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स्टेट पी.सी.एस.

  • 14 Apr 2025
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उत्तर प्रदेश Switch to English

फल विकास और पादप हार्मोन

चर्चा में क्यों?

फलों का पकना पौधे की उम्र बढ़ने (जीर्णता) की प्रक्रिया का अंतिम चरण है, जो बीजों के फैलाव को सरल और सुगम बनाने में सहायक होता है।

मुख्य बिंदु

फल विकास और पादप हार्मोन के बारे में:

  • फल विकास 3 चरणों में होता है: 
    • फल सेट (Fruit Set): निषेचन के बाद अंडाशय की वृद्धि प्रारंभ होती है।
    • फल वृद्धि (Fruit Growth): इस चरण में कोशिकाओं का सक्रिय विभाजन और विस्तार होता है।
    • परिपक्वता (Maturation): फल और बीज पूरी तरह से अपने आकार को प्राप्त कर लेते हैं।
  • इसके बाद फसल पकती है, जिससे खाद्यता में सुधार होता है और बीज फैलाव में सहायता मिलती है।

फल पकने की प्रक्रिया:

  • पादप हार्मोन:
  • कृत्रिम फल पकाने के लिये प्रयुक्त पदार्थ:
    • कैल्शियम कार्बाइड: यह जहरीली एसिटिलीन गैस उत्सर्जित करता है तथा इसमें फास्फोरस और आर्सेनिक (एक कैंसरकारी पदार्थ) हो सकता है, जो गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है। 
    • खाद्य सुरक्षा एवं मानक विनियम, 2011 के अंतर्गत FSSAI द्वारा इसके उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
  • अनुमत पदार्थ:
    • एथिलीन गैस: FSSAI द्वारा स्वीकृत 100 ppm (प्रति मिलियन भाग) तक; प्राकृतिक रूप से पकने में सहायक। इसे नियंत्रित पकने वाले कक्षों में प्रयुक्त किया जाना चाहिये और फलों के सीधे संपर्क में नहीं आना चाहिये।
    • एथिफॉन: विखंडन पर एथिलीन मुक्त होती है और विनियमित परिस्थितियों में कृत्रिम रूप से पकाने के लिये उपयोग किया जाता है।
    • ईथरीय (Ethereal): यह एक एथिलीन-विमोचन यौगिक है जिसका उपयोग नियंत्रित परिस्थितियों में किया जाता है।


हरियाणा Switch to English

पंजाब और हरियाणा में गेहूँ उत्पादन की प्रवृत्ति

चर्चा में क्यों?

पंजाब और हरियाणा में अनुकूल शीतकालीन मौसम के कारण वर्ष 2025 में गेहूँ की पैदावार बढ़ने की संभावना है, हाlलाँकि हाल ही में हुई बेमौसम ओलावृष्टि से फसल को मामूली नुकसान हुआ है। 

