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एक RAS अधिकारी की संघर्ष यात्रा : कैसे कोयला बना हीरा

कक्षा छः में पढ़ा था कि कोयले की खान में हीरा मिलता है। तब एक विचार दिमाग में कौंधा कि यदि दोनों एक ही खान में होते हैं तो सभी कोयले, हीरों में क्यों नहीं बदल जाते? उस प्रश्न का उत्तर तब मिला जब मुझे राजस्थान प्रशासनिक सेवा भर्ती, 2018 में 28वीं रैंक मिली। दरअसल आप सोच रहे होंगे कि मैंने इस ब्लॉग की शुरुआत कोयले से क्यों की तो मैं आपकी उलझन को यहीं समाप्त करके बता देन चाहता हूँ कि मैं गाँव पलाना, ज़िला बीकानेर (राजस्थान) का निवासी हूँ। भारत में लिग्नाइट कोयले की पहली खदान इसी गाँव में मिली थी। 1896 ई. से कोयला खनन की शुरुआत की गई किंतु इस खदान से आज तक कोई हीरा नहीं निकल पाया था।

मैं बहुत संक्षेप में अपने शुरुआती जीवन के बारे में कुछ बताता हूँ। मेरे सफर की शुरुआत पलाना के राजकीय माध्यमिक विद्यालय से हुई। यहाँ से मैनें द्वितीय श्रेणी में सेकेंडरी की परीक्षा उत्तीर्ण की। जीवन के उस समय में आगे की दशा-दिशा आपके माता-पिता, गुरु व आस-पड़ोस के लोग तय करने लगते हैं। इसी कड़ी में मुझे भी जीवविज्ञान विषय पढ़ने के लिये बीकानेर के निजी विद्यालय में भेज दिया गया। ग्यारहवीं और बारहवीं के दो वर्ष कब निकल गए; पता ही नहीं चला। जब 12वीं का परिणाम आया तो किशोरावस्था में लगने वाले कई धक्कों में से सबसे बड़ा धक्का लगा। मैं भौतिक विज्ञान में उत्तीर्ण नहीं हो सका तथा पूरक घोषित किया गया।

यही वह क्षण था जब कोयले को कोयला होने का पता चला। कहते हैं न ‘जीवन के सबसे मुश्किल समय में इंसान अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करता है।’ मैंने भी जैसे-तैसे अपने को संभाला और तय किया कि 12वीं कक्षा को दुबारा पढ़कर अच्छे अंक लाउंगा किंतु इस बार भी 59% ही अंक प्राप्त हुए।

जीवन के इस काल में मैं अपने-आप को पहचान रहा था कि प्राथमिक शिक्षक बनने के लिये आवश्यक डिग्री BSTC की प्रवेश परीक्षा के बारे में पता चला और मैंने ठान लिया कि इस परीक्षा को पास कर मुझे अपना जीवन स्वयं तय करना है। उक्त परीक्षा के सफल परिणाम ने मेरा आत्मविश्वास सातवें आसमान पर पहुँचा दिया। आज यह परीक्षा बहुत छोटी लगती है किंतु उस समय मुझे इसके परिणाम ने नई दिशा दी थी।

अब समय आ गया था इस ‘पूरक’ को ‘पूरा’ करने का। इस डिग्री के दौरान मैंने प्रतियोगी परीक्षाओं की पुस्तकें पढ़ना शुरू कर दिया। रहने के लिये किसी तरह एक छोटे कमरे की व्यवस्था हो पाई। कोई 700रु प्रति महीने के हिसाब से किराये पर यह कमरा मिला था। आकार में कमरा बहुत छोटा था पर उसकी दीवारें इतनी मजबूत नहीं थीं कि मेरे सपनों को कैद कर सके। एक बेहतर भविष्य का सपना लिये मैं रात-दिन पढ़ता रहता था। एक ही सपना था कि सरकारी नौकरी मिल जाए। अवसर आया भी पटवारी भर्ती परीक्षा 2011 का, मैंने इसकी जमकर तैयारी की किंतु सफलता नहीं मिली। RTI से अंकतालिका निकलवाने पर पता चला एक अंक कम रह गया था। वह दिन आज भी मुझे अच्छी तरह याद है- शाम का समय था, मैं बीकानेर में तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती की तैयारी कर रहा था। घर से पिताजी का फोन आया कि RTI का जवाब आया है, तुम्हारे परिणाम में एक अंक कम रह गया था। मेरे और पिताजी की आँखों में आँसू थे। पिताजी समझते थे कि मेरे लिये वह परीक्षा कितनी महत्त्वपूर्ण थी। असफलता को अग्नि में परिवर्तित कर मैंने अपने हृदय में स्थान दिया और आगे बढ़ा।

तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती 2012 की परीक्षा हुई और मैने पूरे ज़िले में तीसरा स्थान प्राप्त किया। अब मैं समझ गया था कि ‘असफलता, सफलता की सीढ़ी होती है।’ इस सफलता ने मेरे सपने को पोषित करना शुरू किया। सिविल सेवक बनने का सपना सर्वप्रथम मेरे पिताजी ने मुझे दिखाया था। उन्होंने हमेशा दोहराते ‘सपने बड़े होने चाहिये।’ फिर यदा-कदा मैं पत्रिकाओं  में व गुणीजनों से सिविल सेवकों के बारे में पढ़ता सुनता रहता था। बचपन से ही अखबार, पत्रिकाएँ व किताबें मैं चाव से पढ़ता था।

बारूद का ढेर तैयार हो रहा था कि पड़ोसी गाँव के अभ्यर्थी चुनाराम जाट का भारतीय पुलिस सेवा में चयन होने की खबर मिली जिनकी पारिवारिक व विद्यालयी स्थिति कमोबेश मुझ जैसी ही थी। इस घटना ने चिनगारी का काम किया और मैंने सिविल सेवा की तैयारी करनी शुरू कर दी। 2014 में मैं अनभिज्ञ, नवल व आत्मविश्वासी अभ्यर्थी के रूप में दिल्ली की ट्रेन में बैठा और पहला प्रयास 2014 में ही देने का निश्चय किया जिसकी प्रारंभिक परीक्षा कुछ दो महीने बाद ही थी। प्रारंभिक परीक्षा के असफल परिणाम ने मुझे बता दिया था कि यह भारत की कठिनतम परीक्षा क्यों है।

अब मैं अगले प्रयास के लिये पूरे मनोयोग के साथ जुट गया। उस समय मैं अध्यापक पद पर अवैतनिक अवकाश के साथ तैयारी कर रहा था जिसका मेरी आर्थिक व मानसिक स्थिति पर गहरा दबाव था। 2015 की प्रारंभिक परीक्षा को उत्तीर्ण कर मैं मुख्य परीक्षा की तैयारी कर रहा था। मुझे लग रहा था जैसे मुझ पर हज़ारों टन का दबाव हो। समय सीमित लग रहा था और सिलेबस बड़ा। जैसे-तैसे मैंने मुख्य परीक्षा दी किंतु 29 अंकों के मार्जिन से साक्षात्कार योग्य नहीं माना गया।

इस असफलता ने मुझे संपूर्ण रणनीति पर पुनर्विचार करने को मजबूर किया और मेरा आत्मविश्वास भी कमज़ोर किया तो मैंने उस समय राजस्थान प्रशासनिक सेवा परीक्षा 2016 की तैयारी करनी शुरू कर दी। इस परीक्षा का सिलेबस मुझे भारतीय सिविल सेवा परीक्षा की तुलना में आसान लगा।

इस परीक्षा की तैयार के दौरान महसूस किया कि प्रत्येक परीक्षा की अपनी चुनौतियाँ होती हैं। ऐसे समय में जब मैं तृतीय श्रेणी अध्यापक की नौकरी से त्यागपत्र देकर तैयारी कर रहा था, यह प्रयास और अधिक धैर्य की परीक्षा लेने वाला बन जाता है। खैर, राजस्थान प्रशासनिक सेवा परीक्षा, 2016 का अंतिम परिणाम आया और मुझे 662वीं रैंक मिली। इस परिणाम ने असफलता की चली आ रही सूची में एक और नाम जोड़ दिया। यह वह समय था जब मुझे या तो अंधकार में खो जाना था या गिरने के दर्द को भूलकर एक बार फिर खड़ा होना था। ऐसे में मैंने राजस्थान प्रशासनिक भर्ती परीक्षा, 2018 में पुनः प्रयास करने का रास्ता चुना। इस सफरनामे ने मुझे सिखा दिया था कि अत्यधिक ताप-दाब जो कोयला झेल सकता है, वही हीरा बन पाता है। मैंने अपने सद्गुणों-मेहनत, धैर्य व अनुशासन को फिर से संवारा और 28वीं रैंक के साथ सफलता पाई। गाँव का पहला प्रशासनिक अधिकारी बनने का गौरव पाया।

किसी ने सच ही कहा है कि “पत्थर को तोड़ने वाले हथौड़े की 20वीं चोट से पत्थर नहीं टूटता बल्कि पहले के 19 चोटों ने अपना काम बखूबी किया होता है।”अंत में, अपने अनुभव से आपको यही संदेश देना चाहूँगा कि असफलता व समाज के डर से जो मुकाबला कर लेता है वह ज़रूर सफल होता है। प्रत्येक व्यक्ति का अपना रास्ता होता है। आत्मविश्वास के साथ संघर्षरत रहिये। समाज व राष्ट्र को मेहनती व सच्चे सेवकों की अति आवश्यकता है।

जय हिन्द, जय भारत

सुनिल कुमार

(लेखक RAS अधिकारी हैं)

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