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नीति आयोग

  • 12 Jul 2019
  • 10 min read

 Last Updated: July 2022 

स्वाधीनता के बाद हमारे देश ने तत्कालीन सोवियत संघ के समाजवादी शासन की संरचना को अपनाया, जिसमें योजनाएँ बनाकर काम किया जाता था। पंचवर्षीय तथा एकवर्षीय योजनाएँ काफी लंबे समय तक देश में चलती रहीं। योजना आयोग ने नियोजन इकाई के रूप दशकों तक योजनाएँ बनाने के काम को अंजाम दिया। लेकिन केंद्र में सत्ता परिवर्तन होने के बाद 1 जनवरी, 2015 को योजना आयोग के स्थान पर केंद्रीय मंत्रिमंडल के एक संकल्प पर नीति आयोग का गठन किया गया। इसमें सहकारी संघवाद की भावना को केंद्र में रखते हुए अधिकतम शासन, न्यूनतम सरकार के दृष्टिकोण की परिकल्पना को स्थान दिया गया।

अप्रासंगिक हो गया था योजना आयोग

  • 65 वर्ष पुराना योजना आयोग कमांड अर्थव्यवस्था संरचना में तो प्रासंगिक था, लेकिन बीते कुछ वर्षों में यह प्रभावी नहीं रह गया था।
  • भारत विविधताओं वाला देश है और इसके राज्य आर्थिक विकास के विभिन्न चरणों में हैं, जिनकी अपनी भिन्न-भिन्न ताकतें और कमज़ोरियाँ हैं।
  • आर्थिक नियोजन के लिये सभी पर एक प्रारूप लागू हो, यह धारणा गलत है। यह आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत को प्रतिस्पर्द्धी के तौर पर स्थापित नहीं कर सकता।

नीति आयोग की प्रशासनिक संरचना

अध्यक्ष: प्रधानमंत्री

उपाध्यक्ष: प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त

संचालन परिषद: सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्रशासित प्रदेशों के उपराज्यपाल।

क्षेत्रीय परिषद: विशिष्ट क्षेत्रीय मुद्दों को संबोधित करने के लिये प्रधानमंत्री या उसके द्वारा नामित व्यक्ति मुख्यमंत्रियों और उपराज्यपालों की बैठक की अध्यक्षता करता है।

तदर्थ सदस्यता: अग्रणी अनुसंधान संस्थानों से बारी-बारी से 2 पदेन सदस्य।

पदेन सदस्यता: प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय मंत्रिपरिषद के अधिकतम चार सदस्य।

मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO): भारत सरकार का सचिव जिसे प्रधानमंत्री द्वारा एक निश्चित कार्यकाल के लिए नियुक्त किया जाता है।

विशेष आमंत्रित: प्रधानमंत्री द्वारा नामित विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ।

नीति आयोग के दो प्रमुख हब

  • टीम इंडिया हब- राज्यों और केंद्र के बीच इंटरफेस का काम करता है।
  • ज्ञान और नवोन्मेष (Knowledge & Innovation) हब- नीति आयोग के थिंक-टैंक की भाँति कार्य करता है।
  • नीति आयोग ने तीन दस्तावेज़ जारी किये हैं, जिसमें 3 वर्षीय कार्य एजेंडा, 7 वर्षीय मध्यम अवधि की रणनीति का दस्तावेज़ और 15 वर्षीय लक्ष्य दस्तावेज़ शामिल हैं।

नीति आयोग के उद्देश्य

  • यह मानते हुए कि मज़बूत राज्य ही एक मज़बूत राष्ट्र बनाते हैं, संघीय सहभागिता की भावना को बढ़ाने के लिये राज्यों को निरंतर संरचित समर्थन तंत्र के माध्यम से सहयोग प्रदान करना।
  • ग्रामीण स्तर पर विश्वसनीय योजनाएँ बनाने के लिये तंत्र विकसित करना और सरकार के उच्च स्तरों तक इसे उत्तरोत्तर विकसित करना।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों में आर्थिक रणनीति और नीतियाँ शामिल की गई हैं।
  • समाज के उन वर्गों पर विशेष ध्यान देना जो आर्थिक प्रगति से पर्याप्त रूप से लाभान्वित नहीं हैं।
  • प्रमुख हितधारकों, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय थिंक टैंक जैसे शैक्षिक और नीति अनुसंधान संस्थानों के बीच भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
  • राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों, चिकित्सकों तथा अन्य भागीदारों के सहयोग से ज्ञान, नवाचार और उद्यमशीलता की सहायता प्रणाली बनाना।
  • विकास एजेंडा के कार्यान्वयन में तेज़ी लाने के लिये अंतर-क्षेत्रीय और अंतर-विभागीय मुद्दों के समाधान हेतु एक मंच प्रदान करना।
  • राज्यों को कला संसाधन केंद्र के रूप में स्थापित करने, शासन पर शोध का केंद्र बनाने एवं सतत और न्यायसंगत विकास में सर्वोत्तम तरीके अपनाने तथा विभिन्न हित धारकों तक उनको पहुँचाना।

