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मध्य प्रदेश

नकली फिंगर प्रिंट की समस्या का समाधान

  • 21 Feb 2022
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आईआईटी इंदौर और इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलाजी (आईईटी) डीएवीवी के वैज्ञानिकों ने मिलकर ऐसा फिंगर प्रिंट बायोमीट्रिक सिस्टम तैयार किया है, जिससे नकली फिंगर प्रिंट का उपयोग कर होने वाले अपराधों की रोकथाम की जा सकेगी। इस महत्त्वपूर्ण शोध का पेटेंट कराया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • इस तकनीक की सहायता से बायोमीट्रिक मशीनों में ऐसा सेंसर लगाया जा सकेगा, जो असली और नकली फिंगर प्रिंट की पहचान कर लेगा। व्यक्ति जैसे ही अपनी अंगुली स्कैनर पर रखेगा, सेंसर उसकी पल्स (नाड़ी) भी पढ़ लेगा। इससे किसी मृत व्यक्ति के फिंगर प्रिंट के इस्तेमाल की आशंका भी समाप्त हो जाएगी। 
  • नकली और असली फिंगर प्रिंट की पहचान करने में सफलता मिलने से आधार और बायोमीट्रिक से जुड़े सभी तरह के उपकरणों की सुरक्षा बेहतर ही सकेगी। 
  • उल्लेखनीय है कि बैंकिंग क्षेत्र के साथ ही चोरी रोकने के लिये कई दफ्तरों और घरों में बायोमीट्रिक मशीनों का उपयोग किया जाता है। कई प्रतियोगी और भर्ती परीक्षाओं में भी बायोमीट्रिक मशीनों का उपयोग किया जाता है। शोध के आधार पर नई बायोमीट्रिक मशीनों का उत्पादन होने के बाद, नकली या मृत व्यक्ति के फिंगरप्रिंट का उपयोग नहीं हो सकेगा। 
  • कई बार हैकर्स फिंगरप्रिंट की छवि चुराकर उसका उपयोग आधार, सिम और बैंकिंग क्षेत्रों में करने की कोशिश करते हैं। अभी बायोमीट्रिक मशीनें अंगुली की लकीरों को पढ़ती हैं और आगे की प्रक्रिया के लिये अनुमति दे देती हैं। नई तरह की मशीनों पर अंगुली लगाने के बाद सेंसर ब्लड की सेल्स और पल्स भी पता करेगा। 
  • शोध पर काम करने वाले देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलाजी (आईईटी) के प्रो. शशि प्रकाश एवं आईआईटी इंदौर के प्रो. विमल भाटिया हैं।
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