मुख्य बिंदु

  • गेहूँ उत्पादन और उपज अनुमान:
    • पिछले वर्ष की तुलना में औसत गेहूँ उपज में वृद्धि का अनुमान लगाया गया है:
    • पंजाब: वर्ष 2023-24 में औसत गेहूँ उपज 50 क्विंटल/हेक्टेयर थी। वर्ष 2024-25 में यह 60 क्विंटल/हेक्टेयर से अधिक हो सकती है। 
    • हरियाणा:  वर्ष 2023-24 में गेहूँ की औसत उपज 46 क्विंटल/हेक्टेयर थी।  वर्ष2024-25 में यह 50 क्विंटल/हेक्टेयर से अधिक हो सकता है। 
    • पंजाब और हरियाणा केंदीय खरीद पूल में, विशेषकर गेहूँ के लिये, प्रमुख योगदानकर्त्ता हैं।
  • एक मज़बूत फसल:
    • खाद्य सुरक्षा को मज़बूत करेगी और बाज़ार में आपूर्ति को स्थिर बनाएगी।
    • बेहतर खरीद दरों के माध्यम से किसानों की आय को बढ़ाएगी।
    • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को लाभ पहुँचाएगी और खाद्य मुद्रास्फीति को कम करेगी।
  • भारत में गेहूँ उत्पादन
    • गेहूँ एक रबी फसल है, जिसे अक्तूबर से दिसंबर के बीच बोया जाता है और अप्रैल से जून तक काटा जाता है।
    • यह चावल के बाद भारत का दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण अनाज है और उत्तरी तथा उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों का मुख्य भोजन है।
  • क्षेत्र एवं उत्पादन:
    • क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत में गेहूँ दूसरी सबसे बड़ी फसल है (धान के बाद)।
  • शीर्ष गेहूँ उत्पादक राज्य:
    • उत्तर प्रदेश
    • पंजाब
    • हरियाणा 
    • मध्य प्रदेश
    • राजस्थान
  • शीर्ष गेहूँ उत्पादक देश:
    • चीन 
    • यूरोपीय संघ 
    • भारत 
  • गेहूँ की खेती के लिये आदर्श परिस्थितियाँ:
    • मिट्टी: अच्छी जल निकासी वाली दोमट या चिकनी मिट्टी में सबसे अच्छी वृद्धि होती है।
    • तापमान:
      • बुवाई के लिये 10–15°C
      • पकने और कटाई के दौरान 21–26°C
    • वर्षा: 75-100 सेमी मध्यम वर्षा की आवश्यकता होती है।
    • सूर्य का प्रकाश: अच्छी उपज के लिये अनाज निर्माण के दौरान तेज़ धूप आवश्यक है।


उत्तर प्रदेश Switch to English

वाराणसी में विकास परियोजनाएँ

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री ने वाराणसी में 3,880 करोड़ रुपए से अधिक लागत वाली 44 परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। इन परियोजनाओं में विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित विकास कार्य सम्मिलित हैं।

मुख्य बिंदु

  • परियोजनाओं के बारे में: 
    • वाराणसी रिंग रोड और सारनाथ के बीच सड़क पुल, भिखारीपुर और मंडुआडीह पर फ्लाईओवर और वाराणसी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर NH-31 पर हाईवे अंडरपास रोड सुरंग की आधारशिला रखी।
    • बिजली के बुनियादी ढाँचे में सुधार करते हुए, वाराणसी मंडल के जौनपुर, चंदौली और गाज़ीपुर ज़िलों में दो 400 KV (किलोवोल्ट) और एक 220 KV ट्रांसमिशन सबस्टेशन का उद्घाटन किया।
    • पुस्तकालयों और आंगनवाड़ी केंद्रों को जोड़कर ग्रामीण शिक्षा में सुधार किया गया और स्मार्ट सिटी मिशन के तहत प्राथमिक विद्यालयों को उन्नत करने की नींव रखी गई।
    • प्रधानमंत्री ने एकता मॉल के निर्माण की घोषणा की, जहाँ काशी में एक ही छत के नीचे पूरे भारत के विविध शिल्प और उत्पादों का प्रदर्शन किया जाएगा।
    • पशुपालन करने वाले परिवारों को 105 करोड़ से ज़्यादा का बोनस दिया गया, जिनमें ज़्यादातर महिलाएँ थीं। इन महिलाओं को अब "लखपति दीदी" के नाम से जाना जाता है।
    • प्रधानमंत्री ने वरिष्ठ नागरिकों को आयुष्मान वय वंदना कार्ड भी दिये, जिससे 70 साल से ज़्यादा उम्र के सभी लोगों को मुफ़्त स्वास्थ्य सेवा मिल सकेगी, चाहे उनकी आय कुछ भी हो।
      • आयुष्मान भारत योजना के तहत उत्तर प्रदेश के कई परिवारों को मुफ़्त इलाज मिला है।
  • उद्देश्य:
    • यह परियोजनाएँ वाराणसी और आस-पास के पूर्वांचल क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों को तीव्र करेंगी।
    • इन परियोजनाओं का उद्देश्य वाराणसी और आसपास के क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे का सुधार करना है, इससे न केवल आम नागरिकों की जीवन गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि व्यापार, पर्यटन और सांस्कृतिक धरोहर को भी बढ़ावा मिलेगा।

