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वैश्विक स्तर पर नस्लीय भेदभाव की वर्तमान स्थिति और समाधान

प्रत्येक वर्ष 21 मार्च को सम्पूर्ण विश्व में अंतर्राष्ट्रीय नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस मनाया जाता है। यह दिवस जातिवाद, नस्लीय भेदभाव और नफरत की उफनती लहरों के विरुद्ध एकजुटता व समरसता के साथ आगे बढ़ने का आह्वान करता है।

21 मार्च,1960 को पुलिस द्वारा दक्षिण अफ्रीका के शार्पविले में लोगों द्वारा रंगभेदी/नस्लभेदी कानून के विरुद्ध किए जा रहे शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान फायरिंग व आगजनी के कारण 69 लोग मारे गए। जिसके चलते इस नरसंहार की याद में अक्टूबर 1966 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 मार्च को अंतरराष्ट्रीय नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। यह घोषणा दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति को समाप्त करने हेतु किए गए संघर्षों का भी प्रतीक है।

नस्लवाद:

नस्लवाद का आशय ऐसी धारणा से है, जिसमे यह मान लिया जाता है कि हर नस्ल के लोगों में कुछ खास खूबियां होती हैं, जो उसे दूसरी नस्लों से कमतर या बेहतर बनाती है। नस्लवाद लोगों के बीच जैविक अंतर की सामाजिक धारणाओं में आधारित भेदभाव और पूर्वाग्रह दोनों होते हैं। और इस शब्द का प्रचलन राजनीतिक,आर्थिक,सामाजिक व कानूनी प्रणालियों में भी देखने व सुनने को मिलते है जो इसके आधार पर भेदभाव तथा धन, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा नागरिक अधिकारों के संदर्भ में नस्लीय असमानता को बढ़ावा देते हैं।

नस्लवाद की वर्तमान स्थिति:

  • इंटरनेट के बढ़ते प्रसार व इसकी व्यापक उपलब्धता ने नस्लवादी रूढ़ियों और गलत सूचनाओं के ऑनलाइन प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • वैश्विक महामारी के बाद उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार एशिया व एशियाई लोगों के विरुद्ध ऑनलाइन/ वेबसाइटों पर नफरती पोस्ट्स में 200% तक की वृद्धि दर्ज की गई है।
  • नित नए तकनीकों के विकास व AI के बढ़ते उपयोग ने भी नस्लवाद को 'तकनीकी-नस्लवाद' के रूप में बढ़ावा दिया है। जिसके चलते किसी भी समुदाय के लोगों के साथ अनुचित व अन्यायपूर्ण व्यवहार करनें की संभावना काफी बढ़ गई है।
  • वर्तमान समय में नस्लवाद का स्वरूप अत्यंत जटिल व अप्रकट हो चला है, जिसके चलते भेदभाव, आक्रामकता व अपमान की संरचनात्मक सूक्ष्मता में भी वृद्धि हुई है।
  • कई समाजशास्त्री विशेषज्ञों का भी कहना है कि, पक्षपातपूर्ण व्यवहार व भेदभावपूर्ण कार्य सामाजिक असमानता को और बढ़ावा देतें है। जिसका उल्लेख 'द लांसेट' में प्रकाशित एक अध्ययन में भी किया गया है।

वैश्विक स्तर पर नस्लवाद:

अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया जैसे कई विकसित देशों में बहुतायत नस्लीय भेदभाव की घटनाएं देखी जा रही हैं जैसे- अमेरिका में जॉर्ज फ्लायड, ब्रियोना टेलर, एलिजा मैक्लेन, जियोना जॉनसन जैसे अश्वेत लोगों को अमेरिकी पुलिस की बर्बरता की वजह से अपना जीवन गंवाना पड़ा। वर्तमान ब्रिटिश pm ऋषि सुनक का खुले मंच से यह स्वीकारना कि उन्होंने भी नस्लवाद का दंश झेला है। जबकि पिछले ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर भारतीय तेज गेंदबाज मोहम्मद सिराज को दर्शकों द्वारा काला बंदर कहकर संबोधित किया जाना, इंग्लैंड के पूर्व क्रिकेट कप्तान माइकल वान द्वारा एशियाई खिलाड़ियों के प्रति नस्लीय ट्वीट करना आदि घटनाएं प्रमुख है। जिसके चलते विकसित देशों पर यह दबाव पड़ने लगा है कि वे अपने राष्ट्रीय कानूनों में रंगभेद और नस्लभेद विरोधी कठोर प्रावधानों को निर्मित करे और उनके अनुपालन में भी सख्ती बरतें।

भारत की स्थिति:

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15,16,29 के आधार पर कई रूपों में भेदभाव पर प्रतिबंध लगाया गया है तथा भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153A भी 'नस्ल' को संदर्भित करती है। भारत ने वर्ष 1968 में ही नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन हेतु अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन(ICERD) की भी पुष्टि कर दी थी। उल्लेखनीय है कि उपरोक्त प्रावधानों के बावजूद भी देश में कई स्थानों से जाति या फिर रंग के आधार पर भेदभाव करने की घटनाएं सामने आती रहती हैं। ज्ञातव्य है कि पिछले कुछ वर्षों में नस्लीय भेदभाव के खिलाफ बड़ी संख्या में मामले दर्ज किए गए है। जैसे- पूर्वोत्तर के लोगों के साथ दिल्ली व बंगलुरु में नस्लीय भेदभाव की घटनाएं बढ़ी है, यह हमारे देश की आंतरिक व्यवस्था के लिए चिंताजनक बात है।

इस संदर्भ में किसी ने सच ही कहा है कि- "अपरिचय या अनजाने में यदि भेदभाव हो जाए तब तक कोई चिंता की बात नही, लेकिन जब नस्लीय आधार पर कोई पूर्वाग्रह के साथ भेदभाव करे तो स्थिति अलोकतांत्रिक हो जाती है।"

नस्लीय भेदभाव के कारण:

  • प्रजातीय कारण- कुछ प्रजातियों द्वारा स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ मानना। जैसे- अमेरिकी गोरों द्वारा निग्रो जाति के लोगों को निम्नतम मानना।
  • सामाजिक कारण- सामाजिक रूढ़ियों एवं कुप्रथाओं के चलते समाज में वर्गभेद जैसी समस्या उत्पन्न होती है और यही वर्गभेद नस्लवाद को बढ़ावा देने में सहायक सिद्ध होता है।
  • धार्मिक कारण- धर्म में पवित्रता एवं शुद्धि का महत्वपूर्ण स्थान है। ऐसे में कई समाजों में निम्न व्यवसाय वालों को निम्न नस्ल का माना जाता है।
  • इंटरनेट का प्रसार- नस्लीय भेदभाव को बढ़ाने में इंटरनेट वर्तमान समय में एक उर्वर भूमि के रूप में कार्य कर रहा है।

नस्लीय भेदभाव के लक्षण:

  • जन्म के आधार पर सामाजिक हैसियत का निर्धारण होना।
  • प्रत्येक व्यक्ति के व्यवसाय का निर्धारण उसकी जाति, रंग, नस्ल आदि आधारों पर किया जाना।
  • समाज में जाति, रंग एवं नस्ल के आधार पर ऊंच-नीच की भावना का उपस्थित होना।
  • खान-पान एवं अंतःक्रिया अन्य जाति- बिरादरियों के बीच न होकर केवल अपनी जाति एवं नस्ल के बीच होना।
  • अंतर्विवाह की नीति। जैसे- केवल अपनी ही जाति में विवाह की अनुमति।

नस्लीय भेदभाव के प्रभाव:

  • नस्लीय भेदभाव राष्ट्रीय व सामाजिक एकता में बाधक है। जिसके चलते सामुदायिक शत्रुता एवं घृणा जैसे भावों को बढ़ावा मिलता है।
  • इसका प्रभाव आर्थिक विकास एवं आधुनिकीकरण की प्रक्रिया पर भी पड़ता है, जैसे- नस्लवादी मानसिकता के लोग व्यतिगत व सार्वजनिक संपत्ति को तो नुकसान पहुंचाते ही है, साथ ही साथ सरकार के प्रगतिशील कार्यों में भी रुकावट का कारण बनते हैं।
  • इसके चलते देश में वाह्य एवं आंतरिक सुरक्षा का भी खतरा उत्पन्न हो सकता है।
  • नस्लवादी संघर्षों के दौरान असामाजिक तत्वों के कार्यों का प्रभाव सबसे ज्यादा बच्चों, महिलाओं एवं वृद्धों पर पड़ता है। जिसका प्रभाव व दंश कई दशकों तक उनके अंतर्मन में बना रहता है।
  • नस्लीय भेदभाव लोगों को उनके आधारभूत जरूरतों जैसे- रोटी, कपड़ा और मकान से वंचित कर देता है।
  • नस्लीय भेदभाव के चलते औद्योगिक विकास एवं सांस्कृतिक विकास का सुचारू रूप से क्रियान्वयन नहीं हो पाता है।

वैश्विक स्तर पर नस्लवाद के विरुद्ध कुछ अन्य पहलें:

