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प्रिलिम्स फैक्ट्स

प्रारंभिक परीक्षा

प्रीलिम्स फैक्ट्स: 07 अगस्त, 2020

  • 07 Aug 2020
  • 14 min read

परिवार पहचान पत्र

Parivar Pehchan Patra

हाल ही में हरियाणा के मुख्यमंत्री ने एक विशिष्ट पहचान पत्र लॉन्च किया जिसे ‘परिवार पहचान पत्र’ (Parivar Pehchan Patra-PPP) कहा जाता है।   

प्रमुख बिंदु:

  • इस पहचान पत्र का उद्देश्य हरियाणा में रहने वाले लगभग 54 लाख परिवारों में से प्रत्येक की निगरानी करना है। 
  • इसके तहत प्रत्येक परिवार को एक एकल इकाई माना जाएगा और 8 अंकों की विशिष्ट पहचान संख्या आवंटित की जाएगी।
  • हरियाणा सरकार की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ उठाने के लिये प्रत्येक परिवार को ‘परिवार पहचान पत्र पोर्टल’ पर अपना पंजीकरण कराना अनिवार्य है।

परिवार पहचान पत्र, आधार कार्ड से अलग कैसे है?

  • आधार एक इकाई के रूप में सिर्फ एक व्यक्ति का प्रतिनिधित्त्व करता है जबकि PPP एक इकाई के रूप में एक परिवार का प्रतिनिधित्त्व करता है।

क्या हरियाणा के प्रत्येक परिवार के लिये PPP लेना अनिवार्य होगा?

  • हरियाणा के प्रत्येक परिवार के लिये PPP प्राप्त करना अनिवार्य नहीं होगा किंतु सरकारी योजनाओं के तहत लाभ पाने वाले परिवारों के लिये PPP अनिवार्य है।
  • इसके अलावा, जब भी कोई परिवार किसी भी सरकारी योजना का लाभ उठाना चाहता है तो उसे पात्र होने के लिये पहले PPP प्राप्त करना होगा।

PPP शुरू करने के पीछे हरियाणा सरकार का तर्क क्या है?

  • हरियाणा के अधिकारियों ने कहा कि आधार कार्ड केंद्र सरकार से संबंधित है इसमें व्यक्तिगत विवरण शामिल किया जाता है किंतु यह एक इकाई के रूप में पूरे परिवार का प्रतिनिधित्त्व नहीं करता है।
  • कुछ परिस्थितियों में, राज्य सरकार के लिये राज्य में रहने वाले सभी परिवारों पर नज़र रखना संभव नहीं हो सकता है। हालाँकि वर्तमान में राशन कार्ड प्रणाली मौजूद है किंतु यह अद्यतन नहीं है और इसमें पर्याप्त पारिवारिक रिकॉर्ड शामिल नहीं हैं।
  • PPP के साथ राज्य सरकार के लिये सभी राज्य निवासियों का एक पूरा डेटाबेस बनाए रखना आसान होगा।
  • शुरुआती तौर पर हरियाणा सरकार ने पहले ही PPP को तीन सामाजिक सुरक्षा योजनाओं- वृद्धावस्था सम्मान भत्ता, दिव्यांग पेंशन और विधवा एवं निराश्रित महिला पेंशन योजना से जोड़ा है।

उल्लेखनीय है कि तेलंगाना, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश भी एक समान PPP परियोजना को लागू करने की संभावना तलाश रहे हैं।


एसएफटीएस वायरस 

SFTS Virus

हाल ही में टिक-जनित वायरस (Tick-Borne Virus) के कारण ‘थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम के साथ गंभीर बुखार’ (Severe Fever with Thrombocytopenia Syndrome- SFTS) नामक बीमारी से चीन में लगभग 7 लोगों की मौत हुई है।

प्रमुख बिंदु:

  • हालाँकि यह बीमारी मकड़ी जैसे दिखने वाले जीव टिक (Tick) के काटने से मनुष्यों में स्थानांतरित होती है किंतु चीनी वायरोलॉजिस्टों ने चेतावनी दी है कि इस वायरस (SFTS Virus) के मानव-से-मानव में संचरण को खारिज़ नहीं किया जा सकता है। 
  • COVID-19 के विपरीत यह पहली बार नहीं है जब SFTS वायरस ने लोगों को संक्रमित किया है। इससे पहले वर्ष 2020 के शुरुआती महीनों में चीन के जिआंगसू प्रांत में SFTS वायरस से संक्रमित लोगों का निदान किया गया था।

SFTS वायरस क्या है?

