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बिहार स्टेट पी.सी.एस.

  • 01 Oct 2025
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बिहार में 3.7 लाख अयोग्य मतदाता

चर्चा में क्यों?

30 सितंबर, 2025 को प्रकाशित अंतिम बिहार मतदाता सूची में 7.42 करोड़ मतदाता पंजीकृत हैं, जो 24 जून, 2025 को दर्ज 7.89 करोड़ की तुलना में लगभग 6% कम है। यह अंतर उस अवधि के पश्चात् सामने आया है, जब भारत निर्वाचन आयोग ने राज्य में तीन माह के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की घोषणा की थी।

मुख्य बिंदु

  • विलोपन और परिवर्द्धन:
    • मसौदा सूची से 65 लाख नाम हटा दिये गए, जिनमें प्रमुख श्रेणियाँ मृत्यु, प्रवासन और डुप्लीकेशन थीं। दावों तथा आपत्तियों के निपटारे के बाद अंतिम चरण में 3.66 लाख अतिरिक्त नाम हटा दिये गए। 
    • हटाए गए गैर-नागरिकों या विदेशियों की संख्या नगण्य थी। 
    • अंतिम सूची में 21.53 लाख नए मतदाता जोड़े गए। 1 अगस्त, 2025 को जारी मसौदा सूची (7.2 करोड़) की तुलना में मतदाताओं की संख्या में 17.9 लाख की वृद्धि हुई।
  • लिंग प्रतिनिधित्व:
    • महिला मतदाताओं का प्रतिशत जनवरी में 47.75% था, जो SIR के पूरा होने के बाद थोड़ा घटकर 47.15% हो गया।
  • वैधानिक पहलू:
    • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: न्यायालय ने निर्णय दिया कि आधार को पहचान के 12वें दस्तावेज़ के रूप में शामिल किया जाएगा, जिससे बहिष्करण की संभावना बढ़ सकती है।
    • अपील प्रक्रिया: नाम हटाए जाने से असंतुष्ट मतदाता ज़िला मजिस्ट्रेट और मुख्य निर्वाचन अधिकारी के समक्ष अपील कर सकते हैं।

मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR)

  • मतदाता सूची:
    • मतदाता सूची (जिसे वोटर लिस्ट या इलेक्टोरल रजिस्टर भी कहा जाता है) किसी विशेष निर्वाचन क्षेत्र में सभी योग्य और पंजीकृत मतदाताओं की आधिकारिक सूची है। 
    • इसका उपयोग मतदाताओं की पहचान सत्यापित करने तथा चुनावों के दौरान निष्पक्ष एवं पारदर्शी निर्वाचन प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिये किया जाता है।
    • मतदाता सूचियाँ भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत तैयार की जाती हैं। इसमें गैर-नागरिक शामिल नहीं होते (धारा 16) तथा 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के नागरिक जो सामान्यतः निर्वाचन क्षेत्र में निवास करते हैं, उन्हें शामिल किया जाता है (धारा 19)।
  • विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR):
    • SIR एक केंद्रित, समयबद्ध, घर-घर मतदाता सत्यापन प्रक्रिया है, जो प्रमुख चुनावों से पहले मतदाता सूचियों को अद्यतन और सही करने के लिये बूथ स्तरीय अधिकारियों (BLOs) द्वारा संचालित की जाती है।
    • यह नए पंजीकरण , विलोपन और संशोधन की अनुमति देकर यह सुनिश्चित करता है कि मतदाता सूची सटीक, समावेशी तथा विसंगतियों से मुक्त हो।
    • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21 भारत निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची तैयार करने और संशोधित करने का अधिकार देती है, जिसमें दर्ज कारणों के साथ किसी भी समय विशेष संशोधन करना भी शामिल है।
    • SIR का संवैधानिक आधार:
      • अनुच्छेद 324 भारत के निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची तैयार करने और चुनाव कराने का पर्यवेक्षण तथा नियंत्रण करने की शक्ति प्रदान करता है।
      • अनुच्छेद 326 सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की गारंटी देता है, जिसके तहत 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के नागरिकों को मतदान का अधिकार है, जब तक कि उन्हें आपराधिक दोषसिद्धि, विकृत मस्तिष्क या भ्रष्टाचार के कारण कानून द्वारा अयोग्य घोषित न कर दिया जाए।
      • अनुच्छेद 327 विधानमंडलों के चुनावों के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति से संबंधित है ।
      • अनुच्छेद 328 राज्य की विधानमंडल को उसके अपने चुनावों के संबंध में प्रावधान करने का अधिकार देता है।
    • न्यायिक स्थिति: 
      • मोहिंदर सिंह गिल बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त मामले, 1977 में र्वोच्च न्यायालय ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिये अनुच्छेद 324 के तहत ECI की व्यापक शक्तियों को बरकरार रखा, जिसमें आवश्यकता पड़ने पर पुनर्मतदान का आदेश देना भी शामिल है, और इस बात पर जोर दिया कि अनुच्छेद 329(b) के अनुसार चुनावों के दौरान न्यायिक समीक्षा प्रतिबंधित है।
        • इसमें स्पष्ट किया गया कि यदि अनुच्छेद 327 और 328 के तहत कानून किसी भी पहलू पर मौन हैं तो भारत निर्वाचन आयोग स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकता है ।
        • साथ ही यह भी उल्लेख किया गया कि यद्यपि प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत महत्त्वपूर्ण है, फिर भी असाधारण परिस्थितियों में ECI त्वरित और व्यावहारिक निर्णय ले सकता है।
    • पूर्ववर्ती मतदाता सूची पुनरीक्षण: देश के विभिन्न भागों में वर्ष 1952–56, 1957, 1961, 1965, 1966, 1983–84, 1987–89, 1992, 1993, 1995, 2002, 2003 और 2004 में विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (SIR) आयोजित किये गए थे। बिहार में अंतिम SIR वर्ष 2003 में आयोजित किया गया था।


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