  • डरबन डिक्लेरेशन एंड प्रोग्राम ऑफ एक्शन (2001)- इसे नस्लवाद, नस्लीय भेदभाव, जेनोफोबिया और संबंधित असहिष्णुता के खिलाफ विश्व सम्मेलन द्वारा अपनाया गया था।
  • यूनेस्को न कोरिया गणराज्य के साथ साझेदारी के माध्यम से पेरिस में 22 मार्च, 2021 को 'ग्लोबल फोरम अगेंस्ट रेसिजम एंड डिस्क्रिमिनेशन' की मेजबानी की। इस फोरम के दौरान नस्लीय भेदभाव से निपटने के उद्देश्य से नीति-निर्माता, शिक्षा और अन्य हितधारक भी एकत्रित हुए।
  • "ब्लैक लाइव्स मैटर" ने न केवल संयुक्त राज्य अमेरिका बल्कि सम्पूर्ण विश्व में नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध लोगों को आंदोलित किया है। जिसके चलते वैश्विक स्तर पर नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध लोगों में एकजुटता देखी गई है।
  • यूनेस्को द्वारा गठित " समावेशी एवं सतत शहरों का अंतरराष्ट्रीय गठबंधन" शहरी स्तर पर नस्लवाद के विरुद्ध संघर्ष में, बेहतर प्रथाओं को अपनाने के लिए एक मंच प्रदान करता है तथा अच्छे व्यवहारों को बढ़ावा देने हेतु एक प्रयोगशाला की भी भूमिका निभाता है।
  • यूनेस्को शिक्षा, विज्ञान, सांस्कृतिक संचारों के माध्यम से नस्लवादी विचारों को कम करने हेतु प्रयासरत है।

ऐसे में उपरोक्त प्रयासों के साथ-साथ कई मानवाधिकार संस्थाओं, सिविल सोसायटी आंदोलनों, वैश्विक संधियों के बावजूद भी कई देशों में ऐसा शिष्टाचार व संस्कृति नही विकसित हो पाई जो नस्लीय भेदभाव का उन्मूलन कर सके। यह कई परिवर्तनों के साथ आज भी अपनी निरंतरता बनाए हुए है, जो किसी एक या दो राष्ट्र के लिए नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व एवं मानव जाति के लिए घातक है।

ऐसे में वर्तमान समय में नस्लीय भेदभाव में हो रही वृद्धि के चलते यूनेस्को ने इस दिशा में जागरूकता को बढ़ावा देने का प्रयास किया है। इस संदर्भ में यूनेस्को ने मीडिया एवं इंटरनेट को सूचना साक्षरता रूपी औजार के रूप में विकसित किया है। इससे लोगों में विवेचनात्मक सोच, अंतरसांस्कृतिक संवाद एवं आपसी समझ को बढ़ावा मिला है।

ऐसे में इसी इसी तरह कुछ नई पहलों को विकसित कर इस दिशा में सकारात्मक परिणाम प्राप्त किया जा सकता है। इस संदर्भ में निम्नलिखित सुझावों को भी अपनाया जा सकता है, जैसे-

  • शिक्षा को बढ़ावा देकर, शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जो मानवीय दृष्टिकोण में व्यापक परिवर्तन ला सकता है।
  • इस दिशा में जागरूकता कार्यक्रमों को बढ़ावा देकर जिससे शोषित होने पर लोग अपने हक के लिए आवाज उठा सके।
  • सामाजिक सद्भाव व सद्भावना को बढ़ावा देने के साथ-साथ नस्लविरोधी कानूनों का भी सख्ती से क्रियान्वयन किया जाए।
  • युवाओं एवं समुदायों में सहिष्णुता को बढ़ावा देने के साथ-साथ अंतर-सांस्कृतिक संवाद एवं सीखने, समझने के नए दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जाए तथा हानिकारक रूढ़ियों के उन्मूलन हेतु सामूहिक प्रयास किया जाए।
  • नस्लवाद से पीड़ित लोगों को राज्य द्वारा मदद प्रदान की जानी चाहिए जिससे वे समाज की मुख्य धारा में पुनः लौट सकें।

इस प्रकार नस्लीय भेदभाव को समाप्त कर किसी भी व्यक्ति के गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार को प्रभावित होने से बचाया जा सकता है। इस संदर्भ में UN के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान का कथन- " हमारा उद्देश्य ज्ञान के साथ कट्टरता का त्याग करना और उदारता के साथ भेदभाव को दूर करना है।"

नस्लवाद किसी भी स्थिति में और अवश्य ही समाप्त होना चाहिए। और हम सब मिलकर यह सुनिश्चित करें कि हर नस्ल, जाति, रंग, लिंग, पंथ में रुचि रखने वाले लोग एक-दूसरे से सुरक्षित और आपस में संबंधित है, जिससे कि हमारा आने वाला कल सौहार्दपूर्ण तथा समावेशी विकास को बढ़ावा देने वाला हो।

  अंकित सिंह  

अंकित सिंह उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले से हैं। उन्होंने UPTU से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन में  स्नातक तथा हिंदी साहित्य व अर्थशास्त्र  में परास्नातक किया है। वर्तमान में वे दिल्ली स्कूल ऑफ सोशल वर्क  (DU) से सोशल वर्क में परास्नातक कर रहे हैं तथा सिविल सर्विसेज की तैयारी करने के साथ ही विभिन्न वेबसाइटों के लिए ब्लॉग लिखते हैं।
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