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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 11 फरवरी, 2021

  • 11 Feb 2021
  • 7 min read

विश्व का पहला ‘एनर्जी आइलैंड’

डेनमार्क में तकरीबन 3 मिलियन घरों की ऊर्जा संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये एक विशाल ऊर्जा द्वीप के निर्माण को मंज़ूरी दी गई है। डेनमार्क का यह ऊर्जा द्वीप विश्व का पहला पहला ऊर्जा द्वीप होगा, जो कि तकरीबन 18 फुटबॉल मैदानों के बराबर होगा। इस परियोजना को तकरीबन 210 बिलियन डेनिश क्रोन की अनुमानित लागत से पूरा किया जाएगा और इसे डेनमार्क के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी निर्माण परियोजना में से एक माना जा रहा है। यह आइलैंड 200 विशाल अपतटीय पवन टर्बाइनों के लिये एक केंद्र के रूप में काम करेगा। समुद्र से तकरीबन 80 किलोमीटर (50 मील) की दूरी पर स्थित इस कृत्रिम ऊर्जा द्वीप में लगभग 50 प्रतिशत हिस्सेदारी डेनमार्क की सरकार की होगी। डेनमार्क के जलवायु अधिनियम के तहत, वर्ष 1990 के दशक से वर्ष 2030 के दशक तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन स्तर में तकरीबन 70 प्रतिशत की कमी लाने और वर्ष 2050 तक CO2 तटस्थ बनने की प्रतिबद्धता ज़ाहिर की गई है। दिसंबर 2020 में डेनमार्क ने घोषणा की थी कि वह उत्तरी सागर में सभी प्रकार के नए तेल और गैस अन्वेषण कार्यक्रमों को समाप्त कर देगा। यह ‘एनर्जी आइलैंड’ डेनमार्क के ऊर्जा उद्योग के लिये भी काफी महत्त्वपूर्ण साबित होगा।

विश्व दलहन दिवस

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2019 में दलहन के महत्त्व को चिह्नित करने और आम लोगों में उसके प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिये प्रतिवर्ष 10 फरवरी को विश्व दलहन दिवस का आयोजन करने की घोषणा की थी। इस दिवस के आयोजन का प्राथमिक उद्देश्य स्थायी खाद्य उत्पादन में दलहन के महत्त्व को रेखांकित करना है। वर्ष 2013 में दलहन के महत्त्व को मान्यता देते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2016 को अंतर्राष्ट्रीय दलहन वर्ष (IYP) के रूप में अपनाया। अंतर्राष्ट्रीय दलहन वर्ष (IYP) की सफलता के बाद बुर्किना फासो (पश्चिम अफ्रीका का एक देश) ने विश्व दलहन दिवस का प्रस्ताव रखा। इसके पश्चात् वर्ष 2019 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 फरवरी को विश्व दलहन दिवस के रूप में घोषित किया। ज्ञात हो कि बीते पाँच-छह वर्ष में, देश में दालों का उत्पादन 140 लाख टन से बढ़कर 240 लाख टन तक पहुँच गया है। एक अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2050 तक देश में 320 लाख टन दालों की ज़रूरत होगी। दालों को पोषण और प्रोटीन के मामले में समृद्ध और स्वस्थ आहार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। सतत् विकास 2030 एजेंडा के लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी दलहन महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं।

तुर्की का नया अंतरिक्ष कार्यक्रम

तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने हाल ही में देश के लिये एक महत्त्वाकांक्षी 10-वर्षीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का अनावरण किया है, जिसमें चाँद पर एक मिशन भेजना, तुर्की के नागरिकों को अंतरिक्ष में भेजना और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यवहार्य उपग्रह प्रणाली विकसित करना शामिल है। अपने नए अंतरिक्ष कार्यक्रम के तहत तुर्की ने वर्ष 2023 तक चाँद पर मिशन भेजने की योजना बनाई है, इसी वर्ष संयोगवश तुर्की की स्थापना के सौ वर्ष भी पूरे हो रहे हैं। एर्दोगन ने तुर्की के नागरिकों को अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से अंतरिक्ष में भेजने और सैटेलाइट टेक्नोलॉजी में स्वयं को एक ‘वैश्विक ब्रांड’ बनाने का भी ऐलान किया। तुर्की ने अंतरिक्ष कार्यक्रमों को लेकर वैश्विक स्तर पर चल रही प्रतिस्पर्द्धा में शामिल होने के उद्देश्य से वर्ष 2018 में तुर्की अंतरिक्ष एजेंसी (TUA) की स्थापना की थी। इस एजेंसी का मुख्यालय तुर्की की राजधानी, अंकारा में स्थित है। ज्ञात हो कि हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण प्रगति हासिल की है और उसका ‘होप’ मिशन मंगल ग्रह की कक्षा में पहुँच गया है।

विश्व यूनानी दिवस

महान यूनानी शोधकर्त्ता हकीम अज़मल खान का जन्म दिवस प्रत्येक वर्ष 11 फरवरी को यूनानी दिवस के रूप में मनाया जाता है। हकीम अज़मल खान एक प्रतिष्ठित भारतीय यूनानी चिकित्सक थे जो एक स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद् और यूनानी चिकित्सा में वैज्ञानिक अनुसंधान के संस्थापक भी थे। हकीम अज़मल खान ने वर्ष 1921 में कॉन्ग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन की अध्यक्षता भी की थी। सर्वप्रथम वर्ष 2017 में केंद्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (CRIUM), हैदराबाद में विश्व यूनानी दिवस का आयोजन किया गया था। यूनानी चिकित्सा पद्धति का उद्भव व विकास यूनान में हुआ। भारत में यूनानी चिकित्सा पद्धति अरबों द्वारा पहुँची और यहाँ के प्राकृतिक वातावरण एवं अनुकूल परिस्थितियों की वज़ह से इस पद्धति का बहुत विकास हुआ। भारत में यूनानी चिकित्सा पद्धति के महान चिकित्सक और समर्थक हकीम अज़मल खान (1868-1927) ने इस पद्धति के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इस पद्धति के मूल सिद्धांतों के अनुसार, रोग शरीर की एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। शरीर में रोग उत्पन्न होने पर रोग के लक्षण शरीर की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं।

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