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प्रौद्योगिकी

मंत्रिमंडल ने नई जैव ईंधन नीति को मंजूरी दी

  • 17 May 2018
  • 6 min read

चर्चा में क्यों ?

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जैव ईंधन पर राष्‍ट्रीय नीति-2018 को मंजूरी दे दी है। इस नीति से न केवल गन्ना किसानों को अपना अधिशेष स्टॉक निपटाने में मदद मिलेगी, बल्कि देश की तेल आयात पर निर्भरता में भी कमी आएगी।

प्रमुख बिंदु 

  • नीति में गन्‍ने का रस, शुगर वाली वस्‍तुओं जैसे चुकंदर, स्‍वीट सोरगम, स्‍टार्च वाली वस्तुएँ जैसे – कॉर्न, कसावा, मनुष्‍य के उपभोग के लिये अनुपयुक्त बेकार अनाज जैसे गेहूँ , टूटा चावल, सड़े हुए आलू, के इस्‍तेमाल की अनुमति देकर इथेनॉल उत्‍पादन के लिये कच्‍चे माल का दायरा बढ़ाया गया है।
  • अतिरिक्‍त उत्‍पादन के चरण के दौरान किसानों को उनके उत्‍पाद का उचित मूल्‍य नहीं मिलने का खतरा होता है। इसे ध्‍यान में रखते हुए इस नीति में राष्‍ट्रीय जैव ईंधन समन्‍वय समिति की मंजूरी से इथेनॉल उत्‍पादन के लिये पेट्रोल के साथ उसे मिलाने हेतु अधिशेष अनाजों के इस्‍तेमाल की अनुमति दी गई है।
  • नीति में जैव ईंधनों को ‘आधारभूत जैव ईंधनों’  यानी पहली पीढ़ी (1जी) के जैव इथेनॉल और जैव डीजल तथा ‘विकसित जैव ईंधनों’ यानी दूसरी पीढ़ी (2जी) के इथेनॉल,  निगम के ठोस कचरे (एमएसडब्‍ल्‍यू) से लेकर ड्रॉप-इन ईंधन, तीसरी पीढ़ी (3जी) के जैव ईंधन, जैव सीएनजी आदि को श्रेणीबद्ध किया गया है, ताकि प्रत्‍येक श्रेणी के अंतर्गत उचित वित्तीय और आर्थिक प्रोत्‍साहन बढ़ाया जा सके।
  • जैव ईंधनों के लिये नीति में 2जी इथेनॉल जैव रिफाइनरी के लिये 1जी जैव ईंधनों की तुलना में अतिरिक्‍त कर प्रोत्‍साहनों, उच्‍च खरीद मूल्‍य के अलावा 6 वर्षों में 5000 करोड़ रुपये की निधियन योजना के लिये वायबिलिटी गैप फंडिंग का संकेत दिया गया है।
  • नीति गैर-खाद्य तिलहनों, इस्‍तेमाल किये जा चुके खाना पकाने के तेल, लघु गाभ फसलों (short gestation crops) से बायोडीजल उत्‍पादन के लिये आपूर्ति श्रृंखला तंत्र स्‍थापित करने को प्रोत्साहन प्रदान करती है।
  • नीति दस्‍तावेज़ में जैव ईंधनों के संबंध में सभी मंत्रालयों/विभागों की भूमिकाओं और जिम्‍मेदारियों को शामिल किया गया है, ताकि प्रयासों में तालमेल बनाया जा सके।

नीति के अपेक्षित लाभ

  • एक करोड़ लीटर ई-10 वर्तमान दरों पर 28 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत करेगा। वर्ष 2017-18 में करीब 150 करोड़ लीटर इथेनॉल की आपूर्ति होने की उम्‍मीद है, जिससे 4000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत होगी। 
  • एक करोड़ लीटर ई-10 से करीब 20,000 हजार टन कार्बन-डाइ-ऑक्साइड का उत्‍सर्जन कम होगा। 
  • इस्‍तेमाल हो चुका खाना पकाने का तेल, जिसका बार-बार प्रयोग स्वास्थ्य के लिये हानिकारक साबित हो सकता है , वह जैव ईंधन के लिये संभावित फीडस्‍टॉक हो सकता है और जैव ईंधन बनाने के लिये इसके इस्‍तेमाल से खाद्य उद्योगों में खाना पकाने के तेल के दोबारा इस्‍तेमाल से बचा जा सकता है।
  • एक अनुमान के अनुसार भारत में हर वर्ष नगरपालिकाओं से 62 एमएमटी ठोस कचरा (Municipal Solid Waste) निकलता है। ऐसी प्रौद्योगिकियाँ उपलब्‍ध हैं, जो कचरा/प्‍लास्टिक, एमएसडब्‍ल्‍यू को ईंधन में परिवर्तित कर सकती हैं। 
  • सामान्यतः एक 100 केएलपीडी की जैव रिफाइनरी के लिये करीब 800 करोड़ रुपये के पूंजी निवेश की आवश्‍यकता होती है। वर्तमान में तेल विपणन कंपनियाँ करीब 10,000 करोड़ रुपये के निवेश से बारह 2जी रिफाइनरियाँ स्‍थापित करने की प्रक्रिया में है। 2जी जैव रिफाइनरियों की संख्या में और वृद्धि से ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत संरचना में निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा।
  • एक 100 केएलपीडी 2जी जैव रिफाइनरी संयंत्र परिचालनों, ग्रामीण स्‍तर के उद्यमों और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन में 1200 नौकरियों का योगदान दे सकती है।
  • 2जी प्रौद्योगिकियों को अपना कर कृषि‍संबंधी अवशिष्‍टों/ कचरे को इथेनॉल में बदला जा सकता है और यदि इसके लिये बाजार विकसित कर दिया जाए तो कचरे का मूल्‍य मिल सकता है जिसे अन्‍यथा किसान जला देते हैं। साथ ही, अतिरिक्‍त उत्‍पादन चरण के दौरान उनके उत्‍पादों के लिये उचित मूल्‍य नहीं मिलने का खतरा रहता है। 
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