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पीआरएस कैप्सूल्स


विविध

मई 2022

  • 01 Jun 2022
  • 19 min read

PRS के प्रमुख हाइलाइट्स

  उद्योग  

प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) मंत्रालय ने प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (Prime Minister Employment Generation Program- PMEGP) को वित्त वर्ष 2026 तक पांँच साल के लिये विस्तार की मंज़ूरी दे दी है।

PMEGP योजना:

  • भारत सरकार ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना के माध्यम से रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिये वर्ष 2008 में प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) नामक एक क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी कार्यक्रम की शुरुआत को मंज़ूरी दी।
  • यह उद्यमियों को कारखाने या इकाइयाँ स्थापित करने की अनुमति देता है।

प्रशासन: 

  • यह सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (MoMSME) द्वारा प्रशासित एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है।
  • ‘केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय’ के तहत संचालित इस योजना का क्रियान्वयन ‘खादी और ग्रामोद्योग आयोग’ (Khadi and Village Industries Commission- KVIC) द्वारा किया जाता है।

विशेषताएँ:

  • पात्रता:
    • कोई भी व्यक्ति जिसकी आयु 18 वर्ष से अधिक हो।
    • इस कार्यक्रम के तहत केवल नई इकाइयों की स्थापना के लिये सहायता प्रदान की जाती है।
    • इसके साथ ही ऐसे स्वयं सहायता समूह जिन्हें किसी अन्य सरकारी योजना का लाभ न मिल रहा हो, ‘सोसायटी रजिस्‍ट्रेशन अधिनियम, 1860’ के तहत पंजीकृत संस्‍थान, उत्‍पादक कोऑपरेटिव सोसायटी और चैरिटेबल ट्रस्‍ट आदि इसके तहत लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

PMEGP में किये गए प्रमुख परिवर्तन:

  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (MSME) ने 2021-26 की अवधि के लिये प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) को जारी रखने की घोषणा की।
  • मंत्रालय ने कहा कि कार्यक्रम शुरू होने के बाद से लगभग 7.8 लाख सूक्ष्म उद्यमों को 19,995 करोड़ रुपये की सब्सिडी के साथ सहायता प्रदान की गई है।
  • इस कार्यक्रम से लगभग 64 लाख लोगों के लिये अनुमानित रोज़गार सृजित हुए हैं।

पात्र परियोजनाएँ:

  • कार्यक्रम के तहत समर्थन हेतु पात्र अधिकतम परियोजना लागत को विनिर्माण इकाइयों के लिये 25 लाख रुपये से बढ़ाकर 50 लाख रुपये कर दिया गया है।
  • सेवा इकाइयों के लिये इसे 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रुपये कर दिया गया है।

ग्रामीण क्षेत्रों की परिभाषा:

  • ग्रामीण क्षेत्रों की परिभाषाओं को संशोधित किया गया है। पिछले दिशा-निर्देशों के तहत राज्य के राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार, गाँव के रूप में वर्गीकृत कोई भी क्षेत्र, जनसंख्या के बावजूद, ग्रामीण क्षेत्र माना जाता था।
  • नए दिशा-निर्देशों के अनुसार पंचायती राज संस्थाओं के अधिकार क्षेत्र में आने वाले क्षेत्रों को ग्रामीण क्षेत्र माना जाएगा।

कुछ श्रेणियों के लिये उच्च सब्सिडी:

  • आकांक्षी ज़िलों और ट्रांसजेंडरों के तहत आने वाले PMEGP आवेदकों को विशेष श्रेणी के आवेदक माना जाएगा और वे उच्च सब्सिडी (शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में 10% अधिक) के हकदार होंगे। योजना के तहत वर्ष 2021-26 की अवधि के लिये कुल अनुमानित परिव्यय 13,554 करोड़ रुपए है।

  स्वास्थ्य  

राष्ट्रीय सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 और सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के तहत राष्ट्रीय सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (ART) और सरोगेसी बोर्ड की संरचना को अधिसूचित किया है।

सरोगेसी:

