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कार्योत्तर पर्यावरणीय मंज़ूरी प्राप्त करने वाली हरियाणा की पहली परियोजना

  • 30 Dec 2023
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संरक्षित अरावली भूमि पर बने एक निजी विश्वविद्यालय को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) द्वारा कार्योत्तर मंज़ूरी दी गई थी।

  • वन संरक्षण अधिनियम (FCA), 1980 में संशोधन के बाद से कार्योत्तर पर्यावरणीय मंज़ूरी प्राप्त करने वाली यह हरियाणा की पहली परियोजना है।

प्रमुख बिंदु:

  • पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम (PLPA), 1900 की धारा 4 और 5 के तहत वर्गीकृत, विश्वविद्यालय 13.6 हेक्टेयर अरावली भूमि पर स्थित है, जो पूर्व अनुमति के बिना वनों की कटाई, पुनर्विक्रय तथा भूमि के विखंडन पर रोक लगाता है।
  • संशोधित अधिनियम के कारण, सरकार उन परियोजनाओं या उद्योगों को मंज़ूरी दे सकती है, जिन्होंने पूर्व पर्यावरणीय मंज़ूरी प्राप्त किये बिना कार्य करना शुरू कर दिया है तथा अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप समीक्षा के बाद उनके पर्यावरणीय प्रभाव का खुलासा कर सकती है।
  • समिति ने कुछ शर्तों पर अपनी मंज़ूरी दी:
    • भूमि किसी राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, हाथी या बाघ अभयारण्य का हिस्सा नहीं होना चाहिये।
    • विश्वविद्यालय प्रतिपूरक वनीकरण के लिये गैर-वन भूमि के बराबर क्षेत्र की पहचान करेगा और उस पर वृक्षारोपण करेगा।
  • असाधारण मामलों में क्षेत्रीय वन विभाग कार्यालयों को ऐसे प्रस्तावों की जाँच करने और उन पर कार्रवाई करने तथा उचित निर्णयों के लिये टिप्पणियों एवं सिफारिशों के साथ मंत्रालय को अग्रेषित करने का निर्देश दिया गया है।
  • संशोधित FCA में कहा गया है कि यह भारतीय वन अधिनियम, 1927 के अनुसार वन के रूप में "अधिसूचित" भूमि पर लागू होगा। संशोधित FCA 12 दिसंबर, 1996 से पहले राज्य द्वारा अधिकृत किसी भी सरकारी प्राधिकरण द्वारा वन से गैर-वन उद्देश्यों के लिये परिवर्तित क्षेत्रों पर लागू नहीं है।
  • 12 दिसंबर, 1996 को सर्वोच्च न्यायालय ने भारत संघ बनाम टी.एन गोदावर्मन मामले में FCA को ऐसे किसी भी क्षेत्र में लागू करने का आदेश दिया गया, जहाँ इसके "वन" शब्द को उसके "शब्दकोश के अर्थ" के अनुसार समझा जाना चाहिये।

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