वाराणसी

  • परिचय
    • यह उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख और ऐतिहासिक नगर है, जिसे काशी और बनारस के नाम से भी जाना जाता है। 
    • यह नगर गंगा नदी के तट पर स्थित है और हिंदू धर्म में इसे अत्यन्त पवित्र और महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता है। 
    • वाराणसी नाम का उद्गम यहाँ की दो स्थानीय नदियों वरुणा नदी एवं असि नदी के नाम से मिलकर बना है। ये नदियाँ गंगा नदी में क्रमशः उत्तर एवं दक्षिण से आकर मिलती हैं।
    • यह बौद्ध और जैन धर्मों का भी प्रमुख तीर्थ स्थल है। 
    • वाराणसी को हिंदू धर्म में "अविमुक्त क्षेत्र" के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है, जहाँ मरने से आत्मा को मुक्ति मिलती है।
    • वाराणसी को "मंदिरों का शहर", "दीपों का शहर", "ज्ञान नगरी" जैसे विशेषणों से संबोधित किया जाता है।
    • यह शहर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना का केंद्र है। यहाँ के प्रमुख संगीतज्ञों और कलाकारों में उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, पंडित रवि शंकर और गिरिजा देवी शामिल हैं।
  • शिक्षा और विश्वविद्यालय:
    • वाराणसी में चार प्रमुख विश्वविद्यालय हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय
  • पर्यटन स्थल:
    • काशी विश्वनाथ मंदिर
    • भारत माता मंदिर 
    • सारनाथ
    • अस्सी घाट 


उत्तर प्रदेश Switch to English

रोहिन बैराज

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने महाराजगंज में रोहिन बैराज परियोजना का उद्घाटन किया।

मुख्य बिंदु

  • बैराज के बारे में: 
    • यह परियोजना उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चलाई जा रही एक सिंचाई अवसंरचना परियोजना है, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण मानी जा रही है। 
    • रोहिन बैराज लगभग 86 मीटर लंबा है और इसके दोनों तटों पर सिंचाई की सुविधा प्रदान की गई है, जिससे 7,000 हेक्टेयर से अधिक खेती योग्य भूमि को सीधा लाभ मिलेगा। यह क्षेत्र अब तक वर्षा या अस्थायी जल स्रोतों पर निर्भर था।
    • इस बैराज से पाँच माइनर नहरें निकाली गई हैं— रामनगर, नकटोजी, वटजगर, सिसवा और बौलिया— सिंचाई व्यवस्था को सुदृढ़ करेंगी।
    • इन नहरों के माध्यम से रबी और खरीफ दोनों ही फसलों के लिये जल आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकेगी।
    • इस बैराज का निर्माण रोहिन नदी पर किया गया है।
    • इस परियोजना से सीधे तौर पर 16,000 किसानों को लाभ मिलेगा। इन किसानों को नियमित और संरचित रूप में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी।
    • बैराज बनने से आसपास के गाँवों में स्थायी नहर प्रणाली और जल आपूर्ति व्यवस्था विकसित होगी। 

रबी की फसल

  • इन फसलों को लौटते मानसून और पूर्वोत्तर मानसून के मौसम के दौरान (अक्तूबर) बोया जाता है, जिन्हें रबी या सर्दियों की फसल कहा जाता है।
  • इन फसलों की कटाई सामान्यतः गर्मी के मौसम में अप्रैल और मई के दौरान होती है।
  • इन फसलों पर वर्षा का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है। 
  • रबी की प्रमुख फसलें गेहूँ, चना, मटर, जौ आदि हैं।
  • बीजों के अंकुरण के लिये गर्म जलवायु और फसलों के विकास हेतु ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। 

खरीफ की फसलें : 

  • दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम में बोई जाने वाली फसलें खरीफ या मानसून की फसलें कहलाती हैं।
  • ये फसलें मौसम की शुरुआत में मई के अंत से लेकर जून की शुरुआत तक बोई जाती हैं और अक्तूबर से शुरू होने वाली मानसूनी बारिश के बाद काटी जाती हैं।
  • ये फसलें वर्षा के पैटर्न पर निर्भर करती हैं।
  • चावल, मक्का, दालें जैसे उड़द, मूंग दाल और बाजरा प्रमुख खरीफ फसलों में से हैं।
  • इन्हें बढ़ने के लिये अधिक पानी और गर्म मौसम की आवश्यकता होती है।