नीति आयोग और योजना आयोग में प्रमुख अंतर

नीति आयोग योजना आयोग
यह एक सलाहकार थिंक टैंक के रूप में कार्य करता है। इसने एक संवैधानिक निकाय के रूप में कार्य किया था, जबकि इसे ऐसा दर्जा नहीं मिला था।
यह सदस्यों की व्यापक विशेषज्ञता पर बल देता है। यह सीमित विशेषज्ञता पर निर्भर था।
यह सहकारी संघवाद की भावना पर कार्य करता है क्योंकि यह राज्यों की समान भागीदारी सुनिश्चित करता है। इसकी वार्षिक योजना बैठकों में राज्यों की भागीदारी बहुत कम रहती थी।
प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त सचिवों को CEO के रूप में जाना जाता है। सचिवों को सामान्य प्रक्रिया के माध्यम से नियुक्त किया जाता था।
यह Bottom-Up Approach पर कार्य करता है। यह Top-Down Approach पर कार्य करता था।
इसे नीतियाँ लागू करने का अधिकार नहीं है। यह राज्यों के लिये नीतियाँ बनाता था और स्वीकृत परियोजनाओं के लिये धन आवंटित करता था।
इसे धन आवंटित करने की शक्तियाँ नहीं हैं जो वित्त मंत्री में निहित हैं। इसे मंत्रालयों और राज्य सरकारों को धन आवंटित करने की शक्तियाँ प्राप्त थीं।
  • योजना का विकेंद्रीकरण है, लेकिन पंचवर्षीय योजना के भीतर।
  • परंपरागत नौकरशाही के स्थान पर विशेषज्ञता और प्रदर्शन के आधार पर ज़िम्मेदारियाँ तय करना।
  • नीति आयोग समय के साथ परिवर्तन के एक एजेंट के रूप में उभर सकता है और सार्वजनिक सेवाओं की बेहतर डिलीवरी करने तथा उसमें सुधार के एजेंडे में योगदान दे सकता है।
  • नीति आयोग में देश में कुशल, पारदर्शी, नवीन और जवाबदेह शासन प्रणाली का प्रतिनिधि बनने की क्षमता है।

योजना आयोग की तुलना में नीति आयोग को अधिक विश्वसनीय बनाने के लिये इसे बजटीय प्रावधानों में स्वतंत्रता होनी चाहिये और यह योजना तथा गैर-योजना के रूप में नहीं बल्कि राजस्व और पूंजीगत व्यय की स्वतंत्रता के रूप में होनी चाहिये। इस पूंजीगत व्यय की वृद्धि से अर्थव्यवस्था में सभी स्तरों पर बुनियादी ढाँचे का घाटा दूर हो सकता है।

(नीति आयोग के पहले उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया थे तथा वर्तमान में सुमन बेरी इसके उपाध्यक्ष हैं और परमेश्वरन अय्यर CEO हैं)

नीति आयोग की पहलें:  

आगे की राह:  

  • नियोजन निकाय को आवश्यक शक्तियों से लैस करना ताकि वह परिवर्तन को प्रभावित कर सके।   
  • पर्याप्त संसाधनों के आवंटन की ज़रूरत है।  
  • लक्ष्यों को पूरा करने में असमर्थता के लिये इसे विधायिका के प्रति कानूनी रूप से जवाबदेह बनाया जा सकता है।   
  • सुनिश्चित करें कि नियोजन निकाय एक गैर-पक्षपाती संस्था बना रहे।  
  • नौकरशाही की जड़ता को हिलाने की ज़रूरत है, इसमें विशेषज्ञता और प्रदर्शन के आधार पर जवाबदेही तय करने की ज़रूरत है। 
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