  • परिचय:
    • सरोगेसी एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें एक महिला (सरोगेट) किसी अन्य व्यक्ति या जोड़े (इच्छित माता-पिता) की ओर से बच्चे को जन्म देने के लिये सहमत होती है।
    • एक सरोगेट, जिसे कभी-कभी गर्भकालीन वाहक (Gestational Carrier,) भी कहा जाता है, एक महिला है जो किसी अन्य व्यक्ति या जोड़े (इच्छित माता-पिता) के लिये गर्भधारण करती है, बच्चे को कोख में रखती है और फिर उस बच्चे को जन्म देती है।
  • परोपकारी सरोगेसी:
    • इसमें गर्भावस्था के दौरान चिकित्सा व्यय और बीमा कवरेज के अलावा सरोगेट माँ को अन्य किसी प्रकार का मौद्रिक मुआवाज़ा प्राप्त नहींं होता है।
  • वाणिज्यिक सरोगेसी:
    • इसमें सरोगेसी या उससे संबंधित प्रक्रियाएँ शामिल हैं जो बुनियादी चिकित्सा व्यय और बीमा कवरेज के अलावा सेरोगेट माँ को मौद्रिक मुआवज़ा या इनाम (नकद या वस्तु) प्रदान किया जाता है।

सहायक प्रजनन तकनीक:

  • परिचय:
    • सहायक प्रजनन तकनीक का प्रयोग बाँझपन की समस्या के समाधान के लिये किया जाता है। इसमें बाँझपन के ऐसे उपचार शामिल हैं जिसमें महिलाओं के अंडे और पुरुषों के शुक्राणु दोनों का प्रयोग किया ।
    • इसमें महिलाओं के शरीर से अंडे प्राप्त कर भ्रूण बनाने के लिये उन्हें शुक्राणु के साथ मिलाया जाता है। इसके बाद भ्रूण को दोबारा महिला के शरीर में डाल दिया जाता है।
    • इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (In Vitro fertilization- IVF), ART का सबसे सामान्य और प्रभावशाली प्रकार है।

राष्ट्रीय बोर्ड के प्रमुख कार्य

  • ART से संबंधित नीतिगत मामलों पर केंद्र सरकार को सलाह देना।
  • ART क्लीनिकों और बैंकों के लिये आचार संहिता एवं मानकों को निर्धारित करना।
  • विधेयक के तहत गठित किये जाने वाले विभिन्न निकायों की देखरेख करना।

बोर्ड के सदस्य:

  • अध्यक्ष के रूप में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री।
  • उपाध्यक्ष के रूप में स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के सचिव।
  • लोकसभा के दो सदस्य।
  • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और विधि एवं न्याय मंत्रालय से एक-एक संयुक्त सचिव।
  • स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक।
  • रोटेशन के आधार पर राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों के बोर्डों के मनोनीत अध्यक्ष।
  • सदस्य-सचिव के रूप में स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के संयुक्त सचिव।

  सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण  

स्कॉलरशिप योजना

केंद्र सरकार ने कुछ बच्चों को उनकी शिक्षा जारी रखने हेतु छात्रवृत्ति सहायता प्रदान करने के लिये एक केंद्रीय क्षेत्र योजना शुरू की। इस योजना को बच्चों के लिय PM CARES योजना के रूप में जाना जाता है।

योजना की मुख्य विशेषताएँ:

  • जिन बच्चों ने कोविड-19 के कारण अपने माता-पिता या कानूनी अभिभावक या दत्तक माता-पिता को खो दिया है, वे इस योजना के लिये पात्र होंगे।
  • योजना के तहत कक्षा एक से बारहवीं तक के बच्चों को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के माध्यम से छात्रवृत्तियाँ वितरित की जाएंगी।
  • केंद्र सरकार 20,000 रुपये प्रति बच्चा प्रति वर्ष छात्रवृत्ति भत्ता प्रदान करेगी।

 इसमें निम्नलिखित शामिल हैं:

(i) स्कूल की फीस को कवर करने के लिये 8,000 रुपए का वार्षिक शैक्षणिक भत्ता और किताबों, वर्दी, जूते और अन्य शैक्षिक सामग्री की लागत।
(ii) 1,000 रुपए का मासिक भत्ता।


  पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस  

राष्ट्रीय जैव-ईंधन नीति

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018 में संशोधन को मंज़ूरी दी।

जैव-ईंधन

  • कोई भी हाइड्रोकार्बन ईंधन, जो किसी कार्बनिक पदार्थ (जीवित या किसी एक समय पर जीवित सामग्री) से कम समय (दिन, सप्ताह या महीनों) में उत्पन्न होता है, उसे जैव ईंधन माना जाता है।
  • जैव ईंधन प्रकृति में ठोस, तरल या गैसीय हो सकता है।
    • ठोस: लकड़ी, सूखे पौधे की सामग्री, और खाद।
    • तरल: बायोएथेनॉल और बायोडीजल।
    • गैसीय: बायोगैस।
  • इन्हें परिवहन, स्थिर, पोर्टेबल और अन्य अनुप्रयोगों के लिये डीज़ल, पेट्रोल या अन्य जीवाश्म ईंधन के अलावा इस्तेमाल किया जा सकता है।
    • इसके अलावा उनका उपयोग ऊष्मा और बिजली उत्पन्न करने वाले यंत्रो में भी किया जा सकता है।
  • जैव ईंधन की ओर जाने के कुछ मुख्य कारण तेल की बढ़ती कीमतें, जीवाश्म ईंधन से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन और किसानों के लाभ के लिये कृषि फसलों से ईंधन प्राप्त करने में रुचि हैं।

महत्त्वपूर्ण संशोधन:

  • नीति का उद्देश्य जैव-ईंधन को मुख्यधारा में लाना और आने वाले दशकों में देश के ऊर्जा तथा परिवहन क्षेत्रों में इसकी केंद्रीय भूमिका की कल्पना करना है।
  • स्वीकृत संशोधनों में निम्नलिखित शामिल है:
    • वर्ष 2030 की बजाय वर्ष 2025-26 तक पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिश्रण के लक्ष्य को निर्धारित करना।
    • जैव-ईंधन के उत्पादन के लिये अधिक फीडस्टॉक की अनुमति देना।
    • राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति में नए सदस्यों को जोड़ना।
    • विशिष्ट मामलों में जैव-ईंधन के निर्यात की अनुमति देना।

इसके अतिरिक्त संशोधन मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत देश में जैव-ईंधन के उत्पादन को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं।

राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति :

  • NBCC का गठन पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री (पी एंड एनजी) की अध्यक्षता में समग्र समन्वय, प्रभावी एंड-टू-एंड कार्यान्वयन और जैव ईंधन कार्यक्रम की निगरानी करने हेतु किया गया था।
  • NBCC में 14 अन्य मंत्रालयों के सदस्य शामिल हैं।

  वित्त  

GST परिषद की सिफारिशों पर SC का स्पष्टीकरण:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि GST परिषद की सिफारिशें संसद और राज्य विधानसभाओं पर बाध्यकारी नहीं हैं।

GST परिषद:

  • यह माल और सेवा कर से संबंधित मुद्दों पर केंद्र एवं राज्य सरकार को सिफारिशें करने के लिये अनुच्छेद 279A के तहत एक संवैधानिक निकाय है।
  • GST परिषद की अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री करता है और सभी राज्यों के वित्त मंत्री परिषद के सदस्य होते हैं।
  • इसे एक संघीय निकाय के रूप में स्थापित किया गया है जहाँ केंद्र और राज्यों दोनों को उचित प्रतिनिधित्व मिलता है।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए महत्त्वपूर्ण स्पष्टीकरण:

  • सर्वोच्च न्यायालय वर्ष 2020 में गुजरात उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रहा था।
    • उच्च न्यायालय ने विदेशी विक्रेता द्वारा विदेशी शिपिंग लाइन को भुगतान किये गए समुद्री माल पर भारतीय आयातकों पर एकीकृत माल और सेवा कर (Integrated Goods and Services Tax- IGST) लगाने के खिलाफ फैसला सुनाया था।
  • यह कर रिवर्स चार्ज के आधार (माल या सेवाओं का प्राप्तकर्त्ता निर्माता के बजाय कर का भुगतान करने के लिये उत्तरदायी हो जाता है) पर लगाया गया था।
  • केंद्र सरकार की इस दलील पर कि GST परिषद की सिफारिशें विधायिका और कार्यपालिका के लिये बाध्यकारी हैं, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि GST परिषद केवल सिफारिशें कर सकती है।
  • न्यायालय के अनुसार, GST परिषद से संबंधित संवैधानिक प्रावधान यह सुझाव नहीं देता है कि ये सिफारिशें बाध्यकारी हैं।
  • यह GST पर कानून बनाने के लिये केंद्र और राज्यों को एक साथ शक्ति प्रदान करता है। इसलिये सिफारिशों को बाध्यकारी बनाना राजकोषीय संघवाद के विचार के खिलाफ होगा।
  • IGST के लेवी के संबंध में, सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि एक भारतीय आयातक माल और परिवहन सेवाओं की समग्र आपूर्ति पर IGST का भुगतान करने के लिये उत्तरदायी है।
  • हालाँकि न्यायालय ने कहा कि परिवहन सेवाओं के प्रावधान पर एक अलग लेवी केंद्रीय माल और सेवा कर अधिनियम, 2017 का उल्लंघन है।

  पर्यावरण  

कोयला खनन परियोजना

घरेलू कोयले की कमी को देखते हुए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कोयला खनन परियोजनाओं के विस्तार के लिये पर्यावरण मंज़ूरी (Environment Clearance- EC)  नियमों में संशोधन किया है।

पर्यावरण मंज़ूरी

  • एक परियोजना के लिये पर्यावरण मंज़ूरी प्राप्त करने के लिये एक पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environment Impact Assessment- EIA) रिपोर्ट तैयार की जाती है।
  • परियोजना को पर्यावरणीय मंज़ूरी के लिये एक आवेदन पत्र को EIA रिपोर्ट के साथ (EIA रिपोर्ट जन सुनवाई संबंधी जानकारी तथा NOC शामिल हो) आगे केंद्र या राज्य सरकार को प्रस्तुत किया जाता है।
  • अगर परियोजना A श्रेणी की है तो इसे पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) को प्रस्तुत किया जाता है।
  • अगर परियोजना B श्रेणी की है तो इसे राज्य सरकार को प्रस्तुत की जाती है।
  • प्रस्तुत दस्तावेज़ों का पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (Expert Appraisal Committee- EAC) द्वारा विश्लेषण किया जाता है।
  • अंतिम स्वीकृति पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा प्रदान की जाती है।
  • क्षमता को 40% से 50% करने के लिये परियोजनाओं को एक संशोधित पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) रिपोर्ट एवं नए सार्वजनिक परामर्श की आवश्यकता होती है।

नियमों में बदलाव:

  • ये छह महीने तक प्रभावी रहेंगे।
  • अप्रैल 2022 में मंत्रालय ने मौजूदा परियोजनाओं (कोयला खनन परियोजनाओं सहित) की क्षमता को 50% तक बढ़ाने के लिये पर्यावरणीय मंज़ूरी संबंधी दिशानिर्देश जारी किये थे।
  •  दिशा-निर्देश उन परियोजनाओं पर लागू होते हैं:
    (i) जिन्हें अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता नहीं है,
    (ii) जिसने मौजूदा परियोजना क्षमता के लिये कम-से-कम एक जन सुनवाई आयोजित की है
    (iii) जिसका विस्तार कम-से-कम तीन चरणों में होगा।
  • जिन कोयला खनन परियोजनाओं को पहले 40% तक की क्षमता विस्तार हेतु पर्यावरण मंज़ूरी प्रदान किया गया था, अब उन्हें संशोधित EIA रिपोर्ट और सार्वजनिक परामर्श के बिना 50% तक क्षमता विस्तार के लिये EC दिया जाएगा।
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