-
15 Jul 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
दिवस 26: “भारत की दालों पर आयात-निर्भरता उसकी कृषि आत्मनिर्भरता के लक्ष्य के प्रतिकूल है।” दालों में आत्मनिर्भरता मिशन के अंतर्गत दाल उत्पादन को बढ़ावा देने के आर्थिक, पोषणात्मक तथा पारिस्थितिक निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- दाल उत्पादन और उपभोग में भारत के शीर्ष स्थान के बावजूद आयात विरोधाभास की व्याख्या करते हुए उत्तर लेखन की शुरुआत कीजिये।
- दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन के उद्देश्यों का संक्षेप में उल्लेख कीजिये।
- इसके आर्थिक लाभों, पोषण संबंधी लाभों और पारिस्थितिक निहितार्थों पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारत दालों का सबसे बड़ा उत्पादक (25%) और उपभोक्ता (27%) दोनों है, फिर भी यह दालों के आयात (14%) पर भारी रूप से निर्भर है, विशेषकर म्याँमार, कनाडा और मोज़ाम्बिक जैसे देशों से। इस आयात-निर्भरता को कम करने के लिये सरकार ने ‘दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन’ शुरू किया है। यह एक छह वर्षीय राष्ट्रीय पहल है, जिसका उद्देश्य अरहर, उड़द और मसूर जैसी प्रमुख दालों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है। यह मिशन भारत की खाद्य सुरक्षा और सतत् विकास के लिये आर्थिक, पोषणीय एवं पारिस्थितिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
मुख्य भाग:
आर्थिक निहितार्थ
- आयात बिल में कमी: घरेलू उत्पादन बढ़ाने से विदेशी मुद्रा और व्यापार घाटे का बोझ कम होता है।
- वित्त वर्ष 2024-25 में, भारत ने 5.5 अरब डॉलर मूल्य की दालों का आयात किया, जो सत्र 2017-18 से 2022-23 तक के 1.7 अरब डॉलर के वार्षिक औसत से तीन गुना अधिक है।
- किसान आय विविधीकरण: दालें, कम लागत वाली और वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिये उपयुक्त होने के कारण, लघु एवं सीमांत किसानों (विशेष रूप से मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में) को अतिरिक्त आय का स्रोत प्रदान करती हैं।
- MSP और खरीद के माध्यम से स्थिरता: अरहर, मूंग और उड़द जैसी दालों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि हुई है और NAFED के तहत खरीद सुनिश्चित हुई है, जिससे दालों की कृषि अधिक लाभदायक हो गई है।
- बाज़ार में उपज खपाने की चुनौती: नीतिगत प्रयासों के बावजूद, यदि क्रय की व्यवस्था कमज़ोर है या विलंब से होती है, तो कटाई के मौसम के दौरान मंडियों में उपज की अधिकता के कारण कीमतों में गिरावट किसानों को हतोत्साहित कर सकती है।
पोषण संबंधी निहितार्थ
- प्राथमिक प्रोटीन स्रोत: भारत की 60% से अधिक शाकाहारी आबादी के लिये दालें प्रोटीन का मुख्य स्रोत हैं। दालों को बढ़ावा देने से व्यापक प्रोटीन-ऊर्जा कुपोषण (विशेष रूप से निम्न-आय वर्ग में) की समस्या दूर होती है।
- पोषण सुरक्षा: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, पाँच वर्ष से कम आयु के 35% से अधिक बच्चे अविकसित हैं। मध्याह्न भोजन और ICDS जैसी सार्वजनिक योजनाओं में दालों को शामिल करने से पोषण संबंधी परिणामों में सुधार हो सकता है।
- आहार विविधता: दालें आहार को आयरन, फोलेट और ज़िंक जैसे आवश्यक पोषक तत्त्वों से समृद्ध बनाती हैं, जो छिपी हुई भूख (Hidden Hunger) से निपटने में महत्त्वपूर्ण हैं।
पारिस्थितिक निहितार्थ
- संधारणीय फसल: दालों को कम जल की आवश्यकता होती है और ये शुष्क भूमि आधारित कृषि के लिये उपयुक्त हैं, जो भारत के निवल बुवाई क्षेत्र के 60% से अधिक क्षेत्र को कवर करती हैं।
- मृदा स्वास्थ्य वर्द्धक: नाइट्रोजन-स्थिरीकरण फसलें होने के कारण, दालें सिंथेटिक उर्वरकों की आवश्यकता को कम करती हैं, मृदा की उर्वरता को पुनर्जीवित करती हैं और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करती हैं।
- जलवायु अनुकूलन: अनियमित वर्षा और सूखे (अनावृष्टि) के दौर में, छोटे फसल चक्र और कम इनपुट की ज़रूरतें, दलहनों को जलवायु-अनुकूल कृषि के लिये आदर्श बनाती हैं।
निष्कर्ष:
भारत के 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य के लिये एक समुत्थानशील कृषि क्षेत्र की आवश्यकता है। दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन को कुशल क्रियान्वयन, किसानों की सहभागिता और निजी भागीदारी का समर्थन प्राप्त होना चाहिये। मूल्य शृंखलाओं का सुदृढ़ीकरण, उचित मूल्य सुनिश्चित करना और कटाई-उपरांत व्यवस्था एवं बुनियादी अवसंरचना में सुधार, आयात पर निर्भरता कम करने तथा कृषि आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की कुंजी हैं।