उत्तर प्रदेश Switch to English

सिस्टम फार प्रिर्वेटिंग थेफ्ट आफ व्हीकल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तर पदेश के नोएडा में स्थित एक राजकीय महाविद्यालय के वैज्ञानिक द्वारा चोरी हुए वाहनों को ट्रैक करने के लिये विकसित एक विशेष उपकरण को भारत सरकार द्वारा पेटेंट प्रदान किया गया है। 

मुख्य बिंदु

  • यह उपकरण चोरी हुए वाहनों को खोजने और ट्रैक करने में सहायक है। इसे "System for Preventing Theft of Vehicle" नाम दिया गया है। 
  • इसमें वाहन के तीन मुख्य भागोंचेसिस, इंजन और नंबर प्लेट में वायरलेस चिप्स लगाए जाते हैं।
  • ये सभी चिप्स एक मुख्य नियंत्रक (controller) से जुड़े होते हैं, जो पूरे सिस्टम की निगरानी करता है।
  • चिप्स को विशेष रूप से कोडित किया गया है, जिससे उन्हें कहीं और इस्तेमाल किये जाने पर भी पहचाना जा सकता है।
  • यह प्रणाली Fastag रीडर की तरह कार्य करती है और पुलिस को चोरी हुए वाहन या उसके भाग की पुष्टि में मदद करती है।
  • NCRB की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली देश में सबसे अधिक वाहन चोरी की घटनाओं वाला क्षेत्र है और यह उपकरण विशेष रूप से ऐसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो 

  • परिचय 
    • NCRB की स्थापना केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत वर्ष 1986 में इस उद्देश्य से की गई थी कि भारतीय पुलिस में कानून व्यवस्था को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये पुलिस तंत्र को सूचना प्रौद्योगिकी समाधान और आपराधिक गुप्त सूचनाएँ प्रदान कर समर्थ बनाया जा सके।
  • कार्य:
    • ब्यूरो को यौन अपराधियों के राष्ट्रीय डेटाबेस (National Database of Sexual Offenders-NDSO) को बनाए रखने और इन्हें नियमित आधार पर राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के साथ साझा करने का कार्य सौंपा गया है। 
    • NCRB को 'ऑनलाइन साइबर-अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल' के तकनीकी और परिचालन कार्यों के प्रबंधन हेतु केंद्रीय नोडल एजेंसी के रूप में भी नामित किया गया है, जिसके माध्यम से कोई भी नागरिक बाल अश्लीलता या बलात्कार/सामूहिक बलात्कार से संबंधित अपराध के सबूत के रूप में वीडियो क्लिप अपलोड कर शिकायत दर्ज कर सकता है। 
    • अंतर-प्रचलित आपराधिक न्याय प्रणाली परियोजना (Inter-operable Criminal Justice System-ICJS) के क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी भी NCRB को दी गई है।


बिहार Switch to English

गंगा किनारे अवैध निर्माण

चर्चा में क्यों? 

सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में केंद्र और बिहार सरकार को गंगा नदी के किनारे किये गए अवैध निर्माणों को हटाने के लिये उठाए गए कदमों पर स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

मुख्य बिंदु

  • मुद्दे के बारे में: 
    • यह आदेश एक याचिकाकर्त्ता द्वारा राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के 30 जून, 2020 के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया। 
    • याचिकाकर्त्ता ने बताया कि गंगा नदी के किनारे बड़े पैमाने पर अवैध अतिक्रमण हो रहे हैं। यह अतिक्रमण विभिन्न प्रकार के निर्माणों, जैसे आवासीय बस्तियाँ, ईंट भट्टे और धार्मिक संरचनाओं के रूप में हो रहे हैं। 
    • इससे नदी के प्राकृतिक प्रवाह और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
    • गंगा नदी के किनारों के कुछ हिस्से ताजे पानी की डॉल्फिनों से समृद्ध हैं और इनके आवासों पर अवैध निर्माणों का प्रभाव नदी की जैवविविधता को नुकसान पहुँचा सकता है।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण 

