उत्तर प्रदेश
मंगल पांडे जयंती
- 21 Jul 2025
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चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री ने 19 जुलाई 2025 को महान स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे की 198वीं जयंती पर उन्हें नमन किया।
मुख्य बिंदु
मंगल पांडे के बारे में:
- प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि:
- 19 जुलाई, 1827 को बलिया ज़िले (वर्तमान उत्तर प्रदेश) के नगवा गाँव में जन्मे मंगल पांडे एक भूमिहार ब्राह्मण परिवार से थे।
- वह 22 वर्ष की आयु में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हो गए और 3 वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री की 6वीं कंपनी में सेवा की।
- 1857 की क्रांति में भूमिका:
- उन्होंने एनफील्ड पैटर्न 1853 राइफल-मस्कट का प्रयोग करने से मनाकर दिया, क्योंकि ऐसा माना जाता था कि इसके कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी लगी होती थी।
- इससे हिंदू और मुस्लिम दोनों सिपाहियों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँची, क्योंकि कारतूस लोड करने के लिये मुँह से काटना पड़ता था।
- 29 मार्च 1857 को मंगल पांडे ने कोलकाता के पास बैरकपुर में अपनी रेजिमेंट के सर्जेंट मेजर पर गोली चलाकर विद्रोह की पहली चिंगारी भड़काई।
- इस अवज्ञापूर्ण कार्य ने 1857 के ऐतिहासिक विद्रोह को जन्म दिया, जिसे अक्सर सिपाही विद्रोह या भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम युद्ध कहा जाता है।
- इस विद्रोह के परिणामस्वरूप अंततः भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त हो गया तथा ब्रिटिश क्राउन ने वर्ष 1858 की महारानी विक्टोरिया की घोषणा और भारत सरकार अधिनियम, 1858 के अधिनियमन के माध्यम से अपने हाथ में प्रत्यक्ष नियंत्रण ले लिया, जिसके तहत गवर्नर-जनरल के स्थान पर एक वायसराय की नियुक्ति की गई।
- इस नई व्यवस्था के तहत लॉर्ड कैनिंग पहले वायसराय बने।
- मंगल पांडे को बाद में गिरफ्तार कर 8 अप्रैल 1857 को बैरकपुर के लाल बागान में कोर्ट मार्शल के आदेश से फाँसी दे दी गई।
- विद्रोह का विस्तार:
- मंगल पांडे की फाँसी के बाद 7वीं अवध रेजिमेंट ने भी विद्रोह किया, जिसे बाद में दबा दिया गया। असहमति जताने के कारण उनकी रेजिमेंट को भी बेहरामपुर की 19वीं इन्फैंट्री की तरह भंग कर दिया गया।
- विद्रोह अंबाला, लखनऊ और मेरठ की सैन्य छावनियों तक फैल गया।.
- 10 मई 1857 को मेरठ में सिपाहियों ने विद्रोह शुरू किया जिससे यह एक राष्ट्रव्यापी विद्रोह में बदल गया।
- उन्होंने दिल्ली की ओर कूच किया और वृद्ध बहादुर शाह द्वितीय से प्रतीकात्मक सम्राट बनने का आग्रह किया। अनुनय-विनय के बाद, उन्होंने स्वीकार कर लिया और उन्हें शाह-ए-शाह-ए-हिंदुस्तान घोषित कर दिया गया।
- वह अंतिम मुगल सम्राट थे, जिन्हें विद्रोह की विफलता के बाद रंगून निर्वासित कर दिया गया था।
- 19 सितंबर 1857 को लाल किले पर अंग्रेज़ों का कब्ज़ा हो गया और वर्ष 1862 में जेल में ही उनकी मृत्यु हो गई।
- महत्त्व:
- बैरकपुर में मंगल पांडे का विद्रोह कोई अकेली घटना नहीं थी, बल्कि यह ब्रिटिश शासन के तहत धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक शोषण के प्रति सामूहिक आक्रोश का प्रतीक था।
- वे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सूत्रधार माने जाते हैं और उनकी बलिदानी विरासत को आज भी राष्ट्रीय प्रतिरोध और देशभक्ति के प्रतीक रूप में याद किया जाता है।
अवध के सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ के बारे में:
- मंगल पांडे अवध से थे, जो कंपनी भर्ती के लिये एक प्रमुख क्षेत्र था। अवध के 75,000 सिपाही ब्रिटिश सेना का हिस्सा थे और लगभग हर कृषक परिवार का एक सदस्य सेना में था।
- वर्ष 1856 में लॉर्ड डलहौज़ी द्वारा कुशासन (हड़प नीति के तहत नहीं) के आधार पर अवध पर कब्ज़ा कर लिया। इसके अतिरिक्त, भू-राजस्व व्यवस्थाओं ने भी व्यापक असंतोष को जन्म दिया।
- हड़प नीति (डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स) लॉर्ड डलहौज़ी (गवर्नर-जनरल, 1848-56) द्वारा लागू की गई थी। इसने दत्तक उत्तराधिकारियों को राज्यों के उत्तराधिकार के अधिकार से वंचित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप सतारा (1848), पंजाब (1849), झाँसी और नागपुर (1854) जैसे राज्यों का विलय हुआ।
- ताल्लुकदारों की ज़मीनों की ज़ब्ती और कठोर राजस्व व्यवस्था के कारण सिपाहियों ने अपनी आर्थिक तंगी के विरोध में 14,000 याचिकाएँ दायर कीं। इस प्रकार पांडे का विद्रोह इस बढ़ते हुए किसान-सैन्य असंतोष का प्रतीक बन गया।
1857 के विद्रोह के अन्य प्रमुख नेताओं के बारे में
- नाना साहब (कानपुर): पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र; अंग्रेज़ों द्वारा पेंशन के अधिकार से वंचित। कानपुर में नेतृत्व संभाला; वर्ष 1859 में नेपाल भाग गए, जहाँ संभवतः उनकी मृत्यु हो गई।
- बेगम हज़रत महल (लखनऊ): नवाब वाज़िद अली शाह की विधवा; लखनऊ से विद्रोह का नेतृत्व किया। अपने बेटे बिरजिस कद्र को राजा बनाया। वर्ष 1879 में अपनी मृत्यु तक नेपाल में निर्वासित रहीं।
- वीर कुंवर सिंह (बिहार): भोजपुर के 80 वर्षीय ज़मींदार; गुरिल्ला युद्ध का नेतृत्व किया। वर्ष 1858 में घायल होने से पहले उन्होंने जगदीशपुर पर पुनः कब्ज़ा कर लिया।
- रानी लक्ष्मीबाई (झाँसी): हड़प नीति के तहत उत्तराधिकार से वंचित। वर्ष 1858 में जनरल ह्यूग रोज़ के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना से लड़ीं।
- खान बहादुर खान (बरेली): 82 वर्ष की आयु में बरेली में लंबे समय तक चले प्रतिरोध का नेतृत्व किया; सर कॉलिन कैंपबेल से लड़े।
- मौलवी लियाकत अली (इलाहाबाद): कुछ समय तक इलाहाबाद पर नियंत्रण रखा; खुसरो बाग को केंद्र बनाया। उन्हे वर्ष 1872 में गिरफ्तार कर अंडमान द्वीप भेज दिया गया।