  • ‘थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम के साथ गंभीर बुखार’ (Severe Fever with Thrombocytopenia Syndrome- SFTS) वायरस, बुन्यावायरस (Bunyavirus) परिवार से संबंधित है और टिक के काटने से मनुष्यों में प्रेषित होता है।
  • इस वायरस की पहचान सबसे पहले चीन में शोधकर्त्ताओं की एक टीम ने एक दशक पहले की थी। वर्ष 2009 में चीन के हुबेई और हैनान प्रांतों के ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ मामले सामने आए थे।
  • जिस दर से यह वायरस फैलता है और इसकी उच्च मृत्यु दर के कारण, SFTS वायरस को विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) द्वारा शीर्ष 10 प्राथमिकता वाले रोगों की सूची में सूचीबद्ध किया गया है।
  • वायरोलॉजिस्ट मानते हैं कि एक एशियाई टिक (Asian Tick) जिसे ‘हेमाफिसलिस लॉन्गिकोर्निस’ (Haemaphysalis Longicornis) कहा जाता है, वायरस का प्राथमिक वाहक है।
  • यह बीमारी मार्च और नवंबर के बीच फैलने वाली बीमारी के रूप में जानी जाती है। शोधकर्त्ताओं ने पाया है कि अप्रैल और जुलाई के बीच संक्रमण की कुल संख्या आमतौर पर शीर्ष पर होती है।
  • वैज्ञानिकों ने पाया है कि यह वायरस अक्सर बकरियों, मवेशियों, हिरणों और भेड़ों जैसे जानवरों से मनुष्यों में फैलता है।
  • हालाँकि इस बीमारी का इलाज करने के लिये एक भी टीका अभी तक सफलतापूर्वक विकसित नहीं किया गया है किंतु एंटीवायरल दवा रिबाविरिन (Ribavirin) को इस बीमारी के इलाज में प्रभावी माना जाता है।


राष्ट्रीय हथकरघा दिवस

National Handloom Day

प्रत्येक वर्ष 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस (National Handloom Day) मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन वर्ष 1905 में स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत हुई थी।

National-Handloom

उद्देश्य:

  • इसका उद्देश्य हथकरघा उद्योग के बारे में लोगों के बीच बड़े पैमाने पर जागरूकता पैदा करना और सामाजिक-आर्थिक विकास में इसके योगदान को रेखांकित करना है।

प्रमुख बिंदु:

  • हथकरघा क्षेत्र देश की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है और देश में आजीविका का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। यह क्षेत्र महिला सशक्तीकरण के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि 70% हथकरघा बुनकर और संबद्ध श्रमिक महिलाएँ हैं।
  • इस छठे राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के अवसर पर केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय 07 अगस्त, 2020 को वर्चुअल प्लेटफॉर्म के माध्यम से एक समारोह का आयोजन कर रहा है।
  • इस समारोह में ज़िला प्रशासन, कुल्लू (हिमाचल प्रदेश) के सहयोग से स्थापित किये जा रहे क्रॉफ्ट हैंडलूम विलेज़, कुल्लू (Craft Handloom Village, Kullu) का प्रदर्शन शामिल है।
  • उल्लेखनीय है कि भारतीय प्रधानमंत्री ने 7 अगस्त, 2015 को चेन्नई (तमिलनाडु) में पहले राष्ट्रीय हथकरघा दिवस की शुरुआत की थी।

स्वदेशी आंदोलन: 

  • ब्रिटिश सरकार (लाॅर्ड कर्जन) ने 20 जुलाई, 1905 को बंगाल के विभाजन की घोषणा कर दी। जिसके परिणामस्वरूप 7 अगस्त, 1905 को कलकत्ता (अब कोलकाता) के टाउनहाल में स्वदेशी आंदोलन की घोषणा की गई।    
  • इसी बैठक में ऐतिहासिक ‘बहिष्कार प्रस्ताव’ पारित हुआ जिसमें ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार को राष्ट्रीय नीति के रूप में अपनाया गया।
  • पहली बार इस आंदोलन में स्त्रियों ने घर से बाहर निकल कर विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया, धरने पर बैठीं किंतु यह आंदोलन बंगाल के किसानों को प्रभावित न कर सका, केवल बारिसाल ही इसका अपवाद रहा जहाँ किसानों ने इस आंदोलन में भाग लिया था।      

 