  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal - NGT) की स्थापना 18 अक्तूबर, 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम (National Green Tribunal Act), 2010 के तहत की गई थी।
  • NGT की स्थापना के साथ भारत एक विशेष पर्यावरण न्यायाधिकरण (Specialised Environmental Tribunal) स्थापित करने वाला दुनिया का तीसरा (और पहला विकासशील) देश बन गया। इससे पहले केवल ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में ही ऐसे किसी निकाय की स्थापना की गई थी।
  • NGT की स्थापना का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संबंधी मुद्दों का तेज़ी से निपटारा करना है, जिससे देश की अदालतों में लगे मुकदमों के बोझ को कुछ कम किया जा सके।
  • NGT का मुख्यालय दिल्ली में है, जबकि अन्य चार क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल, पुणे, कोलकाता एवं चेन्नई में स्थित हैं।
  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम के अनुसार, NGT के लिये यह अनिवार्य है कि उसके पास आने वाले पर्यावरण संबंधी मुद्दों का निपटारा 6 महीनों के भीतर हो जाए।

 गंगा नदी 

  • यह उत्तराखंड में गौमुख (3,900 मीटर) के पास गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है जहाँ इसे भागीरथी के नाम से जाना जाता है।
  • देवप्रयाग में भागीरथी अलकनंदा से मिलती है; इसके बाद इसे गंगा के रूप में जाना जाता है।
  • गंगा उत्तरी मैदानों में हरिद्वार में प्रवेश करती है।
  • गंगा उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से होकर बहती है।
  • यमुना और सोन दाहिने किनारे की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं और बाएँ किनारे की महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी और महानंदा हैं।
  • यमुना गंगा की सबसे पश्चिमी और सबसे लंबी सहायक नदी है और इसका स्रोत यमुनोत्री ग्लेशियर है।
  • गंगा सागर द्वीप के पास बंगाल की खाड़ी में गिरती है।


राजस्थान Switch to English

रामगढ़ बाँध

चर्चा में क्यों?

11 अप्रैल, 2025 को राजस्थान के जल संसाधन मंत्री ने रामगढ़ बाँध के विभिन्न मरम्मत एवं सौंदर्यीकरण कार्यों का शिलान्यास किया।

मुख्य बिंदु

मुद्दे के बारे में:

  • रामगढ़ बाँध के पुनरोद्धार के लिये बजट घोषणा वर्ष 2024-25 के तहत 252.93 लाख रुपए स्वीकृत किये गए हैं। यह कार्य अगले 12 महीनों में पूर्ण किया जाएगा।
  • रामजल सेतु लिंक परियोजना के तहत ईसरदा बाँध से रामगढ़ बाँध तक पानी लाने की योजना बनाई गई है।
  • इस परियोजना के अंतर्गत 120 किमी. की दूरी में से (35 किमी. नहर द्वारा और 85 किमी. पाइपलाइन द्वारा) जल आपूर्ति की जाएगी।
  • इस परियोजना से लगभग 3.50 लाख लोगों को पानी मिल सकेगा।
  • मरम्मत कार्यों में शामिल हैं:
    • पाल की क्षतिग्रस्त सड़क की मरम्मत
    • पैरापेट वॉल और कंट्रोल रूम का निर्माण
    • डूब क्षेत्र की सीढ़ियों, छतरी का सौंदर्यीकरण
    • पत्थर की पिचिंग आदि।
  • यह परियोजना किसानों, पशुपालकों एवं ग्रामीणों के लिये जल संकट से राहत दिलाने में मील का पत्थर साबित होगी।
  • इससे आगामी वर्षों में रामगढ़ क्षेत्र के विकास को गति देने के साथ-साथ राज्य के समग्र और संतुलित विकास को मज़बूती मिलेगी। 

रामगढ़ बाँध 

  • इस बाँध का निर्माण 1904 में जयपुर के तत्कालीन शासक सवाई माधो सिंह द्वितीय के शासनकाल के दौरान किया गया था।
  • बाणगंगा नदी के निकट स्थित इस बाँध का कुल जलग्रहण क्षेत्रफल 841.14 वर्ग किलोमीटर है। 
  • यह बाँध जयपुर के अनेक क्षेत्रों जैसे शाहपुर, आमेर, विराटनगर तक फैला हुआ है। 75.04 मिलियन क्यूबिक मीटर की अधिकतम जलधारण क्षमता के साथ निर्मित इस बाँध को लेकर सरकार ने वर्ष 1978 में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया था, जिसके अनुसार इसका जल केवल पेयजल आपूर्ति के लिये ही उपयोग में लिया जाएगा।

