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Mains Marathon

  • 19 Jun 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाज

    दिवस- 4: "भारतीय गणराज्य को एक संपूर्ण रूप में समेकित करने से पहले इसे भागों में कल्पना करना पड़ा।" एकीकरण, पुनर्गठन और उत्तर-औपनिवेशिक चुनौतियों के संदर्भ में स्पष्ट कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण :

    • वर्ष 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप की विविध और विभाजित प्रकृति का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • रियासतों के राजनीतिक एकीकरण को संक्षेप में समझाइये।
    • राज्यों के भाषायी पुनर्गठन का वर्णन कीजिये।
    • उत्तर-औपनिवेशिक चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
    • एक विद्वत्तापूर्ण टिप्पणी के साथ समापन कीजिये।

    परिचय

    वर्ष 1947 में भारतीय गणराज्य का जन्म एक अत्यंत विविधतापूर्ण और विभाजित राजनीतिक, सामाजिक व भौगोलिक परिदृश्य से हुआ। ब्रिटिश शासन के बाद 562 से अधिक देसी रियासतें, अनेक भाषायी-जातीय समुदाय और विभाजन की विभीषिका शेष रह गई थीं। इसलिये भारत को एक राष्ट्र के रूप में स्थापित करने से पहले उसे टुकड़ों में सोचकर, चरणबद्ध रूप से एकीकृत और पुनर्गठित करना पड़ा।

    मुख्य भाग:

    रियासतों का राजनीतिक एकीकरण:

    • सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक रियासतों को एकीकृत करना था, जो भारत के 40% से अधिक भू-भाग का गठन करती थीं। अंग्रेज़ों ने उन्हें भारत या पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र रहने का विकल्प दिया था।
      • सरदार वल्लभभाई पटेल और वी.पी. मेनन ने कूटनीति, संवाद और आवश्यकता पड़ने पर दबाव का मिश्रण अपनाते हुए एकीकरण प्रक्रिया का नेतृत्व किया।
      • त्रावणकोर, भोपाल और हैदराबाद जैसे राज्यों ने शुरू में विलय का विरोध किया। हैदराबाद को ऑपरेशन पोलो (1948) के बाद एकीकृत किया गया, जो एक पुलिस कार्रवाई थी जिसने निज़ाम के राज्य को भारतीय नियंत्रण में ला दिया।
      • जनमत संग्रह में भारत के लिये भारी समर्थन दर्शाए जाने के बाद जूनागढ़ को इसमें शामिल कर लिया गया तथा कश्मीर के विलय में जटिल कानूनी और राजनीतिक परिणाम शामिल थे, जिसने भविष्य के संघर्ष की नींव रखी।

    राज्यों का भाषायी पुनर्गठन

    • स्वतंत्रता के बाद भारत भी भाषायी और सांस्कृतिक आधार पर विभाजित था। शुरू में नेहरू समेत कॉन्ग्रेस नेतृत्व भाषायी राज्यों को लेकर चिंतित था क्योंकि उन्हें अलगाववाद का डर था। हालाँकि, जनता के दबाव के कारण महत्त्वपूर्ण बदलाव हुए।
      • पृथक तेलुगु भाषी राज्य के लिये भूख हड़ताल के बाद पोट्टी श्रीरामुलु की मृत्यु के परिणामस्वरूप वर्ष 1953 में आंध्र प्रदेश का निर्माण हुआ।
      • इससे अन्य भाषायी राज्यों की मांग शुरू हो गई, जिसकी परिणति वर्ष 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग (SRC) के गठन के रूप में हुई, जिसके परिणामस्वरूप राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 पारित हुआ।
      • महाराष्ट्र, गुजरात, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्य इस प्रक्रिया से उभरे।
    • इस भाषायी पुनर्गठन ने क्षेत्रीय पहचानों को बड़े भारतीय राष्ट्र के भीतर सह-अस्तित्व की अनुमति दी, जिससे अलगाव और असंतोष को रोका जा सका।

    उत्तर-औपनिवेशिक चुनौती

    • भारतीय राज्य को संस्थागत शून्यता, सांप्रदायिक तनाव, सामूहिक विस्थापन और पहचान आधारित विद्रोह के रूप में अनेक उत्तर-औपनिवेशिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा।
    • वर्ष 1947 के विभाजन के कारण लगभग दस लाख लोगों की मृत्यु हुई और 15 मिलियन से अधिक लोग विस्थापित हुए, जिससे मानवीय और प्रशासनिक संकट उत्पन्न हो गया।
    • भारत को अनेकता में एकता के ढाँचे के अंतर्गत संप्रभुता, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के साथ एक संविधान का मसौदा तैयार करना पड़ा।
    • प्रथम आम चुनावों (1951-52) ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की शुरुआत की, जिससे व्यापक गरीबी और निरक्षरता के बावजूद भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र बन गया।
    • क्षेत्रीय अशांति, जैसे नागा विद्रोह (1950 का दशक), पंजाबी सूबा आंदोलन और बाद में पंजाब में खालिस्तान आंदोलन, के कारण गणतंत्र को राष्ट्रीय एकता बनाए रखने के लिये संवाद और प्रवर्तन दोनों में संलग्न होना पड़ा।

    निष्कर्ष:

    जैसा कि राजनीतिक चिंतक पार्थ चटर्जी ने कहा, "भारतीय राष्ट्र को निरंतर कल्पना, मोलभाव और पुनः कल्पना के माध्यम से निर्मित किया गया।" भारतीय लोकतंत्र की सफलता इसकी संघीयता, बहुलता और संवाद पर आधारित व्यवस्था में है, जिसने यह सिद्ध कर दिया कि समेकन विविधता के अभाव में नहीं, बल्कि उसके सफल प्रबंधन में निहित है।

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