अबनींद्रनाथ टैगोर की 150वीं जयंती

150th Birth Anniversary of Abanindranath Tagore

7 अगस्त, 2020 को अबनींद्रनाथ टैगोर की 150वीं जयंती के अवसर पर ‘नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट’ (National Galary of Modern Art-NGMA), नई दिल्ली एक वर्चुअल टूर का आयोजन करेगा जिसका शीर्षक ‘द ग्रेट मेस्ट्रो: अबनींद्रनाथ टैगोर’ (The Great Maestro: Abanindranath Tagore) है।

Abanindranath Tagore

प्रमुख बिंदु:

  • यह वर्चुअल टूर NGMA के आरक्षित संग्रह से अबनींद्रनाथ टैगोर की प्रमुख कलाकृतियों में से 77 कलात्मक कार्यों को प्रस्तुत करेगा जो निम्नलिखित चार अलग-अलग विषयों की एक श्रृंखला में समूहीकृत होंगे।
    1. चित्र और वर्ण (Portraits and Characters) 
    2. संवेदनशीलता के साथ परंपरा (Tradition with Sensibility)
    3. व्यक्तिगत शैली (Individual Style)
    4. आंतरिकता का परिदृश्य (Landscape of Interiority)  
  • अबनींद्रनाथ टैगोर को आधुनिक भारतीय कला के क्षेत्र में एक विलक्षण व्यक्ति माना जाता है। 
  • अबनींद्रनाथ ने कई विषयों को चित्रित किया किंतु ऐतिहासिक या साहित्यिक छंदों के साथ चित्र बनाने की ओर उनका झुकाव अधिक था।
  • उन्होंने 'अरेबियन नाइट्स' (Arabian Nights) या 'कृष्ण लीला' (Krishna Leela) जैसे विषयों का भी चित्रण किया।

अबनींद्रनाथ टैगोर:

  • अबनींद्रनाथ टैगोर का जन्म 07 अगस्त, 1871 को ब्रिटिश भारत के कलकत्ता के जोरासांको (Jorasanko) में हुआ था।
  • वर्ष 1890 में, अबनींद्रनाथ टैगोर ने ‘कलकत्ता स्कूल ऑफ आर्ट’ में भाग लिया जहाँ उन्होंने ओ. घिलार्डी (O. Ghilardi) से ‘पेस्टल’ और सी. पामर (C. Palmer) जैसे यूरोपीय चित्रकारों से ‘तेल चित्रकला’ का उपयोग करना सीखा।
  • वर्ष 1905 में बंगाल विभाजन की घोषणा के बाद राष्ट्रीय आंदोलन के बढ़ते प्रभाव के वातावरण में अबनींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1907 में अपने बड़े भाई गगनेंद्रनाथ के साथ मिलकर ‘इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट’ (Indian Society of Oriental Art) की स्थापना की, जिसके द्वारा प्राच्य कला-मूल्यों का पुनर्जीवन एवं आधुनिक भारतीय कला में नई चेतना जागृत हुई।
  • वह भारतीय कला में स्वदेशी मूल्यों के पहले प्रमुख प्रतिपादक भी थे। इन्ही स्वदेशी मूल्यों के आधार पर बंगाल में ‘स्कूल ऑफ आर्ट’ की स्थापना हुई थी जिससे ‘आधुनिक भारतीय चित्रकला का विकास’ हुआ।
  • अबनींद्रनाथ टैगोर ने कला के पश्चिमी मॉडल के प्रभाव का मुकाबला करने के लिये मुगल और राजपूत चित्रकला शैलियों के आधुनिकीकरण की मांग की।
  • अबनींद्रनाथ टैगोर का मानना ​​था कि पश्चिमी चित्रकला का चरित्र ‘भौतिकवादी’ है अतः आध्यात्मिक मूल्यों को पुनर्प्राप्त करने के लिये भारत को अपनी परंपराओं पर वापस लौटने की आवश्यकता है।
    • अपने बाद के कार्यों में अबनींद्रनाथ टैगोर ने चीनी और जापानी सुलेख परंपराओं को अपनी चित्रकला शैली में एकीकृत करना शुरू किया था।
  • अबनींद्रनाथ टैगोर विशेष रूप से बच्चों के लिये एक प्रसिद्ध लेखक के रूप में जाने जाते थे। उनकी पुस्तकों राजकाहिनी (Rajkahini), बूडो अंगला (Budo Angla), नलक (Nalak), और क्षीरेर पुतुल (Ksheerer Putul) का बच्चों के बंगाली भाषा साहित्य में प्रमुख स्थान है।
  • 5 दिसंबर, 1951 को कलकत्ता में अबनींद्रनाथ टैगोर की मृत्यु हो गई।
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