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14 Jul 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
दिवस 25: "भारत में रोज़गार में तो वृद्धि हो रही है, लेकिन वास्तविक वेतन वृद्धि धीमी बनी हुई है, जिसका असर श्रमिक कल्याण और समावेशी विकास पर पड़ रहा है।" इस प्रवृत्ति का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये तथा समतामूलक एवं सतत् आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के लिये नीतिगत उपायों का सुझाव दीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- बढ़ती हुई रोज़गार दर और स्थिर वेतन के विरोधाभास का परिचय दीजिये।
- यथार्थ वेतन (Real wages) की स्थिरता के कारणों और परिणामों की समालोचनात्मक समीक्षा कीजिये तथा संभावित नीतिगत उपायों का सुझाव दीजिये।
- विकास और आय समानता के संतुलन की आवश्यकता पर उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारत में रोज़गार में वृद्धि देखी जा रही है, जहाँ वर्ष 2023–24 में कार्यजनसंख्या अनुपात (Worker-Population Ratio) 43.7% तक पहुँच गया है। हालाँकि, वास्तविक वेतन वृद्धि मंद बनी हुई है, जिससे क्रय शक्ति में गिरावट आ रही है और विकास की समावेशिता पर प्रश्न उठ रहे हैं। यह विषमता मज़दूरों के कल्याण और सतत् विकास के लिये गंभीर निहितार्थ उत्पन्न करती है।
मुख्य भाग:
रोज़गार में वृद्धि लेकिन मंद वास्तविक वेतन वृद्धि
- आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2017–18 से रोज़गार सृजन की दर जनसंख्या वृद्धि से अधिक रही है।
- हालाँकि, विशेषकर सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में प्रवेश-स्तरीय नौकरियों के लिये वास्तविक वेतन स्थिर बना हुआ है, जिससे औसत मज़दूर की आय में सीमित लाभ हो रहा है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2024–25 के अनुसार, वित्त वर्ष 2024 में कॉर्पोरेट लाभ में 22.3% की वृद्धि दर्ज की गई, जबकि रोज़गार में केवल 1.5% की वृद्धि हुई, जो पूँजी-श्रम अंतर के बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाता है।
- उच्च मुद्रास्फीति ने क्रय शक्ति को क्षीण किया है, क्योंकि नाममात्र वेतन वृद्धि मूल्य वृद्धि धीमी हो गई है।
- महिलाओं की श्रम भागीदारी दर (FLFPR) में 41.7% (PLFS 2023-24) की वृद्धि के कारण श्रम आपूर्ति में वृद्धि हुई है, जिससे वेतन में कमी आई है।
- निम्न-कुशल सेवाओं और कृषि में उत्पादकता की स्थिरता वेतन सुधार की संभावनाओं को सीमित करती है।
- स्वचालन की बढ़ती प्रवृत्ति के साथ पूँजी-प्रधान विकास मॉडल श्रम की आवश्यकता को कम करते हैं, जिससे मज़दूरी की सौदाकारी शक्ति घटती है।
- ग्रामीण भारत में भुगतान में विलंब एवं अपर्याप्त वित्तपोषण के कारण MGNREGA जैसे वेतन-समर्थन योजनाओं का कमज़ोर क्रियान्वयन वेतन संकट को और गहरा करता है।
समावेशी और सतत् विकास के निहितार्थ
- कम प्रयोज्य आय के कारण ग्रामीण माँग कमज़ोर बनी रहती है, जो उपभोग-आधारित विकास इंजन को प्रभावित करती है।
- बढ़ती आय असमानता, जहाँ पूंजी में लाभ का हिस्सा बढ़ता है जबकि श्रमिकों को मिलने वाला हिस्सा स्थिर बना हुआ है, जिससे व्यापक आर्थिक लचीलापन बाधित होता है।
- अल्प-रोज़गार और प्रच्छन्न बेरोज़गारी में वृद्धि हुई है, विशेष रूप से कृषि एवं अनौपचारिक क्षेत्रों में।
- सामाजिक सुरक्षा का अंतर बढ़ता जा रहा है, क्योंकि निम्न आय वाले श्रमिकों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा, पोषण एवं शिक्षा तक पहुँच पाने में कठिनाई हो रही है।
न्यायसंगत और सतत् विकास सुनिश्चित करने के लिये नीतिगत उपाय
- स्वचालित एवं आवधिक संशोधन तंत्र के माध्यम से ग्रामीण एवं न्यूनतम वेतन को मुद्रास्फीति के अनुरूप सूचकांकित किया जाना चाहिये।
- अतिरिक्त कार्यबल को उचित वेतन पर नियोजित करने के लिये वस्त्र, पर्यटन, कृषि प्रसंस्करण जैसे श्रम-प्रधान उद्योगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- ग्रामीण युवाओं और महिलाओं को उच्च वेतन वाले क्षेत्रों की ओर स्थानांतरित करने के लिये कौशल विकास कार्यक्रमों का विस्तार किया जाना चाहिये।
- ग्रामीण आय को स्थिर करने के लिये MGNREGA और PM-KISAN जैसी वेतन-समर्थन और नकद अंतरण योजनाओं को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
- लाभप्रदता और श्रम कल्याण में संतुलन के लिये MSME में उत्पादकता से जुड़े वेतन प्रोत्साहन लागू किये जाने चाहिये।
- वेतन प्रवृत्तियों पर नज़र रखने, नीति बनाने और श्रम कानूनों के अनुपालन की निगरानी के लिये पारदर्शी श्रम डेटा प्रणाली सुनिश्चित की जानी चाहिये।
निष्कर्ष:
हालाँकि बढ़ता रोज़गार आर्थिक लचीलापन दर्शाता है, लेकिन स्थिर वास्तविक वेतन मज़दूरों के कल्याण और समतामूलक विकास को कमज़ोर करता है। भारत को अपने विकास रणनीति को ऐसी नीतियों के साथ संरेखित करना चाहिये जो मज़दूरी में वृद्धि, श्रम समावेशन और मुद्रास्फीति-समायोजित दृष्टिकोण पर आधारित हों ताकि समावेशी एवं सतत् आर्थिक प्रगति सुनिश्चित की जा सके।