी) लैंडफिल क्षेत्र में भरे गए कचरे के कार्बनिक पदार्थों के अपघटन से बनी एक प्राकृतिक उप-उत्पाद है। शहरों में बढ़ रहे लैंडफिल कचरे से उत्पन्न होने वाली एलएफजी को वायुमण्डल में छोड़ने के बजाय उसको एकत्रित और रूपांतरित करके एक ऊर्जा स्रोत के रूप में उपयोग कर सकते हैं। एलएफजी लैंडफिल से आने वाली दुर्गंध और अन्य खतरनाक उत्सर्जनों को कम करने में सहायता करती है और यह मीथेन को वातावरण में जाने से रोकती है।

उपर्युक्त आधार पर हम कह सकते हैं कि परंपरागत ऊर्जा संसाधन अनवीकरणीय व सीमित होने के साथ जलवायु परिवर्तन के लिये भी उत्तरदायी हैं। इसलिए भारत, बढ़ती जनसंख्या की ऊर्जा ज़रूरतों की पूर्ति हरित ऊर्जा के जरिये ही कर सकता है। किंतु हरित ऊर्जा वाली प्रौद्योगिकी और इसके उत्पाद काफी महँगे पड़ते हैं जिससे इनमें लोगों की रुचि कम ही देखने को मिलती है। तकनीकी में निवेश के जरिये इन्हें सर्वजनसुलभ बनाया जा सकता है। भौगोलिक विविधता और तकनीकि कुशलता के सही संयोजन से भारत अपनी हरित ऊर्जा की क्षमता में वृद्धि कर सकता है, जिससे उसकी गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा पर निर्भरता को कम करने में मदद मिलेगी और हम आने वाली पीढ़ियों को हरा-भरा भारत सौंप सकेंगे।

  शालिनी बाजपेयी  

शालिनी बाजपेयी यूपी के रायबरेली जिले से हैं। इन्होंने IIMC, नई दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा करने के बाद जनसंचार एवं पत्रकारिता में एम.ए. किया। वर्तमान में ये हिंदी साहित्य की पढ़ाई के साथ साथ लेखन का कार्य कर रही हैं।

 स्रोत:

https://www.drishtiias.com/hindi/daily-news-analysis/india-solar-sector

https://www.dw.com/hi/evicted-villagers-pay-a-high-price-for-indias-hydropower-push/a-61981141

https://mnre.gov.in/img/documents/uploads/file_s-1671012052565.pdf

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