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उत्तराखंड स्टेट पी.सी.एस.

  • 11 Oct 2022
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उत्तराखंड में ‘पीएम आवास योजना’ की तर्ज़ पर संचालित होगी ‘अटल आवास योजना’

चर्चा में क्यों?

10 अक्टूबर, 2022 को उत्तराखंड के समाज कल्याण मंत्री चंदन रामदास ने राज्य में समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत अनुसूचित जाति के लिये ‘अटल आवास योजना’ को अब ‘प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण)’ की तर्ज़ पर संचालित करने के निर्देश अधिकारियों को दिये।

प्रमुख बिंदु

  • समाज कल्याण मंत्री चंदन राम दास ने बताया कि पूर्व में बंद हो चुकी इस योजना में प्रति लाभार्थी भवन निर्माण के लिये दी जाने वाली 38 हज़ार रुपए की आर्थिक सहायता काफी कम थी, जबकि प्रधानमंत्री आवास योजना में 1.30 लाख रुपए की राशि देने का प्रवधान है।
  • उन्होंने कहा कि अब इसी तर्ज़ पर अटल आवास योजना के संचालन का प्रस्ताव तैयार करने का यह विषय कैबिनेट की अगली बैठक में रखा जाएगा।
  • कैबिनेट मंत्री ने बताया कि प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण से वर्तमान में वही लोग लाभान्वित हो रहे हैं, जिनका पाँच वर्ष पहले पंजीकरण हो चुका है। इस सबके मद्देनज़र गरीबों को राहत देने के लिये अटल आवास योजना को फिर से संचालित करने का निर्णय लिया गया है।
  • विदित है कि राज्य समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत पाँच निगम और इतने ही बोर्ड हैं। निगमों द्वारा दिये गए ऋण में से लगभग 20 करोड़ रुपए की वसूली होनी है। इसे देखते हुए अब ‘एकमुश्त समाधान योजना’ लाई जा रही है, ताकि संबंधित व्यक्तियों को राहत मिलने के साथ ही निगमों को कम-से-कम मूलधन वापस मिल सके।

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उत्तराखंड में बेसहारा बच्चों के लिये जल्द बनेगी पुनर्वास नीति

चर्चा में क्यों?

10 अक्टूबर, 2022 को उत्तराखंड की महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास मंत्री रेखा आर्य ने बताया कि राज्य में पहली बार स्ट्रीट चिल्ड्रेन (बेसहारा) पुनर्वास नीति 9 नवंबर से लागू की जाएगी।

प्रमुख बिंदु

  • महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास मंत्री ने बताया कि सरकार की ओर से इसका प्रस्ताव तैयार कर लिया गया है, जिसे राज्य स्थापना दिवस (9 नवंबर) के अवसर पर लागू करने की तैयारी है।
  • उन्होंने बताया कि राज्य में अनाथ और सड़कों पर बेसहारा घूम रहे बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने के लिये पुनर्वास नीति का प्रस्ताव तैयार किया गया है।
  • उल्लेखनीय है कि महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास मंत्री ने इस नीति का ड्राफ्ट बनाया है। नीति को अंतिम रूप देने के लिये सभी ज़िलों के ज़िलाधिकारियों एवं संबंधित अधिकारियों से सुझाव मांगे गए थे।
  • विभागीय अधिकारियों ने जानकारी दी है कि सड़कों पर रहने वाले तीन तरह के बच्चे हैं। एक वह बच्चे हैं, जो अकेले रहते हैं। दूसरे अपने माता-पिता के साथ रहते हैं। तीसरे वह बच्चे हैं, जो दिनभर सड़क पर रहते हैं और दिन ढलते ही मलिन बस्तियों में चले जाते हैं। इस तरह के बच्चे न स्कूल में हैं, न परिवार में। अधिकतर बच्चे उत्तराखंड से बाहर के राज्यों के हैं।
  • उन्होंने बताया कि खासतौर पर इस तरह के बच्चे देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और नैनीताल ज़िले में हैं। इन बच्चों के लिये नीति में आश्रय गृह बनाने की व्यवस्था की जा रही है।
  • अधिकारियों का कहना है कि फिलहाल देहरादून, हरिद्वार व हल्द्वानी में आश्रय गृह चल रहे हैं, जिन्हें आवश्यकता के हिसाब से बढ़ाया जाएगा।
  • नीति को लेकर कुछ ज़िलाधिकारियों का यह भी प्रस्ताव है कि दिन में इन बच्चों को आश्रय गृह में रखा जाए, जबकि शाम को वह अपने परिवार के साथ चले जाएँ।
  • इस नीति में इन बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के साथ ही उन्हें कौशल विकास से भी जोड़ने की तैयारी है।

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