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18 Jul 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 3
विज्ञान-प्रौद्योगिकी
दिवस 29: भारत में समावेशी विकास के लिये प्रौद्योगिकी एक प्रमुख सहायक है। शहरी-ग्रामीण विभाजन को न्यूनतम करने में इसकी भूमिका का परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय में समावेशी विकास को संक्षेप में परिभाषित करते हुए डिजिटल विभाजन से संबंधित हालिया डेटा पर प्रकाश डालिये।
- साक्ष्यों के साथ प्रमुख क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी की भूमिका का परीक्षण कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
प्रौद्योगिकी पहुँच, समानता और अवसर को बढ़ावा देकर समावेशी विकास को गति देती है। कॉम्प्रिहेंसिव मॉड्यूलर सर्वे: टेलीकॉम 2025 के अनुसार, युवाओं में स्मार्टफोन का उपयोग लगभग सार्वभौमिक (97.1%) हो चुका है, फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल स्वामित्व (69.3%) शहरी क्षेत्रों (82%) की तुलना में 13 प्रतिशत कम है। इसी प्रकार केवल 3.2% ग्रामीण परिवारों के पास ऑप्टिकल फाइबर तक पहुँच है जबकि शहरी क्षेत्रों में यह आँकड़ा 14% है। इस अंतराल से इस बात पर प्रकाश पड़ता है कि कनेक्टिविटी का विस्तार तो हुआ है, परंतु सार्थक डिजिटल समावेशन अभी भी असमान बना हुआ है।
मुख्य भाग:
शहरी-ग्रामीण विभाजन को कम करना:
- डिजिटल अवसंरचना विस्तार: भारतनेट और किफायती डेटा जैसे सरकारी प्रयासों से 83.3% ग्रामीण परिवारों तक इंटरनेट की पहुँच सुनिश्चित हुई है।
- ग्रामीण वित्तीय समावेशन: 80.7% से अधिक युवा UPI का उपयोग (जो डिजिटल भुगतान की व्यापकता दर्शाता है) करते हैं। हालाँकि, केवल 63.4% ग्रामीण युवा ही डिजिटल बैंकिंग में संलग्न हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह अनुपात 79.7% है।
- शिक्षा प्लेटफाॅर्म: पीएम ई-विद्या और दीक्षा जैसे कार्यक्रम ग्रामीण छात्रों को गुणवत्तापूर्ण सामग्री तक पहुँच प्रदान करते हैं लेकिन केवल 56.9% ग्रामीण युवा महिलाओं के पास ही फोन हैं, जिससे इनका उपयोग सीमित हो जाता है।
- टेलीमेडिसिन: ई-संजीवनी जैसे प्लेटफाॅर्मों द्वारा 100 मिलियन से अधिक टेली-परामर्श प्रदान किये गए हैं, जिससे विशेषज्ञ स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच के संदर्भ में शहरी-ग्रामीण असमानता में कमी आई है।
- ई-गवर्नेंस: प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) के तहत अब बिचौलियों को दरकिनार करते हुए लाभार्थियों के खातों में प्रत्यक्ष सब्सिडी पहुँचती है जिससे सेवा दक्षता में सुधार हुआ है।
चुनौतियाँ:
- डिजिटल कौशल: केवल 22.9% युवा ही डॉक्यूमेंट ड्राफ्ट कर सकते हैं तथा ग्रामीण महिलाओं में यह आँकड़ा केवल 19.5% है, जिससे उपयोग और उत्पादकता के बीच के अंतर पर प्रकाश पड़ता है।
- साइबर जागरूकता: केवल 20.8% ग्रामीण युवा ही साइबर अपराध की शिकायत दर्ज़ करा पाते हैं, जो डिजिटल खतरों के प्रति अपर्याप्त तैयारी का परिचायक है।
- इंटरनेट पहुँच: केवल 3.2% ग्रामीण परिवारों में ही फाइबर कनेक्शन हैं इसलिये अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट उपयोग मोबाइल नेटवर्क पर निर्भर करता है, जिसमें गति और विश्वसनीयता संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- लैंगिक डिजिटल विभाजन: पुरुषों और महिलाओं के बीच मोबाइल स्वामित्व में काफी अंतर (83.3% बनाम 63%) है जिससे सीखने या उद्यमिता के संदर्भ में तकनीक का उपयोग करने में महिलाओं की स्वायत्तता सीमित हो जाती है।
निष्कर्ष:
डिजिटल पहुँच के क्रम में भारत की प्रगति के साथ-साथ अब डिजिटल विस्तार (अर्थात कौशल, सार्थक पहुँच और सशक्तीकरण) सुनिश्चित करने के प्रयास भी होने चाहिये। शहरी-ग्रामीण डिजिटल अंतराल को कम करने के लिये न केवल कनेक्टिविटी की आवश्यकता है बल्कि लक्षित क्षमता निर्माण, बुनियादी ढाँचे की समानता तथा समावेशी डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र की भी आवश्यकता है।