उत्तराखंड Switch to English
सिरकारी भ्योल रूपसियाबगड जल विद्युत परियोजना
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड में सिरकरी भ्योल रूपसियाबगड जलविद्युत परियोजना को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के तहत वन सलाहकार समिति (FAC) से सैद्धांतिक स्वीकृति (प्रारंभिक या सशर्त समझौता) मिल गई।
मुख्य बिंदु
सिरकारी भ्योल रूपासिया बगड़ जलविद्युत परियोजना
- परियोजना अवलोकन:
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यह परियोजना उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले में गोरी गंगा नदी पर स्थित है।
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इसकी स्थापित क्षमता 120 मेगावाट (MW) रखने की योजना है।
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FAC ने परियोजना के कार्यान्वयन के लिये आवश्यक 29.997 हेक्टेयर वन भूमि के परिवर्तन को स्वीकृति प्रदान कर दी है।
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बुनियादी ढाँचे का डिज़ाइन और प्रभाव:
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इस परियोजना में लगभग 1 किमी. सुरंग का निर्माण शामिल है।
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परियोजना का अधिकांश बुनियादी ढाँचा भूमिगत बनाया जाएगा, जिससे पर्यावरणीय प्रभाव को निम्न करने में सहायता मिलेगी।
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परियोजना के कारण स्थानीय जनसंख्या का कोई विस्थापन नहीं होगा।
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यह स्थल किसी भी राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य या पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र के अंतर्गत नहीं आता है, जिससे न्यूनतम पारिस्थितिक व्यवधान सुनिश्चित होता है।
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परियोजना की ऊर्जा क्षमता:
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इस परियोजना से प्रतिवर्ष लगभग 529 मिलियन यूनिट स्वच्छ, नवीकरणीय ऊर्जा उत्पन्न होने की संभावना है।
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इस उत्पादन से स्थानीय ऊर्जा मांग को पूर्ण करने में सहायता प्राप्त होगी और उत्तराखंड की ऊर्जा आत्मनिर्भरता में महत्त्वपूर्ण योगदान मिलेगा।
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सामाजिक-आर्थिक प्रभाव:
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यह परियोजना निर्माण चरण के दौरान अस्थायी रोज़गार तथा परिचालन के बाद स्थायी रोज़गार के अवसर उत्पन्न करेगी।
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इससे सड़कों और सार्वजनिक सुविधाओं सहित स्थानीय बुनियादी ढाँचे में भी सुधार होगा।
- इन विकासों के कारण स्थानीय निवासियों के लिये आर्थिक अवसरों में वृद्धि होने से क्षेत्र से पलायन कम होने की संभावना ह
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वन सलाहकार समिति (FAC)?
- यह एक वैधानिक निकाय है जिसका गठन वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 द्वारा किया गया था।
- FAC उन औद्योगिक परियोजनाओं का मूल्यांकन करता है जिनके कार्यकलापों के लिये वन भूमि की आवश्यकता होती है।
- समिति किसी परियोजना को स्वीकृति प्रदान कर सकती है या नहीं भी कर सकती है तथा कुछ शर्तें लगाने के बाद वन भूमि के हस्तांतरण की स्वीकृति भी दे सकती है।
गोरी गंगा नदी
- गोरी गंगा नदी, जिसे गोरी गंगा या गोरी गाड़ के नाम से भी जाना जाता है, उत्तराखंड में पिथौरागढ़ ज़िले की मुनस्यारी तहसील से होकर बहती है।
- यह नदी नंदा देवी के उत्तर-पूर्व में स्थित मिलम ग्लेशियर से निकलती है और जौलजीबी में काली नदी में मिलने से पहले लगभग 104 किलोमीटर का सफर तय करती है।
- एक महत्त्वपूर्ण सहायक नदी, गोंगा धारा, ग्लेशियर के थूथन से सिर्फ 1 किमी. नीचे, मिलम गाँव के पास गोरी गंगा में मिलती है।
- भौगोलिक महत्त्व:
- नदी घाटी कई ग्लेशियरों और नदियों के लिये जल निकासी बेसिन के रूप में कार्य करती है, जो नंदा देवी अभयारण्य के पूर्वी ढलानों और पंचाचूली, राजरम्बा तथा चौधारा पर्वत शृंखलाओं से निकलती हैं।
- अन्य प्रमुख सहायक धाराओं में रालम गाड़, प्यूसानी गैदरा और कालाबालंद–बुर्फू कालगंगा ग्लेशियर प्रणाली शामिल हैं, जो पूर्व की ओर से गोरी गंगा में मिलती हैं।
- पर्यटन संभावनाएँ:
- गोरी गंगा घाटी अपने सुंदर ट्रैकिंग मार्गों के लिये भी प्रसिद्ध है, जो नंदा देवी पूर्वी, हरदेओल, त्रिशूली, पंचाचूली और नंदा कोट जैसी प्रतिष्ठित हिमालयी चोटियों तक जाते हैं।
- यह घाटी पारिस्थितिकी मूल्य और साहसिक पर्यटन की संभावनाओं को समेटे हुए है, जिससे यह एक बहुआयामी महत्त्व का क्षेत्र बन जाता है।