Ramgarh Dam

रामजल सेतु लिंक परियोजना

  • यह एक अंतरराज्यीय नदी जोड़ परियोजना है, जिसका उद्देश्य राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच जल संसाधनों का संतुलन बनाना है। इसका नाम बदलकर अब रामजल सेतु लिंक परियोजना रखा गया है।
  • इस परियोजना से चंबल नदी और उसकी सहायक नदियों — कुन्नू, कूल, पार्वती और कालीसिंध के अधिशेष जल को बनास, मोरेल, बाणगंगा, रूपारेल, पार्वतनी और गंभीर नदी बेसिन में भेजा जाएगा।
  • इससे राजस्थान के 17 ज़िलों को लाभ मिलेगा।


झारखंड Switch to English

झारखंड में नक्सल विरोधी अभियान का अंतिम चरण

चर्चा में क्यों?

झारखंड के मुख्यमंत्री ने कहा है कि राज्य में वामपंथी उग्रवाद (LWE) के खिलाफ लड़ाई अब अपने अंतिम चरण में है,  जो आतंकवाद विरोधी अभियानों में महत्त्वपूर्ण प्रगति का संकेत है। 

  • उनकी यह टिप्पणी पश्चिमी सिंहभूम में हुए एक इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED) विस्फोट के बाद आई है, जिसमें झारखंड जगुआर के एक जवान की मौत हो गई थी।
  • नोट: झारखंड जगुआर की स्थापना वर्ष 2008 में राज्य में वामपंथी उग्रवाद को खत्म करने के लिये की गई थी।

मुख्य बिंदु

नक्सलवाद को नियंत्रित करने के लिये सरकार की कुछ पहल:

  • विशेष केंद्रीय सहायता (SCA):
    • इस योजना को वर्ष 2017 में मंजूरी दी गई थी और इसे व्यापक योजना 'पुलिस बलों के आधुनिकीकरण' की उप-योजना के रूप में कार्यान्वित किया जा रहा है। 
    • इस योजना का मुख्य उद्देश्य वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित अधिकांश ज़िलों में सार्वजनिक अवसंरचना और सेवाओं में महत्त्वपूर्ण अंतराल को भरना है। 
  • सुरक्षा संबंधी व्यय (SRE) योजना:
    • केंद्र सरकार लातेहार और पश्चिमी सिंहभूम जैसे प्रभावित ज़िलों में सुरक्षा अभियान, प्रशिक्षण, अनुग्रह भुगतान और आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के पुनर्वास से संबंधित लागतों की प्रतिपूर्ति करती है। 
    • किलेबंद पुलिस स्टेशनों का निर्माण:
    • स्थानीय कानून प्रवर्तन को मज़बूत करने के एक हिस्से के रूप में, विशेष अवसंरचना योजना के तहत झारखंड के संवेदनशील ज़िलों में कई किलेबंद पुलिस स्टेशनों का निर्माण किया गया है। 

वामपंथी उग्रवाद द्वारा की गई हिंसा का राज्यवार विवरण (दर्ज मौतों की संख्या) (पिछले 3 वर्ष):

इंप्रोवाइज्ड विस्फोटक उपकरण

  • इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED) एक स्वदेशी बम है, जिसे लक्ष्यों को नष्ट करने या अक्षम करने के लिये डिज़ाइन किया गया है,  जिसका उपयोग आमतौर पर अपराधियों, आतंकवादियों और विद्रोहियों द्वारा विभिन्न रूपों में किया जाता है।
  • IED को कई तरीकों से पहुँचाया जा सकता है,  जिसमें वाहनों द्वारा, व्यक्तियों द्वारा रखा जाना या सड़क के किनारे छिपाया जाना शामिल है तथा वर्ष 2003 में शुरू हुए इराक युद्ध के दौरान इसे प्रमुखता मिली।


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